मन का डर
मन का डर
किसी गाँव की गरीब लड़की या किसी किस्मत की मारी अनाथ नहीं ये कहानी है मीरा की जो जाने क्यों इस हवा की रफ्तार से भागती दुनिया में इतना पीछे रह गयी की अब खुद से भी नज़रें चुराने लगी है। माँ सरकारी स्कूल में टीचर और पिता एक नामी डॉक्टर और बड़ा भाई जो विदेश में कानून की पढाई कर रहा।
एक परिवार जहां छोटे से लेकर बड़े तक हर कोई अपने काम में माहिर है वहां मीरा बारहवीं के बाद कुछ करना ही नहीं चाहती थी। दिखने में मासूम मीरा घर में हमेशा मुस्कुराती रहती थी पर दिल ही दिल बाहरी दुनिया से घबराती थी। उसे लगता था की वो अकेले बाहर नहीं जा सकती कोई ऑटो या बस खुद नहीं ले सकती यहाँ तक की सब्जी वाले से सब्जी लेने में भी कतराती थी। अब स्कूल ख़त्म हो चूका था तो कुछ न कुछ तो करना ही था इसलिये उसने बीए का प्राइवेट फॉर्म भर दिया था। घर पर भी दिन भर अकेले बैठे वो इंटरनेट की दुनिया देखती पर न किसी से बात करती न ही कॉल। यहाँ तक की घर में आये मेहमानों से भी वो ज्यादा घुलती मिलती नहीं थी पर अगर कभी वो कोशिश भी करती थी तो रिश्तेदार उसे समझाने लगते कहते बेटा थोड़ा घर से बाहर निकला कर लोगो से कुछ सीख और यही सब उसे पसंद नहीं आता था। कुछ दिनों से घर पर भी सभी उसके इस बर्ताव पर बात करने लगे थे। इन सब बातो से परेशान मीरा खुद को कमरे में बंद कर लेती थी।
मीरा ज़िद्दी होने लगी थी। न खाने में परिवार के साथ बैठती थी न ही किसी से ज्यादा बात करती थी। उसे लगने लगा था की वो बस एक बोझ है अपने परिवार पर। खाली दिमाग में जाने कितना कुछ चलता था उसके। न किसी प्रकार की आर्थिक परेशानी न ही किसी चीज की रोक टोक बस एक उसके मन का दर था जिसने उसे इतना निष्क्रिय बना दिया था। वह हर छोटी बड़ी बात के लिए दुसरों पर आश्रित होने लगी थी।
एक दिन यूहीं ही परेशान कमरे में बैठी थी अचानक उसके फ़ोन पर एक मैसेज आया "आप इस प्रोजेक्ट के लिए सेलेक्ट हो गयी हैं"। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया पर फिर फ़ोन बजने लगा अनजान नंबर समझ उसने फ़ोन नहीं उठाया पर दूसरी बार जब वापिस उसी नंबर से कॉल आया तो उसने फ़ोन उठाया और कहा "कौन है ? किससे बात करनी है ?" सामने से रिप्लाई आया " गुड आफ्टरनून मीरा बधाई हो आप हमारे प्रोजेक्ट के लिए चुनी गयी हैं अपनी बाकी डिटेल्स हमे मेल कर दीजिये। " मीरा ने थोड़ा सोचने के बाद "थैंक यू मैं मेल कर देती हूँ" कह कर फ़ोन काट दिया। उसकी उन रुखी आँखों में चमक दौड़ पड़ी थी।कुछ दिन पहले उसने नेट में एक घर बैठे जॉब के बारे में पढ़ा और घर में बिना किसी को बताये अप्लाई भी कर दिया।आज उसे बहुत ख़ुशी हो रही थी आखिर क्यों न हो बिना किसी की मदद के अपने आप उसने ये नौकरी पायी थी वो भी अपनी पसंद की। मीरा ने सभी डिटेल्स भर के फॉर्म मेल कर दिया पर ये क्या कुछ ही देर में उसके फ़ोन पर एक और मैसेज आया " तुम्हारे अकाउंट से 10 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए गए हैं " ये वो पैसे थे जो उसके मम्मी पापा ने उसकी पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए सेव कर रखे थे। अब मीरा को समझ नहीं आ रहा था की वो क्या करे किससे कहे ? घर पर बोलने की हिम्मत भी वो नहीं जुटा पा रही थी। रात भर रोती रही इसी उम्मीद में की काश कोई चमत्कार हो जाये और उसके पैसे वापिस आ जाये पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। उसे लगा वो पैसे उसकी जिम्मेदारी थे इसलिए वो उन्हें वापिस लाएगी और उस फर्जी कंपनी का पता लगा कर रहेगी। पर कैसे? वो तो किसी को जानती भी नहीं थी और बिना किसी की मदद के ये कर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल था। उसने सोशल मीडिया में अपना नाम रिया लिखा था जिससे कोई उसे पहचान न पाये। आज वही काम आने वाला था उसने अपने अकाउंट की वाल पर सारा किस्सा पोस्ट कर दिया।
बहुत लोगों ने उसे बेवकूफ कहा की कोई कैसे अपनी डिटेल्स दे सकता है किसी को भी , पर कुछ ऐसे भी थे जो उसकी मदद करना चाहते थे। कोई उससे बात करना चाहता था और कोई मिलना ताकि इस बारे में बात हो सके। इस बार मीरा कुछ भी करके अपनी इस गलती को सुधारना चाहती थी वह नहीं चाहती थी की फिर कोई उसे इस बात को लेकर सुनाये की घर बैठे बैठे ऐसी हो गयी है। उसने एक लड़की के मैसेज का रिप्लाई किया की "क्या वो उसे आज शाम पास के मॉल के बहार मिल सकती है?"। उस लड़की ने भी " हाँ " में जवाब दिया। शाम दोनों मिले। उस लड़की के साथ उसका भाई भी था उसे देख मीरा थोड़ा घबरा गयी पर जब आप ठान लेते हैं कुछ करने की तो कुछ भी कर सकते हैं। वह उनके पास गयी और धीरे धीरे बात बड़ाई और सारी घटना उनके सामने रख दी। उस लड़की के भाई की पुलिस में अच्छी पहचान थी तो तीनो ने जाकर ये मामला पुलिस में दर्ज करा दिया। फिर सब अपने घर चले गए। आज मीरा कुछ अलग महसूस कर रही थी चाहे उसके साथ गलत हुआ पर उसने अकेले इतनी हिम्मत की की उन फर्जी कंपनी के खिलाफ जा सके। ये बात अब घर में मालूम चल गयी थी पर किसी ने मीरा को कुछ नहीं कहा उल्टा उसके पुलिस के पास जाने को सराहा। मीरा समझ चुकी थी उसके माँ पापा क्यों उसे बाहरी दुनिया को समझने को कहते थे।
मीरा से डिटेल्स लेने के बाद पुलिस ने उस नंबर पर कॉल किया पर फ़ोन स्विच ऑफ बता रहा था। फिर उस अकाउंट का पता लगया जहाँ वो पैसे ट्रांसफर हुए थे और धीरे धीरे उस गिरोह तक पहुंच ही गए जो इस पुरे मामले में शामिल था। ये लोग उन कॉलेज के बच्चों को अपना शिकार बनाते थे जो अच्छे परिवार से आते थे खासकर उन्हें जिन्हें देख कर ये लगता था की ये कोई बड़ा कदम नहीं उठा सकते हैं। ये अपना टारगेट चुनते और उसके बारे में सारी जानकारी हासिल कर लेते थे और मौका देख कर उन्हें नए नए तरिको से लूट लेते थे। इनका घर बैठे जॉब वाले झाँसे में कई और लोग भी फसे थे। पर अब सब ठीक हो चूका था। और हाँ पुलिस ने अपना काम बखूबी निभाया और उन फर्जी कंपनी वालो को पकड़ भी लिया। मीरा के पैसे भी उनसे निकलवा लिए थे।
अब मीरा बाहर जाने लगी थी और नए दोस्त भी बनाने लगी थी और उसकी पहली दोस्त थी ' नेहा ' वही लड़की जिसने उसकी मदद की थी। पर जो मीरा के अंदर का डर था उससे मीरा जीत गयी थी। अपनी पढाई के साथ साथ वो अब अपने दोस्तों के साथ मिल कर देश में चल रहे साइबर क्राइम और फर्ज़ीवाड़े के खिलाफ लोगों को जागरूक करने लगी थी। मीरा और उसकी टोली नुक्कड़ नाटक और कभी कभी कविताओ के ज़रिये लोगों तक अपनी आवाज पहुंचाने लगी थी। मीरा के माँ पापा की माने तो नयी मीरा का जन्म हुआ था जो निडर साहसी और पहले से ज्यादा समझदार बन चुकी थी।
इस इंटरनेट की दुनिया में जहाँ लोग सोशल मीडिया के जरिये हर रोज एक नया दोस्त बनाते हैं बहुत से नए लोगो से मिलते हैं पर जब सामने मिलने की बात होती है तो मुश्किल से गिने चुने लोग होते हैं जिनसे हम मिलते हैं।इसके बावजूद ज्यादातर लोग अब भी बाहर जाने से घबराते नहीं पर कुछ लोग होते हैं जिनकी दुनिया फ़ोन और इंटरनेट तक ही सीमित रहती है। जो बाहरी लोगो से मिलना बिलकुल पसंद नहीं करते या उन्हें उनसे मिलने में घबराहट होती है। घर में बंद वो बाहरी दुनिया का ख़ौफ़ अपने मन में पाल लेते हैं मानो बाहर सब उनके खिलाफ हों। पर मीरा अब समझ चुकी थी की ऐसा नहीं है लोग एक दूसरे को समझते हैं जरुरत पड़ने पर एक दूसरे की मदद भी करते हैं। बाहरी दुनिया का दर अब उसके मन से छू मंतर हो चूका था। वो खुल कर जीना सीखने लगी थी। उसका पूरा परिवार उसकी मन के डर से जीत के लिए बेहद खुश था।