Meenakshi Kilawat

Tragedy

5.0  

Meenakshi Kilawat

Tragedy

नहीं जान सकते हम नियति का खेल

नहीं जान सकते हम नियति का खेल

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किसको पता नियति के मन में क्या है सच तो यह है कि हम हाथ धो कर देख सकते हैं मगर किस्मत धोकर नहीं देख सकते। नियति के हाथों में सब कैद है हम कुछ भी नहीं कर सकते ना हम कोई भविष्यवाणी साकार कर सकते हैं। यथार्थ यही है सच हो या झूठ सब नियति के आगे फेल है। यह साधारण मानव के बस की बात नहीं है। यहां प्रत्येक व्यक्ति जीवन में जीने के लिए तड़पड़ाता है 

शायद हमें हमारे नसीब में क्या लिखा है यह पता होता तो हम वह घटना से सतर्क रहते वह घटना अच्छी या बुरी भी हो सकती है।


हम नियति के हाथों की कठपुतलियाँ है हमें ऐसा लगता है ,नियति भी कभी-कभी हमें सचेत करती है।लेकिन उसका सुनना चाहिए लेकिन हम उधर ध्यान नहीं देते।हमें पता होता है कि उसके साथ ऐसा होने वाला है।लेकिन अगला व्यक्ति सुनाने के लिए तैयार ना हो तो कोई हमें उस व्यक्ति के बारे में आशंका होती है हम सदैव उसे समझाते रहते हैं। वह कोई भी बात हो सकती है स्वास्थ्य संबंधी, बिज़नेस संबंधी, नौकरी संबंधी, या शादी संबंधी वह कौन सी भी बात हो कोई ना कोई सजग करने वाला मिल ही जाता है। लेकिन सुने तब ना, जिसके साथ कोई घटना घटने वाली है उसे शायद दुर्बुद्धि ही होती है। वहां अगले व्यक्ति की बात सुनना नहीं चाहता।जो बार बार बताएं उससे नफरत करने लग जाता।ऐसे में हम नियति को दोष देते हैं।किस्मत को दोष देते हैं। नियति भी कुछ नहीं कर सकती ना नसीब भी कुछ नहीं कर सकता। कहते हैं "विनाश काले विपरीत बुद्धि" जिसका विनाश होना है उसको सुबुद्धि नहीं आती।


 ऐसे में कोई घटना घटती है तो हमें आश्चर्य का धक्का लगता है हालांकि आश्चर्यचकित नहीं होना चाहिए। जबकि उसे बार-बार समझाया गया होता फिर भी वहां नहीं सुनता फिर व्यापार में अगर घाटा हुआ या स्वास्थ्य संबंधी कोई बीमारी हुई तो आश्चर्य की इसमें क्या बात है।

 हम आश्चर्यचकित होते हैं वह घटना अच्छी होती है कभी बहुत ही बुरी, भयानक होती है फिर हम सोचते हैं कि ऐसा कैसे हुआ हमने कभी कल्पना भी नहीं की थी के ऐसा हो जाएगा।

इसीलिए पृथ्वी वासियों को इस खेल का पता पहले ही होता है मगर सुनने की क्षमता कम होती है। क्या हिटलर को पता नहीं होगा की दुनिया हासिल करने के बाद उसका क्या होना है उसकी कौन सी गति होना है, मगर ख्वाबों की दुनिया को सच्चाई में लाने के लिए क्या-क्या नहीं करते। आकाश में ऊंचाई पर उड़ान भरने के सपने देखते हैं जो कि हमारे बस में नहीं होता।

 

बात पड़ोस के ही घर का ही उदाहरण लेते हैं । खूब खुश हाल परिवार था माँ पिताजी बहन भाई सभी को एक दूसरों से लगाव था प्यार था। भाई बड़ा होने की वजह से बहनों से पहले शादी कर दी गई पत्नी भी बहुत अच्छे स्वभाव की मिलनसार समझदार मिल गई। फिर कुछ वर्षों बाद दो बहनों की शादी हुई घर परिवार की जिम्मेदारी भाई के ऊपर आ पड़ी। भाई ने सब जिम्मेदारियां बखूबी निभाया। बहनों को तकलीफ़ ना हो इसलिए भाई सदा से प्रयत्न करता रहा।

बहन को बच्चा हुआ तब सारी ख़ुशियाँ मनाई गई। मगर दामाद शराबी रहने की वजह से बहन को ज्यादातर मायके में ही रखा गया जब कुछ बच्चा बड़ा हो गया समझा-बुझाकर उसे ससुराल भेजा गया दो-तीन महीना रह कर फिर वापस लौटी थी, ज्यादातर समय ऐसे ही गुजरा तब बच्चा 4 साल का हो गया, उसे स्कूल में जाना होता था फिर उसे उसके पापा लेकर गए , लेकिन नशे की आदत में बच्चे को मारना पीटना परेशान करना शुरू हो गया फिर उसे नाना नानी, मामा मामी के पास में ही रखा गया। 

सुहास घर में सब का लाडला बन गया घर के सब लोग उसके आगे पीछे घूमते दुलारते उसकी हर ख़्वाहिश पूरी करते। क्योंकि वहां बच्चा बहुत सुंदर प्यारा तथा नटखट था। वह मामा का विशेष प्यारा था दिन बीतते गए और वहां सुहास बड़ा होता गया।

मामा मामी ने अपना बच्चा समझ कर सुहास को लिखाया पढ़ाया सिखाया 23 साल का युवक हो चुका था पढ़ाई में ज्यादा ध्यान नहीं था फिर भी 12 वीं तक पहुंच ही गया। कंप्यूटर क्लासेस तथा पार्ट टाइम जॉब लगा दी गई और फर्स्टईयर में एडमिशन ली गई। उसे कॉलेज के अनेक मित्र मिल गए और सुहास ज्यादातर बाहर रहने लगा।

 अब वह सुंदर युवक बाइक चाहता था लेकिन मामा ने उसकी एक भी नहीं सुनी हाँ सब लाड प्यार पूरे किए कपड़ों का खाने का शौक बाकी सभी फर्ज़ मामा ने पूरे किये। देखा देखी बाइक की मांग करने लगा। उसे सब ने समझाया अभी तुम छोटे हो जब बड़े हो जाओगे तब तुम्हें गाड़ी मिल जाएगी, मामा मामी नानी समझाते वह अपने काम से लग जाता था कुछ दिन शांत रहता फिर बाइक के लिए शुरू हो जाता।


मामा सुहास को समझाते, तुम जब बड़े होकर अपने मम्मी का सहारा बनना है। तुम्हें छोटी बहन है उसकी पढाई लिखाई शादी भी करनी पड़ेगी, तुम्हारे पापा कुछ नहीं करते आगे तुम्हें ही घर संभालना है। लेकिन सुहास ने विरोध किया, कहने लगा मैं अभी छोटा हूं घर की जिम्मेदारी पूरी करूँगा पहले मैं गाड़ी तो लूँगा ही, उससे ज्यादा कुछ कहने का मतलब नहीं था ।

जाए कोई शौक ना लगा बैठे वह अब बड़ा युवा बन गया था। उसे समझाने का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा था।

उसके मन में क्या था स्वभाव से किरकिरा गया था। रात में 12 बजे तक बाहर रहने का शौक चढ़ा था, मामा ने उस पर नजर रखी, कोई कट्टे पर बैठे 4/5 मित्रों के साथ हंसी मज़ाक बातें करते थे। कोई बुराई नहीं थी लेकिन मामा को चिंता सता रही थी बच्चों के संगत में बुरा ना हो जाए कोई शौक ना लगा बैठे वह अब बड़ा युवा बन गया था। उस समझाने का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा था।


किसी की हिम्मत नहीं थी नानी ने उसे बाहर जाने से मना किया तब उसने गुस्से में चिढ़ कर अपनी और मम्मी पापा के गाँव जाने की तैयारी की नानी ने मामा मामी ने बहुत विनती है कि कि ऐसा मत करो यह सब छोड़कर मत जाओ लेकिन वह नहीं माना। मामा मामी अपने बच्चे की तरह प्यार करते थे उसे लेकिन उसे किसी की भी परवाह नहीं थी। गुस्से से निकल ननिहाल से निकल गया वहां जाकर उसने छोटी मोटी जॉब कर ली सुहास के पापा शराबी थे वह रात में 12.02 बजे तक तहलका मचाते रहते थे, इस वजह से उसके मम्मी ने उसे थोड़ा घर लेट आने के लिए परमिशन दे दी वह तो वही चाहता था। रात में कभी 1:00 बजे कभी 2:00 बजे ऐसे आने लगा उसने बाइक ले ली थी, समय 6 महीने निकल गए सब ठीक-ठाक चल रहा है समझ कर मामा मामी की चिंता कम हुई थी। जहां भी रहो खुश रहो फोन वगैरा आते रहते थे। राखी का त्योहार आया तब मामा की बिटिया को राखी बांधने के लिए वह मामा के गाँव आया। वह खुश दिखाई दे रहा था। उसे मामा ने कंप्यूटर ले कर दिया था। खुशी खुशी वह अपने गाँव चला गया। कुछ ही दिनों में वहां से उसके मम्मी का फोन आया की सुहास का एक्सीडेंट हो गया है और उसे हॉस्पिटल में भर्ती किया गया है उसके सर को बहुत भारी गुप्ती मार लगी है। मामा के होश उड़ गए थे। किसी तरह खुद को संभाल कर मामा ने तुरंत मामा मामी ने तुरंत तैयारी कर हॉस्पिटल पहुंच गए ।

डॉक्टरों ने बताया अभी वह पूरी तरह होश में नहीं है। लेकिन वह किसी बात से डरा हुआ था और आँखें नहीं खोल पा रहा था मामा मामी जाते ही वह उठ बैठा इधर उधर देखने लगा उसके आँखों में डर बना था।


डॉक्टर ने उसके बाद में बताया गया सुहास कोमा में चला गया इसका बहुत बड़ा ऑपरेशन करना पड़ेगा। सबके चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी, अब क्या करें ना करें के मानस स्थिति में पूरा परिवार आ गया। सब ने ऑपरेशन के लिए हामी भरी करीबन 10 /15 लाख खर्च हो गए लेकिन सुहास नहीं उठ पाया। सब चिंता में थे डॉक्टर कह रहे थे बुखार है बुखार होने की वजह से आईसीयू में ही रखना पड़ेगा। फिर बाद में बताया गया कि उसे वेंटिलेटर पर रखा है ऐसे करते चार-पांच दिन निकल गए उसके बाद में उन्हें बताना ही था क्योंकि मामा के रिश्तेदार डॉ आए थे सुहास को देखने के लिए उन्होंने अंदर जाकर देखा तो उन्होंने बताया कि वह इस दुनिया में नहीं है। उसे वेंटिलेटर पर रखा है सिर्फ कुछ पैसों के लिए। सबको बहुत बड़ा आश्चर्य का झटका लगा।

अस्पताल में शायद इंसानियतकी कमी है।हम मल्टीपेशालिस्ट हॉस्पिटल का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाते।

हालांकि सुहास अच्छा भला था। उसे कोमा में डाल दिया गया। ताकि ऑपरेशन की फ़ीस मिल सके। लेकिन उसकी जान पर खेल गई। इतना हट्टा कट्टा नौजवान को डॉक्टरों की नासमझी ने निगल लिया और सभि को आश्चर्यमें डाल दिया । 23/24 वर्ष का नौजवान बलि चढ़ गया। शायद इसी तरह उसे जाना होगा यह कर कह कर सब ने उस अपार दुख को निगल लिया। यह नियति का खेल नहीं तो और क्या है।"नहीं जान सकते हम नियति के खेल को"



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