मवाना टॉकीज भाग 1
मवाना टॉकीज भाग 1
कैसा माहौल रहा होगा? सोमू सोचने लगा। अड़तालीस साल का पति अपनी बाइस साल की छुईमुई पत्नी को आग के हवाले कर दे और खुद भी पूरी इमारत सहित जलकर भस्म हो जाए। दरअसल मवाना टॉकीज जिस क्षेत्र में स्थित थी वह मवाना इस्टेट कहलाता था। आजादी के समय पाकिस्तान के सिंध प्रांत से यहाँ आये मवाना के बाप ने अपने परिश्रम और लगन से बड़ी प्रॉपर्टी बनाई। कई इमारतों का निर्माण करके उन्हें किराए पर चढ़ा दिया। इसी तरह उसने अच्छी आय को देखते हुए मवाना टॉकीज का निर्माण करवाया था जहाँ पहले खूब फ़िल्में लगा करती थीं। खूब रौनक रहती थी। इसी मवाना टॉकीज के ऊपरी तल पर मवाना परिवार रहता था और नीचे टॉकीज चला करती थी। सोमू उठकर टॉकीज के भीतर चला आया। भीतर का हाल और खराब था। जली हुई दीवारें धुएं से काली पड़ चुकी थीं। भीतर एक गलियारा था और उसके बाद हॉल! जहां एक जमाने में लगभग दो सौ दर्शक बैठकर फिल्म देखते थे। सोमू किसी अज्ञात भावना के वशीभूत था। उसने हॉल का दरवाजा थाम लिया और बाहर को खींचा। एक हलकी सी चर्र चर्र की आवाज हुई मानो दरवाजा भी वर्षों बाद छेड़े जाने का प्रतिरोध कर रहा हो। हॉल के भीतर घुप्प अँधेरा था लेकिन दरवाजा खोले जाने से हलकी प्रकाश की रेखा भीतर उपस्थित हो गई। धीरे धीरे उसकी आँखें अँधेरे की अभ्यस्त हो रही थीं। सामने एक दीवार थी जो सफ़ेद रंग से पुती हुई थी,जिससे परदे का काम लिया जाता था। भीतर कतार से लगी हुई कुर्सियां धूल धक्कड़ से भरी हुई थीं। कई तो टूट फूट गई थी लेकिन कुछ साबुत थी। सोमू ने अपनी जेब से रुमाल निकाला और एक कुर्सी को झाड़ कर उसपर बैठ गया। न जाने क्यों सोमू को यहाँ मजा आ रहा था। वह उन क्षणों को जी रहा था जब मवाना टॉकीज अपने उरूज पर थी और यहाँ मेला लगा करता था। सोमू यही सब सोच रहा था कि अचानक एक ऐसी बात हुई जिसने सोमू का खून जमा कर रख दिया।
क्या हुआ आगे?
किस बात से सोमू का खून जम गया?
पढ़िए भाग 2