नियति
नियति
नियति का खेल निराला होता है नियति को हम बदल नहीं सकते जो होना होता है हो कर रहता है जितना दुःख लिखा होता है झेलना पड़ता है
साल 2009 बरसात का मौसम गांव में बाढ़ आया है किसी का घर गया किसी की संपत्ति परंतु यहां तो किसी सर्वस्व जीवन ही छीन गया
वसुधा का सुहाग छीन गया
पुल टूट जानें से कई लोगों समेत उसके पति का भी जीवन समाप्त हो गया
यहां समय की कुटिलता देखिए , कहते हैं ना विप्पति आती है तो हर तरफ़ से आती है तेज़ बारिश में उसका घर भी ढह गया
वहीं आंगन में पड़ी चीखती चिल्लाती बेसुध पड़ी
इधर उधर भागते लोग गांव के लोगों ने बाढ़ से बचने के लिए सुरक्षित जगह खोज ली थी
बाढ़ का पानी गांव से कम हो गया लेकिन वसुधा के जीवन की की मुश्किलें तो और बढ़ गई
ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया यह कह कर की वसुधा कुलाक्षिन है उसके आते ही राकेश मर गया
वसुधा पेट से थी मायके में बच्चे का जन्म हुआ
वसुधा ने बच्चे का नाम सूरज रखा
मायके में जैस तैसे क़रीब 4 साल बीत गए अब सूरज 3साल का है बेटी मायके में शादी के बाद रहे तो समाज से ताने मिलते हैं और मायके वाले भी एक वक्त बाद अपना रवैया बदल देते हैं
वही हो रहा था अभी वसुधा के साथ
वसुधा ने फ़ैसला किया वो वापस ससुराल जाएगी
वसुधा के भाइयों ने उसके ससुराल वालों से लड़कर उसे राकेश के हिस्से की ज़मीन और रहने के लिए घर दिलवा दिया,
वसुधा पढ़ी लिखी थी उसने गांव के स्कूल में पढ़ाना शुरु कर दिया
सूरज भी साथ में स्कूल जाता पढ़ता
6 साल बीत गए
सबकुछ अच्छा चल रहा था
लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था
वसुधा के ससुराल वालों ने उसे सताने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी
उसके जेठानी सुशीला और जेठ रमेश के मन में लालच था राकेश का एक ही लड़का है अगर ये नहीं होगा तो उसके हिस्से की ज़मीन उन्हें मिल जायेगी
एक दिन सूरज को स्कूल से आते समय किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी सर में काफ़ी छोट आई थी
डाक्टर ने जितनी पैसों की मांग की वसुधा उसे अपनी ज़मीन घर बेच कर ही पूरा कर सकती थी
उसके जेठ जेठानी ने उसे समझाया डॉक्टर ने कहा है बच्चे के बचने की उम्मीद कम है अगर जमीन घर भी चला गया और सूरज भी नहीं रहा तो
वसुधा के आंखों से आंसू रुक नहीं रहे थे रोते हुई बोली मेरा लाल नहीं रहेगा तो किस काम का सब
उसने गांव से वकील बुला लिया था
यहां इधर जेठ जेठानी की चाल उल्टी पड़ रही थी
जेठानी बच्चे के पास गई और उसका गला दबाने लगी इतने में वसुधा वहां आ गई
दीदी ये ये क..क्या कर रही
जेठानी मुझे लगा था ये रोड पर ही मर जायेगा लेकिन मेरा पति बेवकूफ है हर काम अधूरा छोड़ता है
वसुधा बेसुध हो वहीं गिर गई जिन पर भरोसा किया उन्होंने ने ही उसे उजाड़ दिया वो अपने भाइयों को बुलाने के लिए उठी
तभी रमेश आ गया
दोनों ने वसुधा का भी खून कर दिया
वसुधा जीवन भर सताई गई कभी किस्मत ने कभी समाज ने कभी अपनो ने क्या यही अंत था उसका
कहते हैं जिन्हें बहुत सताया जाता है वो भूत प्रेत बन जाते हैं
रमेश की लगी फसल खेत में ही जल गई उसकी पत्नी को वसुधा दिखती है हर जगह वो पागल हो गई
और रमेश को लकवा मार गया
गांव वालों का कहना है ये सब वसुधा के आत्मा ने किया है
वसुधा की आत्मा आज भी भटकती है वहां
रात होते ही वसुधा के घर की तरफ़ कोई नहीं आता जाता ।