निशब्द
निशब्द
सुबह दस बजे का समय था कोर्ट में रजिस्ट्रार के ऑफिस के बहार लोग आने अले थे। वहीँ लेनिन की लाल साड़ी पहने दिशा बैठी थी। उसी समय “दीदी कोई आपके लिए ये चिट्ठी दे कर गया है।” इतना कहते हुए एक छोटा बच्चा दिशा को चिट्ठी दे कर चला गया। चिट्ठी पढ़ते ही दिशा का सुर्ख लाल चमकता चेहरा अचानक से सफ़ेद हो गया जैसे उसके शारीर में खून का एक कतरा भी न हो। ऑफिस के बहार की चहल-पहल एकदम से सन्नाटे में बदल गयी और रह गई तो बस दिशा की सिसकियाँ।।फिर अचानक से लोगो की कानाफूसी करने की आवाज भी आने लगी। ठीक उसी पल भीड़ में से किसी ने धीरे से कहा “लगता है ये जिससे यहाँ शादी करने को आई है उसने मना कर दिया है, पता नहीं आज कल के बच्चो को क्या हो गया है माँ बाप की इज्ज़त की कोई फिक्र ही नहीं रहती है।” वहीं दिशा शांत आँखों में आंसू लिए चुपचाप बैठी रही।
कुछ देर बाद ही ऑफिस से वहाँ चपरासी का काम करने वाला रामचरण हाथ में पोछा लिए बहार आया और दिशा से बोला सॉरी मैडम आज आपका पहला दिन है और आपको इंतज़ार करना पड़ा। इतना सुनते ही ऑफिस के बहार खड़े सभी लोग जो अभी तक अपने मन में जो आया वो बोल रहे थे एकदम से शांत हो अपने काम को ख़त्म कर के दिशा ऑफिस से सीधा अपने घर को निकल गयी। रास्ते भर अपनी आँखों को बहने से रोकने की नाकाम कोशिश करती रही।
आज उस चिट्ठी ने उसको दो साल पहले की ऐसी बात बता दी थी जो न उसको पता थी न उसके घर में किसी को पता थी। दो साल पहले की कुछ मीठी कुछ तीखी यादों को याद करते हुए दिशा अपने घर पहुँची ही थी की उसने देखा के उसके घर में फिर से उसकी शादी की बात चल रही है। जैसे ही दिशा की माँ सरल की नज़र दरवाज़े पर पड़ी तो सबको चुप करने की लिए दिशा को आवाज़ दी “अरे! दिशा आ गई ऑफिस से कैसा रहा तुम्हारा पहला दिन ?”
दिशा ऐसे सबके सामने से निकल कर अपने कमरे में चली गई जैसे उसने कुछ सुना ही न हो, रात को सबके साथ खाना खाने के बाद दिशा फिर से अपने कमरे में चली गई और काफी देर तक रोती रही। जब सुबह उठी तो फिर वही शादी-शादी की रट लगाएं अपनी माँ को देखा। इसपर उसने यही कहा कि “आप लोग क्यों बार-बार मेरी शादी की बात करने लगते हो नहीं करनी मुझे किसी से शादी।” दिशा के इतना बोलते ही दिशा के पसंतोष ने गुस्से में कहा “क्यों तुमको आज भी उस अमर का इंतज़ार है जो तुमको उस वक़्त छोड़ कर चला गया था जब उसको तुम्हारे पास होना चाहिए था, कैसे भूल सकती हो तुम तुम्हारा एक्सीडेंट भी उसी के कारण हुआ था और वो उसी हाल में तुमको छोड़ कर चला गया था।” याद भी है कि नहीं?? अगर वो तुमसे शादी करना चाहता तो कभी छोड़ के नहीं जाता। इसपर दिशा वापस अपने कमरे में गई और वो चिट्ठी उठा लायी जो उसको कल मिली थी और संतोष के हाथ में देते हुए बोली “पापा काश आप सच और झूठ में अंतर करना जानते होते” इसके बाद वो वापस अपने कमरे में चली गई। संतोष ने वो चिट्ठी खोली जिसमे लिखा था।
हेल्लो दिशा सॉरी! तुम मुझे नहीं जानती पर हाँ! तुम किसी ऐसे को ज़रूर जानती हो जिसको मैं भी जानता हूँ। वैसे तुमको ये सब बताने की कोई ख़ास वज़ह तो नही है पर मैं अब इंडिया छोड़ के जा रहा हूँ तो सोचा तुमको वो सच तो पता होना ही चाहिए जो तुमको नहीं पता है। अमर ने तुमको कोई धोखा नहीं दिया है। हाँ मैं अमर का दोस्त हूँ, हम दोनों एक ही अनाथ आश्रम में रहते थे। जिस दिन तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ था उस दिन अमर मुझसे मिला था।
उसने मुझे बताया की तुम दोनों बाइक पर जा रहे थे की अचानक उसकी बाइक का ब्रैक ख़राब हो गया और उसी वक़्त सामने से आती कार से बाइक टकरा गयी और तुम्हरे सीने में कार का कांच धंस गया था और अमर को सिर्फ मामूली सी खरोच आई थी। किस तरह वो तुमको लेकर हॉस्पिटल पहुँचा। जब हॉस्पिटल में तुम्हारे पिता आये तो उन्होंने अमर को क्या कुछ नहीं कहा उन्होंने ये तक कह दिया कि अनाथ हो न परिवार क्या होता है क्या जानो। उसके बाद उन्होंने उससे सिर्फ यही कहा की लोग प्यार में एक दूसके की जिंदगी बनाते है तुमने तो मेरी बेटी की जिंदगी तबाह कर दी और अमर को हॉस्पिटल से चले जाने को बोला। वहाँ से अमर सीधा मेरे पास आया था। उसने बस ये बस बाते मुझे बताई ही थी कि तुम्हारे भाई ने कॉल पर बताया की डॉक्टर कह रहे है कि जो कांच धंसा है वो सीधा दिल में फंसा हुआ है और तुमको बचा पाना मुश्किल है।
इतना सुनते ही अमर दुबारा हॉस्पिटल जाने के लिए निकल गया पर वो कभी हॉस्पिटल पहुँच ही नहीं सका। हॉस्पिटल के पास में ही जब वो रोड क्रॉस कर रहा था तो एक ट्रक ने उसको टक्कर मार दी और अमर उसी वक़्त हम सबको छोड़ के चला गया। यही वज़ह है कि अमर तुम्हारे पास नहीं आया कभी। और तुमको पता है अमर मर के भी आज भी जी रहा है तुम्हारे सीने में। हाँ तुम्हारे सीने में जो दिल है वो अमर का ही है।
चिट्ठी पढ़ने के बाद संतोष की भी आँखें नम थी और घर के आँगन के बीच सिर झुकाए निशब्द खड़े रो रहे थे।
