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Ekta Rishabh

Inspirational

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Ekta Rishabh

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मन का बुढ़ापा !!

मन का बुढ़ापा !!

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जब से शादी कर नित्या अपने ससुराल आयी थी अपनी सासूमाँ राधा जी को बीमार ही देखा था। राधा जी किसी ना किसी शारीरिक तकलीफ से हमेशा परेशान रहती। राधा जी ने इसलिए अपने बेटे राहुल की शादी भी जल्दी कर दी थी की घर में बहु आ जायेगी तो घर संभाल लेगी वर्ना तो भारी होते शरीर ने उन्हें और पुरे परिवार को कामवाली पर ही निर्भर कर दिया था।

राधा जी के घर में उनके पति सोहन जी और दो बेटे राहुल और अमन थे। नित्या राहुल की पति थी। नित्या बहुत प्यारी लड़की थी बहु बन आते ही घर की जिम्मेदारियों को उठा लिया था। ससुराल में सबका स्वाभाव बहुत अच्छा था बस कमी तो एक ही सभी को आलस बहुत था। ससुर जी, पति और देवर जी तो फ़िर भी ठीक थे लेकिन माँजी स्वाभाव से बहुत आलसी थी साथ ही खाने में भी उनको तेज़ मिर्च मसालों का खाना ही चाहिये होता जिसका असर भी उनके ऊपर दिखता था बेतहाशा बढ़े वजन से वो उम्र से दुगनी दिखाती थी।

राधा जी सबसे अपनी बहु से बहुत ख़ुश थी और नित्या की तारीफ सबसे करती, " मेरी बहु नित्या बहुत ही प्यारी है। एक पल भी चेहरे पे शिकन नहीं आने देती और मेरी सेवा भी बहुत दिल लगा के करती है "।

कुछ समय बाद नित्या के सासूमाँ की दूर की बहन के आने का प्रोग्राम बना। "नित्या बेटा कहने को तो मेरी बड़े ताऊ जी की बेटी है शांति दीदी लेकिन हमेशा मुझे सगी बहन जैसा मान और प्रेम दिया है तुम उनका भी वैसे ही ख़याल रखना जैसे मेरा रखती हो।"

"जी माँ, आप निश्चिंत रहे मौसी जी को कोई शिकायत नहीं होने दूंगी "।

शांति मौसी का परिवार दिल्ली में रहता था और मौसी जी वहीं अनाथालय और विधवाआश्रम में लड़कियों और औरतों को सिलाई बुनाई का प्रशिक्षण देती थी। अकसर उनका काम लखनऊ में भी होता और जब भी उनका आना होता तो वो राधा जी से मिलने जरूर आती थी। अपनी सासूमाँ से रोज़ नित्या शांति मौसी के समाजसेवा के किस्से सुनती तो उसके दिल में भी उत्सुकता हो रही थी मौसी जी से मिलने की।

सही समय पे शांति मौसी घर आ गई। उनके आने से पहले ही नित्या ने सभी तैयारी बहुत दिल से की थी खाने में जैसा ससुराल में सबको पसंद था वैसा ही चटपटा खाना बनाया भी बनाया था।

शांति मौसी जैसा नाम वैसा ही रूप शांत सौम्य चेहरा होठों पे मुस्कान और सुन्दर काया। नित्या अपनी मौसी सास को देख दंग थी कहने को तो वो नित्या की सासूमाँ से पांच साल बड़ी थी लेकिन दिखती दस साल छोटी थी। जैसी कल्पना नित्या के मन में शांति मौसी की थी उससे बिलकुल अलग वो थी। रात के खाने में तरह तरह के व्यंजन देख मौसी जी मुस्कुरा उठी,

"क्यों राधा तेरा चटपटा खाने का शौक कम नहीं हुआ? "

"अब इस उम्र में क्या कम होगा दीदी? आप खाओ ना खाना नित्या बहु बहुत स्वाद खाना बनाती है"।

राधा जी के कहने पे शांति मौसी ने खाना तो खाया लेकिन उन्हें खाता देख नित्या समझ गई इतने तेल मसाले का खाना उन्हें पसंद नहीं आया और उनका पेट नहीं भरा। रात को सोने से पहले नित्या ने एक ग्लास दूध का मौसी जी को पीने को दिया तो मौसी जी मुस्कुराते हुए कहने लगी, "बेटा मेरे लिये परेशान ना होना मैं बहुत सादा खाना खाती हूँ "|

मौसी जी की बातें सुन नित्या ने हामी भर दी।

अगले दिन सबके उठने के पहले ही मौसी उठ गई और जब नित्या जागी तो मौसी बाहर वॉक करती दिख गई और उसके बाद भी सारा दिन मौसी जी हर छोटा मोटा काम खुद ही करती। सुबह के नाश्ते में नित्या ने उनके लिये हल्का नाश्ता बनाया टेबल पे गर्मा गर्म उपमा देख मौसी जी का चेहरा खिल उठा।

शांति मौसी चार दिन रुकी और हमेशा नित्या ने उन्हें सुबह शाम योगा, वॉक करते देखती, मौसी जी बिलकुल सादा खाना खाती और अपना सारा काम भी खुद ही करती थी।

आश्चर्य से नित्या कभी अपनी सासूमाँ को देखती तो कभी अपनी मौसी सास को जहाँ उम्र में बड़ी हो कर भी कितनी फुर्तीली थी हर काम खुद करती वहीं नित्या की सासूमाँ बिना छड़ी के चल भी नहीं पाती थी।

मौसी जी, आप दिल्ली जैसे शहर में रहती है। रूपये पैसे की कोई कमी नहीं है और उम्र में भी मम्मीजी से बड़ी है फिर भी आप इतनी फिट है सारा काम खुद करती है मम्मी जी बता रही थी आप समाजसेवा का काम भी करती है इस उम्र में इतना काम करने की क्या जरुरत है आपको? आप तो आराम से भी रह सकती है फिर इतनी भागदौड़ क्यों?

नित्या की बात सुन मौसी जी मुस्कुरा उठी, "नित्या बेटा इंसान तब बूढ़ा होता है जब उसकी इच्छाशक्ति बूढ़ी हो जाती है और मेरी इच्छाशक्ति बूढ़ी नहीं और फिर दूसरों पे बीमार और लाचार बन बोझ बनने से तो अच्छा है मैं खुद का ध्यान रखु और आत्मविश्वास से भर कर रहूँ।

जिंदगी में दूसरों की सेवा और मदद कर जो ख़ुशी मुझे मिलती है वो मुझे दुगने जोश से भर देती है "।

"नित्या बहु, हम समाज से बहुत कुछ पाते है तो कुछ फ़र्ज हमारा भी बनता है समाज के प्रति अपना फर्ज निभाने का और फिर कौन कहता है बुढ़ापा एक रोग है बुढ़ापा तब रोग बनता है जब हम मान लेते है। अपनी उम्र देख और आराम का सोच अगर मैं घर बैठ जाती तो ना सिर्फ अपने शरीर और अपने हुनर में जंग लगा लेती साथ ही कितनी औरतें जो आज आत्मनिर्भर बनी है वो ना हो पाती अगर मेरे हाथों के हुनर को अनाथ लड़कियाँ और विधवा औरतें सीख आज अपने पैरों पे खड़ी हो रही है और आत्मनिर्भर बन रही है तो इससे बड़ी ख़ुशी मेरे लिये क्या होगी? "

मौसी जी की बातें सुन नित्या की सारी जिज्ञासा शांत हो गई।नित्या ये समझ चुकी थी की उसकी सासूमाँ तन से नहीं बल्कि मन से बूढ़ी हो चुकी थी। वहीं मासी जी ने अपने अपने जीवन जीने के उत्साह पे अपने उम्र को हावी कभी होने ही नहीं दिया। अपनी काबिलियत का सही दिशा में उपयोग कर ना सिर्फ अपना जीवन साथ ही कई महिलाओं के जीवन में भी खुशियों के रंग भर रही है। मौसी जी की बात ने नित्या के सामने जिंदगी जीने के एक नये नज़रिये को प्रस्तुत कर दिया था।  


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