मनोबल की जीत
मनोबल की जीत
सुधांशु और हर्ष बहुत अच्छे मित्र थे। कक्षा एक से साथ-साथ पढ़े थे। दोनों के घर भी आमने सामने थे। संयोग की बात है कि दोनों को दिल्ली की एक ही कंपनी में नौकरी भी मिली। दोनों एक ही गाड़ी से ऑफ़िस जाते थे। एक साथ ही वापस आते थे। कभी हर्ष अपनी गाड़ी ले लेता था। तो कभी सुधांशु अपनी गाड़ी ले लेता था। इस तरह दोनों के पैट्रोल की भी बचत हो जाती थी। दोनों ही क्रिकेट के बेहद शौकीन थे। किसी एक के घर बैठकर ही वे टी.वी पर क्रिकेट मैच देखते थे और भारत के जीतने पर ताली बजा बजाकर खुश होते थे। मिठाई खाते और खिलाते थे। दोनों मित्रों के परिवारों में भी गहरी दोस्ती थी।
एक दिन हर्ष ने सुधांशु से कहा- तुझे पता है भारत पाकिस्तान का एक दिवसीय किक्रेट मैच 20 जून को दिल्ली में होने वाला है। हर्ष की बात सुनकर सुधांशु खुश हो गया। दोनों ने योजना बनाई कि 20 जून को तो रविवार है इसलिए मैच ज़रूर देखेंगे। हम दोनों अपने अपने परिवार को भी साथ लेकर जाएंगे। बच्चे आँखों के सामने अपने प्रिय खिलाड़ियों को खेलते देख कर बहुत खुश होंगे। दोनों के दो-दो बच्चे थे। इस तरह उन्होंने आठ पास ले लिए और 20 जून का इंतजार करने लगे। मैच का समय सुबह दस बजे से रखा गया था। वे लोग सुबह 9:30 बजे से ही पवेलियन पर सबसे आगे का स्थान लेकर बैठ चुके थे।
दोनों के बच्चे भी अच्छे मित्र थे। वे लोग बहुत उत्साहित लग रहे थे। ठीक दस बजे मैच शुरू हुआ। दोनों टीमों के खिलाड़ी मैदान में आए और पूरे मैदान का एक चक्कर लगाया। एक दूसरे से हाथ मिलाया। रैफरी ने विसिल बजाकर टॉस किया। भारत ने पहले बैटिंग ली। सबसे पहले सचिन और जडेजा ने बल्ला संभाला। पवेलियन पर बैठे सभी खिलाड़ियों ने ताली बजा कर दोनों खिलाड़ियों का स्वागत किया। जडेजा ने लगातार दो तीन छक्के मारे और उसके बाद तीस रन लेकर आउट हो गया। अब बारी थी सचिन की। जनता ने भरपूर तालियों से सचिन का स्वागत किया। सबको मालूम था कि सचिन तो शतक बना कर ही जायेगा। सचिन ने शुरूआत बहुत अच्छी की, लगातार चालीस रन बना लिए उसके बाद आउट हो गया। पवेलियन पर बैठे सभी लोग सचिन को बुरा भला कहने लगे। हर्ष और सुधांशु भी कहने लगे कि सचिन को कुछ ज्यादा ही आत्म विश्वास हो गया है। सुधांशु का का बेटा सागर जोकि कक्षा आठ में पढ़ता था। उसे अपने पिता का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगा। उसने कहा पिता जी अभी थोड़ी देर पहले तो आप भारत का झंडा हाथ में लहराते हुए उसका मनोबल बड़ा रहे थे, और अब आप उसकी बुराई कर रहे हैं। यह खेल है। इसमें किसी की भी जीत हार हो सकती है। पिता जी अगर आप सच्चे राष्ट्र भक्त हैं तो आपको धैर्य के साथ सभी खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाना चाहिए। चाहे वो जीते या हारे। हर्ष तथा उसके परिवार ने भी सगार की बात का समर्थन किया। सुधांशु ने कहा- आज मुझे अपने ऊपर बहुत गर्व हो रहा है कि मेरा यह छोटा सा बेटा कितना समझदार है। सुधांशु ने कहा बेटा तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। आस पास बैठे सभी लोग सागर की बात सुन रहे थे। वे सब भी अपने आप से शर्मिंदा हो रहे थे। सभी लोगों ने सागर की बात का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय ध्वज को लेकर लहराना शुरू कर दिया। कुछ लोग भारत माता की जय बोलने लगे। अब चारों तरफ का माहौल बिल्कुल बदल चुका था।
तभी रैफरी ने हाथ ऊपर उठा कर सचिन के नॉटआउट का संकेत दिया। सभी लोग चिल्लाने लगे। खुश होने लगे। फिर जो सचिन ने बल्ला पकड़ा तो शतक पार करके ही छोड़ा। सभी लोग हाथ हिलाकर अपनी खुशी का इज़हार कर रहे थे। लेकिन आज 13 वर्ष के सागर ने सभी लोगों को बहुत बड़ी सीख दे दी थी। हमें सदैव हारे हुए का भी मनोबल बढ़ाना चाहिए। मनोबल में वो शक्ति होती है जोकि मरे हुए में भी प्राण डाल सकती है।