Prashant Paras

Tragedy

4.7  

Prashant Paras

Tragedy

मै तो हो गयी बावरी पिया

मै तो हो गयी बावरी पिया

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“मैं तो हो गयी बावरी पिया तुम बिन और न भाए, इक पल चैन न आए “ शास्त्रीय संगीत का ये राग अक्सर कोमल के घर से सुनाई पड़ती थी। निरंतर दो सालों के गायन क्षेत्र में शतत अभ्यास का फल था कि कोमल जब भी गाना शुरू करती तो आस-पड़ोस के लोग खींचे चले आते थे। कोमल के पिता सूर्यचन्द्र जी हाई स्कूल में गणित के शिक्षक थे, और सादगी तो उनके ललाट पर सूर्य सा तेज़ धारण कर गंगा के जैसे प्रवाहित होकर उनके तन को सींचे हुए था। 

कोमल के घर में कोमल की माँ जो एक सक्षम गृहणी थी और कोमल की बुआ सुमन जो दहेज प्रथा का शिकार थी जिनके पति ने उन्हें बीस दिनों के लिए मायके में छोड़ कर वापस ले जाने में बीस साल लगा दिए पर फिर भी सुमन बुआ आज भी अपने परमेश्वर का इंतज़ार करती है उन्हें अपने चक्षुओं से मानो हमेशा पुकारती हो जिस कारण उनके नयन हमेशा लाल पाए जाते थे।

खैर ये सब उनके अतीत की बातें हैं आज सुमन बुआ संग कोमल का पूरा परिवार खुश है क्योंकि कोमल का विवाह प्रस्ताव श्री सोमकान्त जी द्वारा स्वीकृत किया गया था और आज कोमल का सिद्धांत (विवाह से पहले की विधि) लिखा जा चुका था, श्रीमान चंदन जी (जिन्होंने कोमल का विवाह प्रस्ताव लाया था) आज के दिन उनकी तुलना भगवान के दूत से की जा रही थी। विवाह का शुभ मुहूर्त अगले महीने २६ तारीख की निकली।

और वो दिन भी बेटी का माथा निहारते-निहारते गुज़र गए कोमल के माता-पिता की। बहुत ही भव्य शादी के पंडाल का निर्माण किया गया, सूर्यचंद्र जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी पहली पुत्री का विवाह मानो सब कुछ लूटा दिया हो। बारातियों के भव्य स्वागत से लेकर उनकी विदाई तक राजशाही ख़ातिर की गई। कोमल की विदाई जो कि चार दिनों बाद थी हो गयी राजेश(कोमल का पति) कोमल के माता-पिता के हृदय में स्थान बना चुका था। सूर्य चंद्र जी के घर मे तो मानो कोमल के राग की जगह सन्नाटे चीखने लगे। जब कभी सन्नाटा काल के समान पैर पसारती तो सूर्यचंद्र जी फ़ोन पर कोमल से बात कर सन्नाटे को हावी नहीं होने देते। धीरे-धीरे दिन बीतते गए अब एक तरफ कोमल के बिना और दूसरी तरफ कोमल के साथ सबको रहने की आदत हो चुकी थी। 

होनी को कुछ और ही मंज़ूर था।

लगभग दो माह बाद रविवार के दिन कोमल वापस अपने पीहर आकर बरामदे पर शांत होकर बैठ गयी। कोमल की माँ(आशा देवी) और सूर्यचंद्र जी के खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा लेकिन कोमल के तरफ से किसी तरह का प्रत्युतर पाकर खुशी- संदेह में परिवर्तित होने लगी। बहुत पूछने और हज़ारों मिन्नतें करने पर कोमल ने बताया कि उसके ससुराल वालों ने उसे यह कह कर निकाल दिया कि उसके पति ने दूसरी शादी पाँच साल पहले ही कर ली इसीलिए वो अब वहाँ रह कर क्या करेगी। सूर्यचन्द्र जी के पैरों तले जमीन खिसक गई उन्होंने सौ से अधिक बार सोमकान्त जी को फ़ोन लगाया लेकिन कोई जवाब न पाकर उन्होंने चंदन जी को फ़ोन लगाया। चंदन जी भागे-भागे आये और दोनों ने तय किया कि दो घण्टे पश्चात और चार-पाँच ग्रामीणों संग वो लोग कोमल के ससुराल जाएँगे। लेकिन जैसे वो लोग सोमकान्त जी के घर पहुँचे उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया कुछ लोग तो हिंसक होने लगे। जैसे-तैसे सूर्यचंद्र जी अपने ग्रामीणों के साथ वापस लौट गए। घर मे चर्चा होने लगी इस मामले को अदालत ले जाया जाए लेकिन कोमल इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए बोली कि वो(राजेश) ऐसा नहीं कर सकते वो वापस जरूर आएंगे। सुमन बुआ ने कोमल को अपनी हालात का हवाला देते हुए समझाने का प्रयास किया लेकिन कोमल नहीं मानी तो ग्रामीणों ने निर्णय किया कि सीधा राजेश से जाकर बात किया जाए तो चार दिनों बाद सब राजेश के ऑफ़िस पहुँचे लेकिन राजेश ने उन्हें पहचानने से इनकार कर उन्हें ऑफ़िस से निकलवा दिया। अपनी बेटी के दिये कसम के कारण सूर्यचंद्र जी वहाँ कुछ नहीं कह पाए, उसी रात राजेश-कोमल को फ़ोन करते हुए बोला कि कोमल उसे भूल जाये और दूसरी शादी कर ले, कोमल रो कर रह गई। फ़ोन चुकी स्पीकर पर था तो माँ और बुआ ने सब सुना लेकिन कुछ बोल पाती तब तक फ़ोन कट चुका था। माँ कोमल को हिम्मत देने लगी और पुलिस केस के लिए मनाने लगी लेकिन कोमल माँ की बातों को नकारते अपनी ज़िद पर अड़ी रही। सूर्यचंद्र जी वापस गाँव आ गए। अगले दिन सुबह उठकर अपनी बालकनी में बैठकर कुछ सोचने लगे तभी अचानक उनकी नज़र उनकी छोटी बेटी सोनी पर पड़ी उनके आँखों में चिंता और अतीत के मिश्रित आँसू आने लगे तभी उनके कानों में एक राग पड़ी

“मैं तो हो गयी बावरी पिया तुम बिन और न भाए

 इक पल चैन न आए।"



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