Neeraj Agarwal

Romance Fantasy Inspirational

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Neeraj Agarwal

Romance Fantasy Inspirational

मेरा भाग्य और कुदरत के रंग....एक सच

मेरा भाग्य और कुदरत के रंग....एक सच

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 हम सभी जानते हैं कि मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच है क्योंकि आज आप और हम सभी जीवन में अभ्यास ही सफलता की कुंजी हैं । एक सच तो यही है । हम सभी संसारिक सोच के साथ-साथ जीवन जीते हैं। परन्तु हम कभी मुश्किलें आने पर हिम्मत और साहस छोड़ देते हैं। परन्तु हम सभी अपने जीवन में बस एक ही राह पर चलते हैं। बदलाव से डरते हैं। परन्तु हम यह भूल जाते हैं कि मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच और महत्व रखता है।

ललिता एक विधवा लड़की थी जो कि जवानी के सफर में हमसफ़र को खो चुकी थी। और वह अपनी सोच में अपने को बदनसीब और जीवन को निरर्थक समझती थी। सच यही हैं कि जब जीवन में अचानक ऐसे हादसे हो जाते हैं। परंतु जीवन में हम सभी एक कहावत की याद रखें अभ्यास ही सफलता की कुंजी है और जीवन मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच की कहावत है क्योंकि हम सभी मानवता के साथ जीवन जीते हैं और कल और  पल का किसी को भी पता नहीं रहता है। ललिता भी आप अपने जीवन में कुछ सोच नहीं पाती है और अपने गांव से निकलकर शहर की चकाचौंध में आ जाती है। ज्यादा पढ़ी-लिखी ना होने के साथ-साथ उसका शरीर और उसकी खूबसूरती अब भी बरकरार थी और ललिता खान और घर का काम करने में बहुत होशियार थी थोड़ी बहुत सिलाई भी कर लिया करती थी अब वह शहर में अजनबी की भांति आ जाती है जब वह शहर में नौकरी के लिए भटक रही थी तब उसकी मुलाकात औरत रानी से होती है परंतु वह नहीं जानती थी रानी की विषय में की रानी एक कोठे वाली है और वह ललित को उसकी बेबसी का फायदा उठाती है। और ललिता ने सुबह से शहर में आकर कुछ खाया भी नहीं था और वह रानी के साथ उसके घर की ओर चल पड़ती है और रानी एक चालक और तेज तर्रार कोठे वाली थी।

वह ललिता को यह दिखाना चाहती थी कि  वह एक शरीफ और खानदानी औरत है और वह उसे अपने कोटे के पीछे वाली साइड से उसे घर में ले जाती है और वहां जाकर ललित को खाना और अच्छे-अच्छे कपड़े देती है और कहती है बहन तुम यहां रहो और किसी बात की कमी मत समझना यह अपना ही घर समझो ललिता देखती हैं। जब उसके घर में घुंघरू और तबला और सारंगी वगैरा वाद्य यंत्र देखी है तो वह ललिता रानी से पूछता है कि यहां का कोई संगीत का विद्यालय है तो रानी ललित को हां भर देती है हां ऐसे ही समझो तुम और ललिता जब रात को रानी के दिए हुए कमरे में सो जाती है तो उसकी रात को अचानक रात के मध्य में आंख खुलती है और है कुछ आवाज सुनती है जो की आवाज़ कुछ अश्लीलता से भरी थी रानी किसी गैर मर्द के साथ हम बिस्तर हुई बिना कपड़ों की अपने कोठे की रौनक को अंजाम दे रही थी। ललिता भी एक शादीशुदा वैवाहिक औरत थी वह इतनी जल्दी यह नहीं समझ पाती है कि वह कोठी पर आ गई तो वह हंस कर अपनी आंखों को छुपा लेती है वह समझत है की जोी बहन उन्हें लेकर आई है तो शायद उनके पति आज उनके साथ संबंध बना रहे हैं ऐसा सोच है फिर अपने बिस्तर पर जाकर सो जाती है जब सुबह की पहली किरण सूरज के साथ उसके कमरे में आती है।

 ललिता अपने कमरे से निकाल कर जब बाहर आती है सुबह की महफिल लगी होती है और तबला सारंगी के साथ-साथ रानी और संग में दो चार और उसकी लड़कियां तबले की थाप पर नाच रही होती है। और यह देखकर ललिता भी अपने पैरों मे घुंघरू बांधकर वह भी नाचने लगती है और रानी भी ललिता के साथ साथ देने लगती है और फिर सभी कुछ देर बाद अपने-अपने कमरों में चले जाते हैं और रानी और ललिता और लड़कियां चाय नाश्ता करती हैं रानी लड़कियों को इशारों में ही समझा देती है तब लड़कियां रानी को बहन जी कहकर संबोधन करती है और कहती है अब हम बहन की जा रहे हैं कल फिर नृत्य सीखने आएंगे ऐसा कहकर करें पास के कमरों में चली जाती हैं।

 ललिता भी रानी के साथ नाश्ता करती है और फिर ललित रानी से पूछती है दीदी मुझे भी कोई काम बताइए जब मैं आपके साथ रह रही हूं तो मुझे भी कुछ ना कुछ काम करना चाहिए। रानी बहुत चालाक औरत थी वह ललिता से कहती है बहन अभी कुछ काम नहीं है जब काम होगा तुम्हें बता दूंगी अभी तुम खाओ पियो और सेहत बनाओ और अपनी शरीर पर कुछ मालिश और मेकअप का सामान चाहिए तो मैं ला देती हूं अब तुम सब कुछ भूल कर अपना घर की तरह यहां रहो। 15 - 20 दिन रानी के साथ रहने के बाद ललित को आप आराम तलब की आदत सी हो गई थी और रानी को भी यही चाहिए था रानी तो एक बिजनेस वूमेन थी जो कि कोठी की महारानी थी। रानी तो समझती थी अभ्यास ही सफलता की कुंजी है क्योंकि वह हर नारी को अपनी अभ्यास के द्वारा ही सफलता पा लेती थी। और उधर ललित सोचती है मेरा भाग्य कुदरत के रंग पता नहीं मैंने कौन से अच्छे कर्म करे थे।  जो मुझे ऐसा ऐश आराम मिलने लगा। बस ललित ने एक सोच नहीं सोची की कोई इतना ख्याल क्यों कर रहा है क्योंकि ललित गांव की भोली भाली कम उम्र की विधवा थी उसे शायद ऐसी बातों का पता भी नहीं था कि लोग इतने चिराग और शातिर होते हैं और वह भी एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है।

 ललिता भी थी तो एक औरत थी और वह भी रानी को रोज रात किसी न किसी नए मर्द के साथ मध्य रात्रि में देखी थी परंतु वह किसी भी मर्द का चेहरा नहीं देख पाती थी क्योंकि कमरे की झिरी में से बस सामने के बदन और बिस्तर चमकता था ना कि कुछ ज्यादा चेहरे और चेहरा चमकता भी था तो कभी-कब वास रानी का ही चेहरा चमकता था और ललिता के मन भाव में जीवन की उमंग और तरंग भी एक नारी की इच्छाएं जन्म लेती हैं परंतु वह भी बस और लाचार रानी से क्या कहती। रानी बहुत चालाक थी अभ्यासी सफलता की कुंजी है उसके दिमाग में ललित को हंसने का पूरा प्लान था और वह उसके पास वाले कमरे में ही अपने ग्राहकों के साथ अपने पेशे को अंजाम देती थी वह जानती थी की रानी उसे रात में आवाजों के साथ उठ-उठ कर देखती है।

 एक सुबह ललित को रानी अच्छी साड़ी और कपड़े लाकर देती है। और और रानी ललिता से कहती है वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही है। रात को तुम्हारे जीजा जी आए तो उनको संभाल लेना और खाना पीना खिला देना ललिता खुश हो जाती है वह सोचती है इतने दिन बाद सेवा का मौका मिला है अपने उपर एहसन का बोझ  उतारने का अवसर मिला है। ललिता रानी को कह देती है कि उन्हें कोई शिकायत का मौका नहीं मिलेगा और रानी तो चाहती ही थी रानी ने चार दिन की चार मर्द लाखों रुपए में ललिता की रातों सौदा कर दिया था। रानी की जाने के बाद उसी रात एक अच्छा कपड़ों में सुंदर सा आदमी आता है और आते ही पूछता है रानी कहां है तो वह ललिता रहती है कि दीदी तो अपने गांव गई है तो वह कहता है आओ खाना लगा दो मेरे लिए तो वह उसे कमरे में ले जाता है और ललिता खाना लेकर कमरे में जाती है तो खाना खाने के बाद वह सुंदर मर्द कहता है अब मेरे लिए एक ड्रिंक बनाकर लाओ तो ललित उसके लिए ड्रिंक बना कर ले जाती है। और ड्रिंक के साथ ललित जब पहुंचती है तो वह सुंदर मर्द अंदर से किवाड़ बंद कर लेता है ललिता कुछ समझ पाती उससे पहले वह ड्रिंक पीकर पीछे से ललित को पकड़ लेता है ललिता की आवाज लगती है परंतु कोई सुनने वाला बहाना था और वह ललिता के साथ पूरी रात हम बिस्तर होता है ललिता रहती है जीजा जी दीदी को मन चलेगा तो नाराज होगी तो वह सुंदर मर्द कहता है कोई बात नहीं हम दीदी को समझा देंगे ऐसा कह कर गए सुबह ललित को कुछ रुपए बिस्तर पर देकर चला जाता है अब रोज रात को ललिता के साथ नई जीजा आने लगते हैं और कुछ दिनों में ललित को ऐसी आदत सी पड़ जाती है एक ललिता भी एक औरत थी और दूसरी औरत ने उसे इस दलदल में धकेल दिया इसे हम मेरा भाग्य और कुदरत के रंग का एक सच कहे या रानी की चालाकी अभ्यास ही सफलता की कुंजी है।

 सच तो जीवन का यही है कि हम सब शब्दों की कहानी पढ़ रहे हैं परंतु सच में दुनिया में बहुत से लोग ऐसे ही है मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच तो रहता ही है परंतु हम जीवन के सच को और भाग्य को समझ पाते हैं जब तक समय अपना चक्र चला देता है।


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