उलझन
उलझन
कुछ इस तरह से रही, मेरी ज़िंदगी
खामखा कई उनझनों में फंसी रही।
सोच इसके बारे में ,मैं परेशान सी ;
समझ न आए कहां है जा रही ये
सारी परेशानियों का हल ढूंढ कर मैं,
नई शुरुआत कर रही मैं।
मगर ढूंढूं कहां अब खुद को ,
काफ़ी पीछे छोड़ चुकी खुद को मैं।।
