निःशब्द
निःशब्द


सुनो !
तुम वो देर रात तक जागने पर उधेड़ बुन करके बनाया हुआ ख्वाब नहीं हो जिसका खुमार सिर्फ कुछ देर चढ़ने के बाद सुबह उतर जाएगा। मुद्दतो तक चाहने का सोचा है तुम्हें।
बताओ इसमें भी कोई परेशानी ?
अरे हां,
वो मै सोच रही थी तुम्हारे लिए कुछ अच्छा करू जिससे तुम्हे लगे मै प्यार करती हूं।
तुम्हे अच्छा तो नहीं लगेगा सुनने में पर ठीक है सच है तो सुन लो।
और वो ये है इस वक़्त से लेकर पिछले कई महीनों से मै कोई भी छोटा हो या बड़ा काम करने की सोचूं भी तो हर ख्याल मै तुम आ जाते हो। अरे प्यार मोहब्बत छोड़ो सच्चाई जनो, हर दिन हर रात की बात करू तो दिन भर तुम्हारे ख्यालों में रहती हूं बस हमारी अच्छी यादें याद रहती है मुझे। पर रात थोड़ी अजीब होती है, वो सब सच बताती है। मेरी गलतियों को एक नहीं दो नहीं हजारों दफा मुझे ग
िनाती है। और हर बार ये सोचकर भी नींद नहीं आती कि गलती की है तो क्या? तुम तो उससे भी बड़ी सजा दे रहे हो मुझे! मुझसे दूर जाकर, मुझसे बात ना करके।
मुझे पता है अगर ये सब मैने बोल भी दिया तो इसपर भी २-३ पैराग्राफ आजाएंगे मुझे दोषी ठहराने वाले। जिसमे होगा देखो सब तुम्हारी वजह से ही हुआ तुम्हे बेहतरी से पता है। और मैं ! हर बार की तरह यहां भी निशब्द और एक स्तम्भ कि तरह खड़ी होकर तुम्हे सुनती रहूंगी। हम एक ही सिक्के के दो पहलू है जो साथ तो है पर बहुत अलग है।
मै चाहती हूं हम ठीक उसी तरह ही रहे ना जैसे हैं, मै बदलने की कोशिश भी करू तो तुम रोक लो। और रही तुम्हारी बात, तो तुम कभी कुछ गलत कर ही नहीं सकते ना।
चलो अच्छा ही है तुम गलतियां नहीं करते तो कम से कम तुम्हें मेरी तरह बेजार और निशब्द मेरे सामने खड़ा नहीं होना पड़ेगा।