मूक प्रेम
मूक प्रेम
कॉलेज पहुँची तो आशीष रोज़ की तरह अपने प्यार का इज़हार करने लगा। मैने आव देखा न ताव उसे खींच कर एक तमाचा रसीद कर दिया और बोली कि शर्म नही आती इस तरह रोज़ मुझे तंग करते हुए। हालांकि आशीष मुझे बहुत चाहता था, किन्तु मैं आनन्द, जो मेरी ही गली में रहता था, उसे चाहती थी। हम एक दूसरे को दो साल से जानते थे और एक दूसरे का साथ कभी न छोङने की कसम खाते थे।
एक दिन मैं कॉलेज जाने के लिए कार में बैठने लगी कि तभी एक नक़ाबपोश ने मेरे चेहरे पर तेजाब फेंका ओर वे लोग बाइक पर भाग गए, मैं तिलमिला उठी,जलन के मारे मेरा रोम रोम थर्रा उठा था मैं तड़प उठी।
चिल्लाने की आवाज़ सुन सब लोग जमा हो गए, मां का रोना तो ह्रदय विदारक था, पापा जैसे तैसे हिम्मत बांध कर उन्हें समझा रहेथे।
मुझे हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ मेरा इलाज हुआ, बाद में वह शख्स भी पकड़ा गया जिसने तेज़ाब फेंका था, वह पुरानी रंजिश के कारण हुआ था, किन्तु मैन उसे माफ कर दिया और केस वापस ले लिया।किन्तु मैं अपना चेहरा आईने में देखकर ही डर जाती थी। घर पर अब दोस्तों का आना जाना भी कम हो गया यहॉं तक कि मेरे साथ जीने मरने वाले आनन्द ने भी मुझसे किनारा कर लिया। मैने किसी को कोई दोष नही दिया सिर्फ अपनी किस्मत के। मैंने अब कॉलेज जाना बंद कर दिया।
माँ पापा इस उधेड़बुन में उलझे रहते कि कैसे होगी, कौन करेगा इससे शादी। आज साल होने को आया , कई जगह रिश्ते देखे, बात चली लेकिन सब जगह निराशा ही हाथ लगी। घर का माहौल बड़ा गमगीन हो गया था
एक दिन घर मे सब खाना खा रहे थे कि बेल बजने की आवाज़ आई। दरवाज़ा खोला तो चेहरे के आगे बुक्के लिए हुए एक लड़का खड़ा था, " हैप्पी बर्थडे शालिनी"
कहकर उसने वह बुक्के मेरे हाथ मे दे दिया।
"तुम"
कहकर मैने वह गुलदस्ता उसके हाथ से ले लिया। मुझे हैरानी थी कि आज मेरा जन्मदिन घर में किसी को याद न था, यहां तक कि मुझे भी, ओर इसे याद है ये वही लड़का था जिसे प्यार का इज़हार करने पर मैन थप्पड़ मारा था। उसने अंदर आकर सबसे अपना परिचय करवाया अंकल मेरा नाम आशीष है। मैं आपकी बेटी के साथ कॉलेज में पढ़ता था, इसे बहुत प्यार करता था। किन्तु अगर आप सब को एतराज़ न हो तो आज इसके जन्मदिन वाले दिन मैं आप सबसे इसका हाथ मांगना चाहता हूं, मैने इसकी खूबसूरत रूह से प्यार किआ है , मेरे लिए शक्ल सूरत के कोई मायने नही हैं मुझे शालिनी आज भी वैसी ही दिखती है। वो एक सांस में सब बोलता चला गया। सब एकटक उसे ही देखे जा रहे थे, औऱ मेरे पास आँसुओ और पश्चताप के अलावा कुछ भी न था