मन चंगा तो कठौती में गंगा
मन चंगा तो कठौती में गंगा
कोई न कोई कथा या घटना प्रत्येक कहावत के पीछे मौजूद रहती है। कहावतों का सम्बन्ध लोकजीवन में घटी किसी घटना से हुआ करता है।ऐसी ही एक घटना सन्त रविदास के जीवन की है। इन्हीं को सन्त रैदास भी कहते हैं।
सन्त रविदास जूते बनाने का काम करते थे। एक दिन जब वे बैठकर जूता घिस रहे थे तो कुछ व्यक्तियों के साथ एक पंडित जी वहॉं आए और सन्त रैदास जी से बोले- " मेरा जूता फट गया है, इसे ठीक कर दो।"
रैदास जी ने जूता ले लिया और उसे अच्छे से ठीक करके दे दिया। जब जूता पहनकर पंडित जी जाने लगे तो सन्त रैदास ने पूछा-" पंडित जी आप कहॉं जा रहे हैं ?"
पंडित जी ने कहा- " तुम्हें पता नहीं है कि आज पूर्णिमा है, बड़ा पर्व है, हम गंगास्नान के लिये जा रहे हैं।"
तो रैदास ने अपने पास से एक दमड़ी निकालकर पंडित जी को दी और कहा-" इसे मेरी ओर से गंगा मईया को चढ़ा देना"।
पंडित जी ने दमड़ी ले ली और चले गये। जाकर गंगा जी में स्नान किया। स्नान करके बाहर निकले तो याद आया कि रैदास ने एक दमड़ी गंगा मॉं को चढ़ाने को दी थी। उन्होंने गंगाजी में जाकर दमड़ी चढ़ाई और कहा- "रैदास ने यह दमड़ी आपको चढ़ाने को दी थी।"
पंडित जी जाने को मुड़े ही थे कि एक कोमल मधुर आवाज़ आई-" थोड़ा रुकिये"। फिर एक कोमल सुन्दर हाथ सोने का बहुमूल्य कंगन लिये बाहर निकला और आवाज़ आई -" प्रसादरूप मेरा यह कंगन मेरे भक्त रैदास को देना और कहना कि गंगा मॉं ने तुम्हें याद किया है। "
पंडितजी ने आश्चर्यचकित होकर वह मूल्यवान् कंगन ले लिया और वापिस चले। पंडितजी के मन में पाप आ गया। उन्होंने सोचा कि रैदास को क्या मालूम कि मुझे गंगा मैया ने उसे देने के लिये कंगन दिया है। क्यों न राजा को यह कंगन देकर पैसे कमा लें।
यह विचार आने पर पंडित जी ने वह कंगन राजा को जाकर दे दिया और पुरस्कारस्वरूप बहुत सा धन पाया।
राजा ने जाकर वह कंगन अपनी रानी को दिया। रानी उसे पाकर बहुत प्रसन्न हुई और तुरन्त हाथ में पहन लिया। रानी बोली-" मुझे ऐसा ही एक कंगन और चाहिये।"
राजा क्या करते ! उन्होंने कंगन देने वाले पंडित को बुलवाया और कहा-" ऐसा ही एक कंगन और लाकर दो। "
पंडित क्या बोले। उसने कहा-"मेरे पास तो एक यही था, दूसरा नहीं है। "
राजा ने कोप किया और कहा-" ऐसा ही एक कंगन और लाओ, नहीं तो जेल की हवा खाओ"।
पंडित लाचार हो गया और उसे सब बात सही सही राजा को बतानी पड़ी।
पंडित रैदास जी के यहॉं फिर गया और जाकर उनके पैर पकड़ लिये, सब बात सही सही बतायी और कहा कि-" मुझे राजा के कोप से बचाओ।जो एक कंगन गंगा जी ने दिया था वैसा ही एक और कंगन गंगाजी के पास जाकर मॉंगकर ला दो राजा को देने के लिये।
राजा भी अपने अनुचरों के साथ पंडित के पीछे पीछे गया था।
सन्त रैदास बोले- "तुम चिन्ता मत करो। कंगन लाने के लिये गंगाजी के पास जाने की ज़रूरत नहीं है. मन चंगा तो कठौती में गंगा।"
ऐसा कहकर रैदास जी ने वहीं बैठे -बैठे हाथ जोड़कर गंगा जी का ध्यान स्मरण किया और अपनी पानी वाली कठौती (काठ की परात) में हाथ डाला। आश्चर्य ! सबने देखा कठौती से वैसा ही एक कंगन गंगा जी की कृपा से प्राप्त हो गया। रैदास जी ने वह कंगन निस्पृह भाव से पंडित जी को पकड़ा दिया और इस प्रकार राजा के कोप से उसकी रक्षा की। उसके अपराध को भी क्षमा कर दिया, बदले में भी कुछ नहीं लिया।
रैदास जी बोले-" मैं अपनी मेहनत मज़दूरी से सुखी संतुष्ट हूँ, मुझे ज़्यादा की ज़रूरत नहीं है, गंगा मईया की कृपा से आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है "।
यदि आपका मन स्वस्थ हैं तो सब कुछ आपके पास है। यदि मन ही ठीक नहीं है तो सब कुछ पास होते हुए भी बेकार है। इसलिये अपने मन में सद् वृत्तियों का वास कर उसे सबल संकल्पयुत बनाना चाहिये। तभी से कहा गया है "मन चंगा तो कठौती में गंगा।"