Gulafshan Neyaz

Drama

5.0  

Gulafshan Neyaz

Drama

मुस्कान

मुस्कान

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सर्दी का महीना था। आँगन में हल्की हल्की धूप थीं। मैंने आँगन में कुर्सी डाल कर चाय पीने लगी। तभी मेरे कानो में आवाज आई- भाभी सब्ज़ी है।

मैनें पीछे मुड़कर देखा तो हाथ में कटोरा लेकर मुस्कान खड़ी थी। नाम तो मुस्कान था पर चेहरे पर कहीं मुस्कान नहीं था। वो मेरी अम्मी से सब्ज़ी माँग रही थी। माँ ने उसे थोड़ी सी सब्ज़ी दे दी।

रात में मैं खाना बना रही थी। तभी मुझे मुस्कान की वही आवाज भाभी सब्ज़ी है। तो मुझ से रहा ही नहीं गया तो मैंने पूछा कि तुम्हारे यहाँ खाना नहीं बना तो वो धीरे से बोली- साग बना हैं। जो मेरे भाई नहीं खा रहा है तो मैंने सब्ज़ी दे डाली।

उसके कपड़े काफी मैले कुचले थे। इतनी ठंडी में पावँ में चप्पल नहीं थी। मैं कुछ देर के लिए सोच में पड़ गई। कोई की मुस्कान की माँ किसी से कम ही बात चीत करती थीं। और मैं यहाँ रह्ती भी नहीं थी। खाना खाते वक़्त मैंने माँ सै उसके बारे में पूछ ही डाला। तो माँ ने बताया उसके घर एक महीना से साग ही बन रहा है।

तो मैं चौंक गई। कोई एक महीना साग कैसे खा सकता है तो माँ ने बताया उसके बाप ने बहन की शादी के लेआ सूद पर पैसे लीआ था। लड़के को दहेज़ में देने के ले आ। और अचानक इसका बाप बीमार हो गया है। घर में कोई कमाने वाला कोई भी नहीं है।

जब मैं बाहर निकलती तो मुस्कान के दरवाज़े पर कोई ना कोई मांगने वाला होता और उसकी माँ उसे कहती की अगले महीना दे दूंगी और वो उनकी बेइज्जती करके चला जाता सब यही कहते जब औकात ही नहीं थी। तो उसकी बेटी की शादी और मुस्कान और उसकी माँ चुपचाप सुनती रह्ती। आज फिर मुस्कान कटोरा लेकर आया तो मैंने सोच की। मैं उसकी मदद करो उसके लेआ फण्ड इक्कट करों ताकी मुस्कान को सब्ज़ी का कटोरा लेकर घर घर घूमना परे मैने पास परोसा।

मैं बात की तो सबने मेरा मजाक उड़ाया। बोला कि कोई सौ रुपिया ही दे सकता है। इन्का कर्ज तो लाखों मैं है मदद तो किसी ने नहीं की पर सबने मुझे और मुस्कान की माँ को बहुत कूछ सुनाएगा।

उतने में लाउडस्पीकर पर किसी की माँगने की अवाज आएआ उसे सबने पैसे और आनाज देआ। पर किसी ने कोशिश नहीं की के उस मासूम सी बच्ची के चहरे पर भी मुश्कान आएआ। एआ कैसा समाज जिसने दहेज के नाम पर किसी की मुश्कान छिन ली उसे भिखारी बना दीया वो भी ऐशा भिखारी जीसे कोई भीख देने के लेआ भी त्यार नहीं मेरे लाख कोशिश के बाद भी मैं कूछ नहीं कर पाई। आज फिर मुश्कान सब्ज़ी लेने आए है आज तो उसके घर दिन मै खाना भी नहीं बना। नाम तो माँ बाप ने मुस्कान रखा है पर एक बेटी को दहेज के चक्कर में उसकी मुस्कान छिन गया। वो तो स्कूल भी नहीं जाती एक मजदूर बन कर रहे हैं।


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