मेरे जीवन की पहली ट्रेन यात्रा
मेरे जीवन की पहली ट्रेन यात्रा
मुझे आज भी याद है मेरी 2012 कि वो पहली यात्रा जो मैंने अपने गांव से शहर की ओर की थी।
तारीख थी 23 मई 2012 की, जब मैं मेरे पूरे परिवार के साथ अपने गांव से सकरम भिवानी के लिए लिच्छवी एक्सप्रेस से आ रहा था। मैं अपनी जिन्दगी में इस यात्रा को नहीं भूल सकता क्योंकि, जितनी कठिनाई मुझे इस यात्रा में हुई थी उतनी आज तक कभी नहीं हुई बाकी के किसी यात्रा में।
एक संस्मरण और बताना चाहुंगा मैं, इस यात्रा से दो दिन पहले अपने सभी दोस्तों के साथ अपने स्कूल की तरफ से सीतामढी टूर पर गये। वहाँ हमने माँ सीता का भव्य मंदिर देखा। साथ में वह स्थान भी देखा जहाँ लोगों की मान्यता के अनुसार राजा जनक जी को खेत में हल जोतते समय माँ सीता मिली थी। ये सब देखने के बाद हम वापिस अपने गांव की ओर लौटे। सीतामढी से लौटते वक्त रास्ते मे एक शहर पडता है, पुपरी वहां पर बस रुकी, सभी लोग नीचे उतरे।
हमारे सर ने स्टाफ मेम्बर के लिये ठंडा मंगवाया और सर लोग (हीरा, अशोक, अरुण, कामेश्वर आदि) सभी पैर-हाथ धोने के लिए बस से नीचे चले गये और उनके जाने और जाकर वापिस आने के बीच में जो हुआ उसे सुनकर और याद करके हंसी भी आती है और पछतावा भी होता है।
जब तक सर आते तब तक हम सभी (मौसम, पूजा, सपना, अमृता, सुनील, नीतीश, चंदन और मैं) और भी कई साथियों ने मिलकर टीचरों का सारा खाने-पीने का समान खा-पीकर खत्म कर दिया। जब सर लोग आये तो उन्होंने पाया कि सारा समान खत्म! उन्होंने हमारे ऊपर बहुत गुस्सा किया, इसलिये नहीं कि हम लोगों ने उनका समान खा लिया, बल्कि गुस्सा इसलिए किए कि हमने खाने के बाद भी मानने से इंकार कर दिया था।
तो हां... मैं अपनी फैमिली के साथ ट्रेन में बैठा और निकल पडा शहर की ओर। मगर ट्रेन में गरमी इतनी थी कि मुझे उस गरमी से चक्कर आने लग गये और उल्टी होने शुरू हो गया और मेरा सुहाना सफर फिर कष्टदायी सफर में तब्दील हो गया।