मसान
मसान
अमावस की काली रात थी। श्मशान का पुजारी, वो अघोरी अपनी अघोर साधना में व्यस्त था। सामने चिताएं धू धू करके जल रहीं थीं। अघोरी के सामने एक नव यौवना का पार्थिव शरीर नग्नावस्था में पड़ा था। बड़ी मुश्किल से यह शव प्राप्त कर पाया था वह। रात बहुत बीत चुकी थी।
यह साधना का अंतिम चरण था। तभी उस शरीर में कालुषा प्रगट हुई। मशान की महातामसिक शक्ति कालुषा। साधक की साधना भंग करना ही उसका उद्देश्य था। पास आकर वह अघोरी की जांघ पर बैठ गई। नग्न कोमल स्त्री शरीर का स्पर्श पा कर उसने आँखें खोली। अब अघोरी अपनी आँखें बंद नहीं कर सकता था। खुली आँखों से ही उसे अपनी साधना पूर्ण करनी थी।
कालुषा से आवेशित उस पार्थिव शरीर ने अघोरी को सीधा लिटा दिया। उसके ऊपर बैठ कर वह मर्दन करने लगी। अधोरी काम ज्वाला में जलने लगा। दोनों का उद्देश्य अलग। जो पहले स्खलित हुआ वह हारा। कालुषा स्खलित होते ही अघोरी की गुलाम हो जाती। अघोरी उससे पहले स्खलित होता तो मारा जाता। मर्दन चलता रहा चिपचिपे द्रव से दोनों के जननांग गीले हो चुके थे। अघोरी का जीवन दांव पर लगा था। तभी कालुषा काम मद में चीखने लगी। मर्दन अपने चरम पर था। तभी दोनों एक साथ स्खलित हुए। स्थिति विकट हो गई। अघोरी का जीवन तो बच गया लेकिन कालुषा अब उस नवयौवना के शरीर की अधिकारिणी हो गई।
अघोरी समझ गया, गलती हो गई। कालुषा शरीर के साथ बहुत बलवान हो जाती। पंचकोशों की शक्ति उसे अजेय बना देती। "कुछ ना किया तो कई लोग मारे जाएंगे" सोचकर उसने पास रखा फरसा उठाया और उस शरीर के दो टुकड़े कर दिए। नियम भंग होते ही उस अघोरी की मृत्यु हो गई। कालुषा के काल मलय में एक ओर सेवक बढ़ गया। एक अघोरी ने अपना बलिदान दिया। दुनिया में किसी को पता ही नहीं चला।
श्मशान के पुजारी ने कई लोगों को श्मशान जाने से बचा लिया।
उस बलिदान वाली घटना को कई वर्ष व्यतीत हो चुके थे। उस अघोरी का बालक रविकांत अब 21 वर्ष का था। अपने स्वर्गीय दादा से उसने अघोर तंत्र की कई साधनाओं को सीखा एवं उनमें दक्षता पाई थी। बाद में उसके दादाजी भी उसका साथ छोड़ चले।
आज वह अपनी पहली शव साधना करने वाला था। शव साधना अघोर की क्लिष्टतम साधनाओं में से एक मानी जाती है।उसने एक शव का प्रबंध किया।
एक बुजुर्ग अघोरी उसका मार्गदर्शन करने वाले थे। कमाल दास नाम के ये बुजुर्ग साधक ऐसे सैकड़ों शव साध चुके थे।
सर्वप्रथम उस शव का परीक्षण किया जाता है। शव क्षत विक्षत ना हो। जवान व्यक्ति का शव उत्तम होता है।
उस शव का उचित प्रकार पूजन किया जाता है। ततपश्चात रविकांत उस शव के ऊपर बैठ जाता है। फिर शुरू होता है मंत्रों का उच्चारण।
अघोर के महातामसिक मंत्रों से पूरा शमशान गूंज उठता है। रविकांत जैसे ही मंत्र उच्चारण शुरू करता है शव का स्वास स्पंदन शुरू हो जाता है।
धीरे धीरे वह शव जागृत हो गया । उसने अपनी आंखें खोल दी थी। वह जोर जोर से घुर्र.. घुर्र.. की आवाज कर रहा था। तभी बुजुर्ग अघोरी ने अपना लोहे का चिमटा उस शव की मुख में रख दिया। ऐसा करते ही उस शव की सांसें धीमी हो गई। लेकिन अपनी खुली आंखों से वह आस-पास के माहौल का जायजा ले रहा था।
रविकांत की आंखें बंद थी। वह इस दृश्य को देख नहीं पाया लेकिन सांसों का स्पंदन महसूस कर पा रहा था। रविकांत के लिए यह पहला अनुभव था। अगर उसके साथ वह बुजुर्ग अघोरी ना होता तो शायद रविकांत यह साधना कभी नहीं कर पाता।
जैसे-जैसे साधना आगे बढ़ने लगी शव के अंदर की शक्ति बढ़ने लगी। एक समय ऐसा आया जब वह शव उठने की कोशिश करने लगा। ऐसा करते ही रविकांत का संतुलन बिगड़ने लगा। तब उस बुजुर्ग अघोरी ने भी मंत्रों का उच्चारण शुरू कर दिया। उस बुजुर्ग अघोरी के मंत्रों ने उस शव को काफी हद तक शांत कर दिया था।
साधना की अंतिम अवस्था में शव उठ कर खड़े हो गया। रविकांत ने उस अघोरी के साथ मिलकर किसी तरह उस शव को एक खंभे से बांध दिया।
शव का संतुष्ट होना आवश्यक था वरना कोई अर्थ ही नहीं साधना का। पहले उसे जी भर कर मदिरा पिलाई गई। जितना पिये उतनी प्यास बढ़े उसकी। ततपश्चात भोजन, शुद्ध तामसिक भोजन। कोई मिलावट नहीं। छक के भोजन किया उसने। अब बारी थी सम्भोग की।
लोगों को इन साधनाओं का अर्थ नहीं पता। क्यों करते है शव साधना। इसे समझने के लिये सर्वप्रथम शव को समझिये। शव अर्थात पार्थिव देह। सरल भाषा में इसे मिट्टी कहते हैं। मिट्टी अर्थात भूमि तत्व। भूमि तत्व का संबंध है हमारे मूलाधार से। मूलाधार का सम्बंध है भोजन एवं सम्भोग से।
इन सभी बातों को एक साथ मिलकर देखिये तो समझ में आता है कि शव साधना का सीधा संबंध हमारे मूलाधार से है। इस लिए शव साधना मसानी साधनाओं का मुख्य आधार है।
लेकिन जितना मुश्किल शव को जगाना है उससे और ज्यादा मुश्किल उसे सन्तुष्ट करना है। रविकांत ने उसकी कामाग्नि को सन्तुष्ट करने के लिए एक साधिका का इंतजाम किया था। उस साधिका ने ऐसे कई शवों की कामाग्नि ठंडी की थी।
वह मजबूत कद काठी वाली साधिका थी। मजबूत देह आवश्यक थी। तंत्र में शारीरिक विन्यास पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस साधना के लिए वह विशेष रूप से तैयार की गई थी। कई दिन पहिले से उसे विशेष औषधि दी जा रही थी। इस औषधि से ना केवल स्थूल शरीर बल्कि उसका सूक्ष्म शरीर भी पोषित होता। शव के अंदर उपस्थित तामसिक ऊर्जा उसके सूक्ष्म शरीर को बुरी तरह प्रभावित कर सकती थी। स्नान पश्चात उस साधिका ने शमशान में प्रवेश किया।
अब साधना एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी थी। साधिका निर्वस्त्र होकर एक बड़े से घेरे के अंदर बैठी हुई थी। खम्भे से बंधा हुआ शव उसे ललचायी नजरों से देख रहा था। रविकांत ने उस साधिका का पूजन किया। विशेष तांत्रिक मंत्रों से उसे पोषित किया गया। शरीर की सुरक्षा आवश्यक थी, वरना कोई शारीरिक दोष उत्पन्न हो सकता था। शव के साथ संभोग कोई साधारण बात तो नहीं थी। पैर की उंगलियों से लेकर उसके माथे तक विशेष तांत्रिक चिन्ह बनाए गए। यह उसकी सुरक्षा के लिए आवश्यक था। साधारण अवस्था में कोई भी स्त्री शव के साथ संभोग नहीं कर सकती। इसीलिए इस साधिका में श्मशान की एक विशेष स्त्री शक्ति का आह्वान किया गया। शव के अंदर भी एक पुरुष शक्ति का वास था। इंसानी देह तो केवल एक माध्यम था।
संभोग सृजन के लिए आवश्यक है। यहां दो विशेष मसानी शक्तियों के मध्य मिलन होना था। इससे सृजित होती असीम तांत्रिक ऊर्जा, जो आशीर्वाद स्वरूप रविकांत को प्राप्त होती। यही इस साधना का मूल उद्देश्य था।
करीब आधे घंटे तक रविकांत उस बुजुर्ग अघोरी के साथ मिलकर उस शक्ति का आह्वान करते रहे। धीरे-धीरे साधिका का शरीर उस शक्ति से आवेशित होने लगा। अंततः जब साधिका के अंदर शक्ति का पूर्ण समावेश हो गया तब उस शव की भांति इसे भी भोग प्रदान किया गया। तत्पश्चात शव को मुक्त कर दिया गया।
फिर शुरू हुआ दो अशरीरियों का मिलन, इंसानी देह के माध्यम से। दोनों ही शक्तियां काम मद से परिपूर्ण थीं। संभोग के मध्य रविकांत ने उस शव से कुछ गूढ़ प्रश्न किये। इसी अवधि में ही कुछ प्राप्त किया जा सकता था। सम्भोग समाप्ति पर तो शव केवल शव ही रह जाता।
मदिरा, भोजन एवं कामसुख ने उस शव को प्रसन्न कर दिया था। उस रात रविकांत अपनी लक्ष्य प्राप्ति में सफल रहा। कुछ विशेष सिद्धियाँ प्राप्त हुईं। आगे होने वाली साधना के लिए भी उसे विशेष आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

