मेहनत अपने लिए
मेहनत अपने लिए


"क्या कहा? 21 दिन का लॉक डाउन? ऐसा कैसे हो सकता है?" सिया बेचैन हो कर घर में इधर से उधर घूम रही थी।
"तुम इतना परेशान क्यूँ हो रही हो? सबके हित के लिए ये करना ही होगा" सिद्धार्थ ने समझाते हुए कहा।
"हाँ सिड! मुझे पता है.. पर सब खत्म हो जाएगा.. ये इंटरनेशनल डील क्रैक करने के लिए मेरे महीने भर की लगी मेहनत बेकार जाएगी.. इतने दिनों तक कोई क्लाइंट नहीं रुकेगा"
" सिया! अब ये पागलपन वाली बात है.. क्लाइंट जिंदा रहेगा तो बहुत डील होगी, तुम अपना ख्याल रखो अब "
अपना ख्याल.. हाँ इस बरसों की भाग दौड़ में तो भूल ही गई थी कि वो पर्सनली कौन है? एक पत्नी एक मां, एक का
मयाब मैनेजर के अलावा खुद में उस सिया को खोजना मुश्किल था जो कॉलेज के ज़माने के बाद कहीं खो ही गई थी। अब क्वरांटाईन के दौरान शायद खुद की खुद से मुलाक़ात हो जाए। घड़ी के साथ साथ भागने के बजाय हर घड़ी को जी लिया जाए। तो सिया ने सोच लिया शुरुआत करेगी इन 21 दिनों की खुद से।
जैसे सुबह की भागदौड़ के बजाय आधा घंटा योग करना,
आईने को वक़्त देगी, क्या है जो खुद से खोता जा रहा है?अपनी पसंद नापसन्द को फिर से पहचानना जरूरी है अपने इम्यून को बढ़ाना होगा, पुराने शौक जैसे गाने सुनते हुए चाय लेकर किताबें पढ़ना।
तो सिया की शुरुआत हो चुकी है खुद से खुद के पहचान से।