Vijayanand Singh

Drama

4.1  

Vijayanand Singh

Drama

मदारी

मदारी

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" क्या करना है वोट डालकर ? क्या फायदा है इससे ? बताओ....?" हरिया गुस्से से उबल पड़ा था, जब बुधना ने उससे अब की चुनाव मेें मतदान करने की बात पूछी थी तो।

" क्या बात कर रहे हो भाई ! वोट का महत्व तुम नहीं जानते ? इससे समाज का विकास होता है। यह हमारी तरक्की का प्रतीक है।" - बुधना ने हरिया को समझाने की कोशिश की।

" अच्छा....तो तुम भी अब वही...सरकारी टीवी वाली भाषा बोलने लगे ? " - हरिया ने बुधना को चुप करा दिया। 

मगर बुधना भी कहाँ मानने वाला था। आठवीं तक पढ़ा था...हरिया से तीन क्लास आगे...। फिर कहने लगा - " तुम जैसे कम पढ़े-लिखे लोग ही बात नहीं समझते....और देश की प्रगति में बाधा बनते हैं।" किस प्रगति और विकास की बात करते हो तुम ? यही कि गरीब गरीबे रह गया, और अमीर और अमीर हो गया ? " - बगल के खेत मेंं खुरपी से निराई कर रहा मँहगूू उसकी बात सुन गुस्सेे में उठ खड़ा हुआ।

" मँहगाई-बेरोजगारी बढ़ गया। ऊँच-नीच का भेदभाव बढ़ गया। तिलक - दहेज बढ़ गया। " - माथे पर घास गट्ठर उठाए उधर से गुजर रहा लोचन भी उनकी बातचीत में शामिल हो गया था।

" अपराध बढ़ गया, मार - काट बढ़ गया, गौहत्या, मॉब लिंचिंग...इ सब क्या है ? महिलाएँँ - बच्चियाँ सुरक्षित हैं का ? इ लोकतंत्र है कि भीड़तंत्र, बताओ....? " - खेत में पानी पटा रहा धरमू भी गुस्से में फनफना उठा था।

" यही...यही तो ? इसी विकास का बात करते हो न तुम ? हूँ.....? " - हरिया ने आँखें तरेर कर बुधना से पूछा।

व्यवस्था-जनित त्रासदियों से पनपा आक्रोश आज लावा बनकर फूटता प्रतीत हो रहा था। बुधना सकपका गया। अब चुप रहने के सिवा कोई उपाय नहीं था उसके पास। वह चारों ओर से बुरी तरह घिर गया था।

" वो...। दरअसल मैं कहना चाह रहा था कि....। " - -- बुधना ने बात संभालने की कोशिश की।

मगर हरिया अब कहाँ मानने वाला था - " चुप रहो तुम। दरअसल देश में लोकतंत्र है ही नहीं। सिर्फ वोटतंत्र है। कुर्सी के लालच मेें नेता लोग सालों-साल लच्छेदार भाषण से बरगला कर, बहला-फुसला कर, भरमा कर हमको मूूू्र्ख बनाता है। नचाता रहता है.....मदारी की तरह। हमको बाँटकर-तोड़कर तरह-तरह का खेल करवाता है, और अपना मनोरंजन करता है सब...। और, खुद मजे से राज भोगता है। "

 " हूँ...। " - बुधना अब बात कुछ-कुछ समझने लगा था। इसलिए पूछा - " तो अब हमें क्या करना चाहिए ? "

" हमको एकजुट होकर इन नेताओं को इनका औकात बता देना है। " हरिया ने अपनी मुुुट्ठी तानते हुुुए कहा।  

" हाँ, अब हम उन्हें अपना असली ताकत दिखा देंगे। बता देंगे कि वे हमसे हैं, हम उनसे नहीं हैं....। " - मँहगू ने अपना हाथ हवा में लहराते हुए कहा।

" और....हम यह भी साबित कर देंगे कि हम कमजोर नहीं हैं। अब हम इनसे हाथ जोड़कर माँगेगे नहीं। उनको आर्डर देंगे.....आर्डर। " - लोचन ने ऊँगली दिखा अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहा।

" हाँ.....मदारी बन कर अब तक बहुत नचाया है इन लोगों ने हमको। अब हम बंदर-बंदरिया लोग इन मदारियों को ऐसा नाच नचाएँगे कि ज़िंदगी भर याद रहेगा इनको। हमको ठगना और लूटना भूल जाएँगे ये लोग। बहुत हो गया...। समझ क्या रखा है इन लोगों ने हमको....? आएँ, अबकी बार वोट माँगने गाँव में....? " - अपने गमछे को सिर पर बाँधते हुए हरिया ने कहा। अब वह पूरी तरह जोश में आ गया था।

बुधना को हरिया की आवाज में वर्षों से दबी सामाजिक परिवर्तन की छटपटाहट और क्रांति की आहट सुनाई पड़ने लगी थी। अँधेरा छँटने लगा था और, दूर क्षितिज से उजाला दस्तक दे रहा था। 



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