Yashwant Kothari

Abstract

4  

Yashwant Kothari

Abstract

मृत्यु ही मुक्ति है

मृत्यु ही मुक्ति है

6 mins
202


जीवन और मौत का सम्बन्ध कौन नहीं जानता। इन से अपरिचय भी संभव नहीं। जीवन है तो मृत्यु होनी है,यदि पुनर्जन्म में विश्वास है तो जीवन भी होना ही है। मृत्यु का अपार्थिव पूजन एक परम्परा रही है। जीवन -मरण से मुक्ति की अभिलाषा भी रही है,नए वैज्ञानिक भी इस और प्रयास कर रहे हैं। जीवन में हलचल है,चिंता ,गर्माहट है,लेकिन मृत्यु में शांति,ठंडापन और चुप्पी है ,जीवन है तो परेशानियाँ है किसी मृत व्यक्ति को परेशान होता देखना संभव नहीं,मृत्यु मोक्ष है,निर्वाण है ,इसे टाला नहिं जा सकता ,केवल समय व स्थान की भविष्य वाणी संभव नहीं। भारतीय चिकित्सक धन्वन्तरी के अनुसार मृत्यु एक सो एक प्रकार की होती है ,जिसमे से केवल एक काल मृत्यु शेष सब अकाल मृत्यु। लेकिन हंसा जब भी उड़ा अकेला उड़ा। आत्मा की अवधारणा भी है आत्मा को अजर अमर माना गया है और शरीर को नश्वर । नए वैज्ञानिकों ने शरीर को भी अज़र अमर बनाने की और शोध शुरू कर दी है,अगर मरेगा नहीं तो नया जीवन कहाँ से मिलेगा ?मृत्यु शैय्या पर व्यक्ति सच बोलता है,रावण के अन्तिम समय में राम ने लक्ष्मण को नीति सीखने भेजा एसा ही भीष्म के पास अर्जुन को भेजा गया। वास्तव में मरने पर सब ख़तम हो जाना चाहिए मगर हमारे जीवित रहते हमारे अन्दर जो मरता है वो ज्यादा खतरनाक है। सम्पूर्ण शांति ही सम्पूर्ण मृत्यु है। जीवन बहती नदी है तो मृत्यु सागर ,हर नदी को यही आकर गिरना है।

मृत्यु के पूर्वाभास भी संभव है,कई मरते हुए लोगों के विवरण उपलब्ध हैं। चिकित्सा विज्ञान रोगी के मरने की पूर्व घोषणा कर देता है। वैसे बीमारी से कोई नहीं डरता व्यक्ति मौत से डरता है और इलाज कराता है,डाक्टर बताते हैं की दिल की धड़कन बंद होने व् श्वसन रुक जाना ही मृत्यु है ,धीरे धीरे दिमाग व् शारीर की अन्य कोशिकाएं भी मर जाती है,,गंभीर रोगी तो इच्छा मृत्यु की मांग करने लग गए हैं ,उचतम न्यानालय ने भी निर्णय ले लिया है। विदेशों में भी इच्छा मृत्यु की अनुमति कुछ देशों में हैं। कई लोग मर कर भी जीवित हो जाते हैं आप अपने आसपास ऐसे किस्से सुन सकते हैं,मोहल्ले के एक व्यक्ति का पुनह जीवित हो जाना व उसी नाम के एक अन्य का तुरंत गुजर जाना ,शायद यम राज की गलती। मृत्यु के देवता यम राज व उनके गण यमदूत। स्वर्ग व नरक की कल्पना भी है। वैसे शरीरक्रिया विज्ञान के अनुसार मृत्यु एक सामान्य शारीरिक क्रिया है ,जो जीवन के साथ ही शुरू हो जाती है। जन्म,वयस्क,बुढ़ापा और मृत्यु –एक सम्पूर्ण साइकिल । यही जीव विज्ञान कहता है।

महावीर स्वामी ने भी इसे निर्वाण कहा ,बुद्ध ने भी मुक्ति कहा ईसा ने भी मृत्यु का स्वागत किया। रजनीश और बाद के विचारकों ने भी इसे एक आवश्यक गति ही माना। रजनीश तो मृत्यु को उत्सव मानते थे। यम नचिकेता संवाद प्रसिद्ध है,सावित्री अपने मृत पति को यमराज से छुड़ा लाई थी। मृत्यु के पार जीवन है एसी कल्पनाएँ भी आम है। आत्माओं का अपना एक संसार है उस की कई परतें है और हर परत के अपने नियम कायदे है,सबसे वरिष्ठ परत को इश्वर के निकट माना जाता है मगर इश्वर के अस्तित्व को नकारने वाले भी हैं। एक विदेशी अवधारणा के अनुसार मृत्यु के बाद के जीवन को समझने की जरूरत है। जीवन से मृत्यु एक अनवरत यात्रा है।

किसी की मृत्यु पर दुःख,संवेदना मानवीय स्वभाव है। राजस्थान के राजा रजवाड़े तो बाकायदा इस काम के किये रुदाली रखते थे। एक विशेष ब्राह्मण समाज का भी यहीं काम था-रोना धोना पुरोहितजी के घर की परम्परा थी और इसका पूरा नेग रुदाली व् पुरोहित जी को मिलता था। पिछले कुछ वर्षों में अपने की मौत पर होने वाला दुःख काम हुआ है,रोना धोना चिल्लाना,छाती पीटना ,पल्ले लेना बंद हो गया है,इसी प्रकार मृत्यु भोज भी बंद हुए हैं। लेकिन किसी बड़े आदमी के यहाँ मौत हो जाने पर शोक व्यक्त करने वालों की लाईन लग जाती है,यहाँ तक की मरने वाले के आत्मिक जन भी परेशान होने लगते हैं,कई बार तो शोक व्यक्त करने का समय अख़बार में दे दिया जाता है। चार भाईयों में एक विआइ पी है तो सब उसी की मातम पुरसी करते हैं ।

शव को दफ़नाने,जलाने ,जल में प्रवाहित करने,निर्जन स्थान पर फेकनें ,कुए में डाल देने जैसी परम्पराएँ है,जो जाती,धर्म,आदि पर आधारित है। विदेशों में अंतिम क्रिया के लिए बड़ी बड़ी कम्पनियां हैं जो सब व्यवस्था शुल्क लेकर कर देती है। भारत में भी एसी कम्पनियां खुल गयी है लेकिन लोक लाज व सामजिक तानेबाने के कारण अभी चल नहीं पा रही हैं ,अन्यथा आप अपनी मौत के बाद के सब इंतजाम खुद कर सकते हैं। जब अमेरिका में था तो एक परिवार में यह सब देखा। वहां कई राज्यों में इच्छा मृत्यु को कानूनन मान्यता है लेकिन प्रक्रिया बड़ी लम्बी है,भा रत में भी अभी अभी यह लागू कर दी गयी है लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं इसे अनुचित मानता हूँ। मृत्यु का रास्ता और रस्ते का वर्णन गरुड़ पुराण व अन्य धर्मों में भी आता है,पृथ्वी पर किये गए पाप पुण्यो का लेखा जोखा भी बताया जाता है लेकिन ये सब कल्पना ही है। किसी व्यक्ति के वापस जीवित हो जाने पर वह एक तेज़ प्रकाश व् लम्बी गुफा का जिक्र करता है,यह हमारी कल्पना का ही हिस्सा है। वैसे भी अंधकार से प्रकाश व मृत्यु से अमरता की और ले जाना हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं । देवताओं ने समुद्र मंथन क र अमृत को पाया और पीकर अमर होने की बात आती है। यही आज का विज्ञान भी प्रयास कर रहा है।

मृत्यु से बचने के लिए महा मृत्युंजय मन्त्र का जाप भी किया जाता है,एक सच्चा किस्सा सुनाता हूँ-एक सेठ बहुत बीमार हुए,उन्होंने मृत्यु से बचने केलिए जप रखा,जाप करने वाले पंडितजी का निधन हो गया और सेठ जी बच गए।

अपने घ र परिवार नाते रिश्ते ,मोहल्ले में अक्सर कोई न कोई जाता है अब इतना दुःख भी नहीं होता। अंतिम संस्कार में लोग कम ही जाते है,कंधे पर ले जाने का समय गया ,अब तो शव वाहन ही आता है।

मृत्यु का दर्शन शास्त्र विचित्र है,इसे जीतना संभव नहीं है । राम,कृष्ण ईसा मोहम्मद साहिब सब इसके आगे हारे।

जीवन है तो इसे सम्पूर्ण जिजीविषा से जियो । मौत तो महबूबा है साथ लेकर जायगी। मौत से डरना नहीं क्योकि मौत मुक्तिदाता है,मौत सबसे बड़ी चिकित्सक है जो लम्बा सुकून देती है। मौत वह मंजिल है जिसे हम सभी को तय करना है वास्तव में मौत जिन्दगी की सबसे अच्छी खोज है। यह एक नया रास्ता बनाती है,जिन्दगी को बदल देती है। जीवन ही मृत्यु है और मृत्यु ही जीवन है इस नाटक में कोई मध्यांतर नहीं है। जीवन और मौत पर हमारा बस नहीं है जीवन को जीने के पीछे कोई अफ़सोस मत छोडिये। मृत्यु का रहस्य जानना है तो उसे अपने अंदर खोजिये। कोई भी विश्वास पूर्वक नहीं कह सकता की वह कल भी जीवित रहेगा,भीम ने युधिष्टिर से यही पूछा था और युधिष्टिर को अपनी गलती समझ में आ गई थी उन्होंने याचक को दान देकर ही भेजा। मृत्यु को समझना भी मुश्किल और जिन्दगी को जीना भी मुश्किल,मगर जान है तो जहान है। मौत खासकर अकाल मौत को दावत मत दीजिये। आइये मृत्यु से अमरता की ओर,अंधकार से प्रकाश की ओर चले।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract