मुझे गणित से डर लगता था।

मुझे गणित से डर लगता था।

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विद्यार्थी जीवन मे सबका हमेसा से कोई डर तो होता ही है। फिर वो डर किसी अध्यापक का हो या किसी खास विषय का।

कुछ ऐसा ही डर मेरा भी था। और ये डर था गणित से। सुनने मे तो ये बेहद आम सी बात है पर मेरे लिए गणित एक ऐसा विषय था कि जब भी गणित की कक्षा आरंभ होती मेरी तबीयत इतनी जयादा खराब हो जाती थी कि धीरे -धीरे में गणित के नाम से भी डरने लगी थी।

मेरी इस हालत के चलते मै गणित मे फेल होने लगी। लेकिन उस वक्त वहां कोई ओर भी था जिसे ये मंजूर न था और वो मेरी गणित की अध्यापिका थी।

राशी नाम था उनका। वो मुझे इतना प्यार करती थी कि जब भी समय मिलता वो मेरे बाल बनाती, कभी मुझे दुलारती। पर जब राशी मैम ने मेरा गणित को लेकर इतना डर देखा तो मुझे काफी समय अपने साथ रखने लगी और कोशिश करती की मै जमा, घटाव सीखूं।

पर जाने क्यों में कुछ भी समझ नही पाती थी। और राशी मैम के चेहरे पर मुझे लेकर मायूसी देख में ओर ज्यादा डरने लगी। अब डर इतना ज्यादा था कि में स्कूल भी नहीं जाना चाहती थी।

राशी मैम ने ये सब देखकर मुझे एक दिन अपने पास बिठाकर बार- बार जमा करवाना सिखाती रहीं । पर जब यै भी काम न आया तब उनहोने गुस्से में मुझसे कहा कि अगर कल तक मैनै जमा करना न सिखा तो वो मुझे पंखें से उल्टा लटका देगी।

इस बात मे इतनी सच्चाई थी कि मुझे आज भी याद है कि कैसे मै घर जाकर डर के मारे जमा के सवाल करती रही। और अगले दिन राशी मैम के सामने भी खुद से सारे सवाल हल किए।

उस दिन से लेकर आज तक मैने फिर कभी गणित से मुँह नहीं फेरा। आज भी राशी मैम की वो लाल गुस्से वाली आँखे मुझे डर का एहसास करवाती है पर अब डर से ज्यादा खुशी मिलती है कि मेरा विद्यार्थी जीवन ऐसे अध्यापक के छाया तले गुजरा।

ऐसे तमाम शिक्षको को मेरा शत शत नमन।


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