Thakur Sakshi Raghav

Abstract

4.8  

Thakur Sakshi Raghav

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मेरी जीजी मां

मेरी जीजी मां

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ये उन दिनों की बात है जब वो मुझ से दूर जा रही थी और मैं आंखो‌ में आंसू लिए उसकी call पर चीख चीखकर रोये जा रही थी, और वो‌ मुुझ से दूर होती जा रही थी।

कभी मेरी आंखों मे एक आंसू देखकर जिसकी चीख निकल जाती थी 

आज वो मेरी हर चीख को अनसुना कर रही थी, जो मेरे थोड़े से दर्द में तड़प जाती थी। आज वो मुझे तड़पता छोड़ के जा रही थी

और मैं उस से छोड़ के ना जाने की बस गुजारिश किये जा रही थी। वक्त गुजरा खुद को कभी ना पूरी होने वाली आश‌ देखकर होश में लाई मैं भीगती पलकों से आंसू पोछते हुए मैंने अपने करीब एक शख़्स को पाया उसे देेेखकर एक पल के लिए सहम सी गई थी मैं हिम्मत करके उस शख्स को घड़ी भर देखा मैंने वो शख्स कोई और नहीं मेरी जीजी मां मेेी सादगी थी

जब पूछा मैंने उस से आप यहां तो call पर वो कौन था।

मेरी जीजी मां अपनी आंखों में आंसू भर मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर बोली बेटू मेरी सोना ये तेरी जीजी मां की ह है call पर उसका शरीर था जिसमें अब एक स्ववार््थी लड़की है जिसने तेरी जीजी मां को मार डाला तेेी जीजी मां को

तुझ से जुुुदाा कर‌ दिया। अपनी सोना के बिना सादगी कैसे रह सकती है।

और उस वक्त उसकी रूह मुझे से लिपट कर बहुत रोई और मैं उसकी रूह से लिपट बहुत रोई उस की रूह रोती जा रही और मुझे से कहती जा रही बस अब तेरी जीीी मां की ये रूह ही बची है उस के जो आज मैं तुझे उस निर्दय लड़की से बचा कर तुझे सौंपने आयी हूं और तुझ मे ही एक एहसास बनकर रहने आयी हूं।

और उस दिन से वो मेरे साथ एक एहसास बनकर मुझ में ही रही है

I love you jiji maa

आप की सोना 

आप की बेटू।


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