नागराज की मणि
नागराज की मणि
नागराज को राज्य का रक्षक तो घोषित कर दिया गया था, पर क्या सच में वह इस लायक था इसकी परीक्षा तो अब होनी थी। काफी प्रतिद्वंद्वी थे और उसमें सबसे आगे था कर्कज।
कर्कज हमेशा से खुद को राज्य का रक्षक देखना चाहता था। परन्तु नागराज के आ जाने से किसी को उसकी याद तक न रहीं। एक वक्त था जब कर्कज ने राज्य को कितनी समस्याओं से बचाया था। उसमें शक्ति थी कि वह प्रकृति जनित आपदा को रोक सकता था।
कर्कज भी सोच चुका था कि वह राज्यवासियों और नागराज से इस बात का बदला जरूर लेगा। और हुआ भी कुछ ऐसा ही। पूर्णिमा के दिन जब आसमान में पूरा चांद चमक रहा था और नागराज ने अपने मणि को शिव मंदिर में रख दिया तो कर्कज ने उसे चूरा लिया।
बिना मणि के नागराज की सारी शक्ति खत्म हो गयी थी। अब बस वह आम इंसान बन कर रह गया था। जब यह बात बाबा मोक्ष देव को पता चली वह बहुत खुश हुआ और उसने नागराज को पकड़ कर अपने बक्से में बंद कर दिया।
अब बाबा को बस तलाश थी मणि की। बाबा जनता था कि कर्कज से मणि हासिल करने में परेशानी होगी। इसी लिये उसने अपने शिष्य भूक और वायद को याद किया।
भूक ने जहां भूकंप ला दिया वहीं वायद ने बवंडर। अब बारी थी कर्कज की, कि वो अपनी शक्ति से राज्यवासियों को परिचय करवाये। पर उसके लिए एक था दो आपदाओं से लड़ना आसान न था। उसे भूक और वायद ने पकड़ लिया और बाबा के पास ले आये।
बाबा उसे लालच दे रहा था पर नागराज ने कर्कज को समझाते हुए कहा
" कर्कज मैं जानता हूँ कि तुम मुझसे नाराज़ हो पर तुम ऐसे नहीं हो , खुद को ऐसा मत बनाओ कि लोग तुम्हें दुष्ट के रूप में याद करें।
ऐसा कहते ही कर्कज ने बक्से पर मणि रख दिया। नागराज की शक्ति वापस आ गयी थी और उसने कर्कज के साथ बाबा और उनके शिष्यों के छक्के छुड़ा दिए।
राज्यवासियों ने नागराज के साथ साथ कर्कज को भी अपना रक्षक घोषित कर दिया।