Om Prakash Gupta

Abstract

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Om Prakash Gupta

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नज़रिया बदलिए,जनाब

नज़रिया बदलिए,जनाब

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व्यक्तिगत रूप से जहाँ तक हमें ऐसा महसूस होता है कि इस दुनिया को यथेष्ट से समझ पाना आसान नहीं है।कारण देश,काल,परिस्थति के गति अनुसार दुनियाँ में परिवर्तन परिलक्षित होना स्वाभाविक है।अतः एक क्षण हमारे द्वारा दी गई प्रतिक्रिया अनुकूल नजर आती है तो वही दूसरे क्षण उसी कारण के लिए प्रतिकूल हो जाती है।अतः अपने अनुभव का प्रयोग कर अपने नजरिये में बदलाव आवश्यक है।ये दुनियाँ पर्यावरण की दृष्टि से जितनी सुन्दर और सौम्य है उतनी ही परिस्थितिजन्य दुर्गम और असाधारण है।कालान्तर से यदि विचार करें तो हमें इसमें आमूल परिवर्तन दिखाई देता है,यह बहुत असाधारण है।जहाँ तक हमारी समझ है कि हम सरल मानवीय दर्शन को अपना लें तो एक हद तक आनन्द की प्राप्ति से नहीं रोका जा सकता।जैसे : जो नसीब में है,वो चलकर आयेगा।जो नहीं है वो आकर चला जायेगा; अगर जिन्दगी इतनी अच्छी होती तो रोते न आते,अगर बुरी होती तो लोगों को रुलाकर न जाते;भव्य जीवन जीना बुरा नहीं है;पर सावधान,जरूरतें पूरी हो सकती हैं, तृष्णा नहीं ;कभी गुरूर आये तो असलियत जानने कब्रिस्तान का चक्कर लगा लेना,क्योकि वहां कई बेहतर इंसान मिट्टी में दफन हैं ।सब समझ आने में देर नहीं लगेगी कि ये दुनियाॅ वैसी नहीं है-जैसी दिखाई देती है।इसे सही देखने के लिए नजरिया बदलने की जरूरत है ।


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