STORYMIRROR

fp _03🖤

Romance Tragedy

3  

fp _03🖤

Romance Tragedy

मेरा यहां तक का सफ़र

मेरा यहां तक का सफ़र

5 mins
170

हर चीज़ मुझे शुरू से नहीं मिली थी।

मुझे काफी मेहनत करनी पड़ी। चाहे वो अपने हक़ के लिए किसी से कहना हो या फिर उन चीजों के लिए लड़ना जो मुझे कभी पसंद ही नहीं थी।।

बस कुछ इसी तरह से मेरे लिए मेरी प्यार भरी ज़िंदगी थी।

लगभग मैंने उस समय अपनी ज़िंदगी की सबसे ख़ास चीज़ इस वजह से खोई थी क्योंकि मुझे लगता था की मुझे उससे प्यार हो गया है।

खैर समय के साथ मुझे ये पता लग गया था कि ये सिर्फ़ नाज़ुक उम्र थी जिसने किसी की तरफ़ आकर्षित होना कोई नई बात नहीं है।

हमारी दोस्ती भी उस वजह से टूट चुकी थी। जाहिर सी बात है अगर तुम अपनी दोस्ती में प्यार को घुसाओगे, वो भी जबरदस्ती तो दोस्ती से भी हाथ धो बैठोगे।

लगभग उस घटना के 7 महीने बाद मेरी मुलाकात साक्षात से हुई।

ऑनलाइन चैटिंग से हमारी बात बढ़ने लगी थी कब उसने मुझे प्रपोज कर दिया मुझे भी पता नहीं लगा। वो बहुत अच्छा था। या शायद उसे ये पता था कि मुझे दुःख देने के लिए उसे ज्यादा पापड़ नहीं बेलने पड़ेंगे।

हम मिलते रहे और मुझे उसकी आदत पड़ गई। ये चीज़ सामान्य थी 

अगर आप किसी से रोज़ रोज़ बात करने लगे तो उसकी आदत आपको पड़ ही जाती है।

लगभग 3 महीने तक हमारे बीच सबकुछ सही था। फिर अचानक से साक्षात के हाव भाव बदलने लगे। ना वो कुछ बोलता ना कुछ बताता। जैसे उसे मेरी किसी बात से फर्क ही नहीं पड़ता था।

मुझे लगा हो सकता है मेरी कहीं गलती हो वो किसी बात से नाराज़ हो और मुझे उस बात की ख़बर न हो। मैं उससे उतना पूछती जितना मैं पूछ सकती थी। मगर वो किसी भी बात का जवाब देना जरूरी नहीं समझता था।

अगले 3 महीने तक सब ऐसे ही चलता रहा। मैंने पहली बार खुद को किसी के सामने इतना बेबस पाया था कि उसकी वजह से मैंने सबसे बात करना बंद कर दिया था।

अपने दोस्तों को, सपनों को, घर वालों को सबको लगभग मैं खो चुकी थी, या शायद वो मुझे खो चुके थे मैं आज भी इस बात को लेकर श्योर नहीं हूं।

2 साल तक मैंने खुद को एक ही चीज़ में रखा था। अंधेरों से प्यार और उजालों से जैसे नफ़रत सी हो गई थी। लोगों से डर लगने लगा था। प्यार तो बहुत दूर की बात थी किसी से बात करने में भी डर लगता था।

मैं कभी इतनी कमज़ोर नहीं बनी कि उस घटना से खुद को चोट पहुंचाऊं। फिर 2 साल के बाद, मैंने खुद से कहा बस बहुत हुआ।

और कितना उस इंसान के लिए खुद को दुःख देगी जो तुम्हें प्यार देने के काबिल ही नहीं है। ईश्वर हमेशा मेरे साथ थे लेकिन शायद मैंने उस दुःख के अंधकार को इतना बढा दिया था कि मुझे उनकी उपस्थिति अपने आस पास महसूस ही नहीं होती थी।

वो 2 साल का सफ़र मेरे लिए कुछ ऐसा था।

मैंने खुद को बिलकुल खुद तक सीमित कर दिया था, रोना मेरे लिए ऐसा था जैसे कमज़ोर होते हैं। मैंने ज्यादा समय खुद को दिया।

खुद की मानसिक स्थिति को दिया। मन किया तो रोती थी, मन किया तो बात करती थी, मन किया तो खाना खाती थी, मन किया तो पढ़ लिया।

लॉकडाउन ने लगभग मुझे और ज्यादा निराश कर दिया था क्योंकि मेरे पास करने को कुछ नहीं था। ग्रेजुएशन पूरी हो चुकी थी और मैं सिर्फ़ इंतज़ार में थी कि मैं कब इधर से बाहर जाऊं।

मैं चिड़चिड़ी हो गई थी।छोटी छोटी बातों पर गुस्सा करना, हमेशा दूसरों के साथ बुरा बर्ताव करके अपने कमरे में आकर खुद को डांटना। मैं किसी भी चीज़ से संतुष्ट नहीं थी। कभी कभी लगता जैसे मेरे बहुत सारे ज़ख्मों पर कोई जानबूझ कर नमक फेंक रहा है। इतना दर्द होता था। समझ नहीं पाती थी कि किससे कहूं किसको बताऊं।

साक्षात के जाने के बाद मैं टूट गई थी मगर फिर एक समय बाद लगा, नहीं ये मैं कभी नहीं थी, इतनी कमज़ोर नहीं थी।

मगर ये इश्क़ की आदत कमबख्त होती ही ऐसी है - "अगर सही इंसान से हो तो बल्ले बल्ले, वरना साथ होने के बावजूद भी कल्ले कल्ले"।

खुद को संभाला तो पता लगा कि मुझे नहीं जरूरत किसी से प्यार की, किसी के साथ की। "मेरे लिए मैं काफी हूं।"

साक्षात के अलावा जिससे मैंने इश्क़ किया या यूं कहिए की बेइंतेहा इश्क़ किया वो थी "चाय"।

जब वो मुझे छोड़ कर नहीं गई तो कोई इंसान चाहे जो कर ले मुझे दुखी नहीं कर सकता। खुद को संभालना उतना ही मुश्किल होता है और उतना ही डरावना होता है जितना हम किसी और की बारी को महसूस भी नहीं कर सकते।

हमें बहुत हिम्मत की जरूरत होती है क्योंकि हमें पता है कोई और आके गले नहीं लगाएगा, कोई नहीं समझाएगा, कोई नहीं खिलाएगा, कोई नहीं सुनेगा, कोई नहीं बोलेगा, कोई नहीं समझेगा, कोई नहीं डांटेगा, कोई नहीं आएगा, कोई नहीं हंसाएगा। हमें खुद ये सब करना होगा" खुद के लिए"।

और मैंने ये सब किया खुद के लिए। मुझे और ज्यादा हिम्मत मिली।

ऐसा लगा मानो ये सारा आसमां मेरा है। ये पूरा ब्रह्मांड मेरा है। ये ईश्वर मेरे हैं। हां, ऐसा लगता है जब तुम ईश्वर की मर्ज़ी को मानते हो, जब तुम विश्वास करते हो कि जो भी है हमारे लिए अच्छा है।

जब तुम आकाश से बातें करते हो, चांद से अपने सपने कहते हो, जब तुम सूर्य की ऊर्जा से खुद के लिए खुशी प्राप्त करके उसे महसूस करते हो। तुम्हारी सारी क्रियाएं बदल जाती है। तुम्हारा जीवन सिर्फ तुम पर निर्भर करता है।

इस सारी घटना के लिए मैं आज भी ईश्वर और साक्षात दोनों को धन्यवाद करती हूं 

बिना इनके मुझमें ये बदलाव संभव नहीं था। खुद के लिए हमें वो सब करना पड़ता है जो हम दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमारे लिए करें। सच हमेशा ये होता है कि हमें पता है हमें अकेले रहना है मगर उसके बाद भी हम लोगों पर निर्भर होकर सिर्फ़ ख़ुद को दुःख देने का कारण बनते हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Romance