पाठशाला

पाठशाला

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मिन्नी की पाठशाला तीन किलोमीटर की दूरी पर होगी। झोपड़ी के दूसरे बच्चो के साथ उसकी मां भी उसे एक थैले मे स्लेट बत्ती रख स्कूल भेज देती। चार साल की मिन्नी को स्कूल बिल्कुल नही भाता। उसे तो मां के साथ काम पर जाना अच्छा लगता, जहाँ कोई उसे बिस्किट, कोई मिठाई, पुराना खिलौना पकड़ा देता, वो मस्त खेलती और माँ घरो का काम करती।

स्कूल में तो अमला, पहाड़ा जाने क्या क्या। मेम जी की डांट भी पड़ती।

और स्कूल के रास्ते मे पड़ता था पुलिस थाना। गेट पर खड़े पुलिस वाले से बहुत डरती, उसे लगता वो उसे पकड़, जेल मे बंदकर देगा जैसे उसके बाप को जुआँ खेलते देख पकड़ कर जेल मे डाल दिया। बहुत मारते है पुलिस वाले। उस जगह वह साथ के बड़े बच्चो के बीच दुबक जाती।

माँ ने उसके बाल बना, चाय से बासी रोटी खिला स्कूल भेजा। मिन्नी बहुत रोई। हाथ पैर मारती रही। स्कूल नही जाना। मां नहीं मानी। रास्ते भर वो रोती रही। उसके साथ जा रहे बच्चो ने उसे सलाह दी, जाकर मां से कह दे- तेरे पेट मे दर्द हो रहा है। मिन्नी के छोटे से दिमाग मे बात जम गई। रोते रोते मां को बताया पेट दर्द है। माँ भी कहाँ कम बोली- चल डाकटर के, सुई लगवाती हूँ। घबरा गई मिन्नी, जल्दबाजी मे कुछ न सुझा तो बोली- देर होने के कारण मेम जी ने मुझे क्लास के अंदर नहीं आने दिया। मां बोली- ऐसे कैसे नहीं आने दिया, चल मेरे साथ। मैं भी देखूं तेरी मेम ने क्लास में आने क्यों नहीं दिया।

मां लगभग घसीटते हुए उसे स्कूल ले गई और क्लास में छोड़ के आई।

मिन्नी का शाला से डर उसकी टीचर ने समझ लिया। वो उसका विशेष ख्याल रखती। गलतियों पर नाराज नहीं होती, प्यार से समझाती। कभी कभी क्लास के बच्चों के लिये भी मिठाई लाती। सब बच्चो के साथ खेलती।

"मां जल्दी से तैयार कर दे। शाला को देर हो रही है"मिन्नी कहती।

"देर हो तो मेम तुझे क्लास में नहीं आने देगी। आ जाना घर "मां हँस कर कहती।

"मेरी मेम बहुत अच्छी है और शाला भी।"और मिन्नी बस्ता कन्धे पर रख चल देती।


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