मंशा
मंशा
कहानी : मंशा
"
महाराज ! अबकी बार बरसात कैसी रहेगी ? पिछली बार तो वैसी ही थी जैसी आपने बताई थी" । हाथ जोड़ता हुआ बुधिया काका सहजानंद महाराज से बोला ।
इतने में मंदिर के अहाते में खड़े 20-25 श्रद्धालु भी कहने लगे
"हां महाराज , बताइए न कैसी रहेगी बरसात इस साल ? आप जो भी कुछ कहते हैं वह सब सत्य निकलता है । आपकी वाणी पर सरस्वती जी का वास है" । पूरा जनसमूह एक स्वर में बोल उठा ।
जनसमूह के प्रेम को देखकर स्वामी सहजानंद महाराज तनिक मुस्कुराए । उन्होंने रासबिहारी मंदिर में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की ओर निहारा । श्रद्धा से उनका मस्तक उनके सम्मुख झुक गया । वे बहुत देर तक भगवान के समक्ष ढोक लगाते रहे । प्रेम में भाव विह्वल होकर उनके आंसू निकलने लगे और फर्श पर गिरने लगे । उनका कंठ अवरुद्ध हो गया । उनकी हिलकियां बंध गईं ।
सामने का दृश्य देखकर जनसमूह जोर जोर से जयकारे लगाने लगा
"बोलो बांके बिहारी लाल की"
"जय"
"बोलो वृंदावन बिहारी लाल की"
"जय"
"बोलो रासबिहारी जी की"
"जय"
"बोलो वृषभानु दुलारी की"
"जय"
"बोलो स्वामी सहजानंद महाराज की"
"जय"
गुढाकटला गांव के "रासबिहारी मंदिर" का वातावरण पूरा भक्तिमय हो गया था । उपस्थित नर नारी जोर जोर से जयकारे लगा रहे थे । उनका जोश देखते ही बन रहा था । सबके चेहरे आनंद से खिले हुए थे ।
अचानक स्वामी सहजानंद महाराज की गंभीर आवाज गूंजने लगी
"शांति शांति शांति"
स्वामी जी की आवाज सुनकर जनता एक दम से शांत हो गई और सब लोग अपनी अपनी जगह पर बैठ गए । स्वामी सहजानंद महाराज फिर से बोले
"रासबिहारी जी के भक्तों ! आप सभी पर भगवान की बहुत बड़ी कृपा है । रासबिहारी जी कह रहे हैं कि इस बार पिछली साल से भी ज्यादा बरसात होगी । बाढ़ भी आ सकती है इस साल । इसलिए सब लोग सचेत रहना" ।
उसके बाद स्वामी सहजानंद महाराज शांत हो गए और मंदिर में बनी एक कोठरी में चले गए । जनता स्वामी जी के मुख से अच्छी बरसात की भविष्यवाणी सुनकर नाचने लगी । एक दूसरे को मिठाई खिलाने लगी । जब सबने देखा कि महाराज जी अपनी कोठरी में चले गए हैं तो जनता भी धीरे धीरे अपने अपने घर को चली गई ।
सावन का महीना आ गया । घनघोर बारिश होने लगी । पूरे सात दिन पानी बरसता रहा । सारे तालाब , पोखर , बांध भर गए थे । चारों ओर पानी ही पानी हो गया था । कुछ मकान जो कच्चे थे या पुराने थे , गिर पड़े थे । ऐसे लोगों ने मंदिर में शरण ले ली थी । स्वामी सहजानंद महाराज ने अपनी कोठरी भी निराश्रित महिलाओं को दे दी थी रहने के लिए और वे स्वयं मंदिर के अहाते में रहने लगे थे ।
सरकार के पास जब यह खबर पहुंची तब सरकार के कारिंदे गांव में आकर बेघर लोगों की व्यवस्था करने लगे । सरकारी स्कूल में ऐसे बेघर लोगों को ठहरा दिया था और उनके लिए भोजन के पैकेट्स की व्यवस्था भी कर दी थी ।
जिस दिन से मूसलाधार बरसात होने लगी थी उस दिन से स्वामी सहजानंद महाराज ने अन्न जल त्याग दिया था । आज दसवां दिन था उनके निराहार रहने का । अब बरसात पूरी तरह थम गई थी और जिंदगी भी पटरी पर लौटने लगी थी ।
गुढाकटला गांव के लोग अपने अपने घरों से अलग अलग पकवान बनाकर लाए थे । उनके पूज्य महाराज जी ने पिछले नौ दिनों से अन्न जल ग्रहण नहीं किया था । सब लोग आज उनका अनशन खुलवाना चाहते थे । महाराज जी भगवान के सामने लेटे हुए थे । बैठने की स्थिति नहीं थी उनकी ।
सब लोग उनके सम्मुख हाथ जोड़कर बोले
"महाराज ! आज तो आपको यह महाव्रत समाप्त करना ही होगा अन्यथा हम लोग भी यहीं पर अनशन पर बैठ जाएंगे" ।
स्वामी सहजानंद महाराज अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देखना चाहते थे इसलिए उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया और उन्होंने एक गिलास छाछ लेकर भगवान का भोग लगाया और उसे पी लिया । सब लोग प्रसन्न हो गए और जयकारे लगाने लगे । महाराज जी की वाणी फिर से सही सिद्ध हुई थी ।
महिलाओं ने कोठरी खाली कर दी थी । जनता ने उसे अच्छी तरह से साफ किया और महाराज जी को फिर से कोठरी में ले आए ।
यद्यपि बरसात अधिक हुई थी इस साल लेकिन फसल बहुत अच्छी हुई थी । सब खेतों में अच्छी पैदावार होने से सबके चेहरे खिले हुए थे ।
दीपावली का दिन था । पूरा गांव दीपकों की रोशनी से जगमग जगमग हो रहा था । सब लोग दीपावली की पूजा में व्यस्त थे । रोक के बावजूद लोग पटाखे चला रहे थे । चारों ओर हर्षोल्लास का वातावरण था ।
रासबिहारी जी के मंदिर को भी बहुत अच्छे से सजाया था स्वामी सहजानंद महाराज और भक्तों ने । स्वामी जी ने आज व्रत रखा था । स्वामी जी के व्रत का मतलब होता है अन्न जल ग्रहण नहीं करना । वे व्रत वाले दिन रात्रि के दस बजे कुछ शाकाहार लेते थे बस ! कुछ भक्त लोग अपने घरों से शाकाहार बनाकर ले आए थे और स्वामी जी से व्रत खोलने की प्रार्थना कर रहे थे ।
अचानक गांव में पुलिस की लाल बत्ती वाली गाड़ी को देखकर अफरा तफरी मच गई । बुधिया काका स्वामी जी के पास ही बैठा था । पुलिस की गाड़ी देखकर बोला
"आज तक गांव में कभी पुलिस नहीं आई थी मगर आज पता नहीं क्या हो गया है जो पुलिस की गाड़ी गांव में आई है" ! उसके चेहरे पर विस्मय के भाव थे ।
"चिंता क्यों करते हो प्रभु ! रासबिहारी जी सब ठीक कर देंगे" । स्वामी जी छोटे बड़े सबको प्रभु ही कहते थे ।
"पर महाराज ! गाड़ी इधर ही आ रही है" ! चौंकते हुए रामू ढोली बोला
"भगवान के दर्शन करने आ रहे होंगे अधिकारी गण । इसमें इतनी चिंता करने की क्या बात है" ? स्वामी जी के अधरों पर वही चिर परिचित मुस्कान खेल रही थी
"रासबिहारी जी के रहते क्या चिंता करना ! वे जो भी करेंगे , अच्छा ही करेंगे" । सहजानंद महाराज के दोनों हाथ श्रद्धा से स्वत: जुड़ गए और वे रासबिहारी जी को दंडवत प्रणाम करने लगे ।
इतने में गाड़ी मंदिर के सामने रुकी । उसमें से एक इंस्पेक्टर और कुछ सिपाही उतरे । उन्होंने अपने जूते उतारे और फिर मंदिर में प्रवेश करने लगे
"आज रासबिहारी जी के दर्शनों की इच्छा हो गई है क्या इंस्पेक्टर साहब" ? कल्लू बैरागी बोल पड़ा ।
इंस्पेक्टर ने वहां उपस्थित 8-10 व्यक्तियों की ओर देखा तथा कुछ नहीं कहा । उसने भगवान के सम्मुख मस्तक झुकाया और जनता को संबोधित करने लगा ।
"गांव के सभी सम्मानित लोगो ! मुझे यह कहते हुए अच्छा नहीं लग रहा है लेकिन मैं एक सरकारी मुलाजिम हूं और मुझे सरकार तथा न्यायालय के आदेशों का पालन करना पड़ता है । मुझे स्वामी जी से एकांत में कुछ पूछताछ करनी है इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप सब लोग अपने-अपने घरों को चले जाएं" ।
इतने में गांव के बहुत सारे लोग भी वहां आ गए । गांव में कभी पुलिस की गाड़ी आई नहीं थी इसलिए सबके मन में कौतूहल था कि आखिर पुलिस गांव में क्यों आई है ? क्या मर्द , क्या औरतें और क्या बच्चे ! सबके सब टोलियों में आ गए थे वहां पर ।
इंस्पेक्टर की बात सुनकर चौधरी परमेश्वर कहने लगे
"मुझे स्वामी जी को इस गांव में देखते हुए 30 साल गुजर गए । स्वामी जी जैसा संत मैंने अपने जीवन में कहीं नहीं देखा है । मैंने एक से बढ़कर एक नामी गिरामी संत, महात्मा , साधु सब देखे हैं मगर स्वामी जी की बात कुछ और है । मुझे नहीं पता कि आप स्वामी जी से क्या पूछना चाहते हैं लेकिन इतना जरूर पता है कि इन जैसा संत पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा । यदि आपको इनसे कुछ भी पूछताछ करनी है तो वह हम सबके सामने ही करनी होगी" । चौधरी परमेश्वर के शब्दों में दृढ़ता थी , विश्वास था और श्रद्धा भी थी ।
चौधरी की बात का समर्थन पूरी भीड़ ने कर दिया था ।
इतने में स्वामी जी ने कहा
"प्रभु जी ! ईश्वर पर भरोसा रखो । यदि इंस्पेक्टर साहब मुझसे एकांत में कुछ पूछना चाहते हैं तो उन्हें पूछ लेने दो , इसमें क्या आपत्ति है" ?
स्वामी जी के स्वर में विनम्रता थी ।
"महाराज ! हम आपकी बातें भगवान का आदेश समझकर मानते आए हैं आज तक ! लेकिन आज नहीं मानेंगे । आज तो पुलिस को हम सबके सामने ही पूछताछ करनी पड़ेगी , हां" ! सरपंच जौहरी लाल ने अपनी व्यवस्था दे दी ।
स्वामी जी चुप रहे और रासबिहारी जी की ओर मुंह करके बोले
"जैसी रासबिहारी जी की मर्जी" ।
फिर उन्होंने इंस्पेक्टर से कहा
"पूछो प्रभु जी"
इंस्पेक्टर पहले तो सकपकाया । लेकिन जब स्वामी जी ने उसे अभय होने का आशीर्वाद दे दिया तब वह बोला
"आपका असली नाम क्या है" ?
"राजू नाम है मेरा । पूरा नाम है राजेन्द्र सिंह । पिताजी का नाम ठाकुर भानुप्रताप सिंह है" । स्वामी जी के मुख पर अभी भी मुस्कान तैर रही थी
"आप कहां के रहने वाले हैं" ?
"मैं बिहार के सहरसा जिले की सोनबरसा तहसील के बनगांव का रहने वाला हूं" ।
"ठीक है । बस यही कन्फर्म करना था" ।
फिर इंस्पेक्टर ने भीड़ को संबोधित करते हुए कहा
"आप लोग हमें गलत मत समझना । हम लोग अपनी ड्यूटी कर रहे हैं बस ! आप सबकी जानकारी के लिए बता दूं कि बिहार की एक अदालत से स्वामी जी के नाम एक गिरफ्तारी वारंट आया हुआ है इसलिए मुझे स्वामी जी को गिरफ्तार करके ले जाना होगा" ।
इंस्पेक्टर की बातों से वहां पर अफरातफरी मच गई । लोग कानाफूसी करने लगे । इंस्पेक्टर ने स्वामी जी का हाथ पकड़ लिया ।
चौधरी परमेश्वर ने जब देखा कि इंस्पेक्टर ने सहजानंद महाराज का हाथ पकड़ लिया है तो उसने आव देखा न ताव , झट से स्वामी जी का हाथ छुड़ा लिया और कहने लगे
"खबरदार इंस्पेक्टर साहब जो स्वामी जी के हाथ लगाया । स्वामी जी का हो सकता है गिरफ्तारी वारंट सही हो , लेकिन मैं इन्हें ले जाने नहीं दूंगा । आप मेरी जान लेकर ही स्वामी जी को ले जा सकते हैं" ।
और यह कहते हुए वह स्वामी जी के आगे खड़ा हो गया । उसके पीछे पीछे सब लोग आते चले गए और स्वामी जी का घेरा बनाकर खड़े हो गए । पुलिस की स्थिति बड़ी विकट हो गई थी ।
पुलिस इंस्पेक्टर ग्रामीणों से झगड़ा नहीं करना चाहता था इसलिए उसने पिस्तौल आसमान की ओर तानते हुए कहा
"सब लोग मेरी बात ध्यान से सुनें । कोर्ट का गिरफ्तारी वारंट है जिसकी तामील करनी ही पड़ेगी । इसमें हम कुछ भी नहीं कर सकते हैं । इसलिए आप सब लोग हट जाएं और हमें अपना काम करने दें" ।
इन शब्दों का यह असर हुआ कि अब तक जो लोग तमाशबीन बने हुए थे वे भी स्वामी जी के समर्थन में आ खड़े हुए ।
तनावपूर्ण स्थिति देखकर स्वामी जी ने कहा
"प्रभु जी ! मैं कोई संत नहीं हूं । मैं एक अपराधी हूं । मैंने एक राक्षस का वध किया है । हमारे गांव के ही एक व्यक्ति ने मेरी बहन के साथ दुष्कर्म किया था जिसे मैंने मार डाला था । तब मैं पुलिस से डरकर भाग गया था । फिर छुपते छुपाते यहां आ गया । आप सबका प्यार देखकर मेरे मन से हिंसा , अपराध , घृणा सब बाहर निकल गये । आप लोगों ने मुझे एक संत समझ कर मेरी पूजा की लेकिन मैं इसके लायक नहीं था । मैंने अपने विषय में आपको कभी बताया नहीं । मेरी हिम्मत ही नहीं हुई यह बताने की । मैं इंस्पेक्टर साहब को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने आज वह अवसर प्रदान कर दिया है । आज मुझमें सत्य को कहने की हिम्मत आई है । अब मेरे मन में कोई मलाल नहीं है । इसलिए आप सभी से प्रार्थना है कि इंस्पेक्टर साहब को अपना काम करने दें । मुझे मेरे कर्मों का फल तो मिलना ही चाहिए ना" ?
स्वामी सहजानंद महाराज के चेहरे पर अभी भी मुस्कान बरकरार थी । वे निडर होकर खड़े हुए थे और इंस्पेक्टर के साथ जाने को उद्यत थे । लेकिन लोग उनके कदमों के आगे लेट गए
"हम आपको नहीं जाने देंगे महाराज । हमें नहीं पता कि आपने मर्डर किया था या नहीं । हम ये भी नहीं जानना चाहते हैं कि आपने मर्डर क्यों किया था ? हम तो इतना ही जानते हैं कि हमारे लिए आप पहले भी पूजनीय थे और आज भी पूजनीय हो । हम लोग बड़े भोले भाले लोग हैं बस, हम इतना ही समझते हैं इससे अधिक नहीं । और अब समझना भी नहीं चाहते हैं" ।
जनता ने एक बार फिर से जयकारे लगाने शुरू कर दिए
"स्वामी सहजानंद महाराज की"
"जय" ।
भीड़ लगातार जयकारे लगाए जा रही थी । इंस्पेक्टर ने वीडियो कॉल करके एस पी से बात की । एस पी ने वीडियो कॉल के माध्यम से सारी स्थिति देखकर कहा
"आज मुझे महर्षि वाल्मीकि जी की याद आ गई । यद्यपि स्वामी जी ने एक दुष्ट व्यक्ति को मौत के घाट उतारा था लेकिन आज उनके मन से हिंसा का लोप हो गया है । कानून की मंशा अपराधी को सजा देना नहीं है बल्कि उसकी मंशा मन से अपराध करने की वृत्ति समाप्त करना है । स्वामी जी ने अपने पापों का प्रायश्चित कर लिया है इसलिए कानून की मंशा पूरी हो गई है । अतः आप लोग वापस आ जाओ । कोर्ट को मैं स्वयं वस्तु स्थिति से अवगत करा दूंगा" ।
इंस्पेक्टर अपनी टीम के साथ वापस लौट गया । जनता रासबिहारी जी और स्वामी सहजानंद महाराज के जयकारे लगाने लगीं ।
श्री हरि
22.5.2025
