कुछ पन्ने ज़िन्दगी के 1
कुछ पन्ने ज़िन्दगी के 1
सुबह सुबह चिड़ियों की सुर भरी मधुर आवाज़ से बस नींद टूटी ही थी कि अचानक आंगन से माँ की आवाज़ आयी।
"अरे उठ भी जा सूरज सिर पर चढ़ आया है, कितना सोयेगा।"
अब ऐसी बातें सिर्फ कहानियाँ ही बन कर रह गयी है।
कभी सोचा है? कि ऐसा क्यों!
शायद कभी नहीं, हाँ आख़िर क्यों सोचोगे क्या फ़र्क़ पड़ता है तुम तो खुश हो दूर किसी शहर में अपनी पत्नी और बच्चों के साथ। किराए का छोटा सा घर जहां तुम अपनी पत्नी और बच्चों के साथ बड़ी मुश्किल से रह रहे हो। गाँव का वो बड़ा घर जिसके बीच में एक बड़ा आँगन, घर के बाहर छोटा सा बगीचा अब वहां सिर्फ तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे बचपन की यादें है। कोई जब कहता है कि गाँव में माँ बाप अकेले कैसे रहते होंगे तो तुम्हारा जवाब होता अरे वो गाँव में रहे है यहां शहर की भीड़ और रफ्तार से मेल नहीं बना पायेंगे।
अरे भाई कभी खुद को उनकी जगह रख कर देखा है अगर नहीं देखा है तो देख लो क्योंकि हो सकता है तुम्हारा भविष्य इससे भी ज्यादा बुरा हो। तुम कम से कम अपने माँ बाप से मिलने तो चले जाते हो पर तब क्या हो जब तुम्हारे बच्चे तुमसे मिलने तक का न सोचे।
हाँ बहुत कड़वा बोलता हूँ पर कभी सोचा है की मैंने ऐसा क्यों कहा?
...............जारी