Yashwant Kothari

Comedy

3.3  

Yashwant Kothari

Comedy

होरी है।

होरी है।

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तो माई डीयर पाठिकाओं, प्रेमिकाओं, प्रेमियों, पाठकों , युवाओं, वृद्धों, होली हेज कम। अरे रे... जवान चल गईं, ये कौन भांग के नशे में हिन्दी हिन्दी बक रहा हैं। अरे प्यारे माई हिन्दी का विरोध होली पर... नामुमकिन। क्षमा करें, ज्यादा चढ़ गई थी। सो वापस आपने उतार दी। ओ प्रिया। जागो। देखो बागन में बगरयो बसंत हैं। विश्व विद्यालय में छा गयो पतझड़ हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर छा गयो अन्धेरो हैं। क्यूंकि आज होली हैं।

देख प्यारी, महंगाई और बजट की मारी होरी कैसी दहक रहीं है, जैसे सुहागन का लाल चटख जोड़ा। देख दक्षिण के पवन के झकोरे अब इस देश की नांव को किस और ले जा रहे हैं। हर तरफ उड़त गुलाल लाल भयो बादर की उमंग हैं। लला फिर आईयों खैलन होरी की ये आवाज हर गली मौहल्ले से आ रही हैं। और भाई आत्मप्रकाश शुक्ल सखी फिर आईयों खैलन होरी गा रहे हैं। विश्वभर मोदी नल के महकमें में से ही पानी भरकर रंगीन होली खेल रहे हैं। जो समय बचता है उसमें महामूर्खो को इकट्ठा करते हैं। आलोचक विश्वमरनाथ जी की प्रगतिशील पतंग फिर उड़ने लग गयी हैं। देख वे होरी की तान छोड़ रहे हैं।

आकाशवाणी में धूल के बादल उड़ रहे हैं और पेक्स टाक सेकशन को हांक रहे हैं, तथा नाटकों के पेक्स कैसी दण्ड बैठक रहे रहे हैं। उधर देख वेदव्यास सशरीर महाभारत के साथ उपस्थित हैं। अकादमी के प्रकाश को अन्धेरा लील रहा हैं। यह कैसी होरी है गौरी।

क्या कहा तूने ने बम्बई जा रही हैं। अरे ठहर बावरी टी.वी. सिरियल देख कर ही संतोष कर। तेरी काया को देखकर कहीं टी. वी. वाले भाग न जाये। अरे रूकजा बावरी।

क्या कहा तूनै, नगर का हाल हवाल क्या हैं। वो देख चौड़े रास्ते में प्रकाशक लोग सबमिशन के राजमार्ग को ढूँढ़ रहे हैं और लेखक लोग उनका अनुगमन कर रहे हैं। हां वे मूलचन्द जी है फिल्म कालोनी में रहकर पंचशील के कबूतर उड़ाते हैं और रांका जी का क्या कहना। वे तो हर होरी पर मदमस्त बीकानेरी साफा में नजर आते हैं। मगर तू थोड़ा घूंघट तो हटा। देख नाथद्वारे की चौपाटी पर सोहनजी साइकिल वाले घूंघट के पट खोल री मस्तानी गुजरियां का रिकार्ड लगा रहे हैं। श्रीजी बाबा के चारों और अवीर गुलाल उड़ रही हैं। हां वे ही नाथद्वारा के युवा विधायक हैं जो होरी पर गुलाल उड़ा रहे हैं। देख गौरी। अब तो पशुओं पर होरी का रंग चढ़ने लगा हैं। गाय भैस और अन्य मादाएं कैसी त्वरित गति से भाग रही हैं और इनके पीछे ये कैसे होरिहार है जो हर तरफ हुड़दंग कर रहे हैं। क्या इन्हें रोकने का कोई उपाय नहीं हैं। गौरी तू क्यों फिक्र करती हैं। ये होरी के जाते ही स्वयं स्वाभाविक चाल में आ जायेगे। आज जरा नजर फेर कर देख। ये चारों तरफ पत्रकारों के झुण्ड क्यों इकट्ठा हो रहे हैं। हम भारतीय इस गुगली का अभी तक विश्लेषण ही कर रहे हैं। यह कैसा बसन्त है जो विश्वविद्यालय में अध्यापकों को रोने को मजबूर कर रहा हैं।

साहित्य में भी आजकल आतंकवादियों का जोर हैं। हर व्यंग्यकार मुझे आतंकवादी नजर आता हैं।

शायद तू सोच रही होगी कि ये सब नाटक आज ही क्यों हो रहा हैं। अरे बोराई गोरी आज नहीं तो फिर कब। अभी नहीं तो कभी नहीं। लेकिन देख अब चूकने का नहीं। यही समय है जब आदमी को कुछ कर गुजरना चाहिए शहर में हास्यास्पद रस के कवि सम्मेलनों का दौर चल रहा हैं। तू कहे तो चक्कर चलाऊ। आजकल अच्छा पारिश्रमिक मिल जाता हैं। लगे हाथ खर्चा पानी, पीना, खाना मुफ्त। बोल तो सहीं तू सुस्त क्यों हैं। तेरी ये उदासी मुझ से देखी नहीं जाती।

जरा बाहर निकाल कर हवा का रूख तो देख। इस मौसम में तो ठूंठों के भी पल्लव आ जाते हैं। तू तो अभी जवान हैं।

जनता तक गुनगुनाते लगती हैं। होली में रसिया गाने लगती हैं। नायिका का इस ऋतु में बावली होना लाजिमी हैं।

सच पूछो तो होली है ही हल्ला मचाने का मौसम सुबह सुबह दैनिक अखबार हल्ला मचाते हैं, फिर सायंकालीन फिर साप्ताहिक पाक्षिक और मासिक।

तू तो जानती है प्रिये मेरे इस लेखन के धन्धे में शीर्षक बदल कर लेख वापस छपा लेने के अलावा और कोई उपाय नहीं है सो मुझे माफ कर। नाराजगी दूर कर। और होली के हुड़दंग में मेरा साथ कर। दर्शकों पाठकों को नमस्कार कर। सम्पादकों को प्रमाण कर।

ताकि आने वाले वर्ष में कहीं न कहीं तेरा मेरा काम चलता रहे। होरी आती रहे। फाल्गुन आता रहे मन बौराता रहे और जीवन में मस्ती का आलम चलता रहे। आदर प्यार और स्नेह का एक स्नेह भरा गुलाल का टीका सबके लिये लगा। हाथ जोड़ क्षमा मांग और विदा हो। देख अगली होली तक बैरागी मत बन जाना। नहीं तो सब किया धरा पानी में और भैंस कीचड़ में।

समझ गई न तू। होरी के प्यार में एक रसगुल्ला घुमा के मार फिर देखियों होरी रे गोरी...।



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