मेरी मांँ की साड़ी

मेरी मांँ की साड़ी

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शादी कर के ससुराल पहुँची। अजीब सी घबराहट थी मन में, वो तो स्वाभाविक ही थी, नई जगह नए लोग। क्या विडंबना है औरत की भी, पच्चीस साल जहाँ बिताये, अपना घर समझ के, एक ही दिन में वो पराया हो गया, लोग पराए हो गए और एक नया घर मिल गया और नए रिश्ते मिल गए। सब ने कह दिया, आज से यही सब कुछ है तुम्हारे लिए।

खैर, शादी तो हो ही चुकी थी, ससुराल में पहला दिन तो रीति-रिवाजों में निकाल गया। दूसरी सुबह, मैं नहा धो कर तैयार हो गई। आज मैंने अपनी माँ की साड़ी पहनी। साड़ी लपेटकर सच में ऐसा लगा मानों माँ से लिपट गई हूँ। ये नई साड़ी नहीं थी मेरी माँ की, बहुत पुरानी साड़ी थी। यही कोई बीस बाइस साल पुरानी होगी, लेकिन ये साड़ी मेरी सब से पसंदीदा थी। जब मै छोटी थी, माँ ये साड़ी पहनती, तो मैं उससे कहती- ये मुझे दे दो न ये साड़ी, और प्यार से माँ कहती- तुम बड़ी हो जाओ तो ले लेना।

जब शादी के पहले मैं अपना सामान पैक कर रही थी, मैंने माँ की यह लाल साड़ी रख ली अपने सामान में, बुआ साथ ही थी, उस समय मुझे बोली भी वह, शादी के बक्से में पुराने कपड़े नहीं रखे जाते। तुझे इतनी ही पसंद है साड़ी तो शादी के बाद जब आना तब ले जाना, लेकिन मैंने उनकी बात सुनी ही नहीं। मुझे तो लेकर जाना ही था, ये साड़ी साथ में।

अब माँ का सामान और उनकी यादें, बस, और क्या है ही मेरे पास, इसके सिवाय। माँ को गुज़रे हुए कितने साल बीत गए, ऐसा एक भी दिन नहीं है जब मुझे उनकी याद न आई हो, लेकिन मेरी शादी के समय उनकी कमी बहुत ज्यादा खल रही है। ये कहाँ खो गई मैं, जल्दी से तैयार हो जाती हूँ। तैयार होकर आईने में खुद को देखा, एकदम माँ जैसा रूप था मेरा।

मैं खुद को अकेला नहीं समझ रही थी अब, लग रहा था माँ साथ में ही है।

वैसे ही छोटी ननद मुझे बुलाने आ गई। मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई लेकिन ये मुस्कान मेरा उपहास करते हुए थी। मैं उसे नजरअंदाज कर कमरे से बाहर आ गई और फिर से वही मुस्कान मैंने अपनी जेठानी के चेहरे पर भी देखी। सासू माँ ने मुझे देखते ही जल्दी से अपने पास बुला लिया। जाओ पूनम साड़ी बदल कर आ जाओ। अभी शादी का दूसरा ही दिन है, अभी तो घर में सब मेहमान भी है, कोई अच्छी सी साड़ी पहन लो।

इसमें क्या खराबी है माँजी।

बेटा, साड़ी बहुत अच्छी है लेकिन बहुत ही पुराने फैशन की है। इस तरह की साड़ी तो हमारे ज़माने में चला करती थी। आज इस समय ये तुम्हें कहाँ से मिल गई।

मैंने बहुत खुशी-खुशी उन्हें बताया ये नई नहीं है, ये मेरी माँ की साड़ी है।

अभी साड़ी बदल लो, फिर किसी दिन पहन लेना।

फिर जेठानी और ननद ने भी कहा- दूसरी साड़ी पहन लो ये तो बहुत पुराने फैशन की है, लेकिन मेरा मन मानने को तैयार ही नहीं था। कितना सुकून और खुशी मिली थी इस साड़ी को पहन कर, लग रहा था माँ का प्यार मेरे साथ है। कैसे बदल लूँ मैं साड़ी। सिर्फ रिश्तेदारों को दिखाने के लिए, जो कल अपने घर चले जाएंगे। मैं सोच में डूबी ही थी कि तभी मेरे पति पुष्कर की नज़र मुझ पर पड़ी। उन्होंने मुझे देखते ही कहा- बहुत ही खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में।

बस क्या था, मुझे हौसला मिल गया। फिर पूरे दिन मैंने वहीं साड़ी पहनी, लोग बातें बनाते रहें।


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