Vaibhav Rashmi Verma

Drama Romance Tragedy

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Vaibhav Rashmi Verma

Drama Romance Tragedy

काँच के टुकड़े

काँच के टुकड़े

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घर मे शादी का माहौल था छत के एक कमरे में सुगंधा की उसकी सहेलियां सजा रही थी कि तभी सुगंधा का मोबाइल बज उठा। फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ से एक जानी पहचानी सिसकती और थोड़ी गुस्से में भारी आवाज़ आयी।

"कितना आसान होता है कहना कि तुमने मुझसे कभी प्यार नहीं किया। तुमने भी कुछ ऐसा ही किया था न,

तुमने तो उस दिन जाते हुए एक बार भी मुड़ कर देखा तक नही।

मेरी गलती सिर्फ इतनी थी कि तुमको मैंने सबसे ज्यादा एहमियत दी कोई क्या कहेगा कभी नहीं सोचा।

दोस्तो से परिवार वालो से सबसे रिश्ता तोड़ लिया क्योंकि मुझे तुम्हारा साथ देना था आखिर साथ देता भी क्यों नही तुमसे इतना प्यार जो करता हूँ।

तुमने जो चाहा जैसे चाहा वो किया मैंने कभी कुछ नहीं कहा एक बार बस टोक क्या दिया तुमने तो मुझे छोड़ ही दिया।

और अब किसी दूसरे से शादी करने जा रही हो। मुझे इतना दुख दे कर खुश रह लोगी न !"

इतना सब सुनने के बाद सुगंधा कुछ कह पाती फ़ोन के दूसरी तरफ से खामोशी को तोड़ती हुई एक तेज़ आवाज़ आयी और फ़ोन कट गया।

अजय ने अपने सामने रखी काँच की मेज पर सारा गुस्सा निकाल दिया था।

देखने को तो अजय के सामने फर्श पर काँच के टुकड़े बिखरे थे पर असल में वो अजय के अधूरे ख़्वाब थे वो अब कभी पूरे नहीं हो सकते थे।


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