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Rutuja Misale

Romance Action Thriller

4  

Rutuja Misale

Romance Action Thriller

में तेरी चाँदनी....

में तेरी चाँदनी....

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तेज हवा चल रही है। आसमान में तारों से भरी चादर चढ़ चुकी है। पूनम की रात ने चाँद के सौदर्य को और भी बढ़ा दिया है;मानो कोई कोयले की खान में हीरा चमकता हो वैसे ही चाँद की चमक लग रही थी।

राजकुमारी चांदनी अपने कक्ष के खिड़की में खड़े हुए चाँद को निहार रही थी। 

तभी कक्ष में दासी चंदा प्रवेश करती है (दासी चंदा वो हे जिन्होंने राजकुमारी चाँदनी की हर जरुरत का ख़याल रखा है। वे उनकी दाई माँ जैसी थी। ) 

दासी चंदा ने राजकुमारी को झुककर अभिवादन किया और शांत लहजे से बोली :- आप अभी तक सोई नहीं राजकुमारी ? रात काफी हो चुकी है अब आपको सो जाना चाहिए।

राजकुमारी ने चाँद की और देखते ही धीमे स्वर में कहा :- नींद नहीं आ रही ....

दासी चंदा ने चिंताजनक स्वर से राजकुमारी से पूछा :-राजकुमारी आप ठीक तो है ना,आप इतनी अस्वस्थ लग रही है, आपको को युवराज की याद आ रही है ?

राजकुमारी ने एक लम्बी सास छोड़ते हुए कहा:- याद तो उनकी आती है जो आपसे दूर हो परंतु युवराज तो हमारे रोम रोम में बसे हुए है। वे हमारे दिल के सबसे करीब है। बस वो जहां है सुरक्षित रहे और जल्द से जल्द लौट आए।

राजकुमारी की बातें सुन दासी चंदा परेशान हो गई। उनसे राजकुमारी की ए दशा देखी नहीं जा रही थी और उन्होंने हिम्मत कर राजकुमारी से बात करने की ठान ली:-राजकुमारी एक बात कहुँ ?? आप नाराज मत होना।

राजकुमारी ने हाँ में शीश हिलाते हुए चंदा को बात कहने की अनुमती दे दी।

दासी चंदा :- राजकुमारी चाँदनी आप पर हमारा पुत्रिवत प्रेम है। बचपन से लेकर आज तक हमने आपको अपनी ही संतान समझकर आपकी सेवा की है।हमसे आपकी ए दशा देखी नहीं जाती राजकुमारी आप कब तक ऐसे ही युवराज के इंतजार में .... इस विरह की अग्नि में खुदको जलाती रहेंगी ?

राजकुमारी ने चन्ना की परेशानी समझते हुए उनके कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा :- हम ठीक है चंदा माँ। आप हमारे कारण चिंतीत ना हो...।युवराज जल्द ही लौट आएँगे और वो दिन हमारे सुवर्णनगरी के लिए किसी उत्सव से कम नहीं होगा। बड़े धूम धाम से नगाड़े, ढोल बजाते हुए हम उस दिन को मनाएँगे। देख ना हमारे महल की रौनक फिर से लौट आएँगी।

दासी चंदा ने आँसुओ से भरी नजरोंं से राजकुमारी की ओर देखते हुए कहा :- छह महीने ज्यादा समय बीत चुका है,किंतु युवराज का अभी तक कोई संदेश नहीं आया,और तो और उनकी तलाश के लिए जिनको भेजा गया था उनका भी कोई पता नहीं है।और ....

राजकुमारी ने परेशानी भरे नजरें से देखते हुए पूछा :- और ??और क्या ??

दासी चंदा ने अपना सर झुकाते हुए धीमे से निराशा भरे स्वर में कहा :- जो सैनिक युवराज की तलाश में गए थे उनमे से एक को युवराज का राजमुकुट मिला है और वो भी खून से लतपत। सारे महल में बातें चल रही है की शायद युवराज अब जीवित.....

चंदा इस से आगे कुछ कह पाती की राजकुमरी ने उनकी बात टोकते हुए कहा :- बस...आपका ए दुत्साहस ?? आप जानती है आपके इस बर्ताव के कारण हम आपको दण्डित कर सकते है। सिर्फ राजमुकुट मिला है ना, युवराज नहीं मिले अभी तक इसका अर्थ वे अभी भी जीवित है,और वे जल्द ही लौट आएँगे। हमें अपने आस्था पर पुरा विश्वास है महादेव हमारे साथ कभी अन्याय नहीं होने देंगे।

दासी चंदा :-परन्तु राजकुमारी....

राजकुमारी ने सख्त लहजे से कहा :- बस.... हमें एकांत चाहिए अब आप जा सकती है।

 दासी चंदा वहाँ से निकलने ही लगी थी एक सेवक कक्ष के द्वार पर आ खड़ा हुआ।

सेवक :- राजकुमारी की जय हो ! राजकुमारी राजमाता की तबियत बहुत खराब हो रही है।वो आपको याद कर रही है।आपको शिघ्राती शीघ्र चलना होगा। 

राजकुमारी ने परेशानी होते हुए कहा :- क्या ?? तुम चलो हम बस आ ही रहे है। राजकुमारी राजमाता इन्दुमति की कक्ष में प्रवेश करती है।

किसीके आने की आहट से राजमाता की निद्रा खुलती है राजमाता:- कौन?? चंद्र!! चंद्र!! तुम आ गे पुत्र....

 राजकुमारी राजमाता के नजिक जाकर बैठ गई और उनके हाथोंं पर हाथ रखते हुए बोली :- हम है राजमाता !

राजमाता रोते रोते बोली :- चंद्र कहा है ?कहा है हमारा पुत्र ??

राजकुमारी ने राजमाता को समझाते हुए कहा :- वो जल्द आ जाएंगे राजमाता! आप परेशान ना हो....

राजकुमारी ने राजमाता को औषध पिला कर सुला दिया और उनको देखते हुए वहीं बैठ गई। तभी राजमाता नींद में ही बड़बड़ाने लगी :- नहीं देव... नहीं.... आप ऐसा नहीं कर सकते!! छोड़ दो चंद्र को.... वो आपका अनुज है... आप ऐसा नहीं कर सकते ...नहीं... नहीं....

और राजमाता की आँख खुल गई। रजकुमारी बड़े हैरानी से राजमाता की और देख रही थी।पास में खड़े एक दासी ने पानी से भरा प्याला राजमाता के हाथोंं में पकड़ा दिया।राजकुमारी चाँदनी ने सभी दासियों को कक्ष से बाहर जाने का आदेश दिया।

राजकुमारी :- राजमाता ए देव कौन है ?और वे युवराज को क्यों मारना चाहते हैं ??

राजमाता :- वो ..वो ...(बोलने में हिचकिचाते हुए)

राजकुमारी :- बोलिए राजमाता... ए युवराज के जिंदगी का सवाल है ! कौन है ए देव ??और आजतक हमें इनके बारे कुछ भी क्यूं नहीं बताया गया ??

राजमाता :- देव चन्द्रसेन का जेष्ठ है।

राजकुमारी :- क्या ?? पर अगर ऐसा है तो हम उन्हें कैसे नहीं जानते ?हमने उनको कभी नहीं देखा;और ना ही उनकी कोई बात सूनी है महल में ...

राजमाता :- क्योंकी उनके विषय में बात करने की इजाजत नही है किसीको इस महल में।

राजकुमारी :- पर ऐसा क्या हुआ था राजमाता की उनके विषय में कोई बात तक नहीं कर सकता।

राजमाता :- ए दस साल पहले की बात है।महल से आए दिन कोई न कोई अचानक से गायब होने लगा था। किसीको कुछ समझ नहीं आ रहा था ए सब क्या हो रहा है। हम सब को लगा की ए किसी दुश्मन की चाल है, वे हमारे राज्य में घुस चुके है और एक एक को मार रहे है ; परंतु उस दिन अश्वों के तबेले के एक कमरे में बहुत गंधी बदबू आ रही थी, और उस कमरे में उन सभी लोग जो गायब हो गए थे,उनके शीश कटे हुए शरीर मिले,और वहाँ पर देवसेन को रंगे हाथोंं उनकी बली देते हुए पकड़ा गया, और वहाँ देव के कई वस्त्र खून से भरे मिले, तहकिकात करने पर पता चला की उसने उन सभी की बली दी है।

राजकुमारी ने बड़े हैरानी से आवाज उँची करते हुए कहा :- क्या..? बली ? पर किस लिए ?

राजमाता :- ताकत... राज्य.... सत्ता .....

ताकदवर होने के लिए वो उन लोगों का रक्त पिता था। महाराज को पता चलते ही उन्होंने उसे सजा की तौर पर राज्य से और राजतख़्त से दूर कर जायदात से बेदखल कर दिया और चन्द्रसेन को युवराज घोषित कर दिया, इसी लिए वो युवराज से नफरत करता है !! न जाने क्या सुलुख कर रहा होगा उसके साथ।

राजकुमारी ने बड़े हैरानी से राजमाता के और देखते हुए कहा :- तो क्या हमारे माँ पिताश्री को मारने वाला भी देवसेन ....

राजमाता ने कुछ भी न कहते हुए अपनी आँखे झुका ली।

राजकुमारी वैसे ही उठी और सुवर्णनगरी के राज्य सल्लागार अमात्य के कक्ष में पहुची तब अमात्य कोई किताब पढ़ने में व्यस्त थे। राजकुमारी ने सीधे उनके विश्राम कक्ष में प्रवेश करते हुए अमात्य की और ग़ुस्से भरी नज़र से देखते हुए कहा :- अमात्य! हमें आपसे ए उम्मीद नहीं थी।

अमात्य ने अचानक से राजकुमारी को देख चिन्तित हो गए और हडबडाई में पूछा :- राजकुमरी आप यहा? इस समय ? क्या बात है? सब कुशल मंगल तो है ? राज्कुमारी क्या बात है आप इतने क्रोध भरी नजरों से क्यों देख रही है हमें ! 

राजकुमारी ने सख्त लहजे से कहा :- क्या आपको लगता है आमात्य इस महल में सब कुशल मंगल है ? 

आमात्य :- फिर भी आपको कुछ काम था तो आप हमें किसीके हाथोंं संदेश भिजवा देती हम खुद आ जाते आपसे मिलने ....

राजकुमारी :- नहीं अमात्य, शंका हमारी थी तो हमें ही आना था उसका हल ढूंढने....

अमात्य :- बताइए राजकुमारी क्या समस्या है आपको ?

राजकुमारी :- देवसेन कौन है ? 

आमात्य ने अपनी आँखे चुराते हुए कहा :- देवसेन ? ए कौन है ?हमने तो पहली बार नाम सुना है ए ?

राजकुमारी ग़ुस्से से बोली :- झूठ मत बोलिए अमात्य ! आपके हिचकिच्याहट ए तो साबित कर दिया की आप सब जानते है। तो बेहतर यही होगा की आप हमें सब सच सच बता दे ! हमसे कहा गया था हमारे माँ और पिताजी रूहानी जंगल को पार कर रहे थे तब किसी जानवर ने उनपर हमला किया था, हमसे ए क्यों छुपाया गया की हमारे माँ पिताजी का कातिल कोई जानवर नहीं बल्कि इंसान के रूप में जानवर है। बताइए आमात्य हमसे ए क्यों छुपाया गया ?

 अमात्य :- हमें क्षमा करें राजकुमारी चाँदनी हम आपको नहीं बता सकते ! हम वचनबद्ध है। 

राजकुमारी :- नहीं बता सकते ? युवराज की जिंदगी खतरे में है अमात्य और आप यहाँ अपना वचन नहीं तोड़ सकते ?आपके लिए युवराज की जिंदगी सबसे पहली जिम्मेदारी है अगर नहीं तो ए राजद्रोह है ! यदि पितामहाराज (युवराज चन्द्रसेन के पिताश्री ) को पता चला ....

राजकुमारी की बात बीच में ही टोकते हुए अमात्य बोले :- महाराज को सब ज्ञात है!

राजकुमारी ने हैरानी से अमात्य की और देखा,ग़ुस्से से उनकी आँखे लाल हो चुकी थी और दीमाग में सवालो का तूफान चल रहा था। अपने कदम बढ़ाते हुए राजकुमारी महाराज के कक्ष के पास आकर रुक गई बाहर खड़े सेवक से कहकर मिलने की इजाजत मागने का आदेश दिया वैसे ही सेवक ने अंदर प्रवेश करते हुए महाराज को झुककर अभिवादन करते हुए कहा :- महाराज की जय हो ! महाराज राजकुमारी चाँदनी द्वार पर है और उन्होंने आपसे मिलने की इच्छा व्यक्त की है।

महाराज ने चिन्तित होकर राजकुमारी को अंदर आने की इजाजत दी। 

अंदर कक्ष में प्रवेश करते ही राजकुमारी ने महाराज से बोली :- महाराज ! क्या स्मरण है आपको ? आपने हमारे पिता महाराज को वचन दिया था, की आप हमारा विवाह युवराज चंद्रसेन के संग करेंगे।

महाराज :- हमें ज्ञात है राजकुमारी चाँदनी ! 

राजकुमारी :- नहीं महाराज आप भूल गए है,तभी तो जब आपको पता है युवराज को बंदी बनाने वाला देवसेन है, फिर भी आप कुछ नहीं कर रहे है।

राजकुमारी के मुँह से देवसेन का नाम सुनके महाराज और भी ज्यादा परेशान हो गए।और राजकुमारी की ओर पीठ कर बोले :- आप को ए सब किसने बताया ?

राजकुमारी :- वो जरुरी नहीं है महाराज,अभी युवराज की जिंदगी का प्रश्न है आपको कुछ तो करना होगा। आपको देवसेन से युवराज को बचाना होगा ! आपको देवसेन के खिलाफ युद्ध की घोषणा करनी होगी।

महाराज :- इसमें नुकसान तो हमारा ही है,एक बेटे को बचाने गए तो दूसरा बेटा खो देंगे ! 

राजकुमारी :- नहीं महाराज देवसेन को तो आप पहले ही खो चुके हो,और महादेव ना करें अगर युवराज को कुछ हो गया तो....तो आपके इस राज्य की सत्ता देवसेन के हाथोंं में चली जाएगी, और फिर ....महाराज एक बार राजमाता के बारे में सोचीए, पागलों जैसी हालत हो गई है उनकी,अगर आप कुछ नहीं करेंगे तो हम खुद चलें जाएंगे रूहानी जंगल में और युवराज को ले आऊँगी वापस!

महाराज:- आप ऐसा कुछ नहीं करेंगी राजकुमारी ! आपकी सुरक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।

राजकुमारी :- और युवराज की जिम्मेदारी किसकी है महाराज ?

महाराज ने सेवकों को आवाज लगाते हुए बोले :- अब से युवराज चंन्द्रसेन के आने तक राजकुमारी चाँदनी को नज़रकैद किया जाए।

राजकुमारी :- किंतु महाराज ...

महाराज ने राजकुमारी की बातों को अनसुना करते हुए कहा :- हमें एकांत चाहिए।अब आप जा सकती है ! 

राजकुमारी निराश होकर अपने कक्ष की और बढ़ी।

(राजकुमारी उनकी और युवराज की बीती हुई बातें याद करती है।)

राजकुमार चंद्रसेन :- राजकुमारी चाँदनी, हमें आपसे बात करके बहुत प्रसन्नाता मिलती है, आपसे मिलकर हमारे दिल को नितांत आनंद मिलता है।(राजकुमारी का हाथ अपने हाथ में लेकर ) राजकुमारी आप हमसे वादा कीजिए की आप ऐसे ही हमारे साथ हमारी अर्धांगिनी बनकर सदा सदा के लिए हमारे साथ रहेगी।

राजकुमारी(शरमाते हुए):- राजकुमारी चाँदनी जनम जनम के लिए केवल आपके ही रहेगी युवराज !

राजकुमार चंद्रसेन खुले आसमान की और देखकर:-हमारी प्रेम कहानी आसमान के चाँद और चाँदनी की तरह हमेशा हमेशा के लिए अमर रहेगी।

राजकुमार चंद्रसेन की सद्यस्थिति।

राजकुमार को एक कारागृह में बंदी बनाकर रखा गया है।उनके दोनों हाथोंं को मजबूत लोहे के बेड़ीयो से बाँधकर घुटने के बल बिठाया गया है।

राजकुमार चंद्रसेन:- छोड़ो हमें .....जाने दो ....! खोलदो ए बेड़िया। रिहा करदो हमें....

देवसेन कारागृह प्रवेश करता है। पूरे काले वस्त्र, सर पर ताज और हाथोंं में एक छडी जिसके ऊपर एक लाल रंग का बडा सा मणी था जो हिरे की तरह चमक रहा था।

देवसेन ने हाथों के छडी से युवराज का चेहरा ऊपर करके बोला :- ओ....मेरे भाई!कैसे हो ? उम्मीद है तुम्हारे खातिरदारी में कुछ कमी तो नहीं रह गई होगी।

युवराज चंद्रसेन :- छोड़ दो हमें ...छोड़ो...

देवसेन:- पहले तो ए चिल्लाना बंद करो यहाँ आपकी पुकार सुन कोई नहीं आएगा आपको बचाने.....तो ए ऐसे अपने कंठ को तकलीफ देकर हमारे कानों से परिश्रम ना करवाए !

राजकुमार चंद्रसेन :- आप ए सब क्यों कर रहे जेष्ठ ??

देवसेन ग़ुस्से में आकर चिल्लाते हुए बोला :- क्यों ...?क्यों...? ए तुम पूछ रहे हो चंद्र ?

राजकुमार चंद्रसेन :- हमने आपका क्या बिघाडा है ?

देवसेन:- हा तुमने ही बिघाडा है! तुम्हारे वजह हमसे हमारा परिवार छीन गया ... हमसे हमारा तख़्त, हमारा ताज,हमारा साम्राज्य छीन गया।तुम्हारे वजह से हमें एक युवराज होकर भी अपने अधिकार नहीं मिले। तुम वहाँ राजगृह में खुशियाँ मनाते रहे और हम यहाँ अकेले जंगल में अपना जीवन गुजारते रहे। तुम्हारे वजह से ....

राजकुमार चंद्रसेन :- हम आपके अनुज है ! हम भाई है आपके जेष्ठ !

देवसेन :- भाई ? कैसा भाई ? कौनसा भाई ? ए भाई का वास्ता देकर हमें रिश्तों में उलझाने की कोशिश ना करें युवराज !

ना हम आपके भाई है,और ना आप हमारे ! आप हमारे दुश्मन हो और हम आपके दुश्मन सबसे बड़े,सबसे खतरनाक, सबसे घातक,जो आपके बरबादी की भी वजह बनेंगे और मौत की भी ...

देवसेन वापस जाने के लिए मुड़ा और दो कदम चलते ही राजकुमार चंद्रसेन बोले :- आप नहीं मार

पाएंगे जेष्ठ ! 

देवसेन :- मारूंगा ....बहुत जल्द!

सुवर्ण नगरी के राजमहल में।

राजकुमारी चाँदनी :- क्या करुँ? कैसे बाहर जाऊ इस राजमहल से ? और अगर में अकेले चली भी गई तो क्या में ए काम कर पाऊँगी? जरूर कर पाऊँगी, युवराज के लिए,हमारे प्यार के लिए, इस सुवर्णनगरी के लिए, यहाँ की जनता के लिए।

महाराज आप महल से बाहर जाने से एक राजकुमारी को रोक सकते हो,परंतु एक प्रेमिका को उसके प्रेमी से मिलने से नहीं रोक सकते !

राजकुमारी चाँदनी ने बाहर एक सेवक के हाथोंं दासी चंदा को संदेशा भेजवाया।

दासी चंदा कक्ष में प्रवेश करते ही झुककर राजकुमारी को अभिवादन करती है।

राजकुमारी चाँदनी :- चंदा माँ आज आपके स्वामीनिष्ठा का इम्तिहाँ है ! आज आपको अपना प्रेम हमारे लिए साबित करना होगा। आपको हमें वचन देना होगा की आप हमारी सहायता करेंगी।

दासी चंदा :- क्या बात है राजकुमारी ? आप ऐसी बातें क्यों कर रही है? क्या आपको हमपर विश्वास नहीं ?

राजकुमारी चाँदनी( अपना हाथ आगे कर) :- वचन दीजिए चंदा माँ ! 

चंदा माँ( राजकुमारी के हाथों पर हाथ रख ):- हम वचन देते है ! हम आपकी हर तरह से सहायता करेंगे।

राजकुमारी चाँदनी :- हमें महल से बाहर निकलना है, हम युवराज की तलाश में जाएंगे !

चंदा माँ:- क्या ...? नहीं राजकुमारी आप ऐसा नहीं कर सकती ! ए महाराज के आदेश के खिलाफ है ! 

राजकुमारी चाँदनी :- आपने हमको वचन दिया है ! 

चंदा माँ:- किंतु ....

राजकुमारी चाँदनी :- ठीक है हम समझ गए आपकी स्वामीनिष्ठा !

चंदा माँ विवश होते हुए :- बताएइ हमें क्या करना होगा ?

राजकुमारी चाँदनी :- हम आज रात ही निकलेंगे, बस आपको हमारे लिए रूहानी जंगल के तरफ जाने का नक्शा लाना होगा,और हम यहाँ से दूर जाने तक यहाँ सब संभालना होगा।

चंदा माँ :- एक बार फिर से सोच लीजिए राजकुमारी, अगर आपको कुछ हो गया तो हम ...हम तो खुदको कभी माफ़ नहीं कर पाएंगे।

राजकुमारी चाँदनी :- अब तो जो हो सो हो हम युवराज के संग ही लौटेंगे।

रात के घने अँधेरे में राजकुमारी ने अपना राज पोशाख उतार कर एक योध्दा का पोषाख परिधान कर अपने साथ एक तलवार,एक बिछवा, नक्शा

और तीरकमान लेकर राजकुमार के हाथोंं पेहनी हुई अंगूठी साथ लिए राजकुमारी महल से बाहर निकली और रूहानी जंगल की और बड़ी।

थोड़े समय बाद सुबह होने पर जैसे ही उन्होंने जंगल में प्रवेश करते ही चौकन्ना हो गई। अपनी तलवार हाथ में लेते लेते हुए चारों तरफ नज़र घुमाई तभी अचानक से सामने वाले चट्टानो से एक बाघ उतरकर राजकुमारी के सामने आया ! उस बाघ ने राजकुमारी पर हमला करते ही राजकुमारी ने अपने बचाव के लिए तलवार चलानी चाही,पर बाघ के एक पंजे ने राजकुमारी के हाथोंं से तलवार गिरा दी।पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी,वो हर वो मुमकिन प्रयास कर रही थी खुदको बाघ से बचाने का। वे बाघ को बराबर की टक्कर दे रही थी, पर अचानक बाघ का पंजा राजकुमारी के गर्दन के पास लगा और गिर पड़ी ....बाघ उनपर हमला करने ही वाला था,की एक नौजवान आया,उसने अपने तलवार के एक ही घाव से बाघ को घायल कर दिया बाघ के पेट के उपरवाले भाग पर जोरों से तलवार लगने के कारण खून बहने लगा था।वो नौजवान राजकुमारी के नजदीक आया और उसने अपना हाथ राजकुमारी की ओर बढ़ाया, राजकुमारी उस नौजवान के हाथ के सहारे उठ खड़ी हुई।उस नौजवान ने कुछ पौदो से पत्तियाँ निकाली और उसे एक पत्थर पर पीसकर उसे बाघ के घाव पर लगाया और उसे एक कपड़े से बाँध दिया।

नौजवान ( राजकुमारी की और देखकर) :- कौन हो तुम ? पहले तो कभी नहीं देखा तुम्हें ?? यहाँ क्या कर रही हो ?

नौजवान का साथी (सख्त आवाज से) :- क्या नाम है तुम्हारा ...? कहा से आयी हो ..? यहाँ तक कैसे पहुंची ..?, किसने भेजा है तुम्हें..? बोलो...बोलती क्यों नहीं! 

कहकर उसने राजकुमारी के गर्दन पर तलवार रखी...

नौजवान :- तलवार हटाओ कबीर...! उसे कुछ बोलने का मौका तो दो ...! 

(राजकुमारी की और देखकर):- क्या तुम रूहानी महल से आयी हो ? तो हम तुम्हें ए बात बतादे हम देवसेन के गुलाम नहीं बनेंगे, हम अपने राज्य,अपने महाराज को धोखा नहीं देंगे।

राजकुमारी चाँदनी :- नहीं हम कोई रूहानी महल से नहीं आए है ....!और ना ही हम किसी देवसेन को जानते है।

नौजवान का साथी कबीर :- तो कौन हो तुम...? कहा से आयी हो ...? क्या नाम है तुम्हारा ...?

राजकुमारी चाँदनी :- नाम..?

नौजवान का साथी कबीर :- हा,नाम ...होगा ना तुम्हारा कोई नाम....

राजकुमारी चाँदनी :- हा....

नौजवान का साथी कबीर :-

राजकुमारी चाँदनी (मन ही मन में खुदसे ही ) :- हम इन्हें अपनी असली पहचान नहीं बता सकते ..!हम इन पर अभी विश्वास नहीं कर सकते...!

नौजवान का साथी कबीर :- बोलो....!

राजकुमारी चाँदनी :- पद्मा ....पद्मा नाम है हमारा।हम वहाँ दक्षिण की और जो बड़ा झरना है ना उसके पीछे हमारी एक छोटी सी कुटिया है,जहां हम और हमारे बाबा रहते है।पाँच दिन पहले हमारे बाबा शिकार पर निकले थे और अब तक लौटे ही नहीं,तो हम हम उनकी तलाश में यहा तक आए है।

नौजवान का साथी कबीर :- सच बोल रही हो ..?

पद्मा (राजकुमारी चाँदनी ):- हा...हम झूठ क्यों बोलेंगें।

नौजवान का साथी कबीर :- दिखने में तो किसी राजकुमारी जैसा मुखमंडल है तुम्हारा,पर इस पोशाख में? लगता नहीं की तुम एक शिकारी हो।

नौजवान :- कबीर...! तुम्हारी ए शक करने की आदत कब छूटेगी...?

रजकुमारी से:- ऐसे यहाँ रात में इस भयानक जंगल में अकेले रहना खतरे से खाली नहीं है! अभी तुम हमारे साथ चल सकती हो ...यही पास ही हमारा कबेला है।कल सुबह तुम अपने बाबा को ढूंढ ने चलें जाना।

पद्मा (राजकुमारी चाँदनी ):- जी ...आपका नाम ?

नौजवान :- में राजवीर और ए मेरा दोस्त....

नौजवान का साथी कबीर :- कबीर ....

राजवीर और कबीर पद्मा को लेकर अपने कबीले की और बढ़े।कबीले पर पहुँचते ही का कबीले के सभी लोगों को पद्मा कौन है और वो यहाँ तक कैसे पहुंची ए सब बताया और कबिले के सभी लोगों ने पद्मा( राजकुमारी ) का बहुत अच्छे से स्वागत किया।रात के खाना खाने के बाद पद्मा को एक सुंदर घास से ढकी हुई कुटिया सोने के लिए दी गयी और एक बूढ़ी औरत को उनके साथ उस कुटिया में रखा गया।आदिवासी लोग अपने कबीले पर आए मेहमान का बहुत ही अच्छे तरह से ख़्याल रखते है इसलिए जब तक पद्मा (राजकुमारी) उनके कबीले पर थी उनके सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्होंने उठा ली और दो नौजवान,शरीर से दमखम लोगों को कुटिया के बाहर रातभर खड़ा रहने का आदेश दिया।राजकुमारी अपने साथ जो झोला ले गई थी उसे उन्होंने सिर के नीचे तकिए की तौर पर ले लिया और शांति से सो गई।सुबह सुबह जब सूरज अपने लाली बिखेर रहा था तब उस बूढ़े औरत की नींद खुली और उसने देखा की पद्मा (राजकुमारी,) के नजिक कोई बहुत ही चमकने वाली कोई चीज़ पड़ी है उसने तुरंत वो चीज़ उठाई,तो उसे समझ आया की वो एक अंगूठी है,उसने सोचा की इतनी मौल्यवान अंगूठी पद्मा के पास कैसे ? तो उसने तुरंत वो अंगूठी अपने कबीले के राजा के पास ले गई।बाहर लोगों का शोर सुन पद्मा (राजकुमारी) की नींद खुली और उन्होंने बाहर आकर देखा तो जैसे कोई सभा शुरू हो ऐसे सभी लोग कबीले के राजा के सामने बैठे हुए थे और सभी लोग पद्मा (राजकुमारी) की ओर बहुत हैरानी से देख रहे थे।राजवीर और कबीर भी पद्मा (राजकुमारी) की ओर हैरानी से देख रहे थे।पद्मा के बाहर आते ही उन्हें राजा के सामने पेश किया गया।

कबीले का राजा :- आप की असली पहचान क्या है ?

राजकुमारी सोच में पड़ती है,की हमसे ऐसी क्या गलती हुई है जिसके कारण इनको हमपर शक हो रहा है।

कबिले का राजा :- हमें आपके झोले से अंगूठी मिली ...! इसके विषय में क्या कहना चाहेंगी आप ?

पद्मा(राजकुमारी):- हम ...वो....

राजकुमारी इससे आगे कुछ बोल पाती की कबीले के राजा के साथ साथ सभी लोगों ने घुटने के बल बैठकर राजकुमारी को अभिवादन किया।

कबिले का राजा :-हमें क्षमा कीजिए राजकुमारी हमें आपके आप के बारे में ज्ञात नहीं था। हमें आपको समझने में गलती हो गई।

राजकुमारी अभिवादन स्विकारते हुए:- आप सभी का धन्यवाद आपने जो हमें आदर,सम्मान दिया, हमें रात गुजार ने के लिए जगह दी। पर आपको कैसे ज्ञात हुआ,हम राजकुमारी है

कबिले का राजा :- आप हमें शर्मिंदा कर रही है राजकुमारी! वो इस अंगूठी के पीछे हिरन्य वंश की मुद्रा का चिन्ह है इस वजह से हमने तुरंत पेहचान लिया।वैसे आप यहाँ ...?इस पोशाख में...? 

राजकुमारी :- हम युवराज की तलाश में आए है, वो रूहानी जंगल पार कर रूहानी महल में कैद है! हम उन्हें बचाने आए है।

कबीले का राजा :- रूहानी महल...?यानि देवसेन ?

राजकुमारी :- हा देवसेन ...युवराज चंद्रसेन के जेष्ठ...

राजवीर :- किंतु आप अकेले क्यों आयी है बाकी की सेना कहा है ?

राजकुमारी :- हम अकेले है ! महाराज देवसेन से युद्ध के लिए तैयार नहीं है,और हम युवराज को और कैद में नहीं रहने देंगे।

कबीले का राजा :- नहीं राजकुमारी आप अकेले नहीं जा सकती ! क्या आपको पता भी है देवसेन के पास कितनी फ़ौज है? कितनी ताकत है ? इस पूरे जंगल पर उसका राज है! यहाँ के हवा पर,यहाँ के पानी पर, यहाँ के पेड़-पौधें, पशु-पक्षी,यहाँ के हर चीज़ पर देवसेन का राज है। वो शैतान का सबसे बड़ा भक्त है, उससे सामना करना आसान ही नहीं लगभग नामुमकिन है ! इसलिए आपको हमारी जरुरत पड़ेगी। हम सब आपके साथ है।

कबिले के सभी लोग :-हा राजकुमारी हम सब आपके साथ है ....हम सब आपके साथ है ..!

राजकुमारी सभी को शांत करते हुए :- रुक जाइए ...हम ऐसे आपकी जिंदगी ख़तरे में नहीं डाल सकते।हमें अकेले ही जाना होगा।

राजवीर (राजकुमारी के सामने घुटने के बल बैठते हुए विनंती करने लगा):- हमे आपके साथ आने दीजिए राजकुमारी।

कबिले का राजा :- हा राजकुमारी राजवीर और कबीर आपके साथ आएँगे, और महल पर पंहुचते ही आप एक कपोत पक्षी को आज़ाद कर देना हम युद्ध की तैयारी से महल की ओर बढ़ेंगे।

राजकुमारी चाँदनी :- ठीक है तो हम आज रात को निकलेंगे।सारी तैयारियां की जाए।कहकर राजकुमारी कुटिया में चली गई।

राजकुमारी चाँदनी (मन ही मन में ):- हम आ रहे है युवराज .... बस कुछ समय ओर फिर हम साथ होंगे।

यहाँ सुवर्ण नगरी में दासी चंदा की तनाव से जान निकली जा रही थी। वो कक्ष मे ही इधर से उधर चल कर अपने तनाव को कम करने की कोशिश कर रही थी,पर उन्हें राजकुमारी की भी चिंता सताए जा रही थी,तभी एक सेवक ने कक्ष में प्रवेश कर बोला:- राजकुमारी की जय हो ..! महाराज ने राजकुमारी के लिए संदेशा भेजा है।उन्होंने राजकुमारी से मिलने की इच्छा व्यक्त की है।

चंदा दासी :- जी हम राजकुमारी तक आपका संदेशा पंहुचा देंगे, अभी वो स्नान कर रही है।

सेवक :- जी धन्यवाद ! कहकर वहाँ से चला जाता है।

चंदा दासी खुदसे :- अब हम क्या करेंगे..?राजकुमारी तो यहाँ है ही नहीं तो महाराज से कैसे मिलने जाएगी...?ए महादेव आप ही कुछ रास्ता निकालो....! 

राजवीर, कबीर, और कबीले का राजा राजकुमारी के साथ मिलकर रूहानी महल में जाने की तैयारियां कर रहे थे। महल तक पंहुचना कैसे है, जंगल को पार कैसे करना है..महल के किस दिशा से महल में प्रवेश करना है ए सब योजना करने में व्यस्त थे।

देवसेन अपने अलीशान महल में अपने अलीशान राज सिहासन पर एक हाथ में मद्य का प्याला लिए बैठा हुआ था।

सेवक ने झुकर अभिवादन करते हुए कहाँँ :- महाराज की जय हो ...! महाराज हमारे राज्य का दुश्मन जो हमारे कारागृह में कैद है, उसने चार दिन से कुछ अन्न नहीं खाया है, इसलिए उसका स्वास्थ खराब होने लगा है।

देवसेन के ग़ुस्से का पारा चढ़ा और उसने अपने छडी को उस सेवक की और घुमाया तो उसमें से एक तर-तराती बिजली निकली और उसने उस सेवक को बाँध दिया, वो सेवक उसकी जान बख्शने की मिन्नतें करने लगा।

देवसेन उस सेवक के पास जाकर बोला:- एक काम ...एक काम सौपा था हमने तुम्हें वो भी तुम ठीक से नहीं कर पाए ! तुम्हेंं अंदाजा भी है युवराज चंद्रसेन कितने जरुरी है हमारे लिए ? उन्हीं के जरिए हम इस धरती के सबसे तकादवर इंसान बनेंगें, उसे अभी नहीं मरना है।

देवसेन ने अपने हाथोंं की चुटकी बजाते ही वो सेवक जलकर राख हो गया।

देवसेन कारागृह में प्रवेश कर।

देवसेन :- अनुज ....ओ मेरे भाई...क्या बात है ? ऐसे भोजन का त्याग कर क्या साबित करना चाहते है आप ? हमारा तो अभी आपको मारने का कोई इरादा नहीं है,पर शायद आप खुद मारना चाहते हो। सेवक ..खाना खिलाओ इसे ....

सेवक ने युवराज को खाना खिलाने की कोशिश की पर युवराज अपना मुँह ही नहीं खोल रहे थे। उन्होंने अपने सिर से सेवक को जोर का धक्का दिया और मुँह में गया हुआ सारा खाना थूंक दिया।देवसेन ने युवराज के बालोंं को पकड़ते हुए उनका सर ऊपर किया और जबरदस्ती उनके मुँह में खाना ठूसने लगे। युवराज के आखोंं से आंसू बहने लगे उन्हें उनका बचपन याद आ गया जब देवसेन उन्हें प्यार से खाना खिलाते थे।

देवसेन को भी अपने बचपन के किस्सों की याद आ गई और उसे अस्वस्थ लगने लगा तो उसने बिन कुछ कहे ही तुरंत वहाँ से चला गया।

 सुवर्ण नगरी 

महाराज सेवक से :- तुमने राजकुमारी चाँदनी को संदेशा दिया हमारा ?

सेवक (झुककर):- जी महाराज।

महाराज :- ठीक तुम जा सकते हो।

खुदसे :- राजकुमारी क्यों नहीं आयी अभी तक ?

आमात्य...!

आमात्य :- हुकुम कीजिए महाराज !

महाराज :- आप स्वयं राजकुमारी चाँदनी को लेकर आइए, हमें पता नहीं क्यों बहुत अजीब लग रहा है।

आमात्य :- जी महाराज।

आमात्य राजकुमारी की कक्ष की ओर बढ़ ही रहे थे कक्ष के दरवाजे दासी चंदा खड़ी थी।आमात्य ने दासी चंदा को देखते ही बोले :- आप ..?आप यहाँ ?

दासी चंदा :- हम ...वो...महाराज ....हम महाराज से मिलना चाहते है।

आमात्य :- क्या आप नहीं जानती ऐसे कोई भी महाराज से नहीं मिल सकता।

दासी चंदा :- सुवर्णनगरी पर बहुत बड़ा खतरा आ गया है।

अमात्य :- कैसा खतरा ? 

दासी चंदा :- हमें महाराज से मिलने की अनुमति दे दीजिए आमात्य। हम केवल महराज को ही बता सकते है।

कक्ष में प्रवेश कर।

दासी चंदा :- महाराज वो राजकुमारी ....

महाराज परेशान होते हुए :- राजकुमारी ..? क्या हुआ राजकुमारी को ...?

दासी चंदा :- राजकुमारी महल में नहीं है।

अमात्य :- क्या ...? क्या आपकी मती भ्रस्ट हो गई है ? राजकुमारी को तो नज़रकैद में रखा गया था....

महाराज:- कहा है राजकुमारी? 

दासी चंदा :- वो ...वो युवराज को....

महाराज आमात्य से :- आमात्य ...! युद्ध की तैयारी करो। हम रूहानी महल पर आक्रमण करेंगे।

आमात्य :- जी महाराज !

महाराज राजमाता इंदुमति के कक्ष प्रवेश कर।

इंदु आखीरकार वो दिन आ ही गया जिसके बारे में सोचकर भी हमारी रुह काँपने लगती थी।हमारे एक बेटे को बचाने के लिए हमें हमारे दूसरे बेटे की जान लेनी होगी।

राजमाता इंदुमती :- ए महादेव हमारी परीक्षा ले रहे है महाराज ! उन्होंने हमारे दोनों पुत्र को जरिया बनाकर हमारी परीक्षा लेने की ठानी है ! आपको धैर्य रखना होगा, हम एक माँ होकर भी ए कह रहे है,अगर जरुरत पड़े तो देवसेन का सर धड से अलग करने में संकोच ना करें !

महाराज हैरानी से राजकुमारी की ओर देखते है।

राजमाता इंदुमती :- हा महाराज इस राज्य को चंद्रसेन जैसे दयालु,कर्तुत्ववान,पराक्रमी राजा की जरुरत है ना की देवसेन जैसे शैतानी दिमाग वाले जानवर की।आप को केवल ए स्मरण रहे की आपको सुवर्णनगरी के होने वाले सम्राट को बचाना है।

राजमाता इंदुमती महाराज को विजय तिलक करती है।फिर महाराज स्वयं युद्ध के लिए निकल जाते है।

सेना के पास पहुचते ही महाराज ने पीछे मूड कर देखा तो राजमाता उन्हें ही देख रही थी।महाराज भली भांति महारानी के दिल का हाल जानते थे,पर उन्हें अपने फर्ज का भी ख़्याल था।

सेना का सेनापति अपनी सेना का हौसला बढ़ा रहे थे।महाराज के आते ही उन्होंने और सभी सैनिको को ने महाराज को झुककर अभिवादन किया।महाराज भी घोड़े पर बैठ कर युद्ध को जाने के लिए तैयार हो गए।

राजकुमारी का सफर

राजवीर,कबीर और राजकुमारी चाँदनी रूहानी महल की और निकल पड़े।वो नदी को पार कर महल के उत्तर दिशा से अंदर प्रवेश करने वाले थे।

राजकुमारी और उनके दो साथी पूरी तैयारी से जा रहे थे।चलते चलते राजकुमारी थक गई,उन्हें प्यास भी बहुत लग रही,सूरज सर पर चढ़ चुका था,गला भी सूख रहा था।राजकुमारी एक पेड़ की छावं में बैठ गई।

राजवीर :- आप ठीक तो है राजकुमारी?

राजकुमारी चाँदनी :- हमारा गला सूख रहा है।हमें जल चाहिए !

कबीर :- यहाँ से झरना काफी दूर है। इस जगह जल मिलना असंभव है।

राजवीर :- हम कुछ करते है।

राजवीर ने पास ही में देखा तो उसे एक तरबुज नज़र आया।उसने तुरंत उसे तोड़ लिया और राजकुमारी की पास आकर बोला।

राजवीर:- ए लीजिए राजकुमारी ए तरबूज है, ए जंगली तरबूज है इसलिए ज्यादा मीठा तो नहीं होगा,पर इससे आपकी प्यास मिट जाएगी।

राजवीर ने तलवार के एक ही घाव से तरबूज को दो टुकड़े में काट दिया।राजकुमारी ने तरबूज खाया तो उन्हें अच्छा महसूस होने लगा।

राजकुमारी :- तुम दोनों क्यों नहीं खा रहे है ? क्या आप को प्यास नहीं लगी?

कबीर :- हा....लगी तो है,पर....

राजकुमारी :- तो लीजिए खाइए !

राजवीर :- नहीं राजकुमारी पहले आप खाए।हम बादमें खा लेंगे।

राजकुमारी :- हमें अब ठीक लग रहा है राजवीर आप भी खाइए ! हमें और काफी दूर जाना है।

राजवीर :- ठीक है राजकुमारी !

राजवीर,और कबीर आगे बढ़ने लगे।तभी राजवीर को किसी की आहट होने लगी और उसने राजकुमारी का हाथ पकड़कर जोर से भागने लगे।वे भागते भागते एक बड़े से चट्टान के पीछे छुप गए।तभी एक बांज पक्षी वहापर मंडरा रहा था।

राजकुमारी ने धीरे से कहा :- ए क्या है? हमने इतना बड़ा बांज पक्षी पहली बार देखा है।

राजवीर :- ए रूहानी महल का पहरेदार है, और देवसेन का वफादार शिपाई! अगर हम यहाँ उसके नज़र में आ गए तो देवसेन को वहा बैठे बैठे हमें देख लेंगा और फिर हमारी सारी योजना पर पानी फेर जाएगा।

हम उस पीछे वाले गुफा से उस तरफ जाएंगे वहां पर एक झरना है उसके बीचोबीच एक दरवाजा है हमें उसी दरवाजे से महल के उत्तरी भाग में प्रवेश करेंगे। 

कबीर :- और फिर ...?हम महल के अंदर कैसे जाएंगे?

राजवीर :- हमें महल के अंदर जाने के लिए तीन सैनिको के वस्त्र चाहिए होंगे।

राजकुमारी:- ठीक है तो छलिए हमें विलंब नहीं करना चाहिए।

गुफा में प्रवेश करते ही अंधेरे के कारण राजकुमारी के उंगली की हिरे की अंगूठी चमकने लगी।कबीर सूखे हुए पेड़ के पत्तियों से आग जलाई और उसकी एक मशाल लिए चलने लगे।

मशाल के जलते ही गुफा के अंदर से सभी चमगादर एक साथ झुंड की तरह गुफा से बाहर निकल गए,उनपर बांज की नज़र पड़ी और उसे अंदाजा हो गया की कोई गुफा के अंदर आ गया है और हो सकता है वो महल तक आ जाएगा बांज ने तुरंत जाकर अपने आका याने देवसेन तक बात पंहुचाइ।

गुफा पार कर राजकुमारी,राजवीर और कबीर झरने तक पहुंचे।

राजकुमारी आखोंं एक अनोखी चमक लाते हुए :- ए झरना कितना खूबसूरत है।

राजवीर :- हा इतने खूबसूरत झरने ने अपने पीछे शैतान का मंदिर छुपाए रखा है।चलो,इसके बीचोंबीच एक दरवाजा है हमें उसे खोलना होगा।

सभी भीगते हुए उस झरने के पास तो पहुँच जाते है पर उसे खोल नहीं पाते।

कबीर :- अब हम क्या करेंगे राजवीर ? ए तो खुल ही नहीं रहा है।

राजकुमारी दरवाजे को ध्यान से निहारते हुए :- रुकिए ध्यान से देखिए हमें लगता है हमें इसकी कड़ी मिल गई है, ए दरवाजा किसी चाबी से नहीं खुलता,बल्कि यहाँ देखिए चौकड के दोनों तरफ देखिए ठीक ऐसी ही साथ कड़िया दरवाजे पर भी है बस हमें उसे ठीक से लगाना होगा,वो जो एक्दुसरे में फसे हुए है,हमें उन्हें अलग अलग करना होगा।फिर ए दरवाजा खुल जाएगा।

राजवीर :- हा ...हो सकता है यही चाबी हो इस दरवाजे को खोलने की।

राजवीर ने सभी कड़ीयो को उनके जगह बिठाया और दरवाजे ने भयानक सी आवाज की कर....कर....कर....और दरवाजा खुल गया और महल का उत्तरी भाग नज़र आने लगा।तिन्हो ने अंदर प्रवेश कर देवसेन के सैनिको को मारकर उनके कपडे पहनें लिए और आपसे महल के हिस्से बाट कर अपनी अपनी दिशा की और निकल पडे। 

राजकुमारी महल में कारागृह को ढूंढते हुए जा रही थी,की उनको पिछेसे एक आवाज आयी :- रुको...

राजकुमारी डर गई,उन्हें लगा की अब वो पकड़ी गई,उन्होंने डरते हुए पीछे मुड़कर देखा तो एक सैनिक हाथोंं भोजन की थाली लिए उनके सामने खड़ा था।

सैनिक :-तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?

राजकुमारी को क्या बोलूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था, अगर वो कुछ भी बोलती तो वो झट से पकड़ी जाती।वो कुछ बोलने ही जा रही थी की पीछे से सैनिक को राजवीर ने आवाज दी।

राजवीर :- आपके लिए सेनापती जी ने संदेश भेजा है,वो अभी इसी वक्त आपसे मिलना चाहते है।

सैनिक राजकुमारी के हाथ में भोजन की थाली रख :- ए उस सुवर्णनगरी के युवराज को ए भोजन दो,और हा उस युवरज के बहुत नखरे है खाने में तो महाराज का आदेश जब तक वो खाना नहीं खाते वहां से निकलना मत,समझे?

राजकुमारी ने हा में शीश हिलाया और सैनिक वहां से चला गया।

राजवीर और राजकुमारी भोजन की थाली लेकर कारागृह में आ गए। युवराज चंद्रसेन के दोनों हाथोंं को लोहे के जंजीर से कसकर बाँध रखा था,जिसका निशान उनके कलाईयों पर आ गए थे। उनके बाल बिखरे हुए थे,वस्त्र भी फटे हुए थे।युवराज घुटने के बल बैठे हुए नीचे ज़मीन की और मुंह करे हुए थे।

राजवीर :- युवराज चंद्रसेन आपके लिए भोजन ...

युवराज ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी।राजकुमारी को युवराज ए दशा देख आखोंं में आंसू आ गए।छह महीने से उन्होंने युवराज को एक नज़र भी देखा नहीं था,और आज देखा भी तो इस हालत में,राजकुमारी युवराज को आँखे भर के देख रही थी।

राजवीर ने युवराज के मुँह के पास खाना लिया तो युवराज ने अपना मुँह फेर लिया। राजकुमारी ने अपने कदम बढ़ाए और भोजन के थाली से एक निवाला लिया।युवराज ने राजकुमारी का हाथ देख पहचान लिया की ए राजकुमारी ही है, उन्होंने अपना सर ऊपर कर देखा तो चहरे को कपड़े से ढके हुए एक औरत उनके सामने बैठी हुई थी, जिसके आखोंं से आंसू बह रहे थे।

युवराज चंद्रसेन हैरानी से :- आप?

राजकुमारी ने अपने चहरे पर से कपड़ा हटाया और आखोंं में आंसू होते हुए भी युवराज को देख होठो से मुस्कुराने लगी।

युवराज चंद्रसेन :- राजकुमारी चाँदनी ?

राजवीर ने तुरंत युवराज के हाथ खोले और दरवाजे के पास खड़ा हो गया।

राजकुमारी ने आँखे भर के युवराज को निहारा और उनके मुँह में एक निवाला भर दिया। राजकुमारी के हाथोंं से युवराज ने पेट भर के खाना खाया।

युवराज खड़े हुए और राजकुमारी की ओर पीठ कर बोले :- आपको यहाँ नहीं आना चाहिए था राजकुमारी।

राजकुमारी :- हम आपको छुड़ा ने आए है,चलिए हम निकलते है यहाँ से।

युवराज:- नहीं हम नहीं चल सकते।

राजकुमारी :- पर क्यों युवराज,राजमाता आपके इंतजार में नजरे गड़ाए बैठी है,सुवर्णनगरी को आपकी जरुरत है,हमें आपकी जरुरत है।

युवराज :- हम ऐसे नहीं चल सकते ! बड़े दिनों बाद हमें हमारे जेष्ठ मिले है,हम ऐसे ही उन्हें छोड़ नहीं जाएंगे।हम उन्हें अपने संग ले जाएंगे।

राजकुमारी :- ए समय दिल से सोचने का नहीं है युवराज,आपको दिमाग से सोचना होगा।अब वे आपके जेष्ठ नहीं है, उन पर पूरी तरह से शैतान का साया है,उनके अंदर शैतान का वास है।अब वो वहाँ से लौट नहीं सकते।

युवराज :- नहीं ऐसा नहीं है राजकुमारी में....

राजकुमारी युवराज चंद्रसेन के पैरों में गीर कर रोते हुए:- हमने बड़े मुश्किलों से आपको फिर से पाया है युवराज।हम में अब इतनी हिम्मत नहीं की हम आपको दुबारा खो दे।एक बार अपने माता के बारे में सोचीए युवराज,आपके बिना राजमाता की हालत बहुत खराब होते जा रही है,उन्हें हर जगह आपके होने का बहेम होता है, हर हवा के आते झोंके के साथ उन्हें आपके आने की आहट होती है। उन्हें पागल होने से बचा लीजिए युवराज ! हम पर ए एहसान कीजिए युवराज!

युवराज ने राजकुमारी को उठाया और उनके आँसू पूछ कर उन्हें कसकर गले लगाया।

राजवीर :- हमें जल्द निकलना होगा।हम उत्तरी दरवाजे से नहीं निकल सकते,अब तक उन्हें पता चल चुका होगा।हम पश्चिमी कड़े से नीचे उतरेंगे।

राजकुमारी,युवराज चंद्रसेन और राजवीर पश्चिमी कड़े की ओर निकल पड़े,पर रास्ते में ही वो पकड़े गए।देवसेन सामने आया और उसने युवराज के मुँह पर एक जोर का मुक्का मारकर उन्हें गिरा दिया।

युवराज राजकुमारी की ओर देखके :- वाह ए खूबसूरती ....ए कैसी बला है,युवराज हमें समझ नहीं ए किस्मत हर बार आप पर ही इतनी मेहरबान क्यों होती है? इन्हें तो हमारे साथ,हमारे पास होना चाहिए हमारी रानी बनकर। देवसेन ने अपना हाथ बढाकर राजकुमारी के चहरे पर से अपनी उंगली फिरायी। 

युवराज के क्रोध ने सीमा पार कर दी।हमारे होने वाली पत्नी पर अपना ही भाई बुरी नज़र डाल रहा है,इस कारण उन्हें बहुत ग़ुस्सा आ रहा था।

युवराज ने देवसेन जोरों से धक्का दिया और बोले:- हिम्मत भी मत करना हाथ लगाने की ! वो हमारी पत्नी है होने वाली ! वो आपके छोटे भाई की साथी है।

देवसेन :- अफसोस चंद्र अब तो कुछ ही देर आप मरने वाले हो,और अब तुम्हें पत्नी की क्या जरुरत ...

राजकुमारी ग़ुस्से से :- छोड़ दो हमें शैतान ...अगर युवराज को एक खरोज भी आयी तो हम जान ले लेंगे तुम्हारी!

देवसेन:-बाँध दो इन सभी को। 

यहाँ महाराज अपने सेना के साथ महल तक पहुँच गए थे पर महल पर सामने से चढ़ना आसान नहीं था।आधी सेना तो महल पर चढ़ते चढ़ते ही थक गए।

देवसेन सेवको से :- युवराज को तैयार किया जाए।

युवराज के हाथ खोलते ही युवराज ने सेवको पर हमला करने लगे, देवसेन ने अपनी छडी युवराज की और करके अपने काली जादू से उन्हें कैद कर लिया।युवराज को तकलीफ होने लगी,वो जोरों से चिल्ला ने लगे, युवराज की तकलीफ देख राजकुमारी तिलमिला उठी,और जोरों से उन्हें छोड़ दो...छोड़ दो उन्हें कहकर चिल्ला ने लगी।

देवसेन ने युवराज को छोड़ कर उन्हें अपने छडी से एक दृश्य दिखाया, जिसमें सुवर्णनगरी के महाराज अपने सेना के साथ रूहानी महल चढ़ रहे थे।ए दृश्य देख सभी चौक गए।

देवसेन :- देखा ...हमारे पितामहाराज ...नहीं नहीं आपके पितामहाराज आपको बचाने के लिए हमारे साथ युद्ध करने के लिए आ रहे है। पर अफसोस दुर्भाग्यवश हमें पता चल गया उनके आने का और वो पकड़े गए।

कुछ सैनिक महाराज को रस्सी से बाँधकर ले आए।उन्हें देख राजकुमारी और युवराज सभी डर के चौक गए।

देवसेन महाराज की तरफ बढ़ कर :- आपका हमारे राज्य में स्वागत है पितामहाराज! अरे छोड़ो उन्हें,बाँध कर क्यों रखा है? वे पिताजी है हमारे उनके साथ ऐसा बरताव करना लाजमी नहीं। है ना महाराज?

महाराज:- आप हमारे पिछले जनम के पाप का नतीजा है।हमने कभी नहीं सोचा था देव हम आपसे ऐसे मिलेंगे! 

देवसेन:- कुछ चीजेंं जीवन पहली बार ही होती है पितामहाराज! और ए सब आप ही के कारण है,अगर आपने कभी भी मेरा साथ दिया होता तो आज हमें अपने अनुज को मरना न पड़ता।

महाराज:- क्या ?क्या कहा आपने?हमें आपका साथ देना चाहिए था ताकी आप पूरे राज्य को खा जाते? क्या आप सच में युवराज को भी..?

देवसेन :- हा महाराज, हमें क्षमा करें हमें ए करना होगा। आपने लोगों की बली देने के कारण हमें राज्य से बेदखल कर दीया है ना अब एक आखरी बली और आपके हुनहार पुत्र चंद्रसेन की बली...

और अपनी भयानक सी आवाज लिए जोरों से हसने लगा।

महाराज :- नहीं देव आप ऐसा नहीं कर सकते।वो उनका अनुज है।

देवसेन :- ना ना महाराज हम उनकी बली अपने मर्जी नहीं दे रहे,वे खुद आएँगे हमारे पास।

सब लोग देवसेन की और हैरानी से देखने लगे।तभी एक सेवक कबीर को खींचते हुए आया।

सेवक देवसेन:- महाराज की जय हो! मेरे आका ए कोई जासूस है।

राजवीर हैरानी से कबीर की ओर देखते हुए :- कबीर!

देवसेन:- लो एक और मोहरा आ गया। आचार्य कितना समय और हमारे हाथ बेकरार अपने अनुज...के रक्त से भरने के लिए। खोल दो बेड़िया युवराज।

राजवीर:- छोड़ो हमें... कबीर!....कबीर....!

आचार्य :- बस कुछ समय और महाराज।तब तक इन्हें पूरे काले वस्त्र पेहना दीजिए, और हा जिस तरह बकरा हलाल करते समय उन्हें पूजा जाता है,वैसे ही कुमकुम से नेहला दो इन्हें।

युवराज:- क्या आपको लगता है,हम इतने असानी से खुदकी बली देने देंगे।

देवसेन :- हम जानते थे,पर हम ए भी जानते है चंद्र आप अपने राज्य,जनता,पितामहाराज,और राजकुमारी चाँदनी से बेहत प्रेम करते है,एक अपने अकेले को बचाने के लिए इतने लोगों की जान नहीं जाने देंगे है ना?

राजवीर:- हम सबकी जान से ज्यादा आपके जान की कीमत है युवराज,ए पूरा सुवर्णनगरी आपके भरोसे है,हमारी जान जाती है तो जाने दे पर आप इस शैतान के आगे झुकना मत।

देवसेन :- ओह...ऐसी स्वामीनिष्ठा,पहली बार देखी है।तो बताइए युवराज क्या तैयार है वस्त्र पहनने के लिए? नहीं ठीक है,देवसेन ने अपने छडी से कबीर पर जादू किया फिर कबीर वैसे ही करने लगा,जैसे देवसेन बोल रहा था।देवसेन ने कबीर को कड़े से कबीर को छलांग लगाने को कहा,और कबीर कड़े की और बढ़ने लगा।

राजवीर:- नहीं कबीर ..नहीं...हमारी आवाज सुनो कबीर,हम है राजवीर! ऐसा मत करो मेरे दोस्त! देवसेन रोको उसे...कबीर!...छोड़ो हमें...नहीं कबीर... 

कबीर ने नीचे छलांग लगाकर अपनी जान दे दी।

देवसेन:- हा,तो बताइए युवराज क्या आप अब तैयार है? नहीं,तो इसके लिए आप ही जिम्मेदार है।ओ मेरे शूरवीरो सुवर्णनगरी के सभी सेना को बारूद से उड़ा दो।

युवराज और महाराज कुछ भी कह पाते उतने में ही पूरी सेना पर बारूद की बरसात हो गई।

 सब नौजवान घायल पड़े है,किसिका हाथ टूट गया है किसीका पैर टूट गया है, किसीके पूरे शरीर बिखरे पड़े है।

देवसेन :- क्या आप अब भी तैयार नहीं है?

देवसेन ने अपने छडी के सहारे से राजवीर को हवा में उठाया,और कड़े के बढ़ने ही लगा की युवराज ने कहा :- रुको ...हम तैयार है,उन्हें छोड़ दो।

राजकुमारी युवराज की और देख के :- युवराज?

देवसेन :- ठीक है! कहकर उसने राजवीर को नीचे फेक दिया।

राजकुमारी:- राजवीर!

युवराज:- जब हम तैयार है तो उसे मारने क्या जरुरत थी।

देवसेन:- हमें आंनद आता है।खोल दो युवराज की बेड़िया।

राजकुमारी:- नहीं युवराज...!

महाराज :- नहीं पुत्र,मत करो ऐसे!

राजवीर ने लोहे के गज की आधार से खुदको नीचे खाई में गिरने से बचा लिया।पर वो अपने हाथोंं को गज पर टीका नहीं पा रहा था,उसका हाथ लगातार फिसलता जा रहा था।

युवराज पूरे काले वस्त्र परिधान कर वापस आ गए।

देवसेन पास में लगे आसान की और इशारा कर बोले:- आइये अपना आसान ग्रहण करें।

युवराज :- हम सबसे पहले आखरी बार राजकुमारी,और पिता महाराज से मिलना चाहते है।

देवसेन:- जी जरूर.....! खोल दो सबको!

हाथोंं की बेड़िया खुलते ही महाराज ने अपने पुत्र चंद्रसेन को सिनेसे लगा लिया,बहती हुए आखोंं से उन्होंने युवराज को जी भर के देखा और देवसेन की तरफ बढ़ कर बोले:- आप हमारी बली दे दीजिए देवसेन,चंद्र को छोड़ दीजिए हम सुवर्ण नगरी के महाराज आप से अपने पुत्र के लिए भिक मांगते है।महाराज देवसेन के पैरों में गिरते हुए बोले,तभी देवसेन ने तुरंत अपने पैर पीछे कर लिए।

युवराज ने भागते हुए आकर महाराज को उठाया और बोले:- आप क्या कर रहे है पिता महाराज,नहीं...आप किसीके आगे नहीं झुकेगे। ए हमारा बलिदान है हमारे राज्य के लिए,हमारे जनता के लिए।

युवराज राजकुमारी की और बढ़ के :- हमें क्षमा कर दे राजकुमारी,हम हमारा वचन नहीं निभा सकते।हमें ए करना होगा। हमारे बाद आपको माँ,पिताश्री को संभालना होगा।

राजकुमारी:- हम खुदको बेहत भाग्यशाली समझते है,युवराज की हमें आपके रूप में प्रेमी मिला,हम साथ नहीं तो क्या हुआ आप हमेशा हमारे दिल में रहेंगे। किंतु हम आपके बिना कैसे रहेंगे युवराज? 

युवराज :- आपके आखोंं में आंसू देखना हमें अच्छे नहीं लगता, हम चाहते है की हमारे अंतिम समय में भी हम आपको हसते हुए देखना चाहते है।हमें यकीं है आप हमें निराश नहीं करेंगे।

राजकुमारी ने अब तक जो आंसूओं के समुंदर को रोख के रखा था,वो फुट कर बहने लगा और राजकुमारी बाकी सभी को नजरअंदाज करते हुए युवराज को कसकर गले लगाया।राजकुमारी के नीले नीले समंदर जैसे आखोंं में बड़े बड़े आँसू देख कर युवराज भी दुःखी हो गए और उन्होंनें भी सबकुछ भुलाकर राजकुमारी को गले से लगा लिया।

देवसेन :-हमें देर हो रही है युवराज।समय चला जा रहा है। 

राजकुमारी(युवराज का हाथ पकड़ते हुए) :- युवराज नहीं....

युवराज(राजकुमारी से हाथ छुड़ाते हुए) :- हमें जाना होगा।

देवसेन (राजकुमारी और महाराज की ओर देखते हुए):- बाँध दो इन दोनों को।

युवराज ने जाकर आसान ग्रहण कर लिया।युवराज गले में ताजे ताजे फूलो हा हार पेहनाया गया।और कुमकुम से नहलाया गया। राजकुमारी और महाराज आँसुओ से भरे आखोंं से युवराज की ओर देखने लगे। पूजा शुरू हो गई।देवसेन मंत्र गुनगुनाने लगा।शैतान के मूर्ति पर फूलो की बरसात करने लगा।देवसेन के शैतानी गुरु आचर्य भी देवसेन के साथ कोई मंत्र बड़बड़ाने लगे। युवराज आँखे बंद कर अपने माँ को याद कर रहे थे,अपने बचपन की बातें याद कर रहे थे।देवसेन ने अपनी छडी को मंत्र बोलते हुए ऊपर आसमान की और घुमाया और पूरा वातावरण बदल गया।साफ नीले बादल अचानक से काले हो गए।जोरों से तूफानी हवा चलने लगी।सभी जानवर,पशु पक्षी अपने अपने घरों,घोसलें जाकर छुप गए।बादल के बिजली के कड़ाकड़ाट ने माहोल को और भी ज्यादा डरावना रूप दे दिया। कबेले का राजा अपनी सेना के साथ रूहानी महल तक पहुँँच गए।नीचे कबीर के मरे हुए देह को देख और मौसम में अचानक आए बदलाव को देख वो समझ गए देवसेन की युवराज को मारने तैयारी हो गई है।उन्होंने छुपते छुपते महल के सभी रक्षकों को मार दिया।और अपने सेना के लिए मार्ग खुला कर दिया।राजवीर ने भी कड़ा वापस चढ़ा तब देवसेन आँखे बंद कर अपनी पूजा में व्यस्त था। राजवीर ने राजकुमारी की ओर देखते हुए इशारा किया तभी कबीले की सारी सेना वहाँ आ गई और उसने सभी देवसेन के सेवको के साथ साथ सभी रक्षकों को मार गिराया।कबीले के राजा ने आगे बढ़ कर महाराज के हाथ खोले और अभिवादन किया,महाराज ने अभिवादन स्विकारते हुए अपना शीश हिलाया। रजवीर ने आगे बढ़ कर राजकुमारी के हाथ खोले

कबिले के राजा :- महाराज हमारे पास युवराज को बचाने केवल एक ही मार्ग है।

महाराज :- कौनसा मार्ग?

कबीले का राजा:- हमें ए जो हवन हो रहा है उसमें बाधा डालनी होगी।पर उससे पहले हमें देवसेन की छडी को हस्तगत करना होगा,क्योकि अगर उसकी जादुई छडी से वो हम सभीको एक ही बार में मार सकता है। उसकी सारी शैतानी शक्ति उस छडी में है,हमें उसकी छडी तोड़नी होगी।

राजवीर :- छडी लेने की जिम्मेदारी हमारी,आपके हवन में पानी डालते ही हम छडी उठा लेंगे।

तभी देवसेन ने कुमकुम लगायी हुई तलवार उठाई वैसे ही कबीले राजा और राजवीर छुप गए और महाराज और राजकुमारी ने अपने हाथ पीछे कर ऐसा दिखाया जैसे उनके हाथ बंधे हुए है।

देवसेन तलवार लेकर युवराज की और बढ़े वैसे ही युवराज ने अपनी आँखे बंद कर ली।

देवसेन :- ए काली शक्ति के सरताज़... में ए आखरी बली तुझे अर्पण करता हूँ,उम्मीद है तू मुझसे खुश है मेरे भगवान।या......

कहकर उसने तलवार हवा में उठाई और वो युवराज के गर्दन पर वार करने ही वाला था की की राजवीर ने हवन में पानी डाला और राजकुमारी ने देवसेन की छडी उठाकर तोड़ दी।

छडी के तोडते ही देवसेन के हाथोंं से तलवार गिर गई।वो जोरों से चिल्ला ने लगे,उनके मुँह से काला धुआँ निकलने लगा।राजकुमारी और राजवीर दोनों युवराज की और भागे। 

अपनी पूजा भंग कर दी,अब हमारा सबसे ताकदवर होने का सपना कभी पूरा नहीं हो पाएगा।देवसेन को युवराज का बहुत ग़ुस्सा आ रहा था उन्होंने सीधे तलवार उठाई और युवराज पर हमला कर दिया,पर इससे पहले की वो युवराज को जख्म दे पाता की महाराज ने पीछे से देवसेन पर तलवार से हमला किया और देवसेन खून से लतपत होते हुए नीचे धरती पर गिर गया।

देवसेन को तड़पता देख महाराज के आखोंं में आंसू आ गए।उन्होंने अपने हाथोंं से तलवार फेक दी और देवसेन को अपने गोद में लेकर रोते हुए बोले :- हमें क्षमा कर दीजिए पुत्र! हमें क्षमा करें!

देवसेन तड़पते हुए:- आप क्षमा क्यों माँग रहे है पिता महाराज ...ए हमारे कर्मो की शिक्षा है! हम केवल राज्य,सत्ता के लालच के कारण अपने ही भाई की बली देने जा रहा था,ए तो होना ही था। 

युवराज देवसेन का हाथ पकड़ते हुए :- नहीं जेष्ठ आपको कुछ नहीं होगा,हम आपको कुछ नहीं होने देंगे।

और आप चिंता ना करें हम सब ठीक कर देंगे।

युवराज इससे आगे कुछ बोल पाते की देवसेन ने अपने प्राण छोड़ दिए।महाराज अपने पुत्र को सीने से लगाकर रोने लगे।युवराज भी अपने भाई की ऐसे मौत से दुःखी हो गए,और उनके आखोंं से अपने आप ही आंसू बहने लगे।राजकुमारी की आँखे नम हो गई।

पर इस तरह देवसेन के अंदर शैतान के सहेत सुवर्ण नगरी के लोग जिस दहशत में जी रहे थे वो भी खत्म हो गई।महाराज ने देवसेन पर खुद अंतिम संस्कार किए और महल लौट गए।महल में युवराज के आगमन की जोरदार तैयारी की गई थी।युवराज के स्वागत के लिए राजमाता खुद पूजा की थाली लिए खड़ी थी।युवराज के महल लौट आने के कुछ ही दिनों बाद युवराज चंद्रसेन और राजकुमारी चाँदनी का विवाह बहुत ही धूमधाम से निर्विघ्नं पार हुआ। राजकुमारी और युवरज के विवाह के लिए कबीले के महाराज के साथ साथ राजवीर को खास आमंत्रण दिया गया और उनका नगर में बहुत ही शानदार भव्य स्वागत किया गया। महाराज ने स्वयं कबीले के राजा और राजवीर का आभार व्यक्त किया।

विवाह के दिन ही युवराज चंद्रसेन को सुवर्ण नगरी का महाराज घोषित कर दिया।और राजवीर को सुवर्ण नगरी के सेना का सेनापति घोषित कर दिया।

इस तरह राजकुमारी की श्रद्धा,आस्था की जीत हुई और वो महाराज चंद्रसेन से मिल गई।


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