ना..... मतलब ना....
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"अरे भैया , क्या कर रहे हो" , विडिओ कॉल पर संजना ने राजीव से पूछा।
"मौजा ही मौजा डियर ..... , तुम क्यों मूँह लटका कर बैठी हो" , राजीव ने पूछा ।
"अरे भैया ,बोर हो गये।न कहीं आना , न कहीं जाना, अजीब मुसीबत है।"
"इसमें मुसीबत क्या है संजना ।आराम से बनाओ- खाओ , परिवार के साथ ताश, कैरम , लुडो , अंताक्षरी खेलो , फिल्में देखो , थोड़ा योग प्राणायाम भी कर लो....।मुझे तो इस लॉक डॉउन से कोई शिकायत नहीं बहना ।जितना मन को शांत रखोगी उतना.ही आराम से रह पाओगी" राजीव ने समझाते हुए कहा।
"भैया उपदेश मत दो प्लीज़..., हम लोग आज शाम को वहाँ आ रहे है । कल भाभी का जन्मदिन भी है।फिर दो दिन सब साथ यह लेंगे" संजना ने अपनी बात कही।
"अर..र...र...ना बाबा ना, बिल्कुल नहीं , अभी कहीं न आना है न जाना ...।ना मतलब ना...समझी । जन्मदिन अगले महिने नहीं तो अगले साल भी मना सकते हैं ।जान है तो जहान है पगली ।मुसीबत के समय वही करना है जो करणीय है वर्ना पछतावा ही हाथ लगता ।समझ गई, मेरी प्यारी बहना ।"
"हां भैया, समझ गई, मेरे राजा भैया", हँसते हुए संजना ने कहा ।
"बताओ तो क्या समझी"....राजीव ने पूछा।
"यही कि, ना... मतलब ना...." संजना ने कहा तो दोनों का समवेत ठहाका गूँज उठा जो वातावरण को पोजिटिव एनर्जी से सराबोर कर रहा था।