नीति की नियति
नीति की नियति


नीति की नियति में क्या-क्या लिखा है, भाग्य लिखने वाला विधाता भी कभी-कभी उसे समझ नहीं पाता। अभी-अभी नीति की नियति उसके जीवन के सारे अँधेरों को मिटा कर, नए सवेरे को दस्तक दे गई हैं। घर में सभी के फोनों की घंटियाँ थमने का नाम ही नहीं ले रही हैं। बधाइयाँ देने वालों का तांता लगा हुआ हैं---- अरे! पार्टी तो बनती हैं ---मुँह मीठा कराओ--- नीति ने तो कमाल ही कर दिया--- पहले ही बार में जज की परीक्षा पास कर गई--- वह भी नंबर एक पर---। इनमें से ज्यादातर वहीं लोग थे जो तीन साल पहले उसे आवारा, बदचलन और ना जाने कितने तानों से उसे घायल करते थे। अपनी बहू-बेटियों की इज्जत की दुहाई देकर नीति का परित्याग करने के लिए उसके माँ-बाप को मजबूर करते थे। लेकिन यह उसके माँ-बाप की तपस्या और वटवृक्ष की सघन छाया का परिणाम था, नीति रूपी पौधा फलीभूत हो गया। अगर माँ-पापा भी उस समय साथ छोड़ देते, यह सब सोच कर नीति अंदर तक सहर गई। कालेज में पढ़ाई के दौरान नीति और आशीष न जाने कब दो जान से एक हो गए। उन्हें एक-दूसरे के बिना एक क्षण भी बिताना संभव नहीं हो पा रहा था। लेकिन माँ-बाप का निर्णय, पहले पढ़ाई पूरी करके दोनों अपने पैरों पर खड़े होओ, उसके बाद सोचेंगे।
इस समय कच्ची उम्र का तकाज़ा हैं। अपने प्रति माँ-बाप के इस नज़रिए ने, नीति की नजरों में उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन बना दिया। घर से गहने और पैसे लेकर नीति आशीष के साथ भाग गई। लेकिन कच्ची उम्र का इश्क रोग कुछ दिनों के पश्चात परवान न चढ़ सका।पैसों के खत्म होते ही झगड़े शुरू हो गए। आवारा, पागल बेवफा प्रेमी आशीष उस पर बदचलन का दाग लगा कर हमेशा के लिए उसे छोड़ कर चला गया। कई महीनों काम की तलाश में नीति की नियति उसे यहाँ-वहाँ भटकाती रही। कभी काम और रोटी मिली और कभी नहीं । वह काम दिलवाने का झाँसा देने वाले आवारा बदचलन लड़कों के गिरोह में फँस गई। यहाँ भी नीति की नियति का चमत्कार, वह उनके चंगुल से निकल भागी और बदहवास, अर्धविक्षप्त घर के गेट पर आ पड़ी। उसे देखते ही दादा-दादी तथा सारे रिश्तेदार चिल्ला पड़े।निकालो इसे घर से, समाज में बेइज्जत कराएगी-- समाज सुधार गृह भेज दो या पुलिस के हवाले कर दो--- कोई- कोई तो कह रहा था कि मार ही दो। लेकिन माँ-पापा ने सबको को अनसुना करके नीति की नियति को गले लगाया। उसका ईलाज करवाया, उसका ढ़ाँढ़स बँधाया।बेटा यह तुम्हारी नियति थी, बुरा सपना समझ कर भूल जाओ, फिर से उठो--- मेहनत करो और आगे बढ़ो। हम अभी भी पहले की तरह तुम्हारे साथ खड़े हैं। जितनी जल्दी इस बुरे सपने से बाहर निकलोगी, उतना तुम्हारे लिए ही भी अच्छा होगा। समाज की नजरों से बचाने के लिए माँ-पापा हमेशा साए की तरह उसके साथ चिपके रहें। बचपन में भी उन्होंने इतना जी-जान नहीं लगाया, जितना जी-जान उन्होंने मुझे इन हालातों से बाहर निकालने के लिए लगा दिया। उनकी कठिन तपस्या और सहनशक्ति का ही परिणाम, नीति यूपीपीएससी सिविल जज परीक्षा में नंबर वन--। नीति माँ-पापा के गले लग कर अश्रुओं के सैलाब को नहीं रोक पाई और नीति की नियति से विजय पा कर माँ-पापा गर्व से फूले नहीं समाए।