Nandita Srivastava

Drama

5.0  

Nandita Srivastava

Drama

माँ

माँ

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339


आज का दिन माँ के लिये ही है।आज माँ बहुत याद आ रही है। हम 6 भाई बहनों की माँ पढ़ी लिखी भावुक महिला थी कभी भी माँ से डांट या मार नहीं खायी। हमेशा धीर गरिमा से भरी थी माँ , बस एक ही कमी थी, कभी भी अपने हक के लिये नहीं लडती थी माँ। बस चुपचाप सहती रहती थी। सारा जीवन उनका ईमानदार सरकारी अधिकारी पति और हम लोगों के लिये ही था। माँ को कभी भी आम औरतो की तरह खाली नहीं देखा हमेशा पढ़ते, लिखते, रेडियो सुनते या फिर कढ़ाई, बुनाई या लोगो की सेवा करते देखा। एक दिन जब पिताजी के दुनिया से जाने के बाद माँ को सूखे चावल खाते हुये देखा तब हम सिहर गये थे। माँ बड़े भाई साहब और उनकी बदमिजाज बीबी के साथ रहती थी। हम तो बस माँ से मिलने गये थे और अपने जीवन का सबसे बुरी घटना देखी। उसी दिन तय कर लिया था कि माँ को अपने पास ले आयेगें। हम यनि उनकी सबसे छोटी बेटी चुनिया, यह हमारे घर का नाम था। छोटे भाईसाहब भी थे पर उनको तो हमेशा बस अपना परिवार ही नजर आता था। माँ से कोई सरोकार नहीं था। खैर हम तो अपनी माँ को ले आये और यही करना चाहिये था और यही उचित था। यहाँ पर हम अपने पति के घर पर रहते थे। जो की एक छोटी सोच वालों का घर था। उनका छोटा दमाद दंभी था। जब तक बीमार था माँ ने खूब सेवा की, दमाद ने ठीक होते ही रंग दिखाना शुरू कर दिया। माँ का अपमान, पंखा बंद करना, शौचालय के दरवाजे पर ताला लगाना। माँ चुपचाप सब सहती रही जबकि माँ को पेंशन मिलता था। फिर भी यह दशा। हम भी कुछ ना कर पाये। आखिर माँ 19 नवम्बर को इस दुनियॉ को छोडकर चली गयी। सब लोग तमाम ढकोसले हुये पर माँ तो वापस नहीं आयेगीं।


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