निःशब्द
निःशब्द
आज पूरे घर में मातम पसरा हुआ था। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि ग्यारह साल का तन्मय आत्महत्या जैसा कदम उठा सकता है। उसकी मां को इस बात का यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि उनका ग्यारह साल का मासूम बच्चा अब इस दुनिया में नहीं रहा। वे तो जैसे पत्थर की हो गई थी।
उधर घर के सभी लोग इस बात का मंथन करने में लगे हुए थे कि आखिर ऐसी कौन सी बात हो गई थी जो तन्मय ने इतना बड़ा कदम उठाया? उस पर पढ़ाई के लिए भी कोई दबाव बनाया नहीं गया।
तन्मय की मौत से सबसे ज्यादा उसका भाई व्योम सदमे में था क्योंकि वो जानता था कि उसका भाई क्यों उसे छोड़कर चला गया?
कितनी अजीब बात है कि आज भी हमारे समाज में लड़कियों को जितना असुरक्षित माना जाता है उतना लड़कों को नहीं जबकि सच यह है कि लड़का हो या लड़की इस समाज में कभी कोई सुरक्षित है ही नहीं।
तन्मय के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था उसके स्कूल में। उसका शरीर किसी की वासना की तृप्ति का साधन बन गया था और उसे कर गया था निःशब्द