मकसद

मकसद

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मैं उस इंसान से जब पहली बार मिला तभी मुझे अहसास हुआ की इस के साथ वक्त बड़ा स्वाद रहने वाला है। हमारी क्लास में वो भाई नया आया था। धीरे धीरे हम लोग एक दूसरे से मिलने लगे और समझने लगे। हमारी हरकतें और सोच भी एकदम मैच करती हमारे चुटकुले, डायलॉग और नाटक सब ही तो क्लास में रंग भर देते लौंडो के बीच हमारी वो अहमियत हो चली थी जो मोबाइल में डाटा पैक की होती है।

आलम ये था कि किसी को मुझे ढूँढना होता तो वो उसे फ़ोन करके पूछता की प्रदीप कहाँ है। कॉलेज से फ़रार होकर रोहतक की वो पहली मूवी या वो कॉलेज की छत पर गिने चुने दोस्तों के साथ कुरकुरे और पेप्सी की दो लीटर की बोतल खींच जाना या होली का वो त्यौहार जब हमने एक दूसरे को खेतों में भगा-भगा कर पक्के रंग से पेला था और ना जाने कितनी यादें जिसे याद कर के दिल ख़ुश और उदास दोनों हो जाता है।

आज इन बातों को कई साल हो चले हैं और वो इंसान जिन्दगी से जैसे लुप्त सा हो गया है। मुझे नहीं पता जिंदा है या जा लिया या क्या कर रहा है क्यूँकि अरसा हो गया है बात किये।

आप लोगों को ये कहानी कुछ-कुछ आपकी कहानी जैसी लग रही है ना ? आपका भी कोई ऐसा दोस्त रहा होगा ? आपने भी ऐसे ही मजे काटे होंगे ? आप भी शायद आज नहीं जानते होंगे की वो कहाँ है …? और आप ये भी सोच रहे होंगे की मैं इस कहानी से क्या साबित करना चाह रहा हूँ ….नहीं ?

मित्रों मैं बस ये साबित करना चाह रहा हूँ की हमारी जिंदगी में हर इंसान के होने का कोई कारण और कोई समय होता है। स्कूल, कॉलेज और प्रोफेशनल जिन्दगी में लोग आते हैं कुछ समय साथ रहते हैं, खूब यारी दोस्ती निभाते हैं और निकल जाते हैं। यही जिंदगी के उसूल है. कभी-कभी लगता भी है कि यार वो मेरा कितना अच्छा दोस्त था।

अब देखो याद भी नहीं करता मगर सौ बातों की एक बात यही है,

हर चीज़ का एक समय और एक मकसद होता है। मकसद पूरा होते ही वो चीज़ें, वो लोग हमसे दूर चले जाते हैं, जिसमें ना आप कुछ कर सकते हैं ना हम और ना किसी की गलती होती है, क्यूँकि उनका साथ बस इतना ही लिखा होता है।।


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