Saroj Prajapati

Inspirational

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Saroj Prajapati

Inspirational

मेरे उसूल मेरी पहचान है

मेरे उसूल मेरी पहचान है

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रोशनी सरकारी विभाग में यू डी सी के पद पर कार्यरत थी।सरल, मृदुभाषी,हसमुख रोशनी के दो उसूल पक्के थे। समय की पाबंदी और कार्य के प्रति ईमानदारी। चाहे मौसम की मार हो बीमारी का वार हो,उसने कभी भी इन्हें हथियार के रूप में इनका इस्तेमाल नहीं किया। ऑफिस में सीनियर व अन्य कर्मचारी खुले दिल से उसके इन गुणों की प्रशंसा करते थे। हां,कुछ लोग अपवाद भी थे जो पीठ पीछे उसका मजाक उड़ाते थे। उन लोगों का मानना था कि ये अपने घरेलू कर्तव्यों से बचकर इतनी जल्दी ऑफिस पहुंचती है।नहीं तो ऐसा कदापि नही हो सकता कि कोई महिला महिला घर परिवार व ऑफिस की जिम्मेदरियां इतनी सुघड़ता से संभाले व समय से आए जाए। वह सबकी बातों को सुनकर हंसी में उड़ा देती और अपने काम में जुटी रहती।

रोशनी का बचपन बहुत संघर्षों में बीता था।उसके पिता एक फैक्टरी में काम करते थे।तनख्वाह इतनी ना थी कि छह जनों का गुजर बसर हो सके। इसलिए उसकी मां भी घर पर सिलाई कढ़ाई,लिफाफे बना घर की गाड़ी खींचने में अपना पूरा सहयोग देती थी। रोशनी शुरू से ही पढ़ने लिखने में होशियार थी और घर के हालात ने समय से पहले उसे समझदार बना दिया था। नौंवी कक्षा तक आते आते उसने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया था।जिससे उसकी पढ़ाई का बोझ परिवार पर न पड़े। अपने बहन भाइयों की भी वो पढ़ाई में मदद करती थी। मां ने सदा उसे घर के कामों से दूर रख पढ़ने के लिए प्रेरित किया। माता पिता के सहयोग और अपनी कड़ी मेहनत के बल पर ग्रैजुएशन के बाद उसकी नौकरी लग गई।किन्तु वह अपने संघर्ष के दिन नहीं भूली थी। इसलिए नौकरी के पहले दिन ही उसने अपने इन दो नियमों का संकल्प ले लिया था।

शादी के बाद पति भी उसे सहयोगी मिले। उन्हीं के कारण वो घर व ऑफिस के कर्तव्यों को बखूबी निभा पा रही थी और जिंदगी की गाड़ी हंसी खुशी चल रही थी।

कल उसकी नौकरी को पंद्रह साल हो जाएंगे।अपने जीवन के इस महत्वपूर्ण दिन को हर वर्ष वो अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मनाती थी और इस दिन कभी छुट्टी नहीं करती। आज सुबह वो उठी तो उसे तबीयत कुछ सही नहीं लग रही थी।उसके पति ने उसे आराम करने की सलाह दी। किंतु वह तो आज का दिन अपनी कर्मभूमि पर काम करते हुए बिताना चाहती थी। इसलिए वह दवाई ले ऑफिस के लिए निकल गई।लेकिन बीच में ही मेट्रो में खराबी आगई। रोशनी ने अपने सहयोगियों को फोन करने की कोशिश की लेकिन अंडरग्राउंड मैट्रो होने के कारण नेटवर्क नहीं मिल पा रहा था।दस मिनट बाद मेट्रो चली तो उसने राहत की सांस ली।मेट्रो से उतरकर उसने जल्दी जल्दी ऑफिस की ओर कदम बढ़ाए।उसे बड़ी घबराहट हो रही थी क्योंकि वह आज तक लेट नहीं हुई थी और आज तो रास्ते में ही नौ बज गए थे।उसने मन में सोच लिया था कि आज वह ऑफिस में आधा घंटा ज्यादा काम करेगी।

सवा नौ बजे वह ऑफिस पहुंची।आज लेट होने की वजह से वो खुद से ही नजरें नहीं मिला पा रही थी। वह जैसे ही अटेंडेंस लगाने लगी ,तभी उसके सर जो कुछ ही महीने पहले यहां आए थे, वहां पहुंच गए और घड़ी की ओर देखते हुए बोले "रोशनी जी अपना टाइम सही करिए। आज आप पूरे पंद्रह मिनट लेट है।" उनकी यह बात सुनकर रोशनी पर मानो घड़ों पानी पड़ गया हो।वह थोड़ा भावुक हो गई फिर थोड़ा संभलते हुए बोली " सर मैं इस ऑफिस में पिछले पंद्रह सालों से काम कर रही हूं और कभी लेट नहीं हुई।वो आज मेट्रो की खराबी की वजह से लेट हो गई।"

" तो आप फोन कर देती।"

" सर मैने कोशिश की थी लेकिन नेटवर्क नहीं आ रहा था।"

" रहने दीजिए रोशनी जी। लेट होने पर सब ऐसे ही बहाने बनाते हैं।" सर थोड़ा तल्ख लहजे में बोले।

ये सुन रोशनी को गुस्सा तो बहुत आया।किन्तु उसने अपने को संयत रखते हुए कहा " सर मैं कोई बहाना नहीं बना रही। मै समय की कीमत जानती हूं और सदा समय पाबंदी मेरी पहचान रही है।

उससे ईर्ष्या करने वाले कर्मचारी आज उसके उसूलों की धज्जियां उड़ते देख मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे। यह सब शोर सुन दूसरे सीनियर कर्मचारी भी वहां आ गए।जब उन्हें सारी बातों का पता चला तो उन्होंने भी रोशनी की तरफदारी की और सर को उसकी समय पाबंदी व कार्य के प्रति ईमानदारी के बारे में बताया। किंतु एक ऑफिसर अपनी गलती मान जाएं तो उसे ऑफिसर कौन कहे और वह भी एक क्लर्क से। यही बातें तो उनके अहं को संतुष्ट करती है।

उन्होंने बड़े बाबू से कहा " ठीक है। किंतु आज तो यह लेट है।ये तो मानती हैं यह।"

" सर मुझे भी इस बात का अफसोस है कि आज मैं लेट हूं और मेरी इतने वर्षों की तपस्या पर धब्बा लग गया।पर यह भी सच है कि मैने कभी झूठे बहानों का सहारा नही लिया और आज लेट आने की वजह से काम का नुक़सान हुआ है उसे मैं छुट्टी के बाद रुककर पूरा करूंगी।"

सारा दिन रोशनी उदास व परेशान रही। रह रह कर एक सवाल उसे बार बार परेशान कर रह था कि उसकी ईमानदारी व कर्त्तव्यनिष्ठा का उसे क्या फल मिला। बिना सोचे समझे सर ने उसे सबके साथ एक कतार में ला खड़ा किया।तो क्या वो छोड़ दे ये उसूल और गुम हो जाए दुनियां की भीड़ में।लेकिन वह चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाएगी क्योंकि यही तो उसकी ताकत और हौंसला है।

शाम को उसने अपने पति को सारी बातें बताई। उन्होंने भी उसे यही समझाया कि तुमने अपना पक्ष रख दिया। तुम यूं ही मेहनत से अपना काम करती रहो और अपने हौसलें को कभी टूटने मत देना क्योंकि यही तो तुम्हारी पहचान है।

रोशनी को उनकी बातों से फिर से हिम्मत मिली। मेट्रो में आए दिन आने वाली तकनीकी खामियों के कारण वह आधा घंटा और जल्दी घर निकलने लगी।उसने सोच लिया था कि ऐसी छोटी छोटी बातें उसे अपने उसूलों व कर्त्तव्यनिष्ठा से कभी नहीं भटका सकते। हां कोई आपके कार्यों की प्रशंसा करे या न करे किन्तु आपको एक आत्मिक संतुष्टि सदैव रहेगी।



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