मुनाफा खत्म.. महत्व खत्म.....
मुनाफा खत्म.. महत्व खत्म.....
ये क्या है.....????ये रोज रोज का क्या नाटक है। थक चुका ये सब देख के...इस उम्र में आपको ये सब शोभा नहीं देता है। लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे....ये कोई उम्र है आपकी शादी की। इस उम्र में लोग भगवान का नाम लेते और आपको शादी करने की भूत सवार हो गई है।" अपने बेटे जयंत की बातों को सुनकर चौधरी जी कहते है "बेटा बात बस इतनी सी है की मुझे भी जिंदगी जीने का हक है। मुझे भी पूरे सम्मान और स्वाभिमान के साथ सर उठाकर अपनी जिंदगी के हर फैसले लेने का हक है। चाहे वो 55की उम्र में शादी करने का ही क्यों ना हो। मैं शादी क्यों नहीं कर सकता। मुझे भी एक साथी की जरूरत है। तेरी जब से गई है मेरी जिंदगी में एक सूनापन सा छा गया है। तेरे और तेरी पत्नी के पास मेरे लिए वक्त ही नहीं है। मैं अकेला क्या करूं। "
अपने सासु जी कि बातों को रतन कहती हैं "इसका मतलब ये नहीं की आप शादी कर ले। कुछ भी करने से पहले एक बात का ख्याल जरूर रखें की अगर आपने ये जीद नहीं छोड़ी तो हमलोग का साथ जरूर छूट जाएगा।
"किस साथ की बात कर रही हो बहु.....वो साथ ....जबतक तेरी सास जिंदा थी तब तक..... उसके चले जाते ही तुम पति पत्नी के तो रंग ही बदल गाए। पहले पापा जी की हर छोटी बड़ी जरूरत का ख्याल था। और आज वही पापा जी की जरूरत खटकने लगी है। आज मेरे ही घर में मेरी हालत घर की मुर्गी दाल बराबर हो गई है... जिसकी कीमत घर में पड़े समान की तरह है जिसका होने या ना होने का कोई महत्व नहीं है।
ऐसा क्या कर दिया पापा मैंने और रतन ने जो आप ऐसे बोल रहे हो। आपकी कौन सी जरूरत हमने पुरी नहीं की। उल्टा आपकी जरूरत की वजह से मेरी.... खैर जाने दीजिए आप नहीं समझेंगे। ऐसे कैसे जब बात निकली है तो खत्म भी आज होनी चाहिए.....तो पापा जी अगर आपको सम्मान और स्वाभिमान के साथ जीने के दिन गए। अब आपकी इस उम्र में हमें आपकी कोई जरूरत नहीं है। हमें जो चाहिए था वो हमें मिल गया....आपको क्या लगता है मैंने माता जी की सेवा ऐसे ही की थी क्या... नहीं मुझे ये आलिशान बंगला चाहिए था जो मुझे मिल गया। और सवाल रहा आपका तो मुझे मेरी जिंदगी और घर पर कोई बोझ नहीं चाहिए। और अगर यहां रहना है तो जो मैं कहुं वहीं होगा चाहे आप चाहो या ना चाहो। इतना कह कर जयंत और रतन वहां से चले जाते है।
बहु की बातों से ज्यादा जयंत की चुप्पी चौधरी जी को बहुत चुभ रही थी। उन्होंने शादी करने का बहाना किया था। ताकी वो उन्हें समझे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। अपने बच्चों की हर ख्वाहिश पुरी की। बिना किसी स्वार्थ के पर आज वही पापा बोझ हो गए बेटे की जिंदगी में। पिता का स्थान घर पर पड़े बेजान समान की तरह हो गई है । जिसका होना या ना होना कोई महत्व नहीं है। चौधरी जी हार गए आज... अपने बेटे और बहू की सोच से। उनके पिता का उनके जीवन में क्या महत्व ये जान कर वो सब कुछ छोड़ निकल पड़ते है एक नए सफर की और। एक पिता की कीमत बेजान समान की तरह होती है....जब तक वह मुनाफा देती है तो उसका महत्व है... मुनाफा खत्म महत्व खत्म।
एक उम्र के बाद माता पिता की कीमत घर की मुर्गी दाल बराबर की ही होती है। उनका होना ना होने के बराबर होता है। क्यों की वो आपको कुछ दे नहीं सकते... इसलिए ।
अगर आपको मेरी कहानी अच्छी लगी हो तो जल्दी से अपनी राय हमें जरूर बताएं। गलती के क्षमा चाहती हूँ।