माँ
माँ
मेरे देखते देखते
गुजर गयी है
मेरे सपनों के
आसमान पर गहराई एक जलभरी बदली जैसी औरत
कड़कती धूप में पहली फुहार सी
वह
मुट्ठी की रेत की तरह बिखर गई है
खो गई है अनंत में
जब तक थी
छायी रही मेरे पूरे वजूद पर
घना साया बनकर
सुकून और चैन पाया उसके आंचल में
हर चिंता उसके लिए छोड़
बेखबर रही उम्र भर
आज जब वह नहीं है
तब भी
ख़ुदा की तरह उसके होने का अहसास जिंदा है
क्योकि जहां ईश्वर नहीं होता
वहां मां अवश्य होती है।