मक्कई की रोटी और सरसों का साग

मक्कई की रोटी और सरसों का साग

4 mins
637


प्रेरणा मायके जा रही थी, आज उसकी माँ का जन्मदिन था। गाड़ी में रास्ते भर...अपनी माँ के बालों की सफेदी, उनका झुर्रियों वाला चेहरा...उसके सामने आ रहा था। सबकी मदद को हमेशा तत्पर रहने वाली, उसकी माँ अपने लिए तो शायद जीवन में कुछ कर ही नहीं पायी थी। जब शादी हो कर आयी, बहुत बड़े संक्युक्त परिवार की ज़िम्मेदारियाँ निभाते- निभाते कब उम्र के उस पड़ाव को पार कर जिसमें आंखों में सपने भरे होते हैं...फिर अपनी गृहस्थी की गाड़ी सही से चलाने के लिए अपने सपनों को दरकिनार कर दिया। 

एक ही साड़ी कई शादियों में ख़ुशी-ख़ुशी पहन लेती थी और चेहरे पर कभी कोई शिकन नहीं होता था। ऐसा नहीं था कि प्रेरणा के पापा उसकी मम्मी को किसी चीज़ के लिए मना करते हों, बस उन्हें ही हर शादी में अपने लिए नए कपड़े लेना फिजूलखर्ची लगता था। हाँ उसकी माँ ने कभी प्रेरणा, उसकी बहन और उसके भाई की किसी ख्वाहिश का गला नहीं दबाया। हमेशा अपने बच्चों की खुशियों को पूरा करते-करते कब चालीस पार हो गयी पता ही नहीं चला। एक-एक करके माँ-पापा ने मिलकर उन तीनों भाई बहनों की अच्छे से अच्छे घरों में शादी कर दी और ज़िन्दगी भर की जमापूंजी का एक बड़ा हिस्सा अपने बच्चों के ऊपर बिना अपने भविष्य की चिंता करे लगा दिया। बच्चों की शादियों के बाद तो रोज़ का लेना-देना लगा ही रहता है। उसके लिए भी माँ-पापा ने कभी एक से दूसरी बार नहीं सोचा की आगे-आगे जब उनका  शरीर साथ देना बंद कर देगा, तब कुछ पैसा तो अपने लिए भी चाहियेगा। 

घर के खर्चे बड़ते गए...धीरे-धीरे प्रेरणा के पापा का बिज़नेस पटरी से उतरता गया क्यूंकि कभी-कभी जल्दी ही सब कुछ पाने की ललक कुछ निर्णय गलत करवा देती है....ऐसा ही कुछ प्रेरणा के भाई के साथ हुआ, जिससे की बिज़नेस घाटे में चला गया। प्रेरणा और उसकी बहन कभी उनकी थोड़ी बहुत मदद करना भी चाहते...तो माँ-पापा अपने पुराने सिद्धांतों की वजह से, कि "हमें बेटी के घर का कुछ नहीं चाहिए" मदद लेने से साफ़ मन कर देते। 

धीरे-धीरे उसके पापा को बिज़नेस घाटे में जाने का सदमा लग गया और वो चल बसे। उसका भाई जैसे-तैसे परिवार का खर्च चला रहा था। आज माँ के लिए एक सुन्दर सी साड़ी उनके जन्मदिन के लिए प्रेरणा ले जा रही थी।

कुछ देर बाद प्रेरणा अपनी माँ के सामने थी और उन्हें गले लगा कर उन्हें साड़ी देते हुए, ढ़ेरों सवालों के सामना करना पड़ेगा इसका तो प्रेरणा को पहले से पता था...पता नहीं माँ साड़ी रखेंगी की नहीं...पहले तो कहेंगी बता "कितने की आयी है साड़ी, मैं तुझसे इतना महंगा गिफ्ट कैसे ले सकती हूँ ? क्यों लाती हो तुम दोनों बहनें इतने महंगे गिफ्ट...जब पता है मुझे लगने लगता है कि अब मैं तुम्हें ज़्यादा कुछ दे नहीं पाती तो तुमसे ले भी कैसे सकती हूँ"।

प्रेरणा ने उन्हें बिठाते हुए कहा "पहले आप शान्ति से बैठ जाओ और अपनी पसंद का सरसों का साग और मकई की रोटी खाओ। रोटी मैं कच्ची कर के ले आयी थी, अभी गैस पर गरम कर के देती हूँ और साग में ज़्यादा घी नहीं डलेगा, पहले ही बता देती हूँ क्यूंकि आपका क्लस्टरोल बड़ा हुआ आया है और शुगर की वजह से गुड़ भी बहुत थोड़ा मिलेगा"। माँ का साड़ी की तरफ़ से ध्यान हटाने के लिए प्रेरणा ने यह सब कहा। माँ ने मुंह बनाते हुए कहा "फिर तो लायी ही क्यों है...साग और रोटी। जब तुझे पता है जब तक मैं साग में घी न डाल के खाऊँ मुझे मज़ा नहीं आता और गुड़ के बिना तो मकई की रोटी और सरसों का साग अधूरा ही लगता है"। प्रेरणा के चेहरे पर मुस्कान तैर गई, अपनी माँ की बातें सुन कर की आज भी कैसे बस छोटी-छोटी चीज़ों में ही अपनी खुशीयाँ ढूंढती रहती है...माँ।

प्रेरणा ने कहा अच्छा बाबा एक दिन के लिए आपको सब माफ़ है। आप जी भर के खाओ और मुझे बताओ जैसा आप बनाती हो वैसा बना की नहीं। खाना खा कर भी माँ साड़ी की बात कहाँ भूलने वाली थी प्रेरणा को कुछ रुपय पकड़ाती हुई बोली "मेरी तरफ से कुछ ले आइओ"।

प्रेरणा ने रूठते हुए कहा "क्या फायदा हुआ साड़ी लाने का, मैं नहीं लूंगी इतने रूपए। आप के लिए गिफ्ट ना लाओ तो लगता है मैंने आपके बर्थडे के लिए कुछ नहीं किया और लाओ तो आप ऐसे करती हो। प्रेरणा की मम्मी ने कहा "तेरे लिए नहीं दे रही हूँ, शिरीष जी और बच्चों के लिए दे रही हूँ, और मेरा गिफ्ट तो ये सरसों का साग और मक्कई की रोटी है...जो तूने आज मुझसे भी अच्छी बना कर मेरा मन खुश कर दिया"। प्रेरणा की आँखों में आंसू आ गये, उसने अपनी माँ को गले लगाते हुए कहा "मम्मी आप ज़रा भी नहीं बदली...क्यूँ इतनी अच्छी हो, कभी तो अपना भी सोचा करो"। प्रेरणा की माँ ने कहा "तुम सब खुश रहो और क्या चाहिए"।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama