मैं मैनेज कर लूंगी
मैं मैनेज कर लूंगी
मम्मी, पापा याद है ना, इस घर के एक प्यारे से बच्चे का बर्थडे आने वाला है !"
एक महीना पहले ही शानू ने अपने घर में सब को यह वाक्य बोल बोल कर अपना बर्थडे याद दिलाना शुरू कर दिया था।
"वैसे मम्मी कौन है वो लड़की !
हां याद आया। 15 दिन बाद उस लड़की का बर्थडे है ना जिसे आप कूड़े के ढेर से उठाकर लाए थे।।" शानू का बड़ा भाई उसे चिढ़ाते हुए बोला।
"देख लो मम्मी भैया को! हर बार मुझे यही कहकर चिढ़ाते रहते हैं !"
जब तू रोज रोज एक ही बात बोल बोल कर पकाएगी तो यहीं बोलूंगा ना!" शानू का भाई हंसते हुए बोला।
" तुम दोनों अपनी इस लड़ाई में हमें तो खींचो मत। थोड़ी देर बाद दोनों भाई बहन हमें बुरा बनाकर एक हो जाओगे ।" शानू की मम्मी रमा हंसते हुए बोली।
"अच्छा चलो, छोड़ो भैया की बातों को। आपको पता है ना इस बार मेरे बर्थडे पर क्या करना है !"
"हां हां सब पता है। तू भूलने देगी, तब तो भूलेंगे ना। दिन में तेरे दोस्तों आएंगे। उनके लिए जो बनवाना है, वो मैन्यू तूने किचन में चिपका ही दिया है। फिर शाम को बाहर डिनर के लिए जाएंगे।गिफ्ट में तुझे रिस्ट वॉच चाहिए। जो तूने आर्डर कर ही दी है। और बता भूली तो नहीं ना मैं कुछ।"
"वाह मेरी मम्मी का दिमाग तो कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज है!" शानू अपनी मम्मी को छेड़ते हुए बोली।
अगले दिन जब रमा सो कर उठी तो उसे गले में खराश के साथ-साथ बुखार जैसा लग रहा था। बिस्तर से उठने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा था उसका। फिर भी उठकर उसने सबके लिए नाश्ता बनाया और अपने ऑफिस जाने की तैयारी करने लगी। उनकी हालत देखकर सबने उन्हें आराम करने की सलाह दी।
सुनकर वह बोली "नहीं, दिसंबर का महीना है। ऑफिस में काफी काम पेंडिंग पड़ा है और छुट्टियां भी नहीं है। मैंने दवाई ले ली है ।आराम पड़ जाएगा।"
लेकिन आराम होने की बजाय गला बिलकुल ही कफ से जकड़ गया और उसके साथ साथ सर दर्द भी। तीन-चार दिन हो गए थे लेकिन गला सही होने का नाम नहीं ले रहा था । खैर चार-पांच दिन बाद गले में कुछ राहत पड़ी और बुखार भी उतर गया लेकिन इस बीमारी के बाद रमा का शरीर बिल्कुल ही टूट गया था। थोड़ा सा काम करते ही वह लेट जाती ।
जन्मदिन के दो ही दिन बचे थे। उसे इतना पस्त देख कर रमा का पति बोला " तुम ज्यादा टेंशन मत लो। मैं स्नैक्स वगैरह बाहर से ला दूंगा। बस साथ में तुम कुछ हल्का फुल्का बना देना।"
"देखती हूं। इस बीमारी के बाद तो हरदम आलस सा छाया रहता है। कुछ भी करने का मन नहीं करता। समझ नहीं आ रहा कैसे कर पाऊंगी!"
"यार अपने आलस के चक्कर में, बच्चे का दिल मत तोड़ो! पता है ना बच्चों का दिल तोड़ने से पाप लगता है!" रमा का पति हंसते हुए बोले।
"कोई पाप नहीं लगता बुद्धु पापा! मेरी मम्मी को परेशान मत करो। देखो ना अभी तो बीमार होकर उठी हैं। मैं नहीं चाहती, फिर से मम्मी को कोई तकलीफ हो।" शानू अपनी मम्मी के गले लगते हुए बोली।
"देखो तो भलाई का जमाना ही नहीं रहा। मैं तो तेरी साइड ले रहा था और तू मेरे ही पीछे पड़ गई।"
"अरे, नहीं बेटा मैं मैनेज कर लूंगी। तुम्हारे जीवन का इतना बड़ा दिन, मैं अपने आलस के चक्कर में खराब तो नहीं कर सकती। मुझे अच्छा नहीं लगेगा कि तुम्हारा बर्थडे यूं ही सूखा सूखा निकल जाए!"
"और मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा कि मेरी मम्मी यूं बीमारी की हालत में भी काम करें।पार्टी तो हम जरूर करेंगे लेकिन आपके बिल्कुल सही हो जाने के बाद। जिससे कि हमारे साथ साथ आप भी अच्छे से इंजॉय कर सको।"
"अरे वाह, मेरी बुद्धु सी बेटी तो इस बर्थडे पर सचमुच बड़ी और समझदार हो गई है!"
"हां , बड़ी का तो पता नहीं पर समझदार तो मैं शुरू से ही हूं मम्मी! यह अलग बात है भैया के आगे आप मुझे भाव नहीं देते !"
"अच्छा ! शैतान की नानी !" रमा उसका कान खींचते हुए हंसते हुए बोली।