Sanket Singh

Comedy

2.8  

Sanket Singh

Comedy

मेरा नाम मेरा घमण्ड

मेरा नाम मेरा घमण्ड

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हम दोनों संत रविदास पार्क में दुनिया से नज़र बचा कर एक झाड़ी के पीछे बैठे थे. हमेशा यु ही होता रहा था, मिलने के कुछ समय तक हम शांत बैठे एक दूसरे को नि.हारते रहते, जब कुछ वक़्त गुज़र जाता तब मै बोलता रहता और वो मेरी बकवास को आनंद के साथ सुनते रहती.. मेरे बालों में फिरते उसकी हथेलियों का सुख महसूस करते हुए मैंने यु ही बोला, “तुम्हारा नाम किसने रखा?” उसने कहा, “मेरे दादाजी ने”, “क्यों अब मेरा नाम भी अच्छा नहीं लगता क्या?” “नहीं ऐसा कुछ नहीं, नाम तो अच्छा है तुम्हारा पर बहुत कॉमन है”, मैंने फटाक सफाई देते हुए पर मन की बात भी बोलते हुए कहा. उसे मेरी आदत पता थी, उसने बुरा नहीं माना. मैंने फिर पूछा, “मेरा नाम कैसा है?” “तुम्हारी तरह ही बहुत अच्छा है”, उसने प्यार से कहा. “कभी सुना है ये नाम, अगर सुना भी होगा तो बहुत कम, कितना रेयर नाम है मेरा” मेरा घमंड बहार आया. “ऐसा कुछ रेयर नहीं है, बस इस नाम का कोई मशहूर नहीं हुआ इसलिए ज्यादा सुनने को नहीं मिलता,” घमंड का जवाब भी बेइज़्ज़ती में हाज़िर हुआ.


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