Harshul Sharma

Abstract Tragedy Inspirational

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Harshul Sharma

Abstract Tragedy Inspirational

माँ

माँ

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नमस्कार...मैं लेकर आया हूँ एक ऐसी औरत की कहानी जो अपनी सारी जिंदगी अपने लिए नहीं बल्कि अपने बच्चों के लिए जीती है।खुद सारे दुःख सहकर अपने बच्चों को खुशियाँ देती है।जब भी चोट लगती है उसके बच्चों को तो उसकी आँखों से ऑंसू नहीं रुकते।भगवान से वो खुद के लिए नहीं बल्कि अपने बच्चों के लिए दुआ मांगती है।फिर भी ना जाने क्यों वही बच्चे इतनी प्यारे इंसान को ठुकरा देते हैं ? इस महान औरत का नाम है-माँ।ये शब्द देखने में तो छोटा है लेकिन इसका अर्थ इतना बड़ा कि ये संसार भी उसके आगे छोटा पड़ जाए।तो ये है मेरी कहानी-माँ...चरणों में तुम्हारे सारा जहाँ।

[इस कहानी की शुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के शहर आगरा से।]

[शुक्ला निवास में दिखाई देती है एक औरत जिसका नाम है-मान्यता शुक्ला।]

मान्यता {अपनी बेटी से} :इशिता!बेटा तुम तैयार नहीं हुई क्या ? कॉलेज के लिए late हो जाएगा तुमको।जल्दी करो।

इशिता {मान्यता से} :आई मम्मा।

[सीढ़ियों से मान्यता की बेटी इशिता नीचे आती है।]

इशिता {मान्यता से} :क्या हुआ मम्मा ? आप चिल्ला क्यों रही हैं ?

मान्यता {इशिता से} :बेटा!तुम कॉलेज के लिए late हो जाओगी।

इशिता {मान्यता से} :अरे मम्मा,आप टेंशन मत लीजिये।मैं जल्दी से अभी तैयार होकर आती हूँ और कॉलेज जाती हूँ।

मान्यता {इशिता से} :जल्दी करना।

इशिता {मान्यता से} :हाँ, ठीक है।

[इशिता तैयार होने के लिए अपने कमरे में चली जाती है।]

मान्यता {अपने आप से} :ये लड़की भी ना,बिल्कुल पागल है।रोज़ कॉलज के लिए ऐसे ही late हो जाती है और मुझे बोलती है कि मम्मा आप चिंता मत करो।अरे माँ को अपनी बेटी की चिंता नहीं होगी तो किसे होगी ?

अंश {मान्यता से} :भाई को भी तो होगी ना ?

[अंश मान्यता का भतीजा यानि उसके भाई का बेटा है।]

मान्यता {अंश से} :अरे हाँ मैं तो भूल ही गई कि भगवान ने मेरी बेटी को इतना प्यारा भाई भी दिया है।

अंश {मान्यता से} :वही तो बुआ।भगवान ने तो दी को इतना प्यारा भाई दिया है लेकिन इस बात का दी को बिल्कुल एहसास नहीं है।हमेशा मुझे कुछ न कुछ बोलती ही रहती हैं।हमेशा मुझसे लड़ाई करती हैं।अब आप ही बताओ मैं क्या करूँ ?

मान्यता {अंश से} :तुम बस उसकी बातों को दिल पर मत लगाया करो।वो तुमसे बड़ी है ना तो वो जो बोला करे उसे सुन लिया करो।समझे

अंश {मान्यता से} :हाँ थोड़ा थोड़ा।

मान्यता {अंश से} :बस थोड़ा ही ? हे भगवान!अब तुम्हें कैसे समझाऊँ ?

मानव {मान्यता से} :दीदी!

[मानव मान्यता का छोटा भाई है।]

मानव {मान्यता से} :दीदी!मैं ऑफिस जा रहा हूँ।कहाँ है मेरी भाँजी ? वो हमेशा मुझे late कर देती है।आज मुझे जल्दी जाना है।जल्दी बुलाइये उसे।

मान्यता {मानव से} :मैं क्या करूँ,मानव ? मेरी तो सुनती ही नहीं है वो।अब तू ही कुछ बोल उसको।

मानव {मान्यता से} :वैसे वो है कहाँ ?

मान्यता {मानव से} :अपने कमरे में ही है।तैयार हो रही है।

मानव {मान्यता से} :मैं उसे अभी बुलाकर लाता हूँ।

[मानव इशिता के कमरे में जाता है।]

मानव {इशिता से} :इशिता!कहाँ हो बेटा ? जल्दी चलो।

इशिता {मानव से} (बाथरूम से):बस अभी नहाकर आ रही हूँ,मामू।

मानव {इशिता से} :बेटा!मुझे देर हो रही है।

इशिता {मानव से} (बाथरूम से):आप नीचे चलिए मैं बस अभी आती हूँ।

मानव {इशिता से} :हाँ ठीक है।पर जल्दी आना।

इशिता {मानव से} (बाथरूम से):आप नाश्ता कीजिये।मैं तब तक आ रही हूँ।

मानव {इशिता से} :ठीक है।

[मानव इशिता के कमरे से निकलकर नीचे आ जाता है।]

डाइनिंग टेबल पर

अंश {मानव से} :डैड!आप दी को छोड़िए।हम चलते हैं।

मानव {अंश से} :अच्छा!चुपचाप नाश्ता कर।

अंश {मानव से} :Ok

मान्यता {मानव से} :क्या हुआ ? नहीं आई वो ?

मानव {मान्यता से} :बस अभी आ ही रही है।

ऋद्धि {मान्यता से} :दीदी!ये लीजिये गरम गरम पराठा।

मान्यता {ऋद्धि से} :ऋद्धि!तुम इतना काम क्यों करती हो ? मुझे भी कुछ नहीं करने देती।आखिर मैं भी तो इस घर की एक सदस्य हूँ।

ऋद्धि {मान्यता से} :दीदी!कोई बात नहीं।आखिर आप मुझसे बड़ी हैं और अपने बड़ों से मैं काम करवाऊँ ये मुझे शोभा नहीं देता।इसलिए आप पराठा खाइये नहीं तो ठंडा हो जाएगा।

मानव {मान्यता से} :दीदी!मेरी शादी से पहले आपने मुझे कितना खाना बना बनाकर खिलाया है तो अब मेरी बारी है ना।

मान्यता {मानव से} :तो अब तू मुझे खिलायेगा ?

मानव {मान्यता से} :मेरा मतलब मैं खिलाऊँ या ऋद्धि,बात तो एक ही है।After all she is my अर्धागीनी।

मान्यता {मानव से} :अर्धागीनी नहीं अर्धांगिनी।

मानव {मान्यता से} :हाँ वही।

[तभी इशिता वहाँ नहाकर आ जाती है।]

इशिता {मानव से} :What's up मामू ?

मान्यता {इशिता से} :मामू की प्यारी भाँजी पहले खाना खाओ।तुम्हारे मामू को देर हो रही है।

इशिता {मान्यता से} :Just chill मम्मा।आप हमेशा इतने गुस्से और टेंशन में क्यों रहती हैं ? Everything is fine।

मान्यता {इशिता से} :हाँ लेकिन अगर तुमने जल्दी नहीं की तो तुम्हें कॉलेज में डाँट पड़ेगी और तुम्हारे मामू को ऑफिस में।

इशिता {मान्यता से} :अच्छा ठीक है बाबा।खा रही हूँ।

[फिर इशिता और अंश को लेकर मानव कॉलेज चला जाता है और उन्हें कॉलेज छोड़कर अपने ऑफिस चला जाता है।]

इशिता {अंश से} :ओये!बुआ के भतीजे!तू अपने टिफ़िन में क्या लाया है ?

अंश {इशिता से} :मैं तो वही लाया हूँ जो आप लायी हो।

इशिता {अंश से} :हाँ तो सीधे सीधे नहीं बोल सकता था कि पास्ता लाया है।

अंश {इशिता से} :अरे पर मैं तो....

इशिता {अंश से} :हाँ ठीक है ठीक है।चल अब अपनी क्लास में जा।मेरा टाइम waste मत कर।

अंश {इशिता से} :अरे लेकिन....

[इशिता अपने क्लासरूम में चली जाती है।]

अंश {इशिता से} :खुद मेरा टाइम waste कर के गईं।और मुझे बोलती हैं कि मैं उनका टाइम waste कर रहा हूँ।सच में मैंने ज़रूर कोई बहुत ज़्यादा पाप किये होंगे जो ऐसी बहन मिली मुझे।डरावनी और खूँखार।

[अंश भी ऐसे ही बोलते हुए अपनी क्लास में चल जाता है।]

[थोड़े टाइम के बाद कॉलेज खत्म होता है तो दोनों बाहर आते हैं।]

इशिता {अंश से} :ओये!बुआ के भतीजे,वो देख कुल्फी वाला।बचपन में तो हम कितनी कुल्फी खाते थे फिर जैसे जैसे बड़े होते गए तो टाइम ही नहीं मिला कभी।

अंश {इशिता से} :अरे दी!जल्दी करो वो चला जायेगा।

इशिता {अंश से} :हाँ तो तू बोल क्यों रहा है ? चल ना।

[इशिता और अंश कुल्फी वाले के पास जाते हैं और उससे दो कुल्फी लेते हैं।]

इशिता {अंश से} :अरे वाह!इसे खाकर तो मज़ा ही आ गया।बचपन की यादें ताजा हो गईं।

अंश {इशिता से} :हाँ दी!आज पहली बार आपने कोई ढंग की बात की है।

इशिता {अंश से} :क्या ?

अंश {इशिता से} :I was joking

इशिता {अंश से} :That's better।

[इशिता और अंश कुल्फी खा रहे होते हैं तभी एक कार तेज़ी से आती है और अंश के कपड़े कीचड़ से बिगाड़कर आगे चली जाती है।

अंश {अपने आप से} :ewe!मेरे तो सारे कपड़े गन्दे हो गए।

इशिता {अपने आप से} :मेरे भाई के कपड़े गन्दे किये।इस कार वाले को तो मैं छोडूँगी नहीं।

अंश {इशिता से} :दी!कोई बात नहीं।

इशिता {अंश से} :ऐसे कैसे कोई बात नहीं।तू अभी रुक मैं अभी बताती हूँ इसे।

[इशिता नीचे से पत्थर उठाती है और कार पर मारती है तो कार रुक जाती है और उसमें से एक बूढ़ी औरत दामिनी देवी बाहर निकलती है।]

दामिनी {इशिता से} :ए लड़की!मेरी कार पर पत्थर क्यों फेंका ?

इशिता {दामिनी से} :आप कहें तो आप पर भी फेंकूँ।

दामिनी {इशिता से} :क्या ?

इशिता {दामिनी से} (गुस्से से):तुम अमीर लोग इस सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझते हो ? जो किसी पर भी कीचड़ उछालकर चले जाते हो।

दामिनी {इशिता से} :ए!लड़की!तुम ज़्यादा बोल रही हो।

इशिता {दामिनी से} (गुस्से से):अरे अभी तो मैंने ज़्यादा बोला ही कहाँ है अगर मुझे गुस्सा आ गया ना तो मैं....

अंश {इशिता से} (बीच में रोकते हुए):दी!छोड़ो ना

इशिता {अंश से} (गुस्से से):अरे ऐसे कैसे छोड़ दूँ।

इशिता {दामिनी से} :ओ दादी जी!अगर आप मेरे भाई से माफी माँगेंगी तभी मैं आपको जाने दूँगी।

दामिनी {इशिता से} :मैं ना तो तुम्हारे भाई से माफी माँगूंगी और ना ही तुम्हारी कोई बात सुनूँगी।मैं जा रही हूँ।

[इशिता गुस्से में पास में पड़ा हुआ गोबर उठाती है और उस कार पर फेंक देती है।]

इशिता {दामिनी से} :तुम लोग इसी लायक हो।तुम्हारी औकात ही ये है,गोबर जैसी।

दामिनी {इशिता से} (गुस्से से):ए!रुक।

इशिता {अंश से} :अंश!भाग।

[इशिता और अंश वहाँ से भाग जाते हैं।]

इशिता {अंश से} :बच गए।

अंश {इशिता से} :दी!ये सब क्या किया आपने ?

इशिता {अंश से} :अरे मेरे भाई पर कोई कीचड़ उछालकर जाए और मैं उसे कुछ बोलूँ भी नहीं ? फिर किस बात की बहन हूँ मैं ?

अंश {इशिता से} :Awe!मेरी प्यारी दी।

[अंश इशिता के गले लगता है तो इशिता उसे दूर करती है।]

इशिता {अंश से} :ओये!तू मेरा भाई ज़रूर है लेकिन अभी तू बहुत गन्दा लग रहा है इसलिए अभी मेरे गले मत लग।घर जाकर जब नहा ले तब मन भरके गले लगना।

[ये बोलते हुए इशिता वहाँ से आगे चली जाती है।]

अंश {इशिता से} :शायद मैंने बहुत ज़्यादा पाप किये होंगे जो मुझे मुझसे ऐसे लड़ने वाली बहन मिली लेकिन थोड़े बहुत पुण्य भी किये होंगे जो मुझे मेरे लिए सबसे लड़ने वाली बहन मिली।

इशिता {अंश से} (चिल्लाते हुए):ओये!घर नहीं चलना क्या ? चल जल्दी।

अंश {इशिता से} :आया।

[अंश और इशिता घर पहुँच जाते हैं।]

इशिता {अंश से} :तू ज़रा मुझसे दूर होकर चल।तुझसे बहुत ज़्यादा बदबू आ रही है।

[तभी बाहर मान्यता आ जाती है और वो इशिता और अंश को देखती है।]

इशिता {अंश से} (धीरे से):ओये!सुन,मम्मा को पता नहीं चलना चाहिए कि मैंने उस बुढ्ढी के साथ क्या किया ?

अंश {इशिता से} :पर क्यों ?

इशिता {अंश से} (धीरे से):अरे तुझे पता है ना कि मेरी मम्मा कितनी भोली भाली और प्यारी हैं।हमेशा दूसरों के बारे में सोचती हैं।अगर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी एक बूढ़ी औरत की कार पर गोबर फेंककर आई है तो वो मुझे छोड़ेंगी नहीं।

अंश {इशिता से} (धीरे से):इस बार इसलिए बचा रहा हूँ क्योंकि आपने मेरे लिए उन दादी से लड़ाई की।

इशिता {अंश से} (धीरे से):Awe!So sweet,थैंक यू।

मान्यता {अंश से} :अंश बेटा!ये सब क्या है ? तुम्हारे कपड़े कीचड़ से कैसे बिगड़े हुए हैं ?

इशिता {मान्यता से} :वो मम्मा ये गिर चुका है।

अंश {इशिता से} :What!

मान्यता {इशिता से} :ये क्या बोल रही हो तुम ?

इशिता {मान्यता से} :मेरा मतलब character से नहीं,सीढ़ियों से गिर चुका है।वो कॉलेज में सीढ़ियों से नीचे कीचड़ गिरा हुआ था तो इसका पैर फिसला और ये गिर गया।

मान्यता {अंश से} :बेटा!ध्यान से चलना चाहिए ना।

अंश {मान्यता से} :सॉरी बुआ।

मान्यता {अंश से} :अच्छा अब चलकर नहा लो।तुमसे बदबू आ रही है।

अंश {मान्यता से} :हाँ मुझे भी ऐसा ही लग रहा है।

[अंश नहाने चला जाता है और इशिता मान्यता के साथ अंदर आती है।तभी उसे किसी की चप्पल नज़र आती हैं।]

इशिता {मान्यता से} :मम्मा

मान्यता {इशिता से} :हाँ बेटा!

इशिता {मान्यता से} :हमारे घर कोई मेहमान आया है क्या ?

मान्यता {इशिता से} :नहीं तो।

इशिता {मान्यता से} :तो ये पुराने ज़माने की चप्पल किसकी हैं ?

मान्यता {इशिता से} :ये चप्पल तो पाप की हैं।

इशिता {मान्यता से} (खुशी से):क्या,नानू आ गए ?

मान्यता {इशिता से} :हाँ।

इशिता {मान्यता से} :मैं अभी उनसे मिलकर आती हूँ।

मान्यता {इशिता से} :ठीक है।

[इशिता अपने नानू यानि अमरपाल शुक्ला के कमरे में जाकर उसके गले लगती है तो वो अपने हाथ से इशिता को दूर करके चिल्लाता है।]

अमरपाल {इशिता से} (गुस्से से):ए लड़की!तुम्हें कितनी बार मैंने बोला है कि मुझसे दूर रहा करो।

इशिता {अमरपाल से} (डरते हुए):पर नानू...

अमरपाल {इशिता से} (गुस्से से):इतनी सालों से मैं तुमसे एक ही बात कहता आ रहा हूँ कि जितने दिन मैं यहाँ रहा करूँ,उतने दिन तुम मुझसे दूर ही रहा करो।तुम्हारी ही वजह से मैं यहाँ नहीं रहता और हमेशा किसी न किसी तीर्थस्थल पर जाता रहता हूँ।मैं बस 3-4 दिन के लिए ही आया हूँ।इन दिनों मुझे शांति से यहाँ रहने दो।मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ।

इशिता {अमरपाल से} (रोते हुए):पर नानू मैं तो बस आपसे थोड़ी सी बातें करने आई थी।

अमरपाल {इशिता से} (गुस्से से):क्यों ? इस घर में तुमसे बातें करने वाला कोई नहीं रहा ? कहाँ गए सब ? मैं और कुछ नहीं सुनना चाहता।तुम चली जाओ यहाँ से।जाओ।

[इशिता रोती हुई मान्यता के पास चली जाती है।]

मान्यता {इशिता से} :इशिता!बेटा,तुम रो क्यों रही हो ? क्या हुआ ?

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):मम्मा!मुझे आज तक ये बात समझ नहीं आई कि नानू मुझसे नफरत क्यों करते हैं ? मैं जब भी उनके पास जाती हूँ तो या तो वो वहाँ से चले जाते हैं या मुझे डाँटकर जाने के लिए कह देते हैं।बचपन से वो मेरे साथ ही ऐसा बर्ताव करते हैं।वो अंश को तो बड़े प्यार से गले लगाते हैं,उससे बातें भी करते हैं।पता नहीं उन्हें मुझसे ही क्या प्रॉब्लम है ?

मान्यता {इशिता से} :बेटा!तुम रोओ मत।मैं अभी पापा से बात करके आती हूँ।तुम बिल्कुल भी रोना मत।

[मान्यता अमरपाल के कमरे में जाती है।]

मान्यता {अमरपाल से} :पापा!आप हमेशा इशिता के साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों करते हैं ?

अमरपाल {मान्यता से} :मान्यता!तुम बहुत अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे इस बर्ताव की वजह क्या है।

मान्यता {अमरपाल से} :पापा!आप इतने सालों से एक ही बात को लेकर बैठे हुए हैं।आखिर कब तक आप इस बात को अपने दिल में रखेंगे।

अमरपाल {मान्यता से} :मरते दम तक भी मैं इस बात को नहीं भूल सकता कि उस लड़की की वजह से तुम्हारी ज़िन्दगी किस तरह से बर्बाद हो गई थी।

मान्यता {अमरपाल से} :पापा!इसमें इशिता की क्या गलती थी ? जो सब हुआ उसकी वजह तो इशान था।

अमरपाल {मान्यता से} :हाँ तो ये भी तो अमृता की....

[अमरपाल की बात अधूरी रह जाती है तभी वहाँ अंश आ जाता है।]

अंश {अमरपाल से} :दादू!मैं आपका कब से wait कर रहा था और आप अब आये हैं।क्या हुआ ? आप कोई ज़रूरी बात कर रहे थे क्या ?

अमरपाल {अंश से} :अरे नहीं बेटा,हम तो बस ऐसे ही।तू वो सब छोड़ ये देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ-नई शर्ट।

अंश {अमरपाल से} :Wow दादू!ये तो बहुत सुंदर है।Thank you and love you दादू।

अमरपाल {अंश से} :Love you too बेटा।

मान्यता(सोचते हुए):अब मैं पापा को कैसे समझाऊँ कि वो इशिता से नफरत ना करें।

[मान्यता इशिता के पास आ जाती है।]

मान्यता {इशिता से} :इशिता!बेटा,तुम अब भी रो रही हो।

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):मम्मा!नहीं माने ना नानू ? मुझे पता था कि वो मुझसे कभी प्यार कर ही नहीं सकते।

मान्यता {इशिता से} :बेटा!तुम रोना बन्द करो।सब ठीक हो जाएगा।तुम चुप हो जाओ।

इशिता {मान्यता से} :पर कैसे मम्मा ?

मान्यता {इशिता से} :अरे मेरी झाँसी की रानी वैसे तो तुम सबसे लड़ती फिरती हो और अब नानू को देखकर सारी बहादुरी निकल गई ?

इशिता {मान्यता से} (ऑंसू पोंछते हुए):ऐसी बात नहीं है।डरने को तो मैं किसी के बाप से नहीं डरती पर ये आपके बाप मेरा मतलब आपके पापा हैं।इसलिए थोड़ा कमज़ोर पड़ जाती हूँ।अगर कोई और होता तो....

मान्यता {इशिता से} :तो ?

इशिता {मान्यता से} :तो....कुछ नहीं मम्मा।अब मुझे बहुत भूख लग रही है।थोड़ा खाना मिलेगा ?

मान्यता {इशिता से} :तुम हाथ-मुँह धोकर आओ,मैं अभी खाना लगती हूँ।

इशिता {मान्यता से} :ठीक है।

[इशिता हाथ-मुँह धोने चली जाती है।]

मान्यता(सोचते हुए):इशिता को तो समझा दिया पर पापा को कैसे समझाऊँ ?

[इशिता मुँह हाथ धोकर खाना खाने के लिए नीचे आती है और डाइनिंग टेबल पर बैठती है।]

इशिता {ऋद्धि से} :मामी!आज खाने में क्या है ?

ऋद्धि {इशिता से} :आज है बैंगन का भर्ता।

इशिता {ऋद्धि से} :Oh wow!फिर तो मैं सारा खा जाऊँगी।

ऋद्धि {इशिता से} :हाँ इसीलिए मैंने ज़्यादा बनाया है क्योंकि मैं जानती हूँ कि तुम्हें और पापा को बैंगन का भर्ता बहुत पसंद है।

[अमरपाल वहीं पर बैठकर खाना खा रहा होता है।]

अमरपाल {ऋद्धि से} (गुस्से से):बहू!तुम्हें कितनी बार बोला है कि बैंगन का भर्ता मत बनाया करो।मुझे पसंद था लेकिन अब नहीं है।

ऋद्धि(सोचते हुए):हे भगवान!ये मेरे मुँह से क्या निकल गया।अब तो पापा बैंगन का भर्ता चखेंगे भी नहीं क्योंकि उन्हें वो चीज़ कभी पसन्द नहीं आती जो इशिता को पसंद होती है।

अमरपाल {ऋद्धि से} (गुस्से से):अगर कोई और सब्जी हो तो दो नहीं तो मैं सिर्फ रोटी ही खा लूँगा।

इशिता {ऋद्धि से):मामी!मैं तो भूल ही गई थी कि मेरी तो dieting चल रही है तो मैं तो सिर्फ fruits ही खाऊँगी।और वैसे भी बैंगन का भर्ता मुझे पहले पसन्द था अब नहीं है।मैं fruits लेकर रूम में जा रही हूँ।

मान्यता {इशिता से} :लेकिन बेटा....

इशिता {ऋद्धि से} :हाँ मामी मम्मा को भी थोड़ा ज़्यादा दे देना क्योंकि अब उन्हें भी भर्ता पसन्द आने लगा है।

[इशिता वहाँ से कुछ fruits लेकर अपने आंसुओं को छुपाते हुए अपने रूम में चली जाती है।]

इशिता {भगवान से} (रोते हुए):क्यों भगवान ? क्यों मेरे साथ ऐसा कर रहे हो आप ? मुझे कभी पापा का प्यार नहीं मिला,मैंने कुछ नहीं कहा।नानू का प्यार नहीं मिला,तब भी मैंने कुछ नहीं कहा।पर कम से कम नानू की मेरे लिए नफरत को तो खत्म कर दो।मुझे नहीं अच्छा लगता है जब नानू मुझसे rudely बात करते हैं।

[तभी वहाँ मान्यता अपने हाथ खाने की प्लेट लेकर आ जाती है।]

मान्यता {इशिता से} :बेटा!तुम्हें तो बैंगन का भर्ता बहुत पसंद है ना ? तो फिर तुमने क्यों नहीं खाया ?

इशिता {मान्यता से} (आँसू पोंछते हुए):आप अच्छी तरह से जानती हैं,मम्मा कि अगर मैं बैंगन का भर्ता खाती तो नानू उसे चखते भी नहीं।इसलिए मैंने खाना खाने से ही मना कर दिया।

मान्यता {इशिता से} :अच्छा ठीक है।अब ये लो खाना खाओ।

इशिता {मान्यता से} :नहीं मम्मा।मुझे भूख नहीं है।

मान्यता {इशिता से} :तुम किसी से भी झूँठ बोल सकती हो पर अपनी मम्मा से नहीं।इसलिए चुपचाप खाना खाओ।

[मान्यता ज़बरदस्ती इशिता को खाना खिला देती है।]

मान्यता {इशिता से} :अपने ये आँसू पोंछो और इन्हें अपनी शादी के बाद विदाई के लिए रखो।नहीं तो अगर ये खत्म हो गए तो कैसा लगेगा जब विदाई पर दुल्हन रोने की जगह हँसेगी ?

[दोनों हँसती हैं।]

मान्यता {इशिता से} :हमेशा इसी तरह से मुस्कुराती रहा करो।बहुत प्यारी लगती हो।

अगले दिन

इशिता {अंश से} :अंश जल्दी कर।हम कॉलेज के लिए late हो जाएंगे।

अंश {इशिता से} :आया।लो आ गया।

इशिता {अंश से} :कितना late कर देता है तू मुझे।हमेशा late आता है।

अंश {इशिता से} :वाह!आज एक दिन late क्या हो गया आपने तो मुझको ही दोष देना शुरू कर दिया।हमेशा late होने वाली इंसान आज मुझे ज्ञान दे रही हैं कि मुझे late नहीं होना चाहिए।

इशिता {अंश से} :हाँ ठीक है ठीक है।अब जल्दी चल।

ऋद्धि {दोनों से} :अरे टिफ़िन तो ले जाओ।

अंश {ऋद्धि से} :हाँ लाओ मॉम।जल्दी लाओ।हमें देर हो रही है।

ऋद्धि {अंश से} :हाँ ये लो।

[तभी वहाँ अमरपाल आ जाता है।]

अमरपाल {अंश से} :अंश!बेटा,कॉलेज जाने से पहले दादू के गले नहीं लगोगे ?

अंश {अमरपाल से} :अरे हाँ मैं तो भूल ही गया।

[अंश अमरपाल के गले लगता है और इशिता दुःखभरी नजरों से ये नज़ारा देखती है।और सोचती है कि काश एक दिन उसका नानू भी उसे प्यार से गले लगाए।मान्यता इशिता को रोते हुए देखती है।]

मान्यता {इशिता से} :अरे इशिता बेटा,तुम अपनी मम्मा के गले नहीं लगोगी ?

इशिता {मान्यता से} (आँसू पोंछते हुए):हाँ।

[इशिता को मान्यता गले से लगाती है।और फिर अंश और इशिता कॉलेज पहुँच जाते हैं।]

कॉलेज में

इशिता {अंश से} :काश हमारी ज़िंदगी में कल के दिन जैसा दिन कभी ना आये और ना ही इतनी खतरनाक और बद्तमीज़ बुढ़िया कभी हमें मिले।

अंश {इशिता से} :दी!अब तो हो गया बंटाधार।

इशिता {अंश से} :क्या ?

अंश {इशिता से} :वो देखो।आपने जो wish माँगी थी उसका just उल्टा ही हो रहा है।आपने कहा था कि वो दादी जी हमारी ज़िंदगी में दोबारा ना आएं लेकिन वो तो खुद हमारी तरफ चलकर आ रही हैं।

इशिता {अंश से} :मर गए!अब मैं क्या करूँ ? अब ये बुढ़िया मुझे नहीं छोड़ेगी।हे भगवान बचा लो।प्लीज

[इशिता अंश के पीछे छुपती है ताकि दामिनी देवी उसे देख ना ले।तभी एक टीचर दामिनी देवी को अपने साथ ले जाता है।]

अंश {इशिता से} :दी!वो तो गईं।

इशिता {अंश से} :गईं ? बच गई आज तो मैं।

अंश {इशिता से} :दी!कल तो आप बाहुबली बनकर उनसे लड़ रहीं थी फिर आज क्या हो गया ? आज क्यों डर गईं उनसे ?

इशिता {अंश से} :मैं और उस बुढ़िया से डरूँगी....कभी नहीं।वो तो मैं इसलिए छुप रही थी कि अगर इस औरत ने मेरी कॉलेज में शिकायत कर दी तो मुझे कॉलेज से बाहर निकाल दिया जाएगा।और मेरी मम्मा ने इतनी मेहनत से मेरा इस कॉलेज में एडमिशन कराया है।सब कुछ waste हो जाएगा।

अंश {इशिता से} :अच्छा।

इशिता {अंश से} :तू क्या अच्छा अच्छा कर रहा है।चल यहाँ से नहीं तो वो फिर से आ जायेगी।

अंश {इशिता से} :हाँ चलो।

इशिता के क्लासरूम में

टीचर {स्टूडेंट्स से} :स्टूडेंट्स!आज आप सभी के लिए एक गुड न्यूज़ है।

स्टूडेंट्स {टीचर से} :क्या सर ?

टीचर {स्टूडेंट्स से} :आप सभी को अपनी प्रिंसिपल से शिकायत थी ना ?

स्टूडेंट्स {टीचर से} :हाँ सर।

टीचर {स्टूडेंट्स से} :आपकी प्रिंसिपल ने कुछ ज़रूरी काम की वजह से resignation letter दे दिया है और हमारे कॉलेज में नई प्रिंसिपल आईं हैं।welcome कीजिये Mrs. Damini devi bhardwaj का।

इशिता(सोचते हुए):कैसा पुराने ज़माने का नाम है।पता नहीं कैसी होगी हमारी नई प्रिंसिपल ?

[तभी दामिनी देवी क्लासरूम के अंदर आती है।]

दामिनी {स्टूडेंट्स से} :Good morning students!

स्टूडेंट्स {दामिनी से} :Good morning ma'am!

इशिता(सोचते हुए):मर गई!ये तो वही बुढ़िया है।ये हमारी नई प्रिंसिपल है ? अब तो ये मुझे कच्चा ही चबा जाएगी।कैसे भी करके मुझे इससे छुपकर यहॉं से निकलना होगा।

[इशिता चुपके चुपके क्लासरूम से बाहर निकल जाती है।]

इशिता {अपने आप से} :बच गई।

[तभी इशिता के कंधे पर अचानक से एक हाथ आता है।वो पीछे मुड़कर देखती है तो वो दामिनी देवी ही होती है।]

दामिनी {इशिता से} (चौंककर):तुम!तुम तो वही लड़की हो ना जिसने मेरी कार पर गोबर फेंका था ?

इशिता {दामिनी से} :कौन सी लड़की ? कौन सा गोबर ? मैं क्यों आपकी कार पर गोबर फेंकूँगी ?

दामिनी {इशिता से} :तुम झूँठ मत बोलो।मैं अच्छे से पहचानती हूँ तुम्हें।

इशिता {दामिनी से} :अच्छा!तो आप ज़रूर उससे मिली होंगी।

दामिनी {इशिता से} :किससे ?

इशिता {दामिनी से} :ऋषिता से।

दामिनी {इशिता से} :ऋषिता ?

इशिता {दामिनी से} :हाँ,वो मेरी जुड़वा बहन है।बिल्कुल मेरे जैसी शक्ल है उसकी भी।इसलिए आपको लगा होगा कि मैंने आपकी कार पर गोबर फेंका था।

दामिनी {इशिता से} :तुम्हें मैं पागल लगती हूँ ? ये सारी चालें समझती हूँ तुम्हारी।ये नाटक करना बंद करो।

इशिता {दामिनी से} :अरे मैं झूँठ नहीं बोल रही हूँ।अगर आपको विश्वास न हो तो मैं आपको फ़ोटो दिखाती हूँ।

[इशिता दामिनी को एक फोटो दिखती है जिसमें एक तरफ वो जीन्स पहनकर खड़ी होती है और दूसरी तरफ साड़ी पहनकर।]

इशिता {दामिनी से} :ये साड़ी पहनकर मैं हूँ सीधी-साधी,भोली भाली।और ये मेरी बहन है बचपन से ही छोटी छोटी बातों पर किसी से भी लड़ जाती है।

दामिनी {इशिता से} :तुम सच कह रही हो ना ?

इशिता {दामिनी से} :हाँ बिल्कुल सच।

दामिनी {इशिता से} :तुम्हारी बहन इस कॉलेज में नहीं पढ़ती ?

इशिता {दामिनी से} :वो किसी भी कॉलेज में नहीं पढ़ती।उसका पढ़ाई में मन ही नहीं लगता।उसने तो 12th के बाद पढ़ाई छोड़ ही दो।

दामिनी {इशिता से} :अच्छा तो ठीक है।कल तुम अपनी बहन को बुलाकर लाना।

इशिता {दामिनी से} (झूँठ मूँठ का रोते हुए):मैम!आप नहीं जानती मेरी मम्मा और पापा दोनों अलग अलग रहते हैं।मेरी बहन मेरे पापा के साथ रहती है और मैं मेरी मम्मा के साथ।इसलिए हमारे बीच में बातचीत कभी नहीं होती है।अगर मैं उसे आने को कहूँगी तो वो कभी नहीं आएगी।लेकिन आप मेरी तकलीफ कैसे समझेंगी।हे भगवान!अब मैं क्या करूँ मेरी बहन की गलती की सज़ा मुझे मिलेगी।उसकी वजह से प्रिंसिपल मैम मुझे कॉलेज से suspend कर देंगी।

दामिनी {इशिता से} :अच्छा ठीक है।तुम रोओ मत।

इशिता {दामिनी से} (झूँठ मूँठ का रोते हुए):आप मुझे suspend तो नहीं करेंगी ?

दामिनी {इशिता से} :हाँ,नहीं करूँगी।

इशिता {दामिनी से} (झूँठ मूँठ का रोते हुए):ठीक है,thank you।आप बहुत अच्छी हैं।अच्छा तो अब मैं चलती हूँ।

दामिनी {इशिता से} :कहाँ जा रही हो ?

इशिता {दामिनी से} :क्लास में।

दामिनी {इशिता से} :क्लास इधर है।

इशिता {दामिनी से} :Oh sorry!

[इशिता दामिनी के साथ क्लासरूम में चली जाती है।इसी तरह से कॉलेज ओवर हो जाता है।फिर इशिता अंश से मिलती है।और सब कुछ बताती है।]

अंश {इशिता से} :दी!आप तो बड़ी intelligent हो।

इशिता {अंश से} :हाँ,बस इस बात का कभी घमंड नहीं किया मैंने।

अंश {इशिता से} :लेकिन दी ये ऋषिता है कौन ? और आप इससे कब मिलीं ?

इशिता {अंश से} :अरे ऋषिता तो एक भृम है।मैं तो किसी ऋषिता को नहीं जानती हूँ ही नहीं।

अंश {इशिता से} :तो फिर वो फ़ोटो ?

इशिता {अंश से} :अरे मेरे भोले भाले भाई!ये तो technology का कमाल है।फ़ोन में कितने सारे apps आते हैं जिनमें खुद का clone बना सकते हैं।

अंश {इशिता से} :हाँ,मैं तो भूल ही गया।

इशिता {अंश से} :अब चल घर चलते हैं।

अंश {इशिता से} :हाँ चलो।

[तभी पीछे से दामिनी देवी इशिता को आवाज़ देती है।]

इशिता {अंश से} :Oh shit!कहीं इस बुढ़िया को मेरे झूँठ के बारे में पता तो नहीं चल गया ?

दामिनी {इशिता से} :अरे इशिता वो मैं तुमसे ये कह रही थी कि...

दामिनी {इशिता से} (अंश को देखकर):ये लड़का ? तुम तो वही हो ना जो कल ऋषिता के साथ थे ?

इशिता {दामिनी से} :अरे नहीं मैम ये तो मेरा भाई अंश है।उसके साथ जो था वो तो वंश था।

दामिनी {इशिता से} :वो भी इसका जुड़वा भाई है ?

इशिता {दामिनी से} :अरे नहीं ये दोनों जुड़वा नहीं हैं।आपने तो उसका चेहरा देखा ही नहीं था ना क्योंकि उसका चेहरा कीचड़ से बिगड़ा हुआ था।

दामिनी {इशिता से} :हाँ,पर तुम्हें कैसे पता ?

इशिता(सोचते हुए):मर गई!ये क्या बोल दिया मैंने ?

इशिता {दामिनी से} :वो मैम जब आपने मुझे ऋषिता समझकर यहॉं से निकालने की बात कही थी तो मैंने अपनी classmate से कल के तमाशे के बारे में पूछा तो उसने सब कुछ बताया।

दामिनी {इशिता से} :अच्छा!वो मैं तुमसे ये कहने आई थी कि कल तुम दोनों को मेरे घर आना है।

इशिता {दामिनी से} :कल ? कल क्या है ?

दामिनी {इशिता से} :कल मेरी बेटी और दामाद की marriage anniversarry है।तो मैं कल कॉलेज के सभी स्टूडेंट्स को पार्टी दे रही हूँ।इसलिए तुम्हें आना होगा।ठीक है ?

इशिता {दामिनी से} :Ok ma'am।

[दामिनी देवी वहाँ से चली जाती है और इशिता और अंश भी अपने घर चले जाते हैं।]

अगले दिन

[इशिता और अंश अच्छे तरीके से तैयार होकर दामिनी देवी के घर जाने लिए अपने कमरों से बाहर आते हैं।]

इशिता {अंश से} :ओहो!बुआ के भतीजे!तू तो बड़ा handsome लग रहा है।

अंश {इशिता से} :दी!आप भी बहुत pretty लग रही हो।

इशिता {अंश से} :थैंक्स।

ऋद्धि {अंश और इशिता से} :ओये!तुम दोनों इतनी रात को सज धजकर कहाँ जा रहे हो ?

अंश {ऋद्धि से} :ओहो,मम्मा!मैं तो आपको बताना ही भूल गया।हमारे कॉलेज में कल एक नई प्रिंसिपल आई थीं।आज उनकी बेटी और दामाद की marriage anniversary है तो उन्होंने कॉलेज के सभी बच्चों को पार्टी में बुलाया है।

ऋद्धि {अंश से} :अच्छा!

इशिता {ऋद्धि से} :मामी!आपको जो बातें करनी हैं वो तब कर लीजिएगा जब हम पार्टी से लौट आयें।क्योंकि अभी हमें पार्टी के लिए late हो रहा है।

ऋद्धि {इशिता और अंश से} :अच्छा,ठीक है।जाओ और खूब enjoy करना।

अंश {ऋद्धि से} :थैंक्स मम्मा!

इशिता {ऋद्धि से} :थैंक यू मामी!

[ऐसे बोलते हुए दोनों घर से पार्टी के लिए चले जाते हैं।]

मान्यता {ऋद्धि से} :ऋद्धि!ये दोनों कहाँ गए ?

ऋद्धि {मान्यता से} :अरे,दी!आज उनकी प्रिंसिपल ने अपनी बेटी और दामाद की marriage anniversary पर कॉलेज के सभी बच्चों को पार्टी दी है।बस दोनों वहीं गए हैं।

मान्यता {ऋद्धि से} :पर इतनी रात को ?

ऋद्धि {मान्यत से} :दीदी!आप कौन से ज़माने में जी रही हैं ? Parties तो रात को ही होती हैं।और आप tension मत लीजिये।अगर आप एक बार के लिए अंश की tension लें तो ठीक भी है लेकिन इशिता की tension लेने की बारे में तो सोचिएगा भी मत।क्योंकि अगर कोई उससे पंगा लेगा ना तो वो उसकी चटनी बना देगी।वो खुद की भी रक्षा कर सकती है और अंश की भी।So don't worry.Everything will be all right।

मान्यता {ऋद्धि से} :मैं भी भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि सब ठीक ही हो।

[तभी अचानक से खिड़की से ज़ोर की हवा आती है और दीवार पर टँगा हुआ इशिता और मान्यता का फोटो नीचे गिर जाता है।जिससे उसका काँच टूट जाता है।]

मान्यता {अपने आप से} :हे भगवान!इतना बड़ा अपशकुन।काँच का टूटना तो अशुभ होता है।ज़रूर कुछ बुरा होने वाला है।

ऋद्धि {मान्यता से} :दीदी!ये सब अंधविश्वास है।ऐसा कुछ नहीं होता।ऐसे तो किचन में मुझसे बहुत सारे काँच के ग्लास टूटे हैं।पर फिर भी कुछ बुरा नहीं हुआ।आप tention मत लो।सब ठीक होगा।

मान्यता(सोचते हुए):पता नहीं आज मेरा मन इतना क्यों घबरा रहा है ? हे भगवान मेरे बच्चों और मेरे परिवार की रक्षा करना।

[इशिता और अंश पार्टी में पहुँच जाते हैं।]

दामिनी का घर

अंश {इशिता से} :दी!इतना बड़ा घर।

इशिता {अंश से} :सिर्फ बड़ा ही नहीं,कितना सुंदर भी तो है।

अंश {इशिता से} :हाँ।

[तभी दामिनी देवी वहाँ आ जाती है।]

दामिनी {इशिता और अंश से} :अरे तुम दोनों आ गए।आओ पहले dinner कर लो।

इशिता {दामिनी से} :हाँ।

अंश {इशिता से} :दी!ये मैम इतनी rich हैं तो फिर ये हमारे कॉलेज में प्रिंसिपल क्यों बनीं ?

इशिता {अंश से} :पता नहीं।पर अच्छा ही हुआ।इस वजह से हमें पार्टी में आने का मौका मिल गया ना।

अंश {इशिता से} :हाँ।

[इशिता अंश के साथ खाना खाते हुए इधर उधर घूम रही होती है।तभी उसके दिमाग में एक सवाल आता है।]

इशिता {दामिनी से} :मैम!मुझे आपसे एक बात पूछनी है।

दामिनी {इशिता से} :हाँ,पूछो।

इशिता {दामिनी से} :आपके बेटी और दामाद हैं कहाँ ? Actually हम उनको wish करना चाहते थे।

दामिनी {इशिता से} (उदास होकर):वो मेरे बेटी और दामाद अब इस दुनिया में नहीं हैं।उन्हीं की याद में मैंने उनकी 25th marriage anniversary पर ये पार्टी organise की है।

इशिता {दामिनी से} :Oh!We are extremely sorry।

दामिनी {इशिता से} :No,no,it's ok।वैसे अगर तुम्हें wish करना ही है तो तुम उन दोनों के फोटो को देखकर कर दो।

इशिता {दामिनी से} :हाँ,ये idea अच्छा है।कहाँ है उनका फ़ोटो ?

दामिनी {इशिता से} :ये रहा।

[इशिता उस फ़ोटो को देखती है।उसमें दामिनी देवी की बेटी,दामाद और एक छोटी सी 1 साल की बच्ची होती है।जिसे देखकर इशिता चौंक जाती है।]

इशिता {अंश से} :अंश!ये फोटो...

अंश {इशिता से} :हाँ,यही फोटो तो है।क्यों क्या हुआ ?

इशिता {अंश से} :अरे इस फोटो को ध्यान से देख।

अंश {इशिता से} :देख लिया।अब क्या करूँ ?

इशिता {अंश से} :अरे बुद्धू!तू नहीं समझेगा।

इशिता {दामिनी से} :मैम!ये इस फोटो में ये बच्ची कौन है ?

दामिनी {इशिता से} :ये मेरे बेटी और दामाद की बेटी यानि मेरी नातिन है।

इशिता {दामिनी से} :क्या ? लेकिन ये तो मेरी फ़ोटो है।

दामिनी {इशिता से} :क्या ? ये तुम्हारी फ़ोटो है ?

इशिता {दामिनी से} :हाँ,ये मेरी फ़ोटो है।

दामिनी {इशिता से} :तुम मज़ाक तो नहीं कर रही हो ना ?

इशिता {दामिनी से} :अरे मैं मज़ाक क्यों करूँगी ? ये कोई मज़ाक वाली बात थोड़े ही ना है।

मान्यता का घर

[इशिता उदासी और गम भारी नज़रों से घर के अंदर आती है।]

मान्यता {इशिता से} :अरे बेटा!तुम आ गई!मैं जानती हूँ तुम ज़रूर पार्टी से खाली पेट आई होगी।तुम हमेशा ऐसा ही करती हो।अरे जब पार्टी में कुछ खाना नहीं होता तो जाती है क्यों हो ?

इशिता {मान्यता से} :आप कौन हो ?

मान्यता {इशिता से} :अच्छा!तो आज अपनी माँ से मज़ाक करने के full मूड में हो,है ना ?

इशिता {मान्यता से} :मैंने जो पूछा है उसका जवाब दीजिये कौन हैं आप ? क्या रिश्ता है आपका मुझसे ?

मान्यता {इशिता से} :बेटा!तुम ये कैसी बातें कर रही हो आज ?

मान्यता {अंश से} :अंश!ये इशिता को क्या हो गया है ? ये ऐसी बहकी बहकी बातें क्यों कर रही है ?

इशिता {मान्यता से} (चिल्लाकर):मैं जानना चाहती हूँ कौन हैं आप ?

[इशिता के चिल्लाने की आवाज़ को सुनकर मानव,ऋद्धि और अमरपाल बाहर आ जाते हैं।]

मानव {इशिता से} :क्या हुआ इशिता ? तुम चिल्ला क्यों रही हो,बेटा ?

इशिता {मानव से} :नहीं मामू,आज आप कुछ नहीं कहेंगे।मुझे इनसे बात करनी है।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):मुझे आपसे सिर्फ तीन सवाल पूछने हैं और उन तीनों का आपको सही सही जवाब देना है।

अमरपाल {इशिता से} :ए लड़की!ये तमाशा क्यों कर रही हो यहाँ पर ? इतनी रात को सोने भी नहीं देती।

इशिता {अमरपाल से} (गुस्से में रोते हुए):नानू!मैंने कहा ना आज सिर्फ मेरे और इनके बीच बातें होंगी।

इशिता {मान्यता से} :तो मेरा पहला सवाल है आपसे कि आपका मुझसे क्या रिश्ता है ? बताइए क्या रिश्ता है ?

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):तुम मेरी बेटी हो।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):गलत!दूसरा सवाल कि अमृता और इशान कौन हैं ?

[इशिता के इस सवाल से सभी लोग चौंक जाते हैं।]

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):और तीसरा सवाल कि आपने उन दोनों का खून क्यों किया ?

[इस सवाल को सुनकर तो लोग और भी ज़्यादा चौंक जाते हैं।]

मान्यता {इशिता से} :बे...बेटा...तुम्हें ये सब किसने बताया ?

[तभी दामिनी देवी घर के अंदर आती है।]

दामिनी {मान्यता से} :मैंने!मुझे तो शायद तुम में से कोई भी नहीं जानता होगा,है ना ? मैं अमृता की माँ हूँ।

मानव {दामिनी से} :लेकिन आपने....

इशिता {मानव से} (गुस्से में रोते हुए):1 मिनट!मामू अभी मेरे सवालों के जवाब मुझे नहीं मिले हैं।मुझे इनसे वो चाहिए।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):बताइए,क्यों किया ऐसा आपने ? क्यों मारा मेरे मम्मी पापा को ? क्यों मेरे सामने इतनी सालों तक ये नाटक करती रहीं कि आप दुनिया की सबसे अच्छी औरत और मेरी माँ हैं ? क्यों ? मुझे नानी ने सब कुछ बता दिया।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):आज से 22 साल पहले जब मैं 1 साल की थी।मेरी मम्मी और पापा की ज़िन्दगी भी बहुत अच्छी चल रही थी।तभी आपको भी मेरे पापा से प्यार हो गया और आपने मुझे किडनैप करके मेरे पापा से ज़बरदस्ती शादी कर ली।फिर भी जब मेरे पापा मेरी मम्मी को ही प्यार करते रहे तो आपने गुस्से में आकर मेरी मम्मी को मार दिया।जब पापा को ये पता चला तो वो मुझे लेकर वहाँ से जाने लगे तो आपने उन्हें भी गोली मार दी।इस बात का तो ये फोटोज़ ही सबूत हैं।

[इशिता मान्यता और सभी घरवालों को एक फोटो दिखाती है जिसमें मान्यता के हाथ में gun है और वो उसे इशान पर चला रही है।दूसरे फ़ोटो में मान्यता के हाथ में खून से सना हुआ चाकू है और उसके सामने अमृता की लाश।]

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):लेकिन मुझे ये बात समझ नहीं आई कि आपने मुझे ज़िंदा क्यों छोड़ा ? और सिर्फ ज़िंदा ही नहीं छोड़ा बल्कि अपनी बेटी भी बना लिया,क्यों ? बताइए क्यों ?

दामिनी {इशिता से} :अरे ये क्या बोलेगी ? मैं बताती हूँ।तुम्हारी माँ ने तुम्हारे नाम पर सारी प्रॉपर्टी की थी क्योंकि उसे पहले से डर था कि ये कुछ भी कर सकती है।लेकिन उस प्रॉपर्टी के पेपर्स में लिखा था कि जब तुम 25 साल की हो जाओगी तो सब तुम्हारे नाम हो जाएगा।इसीलिए इसने तुम्हें अब तक अपने पास रखा।अब जब तुम 25 की हो जाओगी तो तुमसे सब कुछ अपने नाम कराने के बाद तुम्हें दर दर भटकने के लिए छोड़ देगी।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):तो ये है आपका प्यार,आपकी ममता ? मुझे घिन आती है कि अब तक मैं आपको मम्मा बोलती रही।अरे आप तो खूनी है।आपकी वजह से ही मैं अनाथ हो गई।अब मैं क्या करूँ ?

[मान्यता इशिता को चुप कराने के लिए उसके कंधे पर हाथ रखती है तो वो उसे झटककर नीचे कर देती है।]

इशिता {मान्यता से} (गुस्से में रोते हुए):दूर रहिये मुझसे।मेरे पास आने की कोशिश मत करिएगा।

मानव {मान्यता से} :दीदी!ये सब क्या हो रहा है ? ये सब इशिता को....

[मान्यता मानव को चुप होने के लिए कह देती है।]

इशिता {दामिनी से} (गुस्से में रोते हुए)::नानी!अब मैं एक खूनी के घर में नहीं रुक सकती।इस घर में रहूँगी तो मुझे मेरे मम्मी-पापा की तड़पती हुई चीखें ही सुनाई देंगी।इसलिए मैं यहाँ से जाना चाहती हूँ।

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):नहीं,बेटा!मुझे छोड़कर मत जाओ।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से से} :मुझे बेटा कहने का हक़ आप खो चुकी हैं।

दामिनी {इशिता से} :चलो बेटा,तुम अपनी नानी के साथ नानी के घर चलो।

[मान्यता इशिता को रोकती रह जाती है लेकिन फिर भी इशिता वहाँ से चली जाती है।]

अंश {मान्यता से} :बुआ!आपको पता है ? मैं भगवान से हमेशा pray करता था कि मुझे आप जैसी माँ मिलें।पर आज से मैं pray करूँगा कि मुझे कितनी भी खतरनाक माँ देना पर आप जैसी तो कभी नहीं देना।

[अंश की बात सुनकर मान्यता को और ज़्यादा रोना आता है।अंश अपने कमरे में चला जाता है।]

मानव {मान्यता से} :दीदी!ये सब क्या था ? वो औरत हमारी इशिता को लेकर और आप पर झूंठे इल्ज़ाम लगाकर चली गई और आप ने कुछ नहीं किया।क्यों,दीदी ?

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):मैं नहीं चाहती कि इशिता के सामने 22 साल पुराना वो राज़ खुले जिससे वो इससे भी ज़्यादा टूट जाये।अभी तो मेरे बारे में ये बातें सुनकर उसे इतनी तकलीफ हुई है तो जब सच्चाई सामने आएगी तो उसे कितनी तकलीफ होगी।वो मुझसे नफरत करे मुझे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन जब उसके सामने सच्चाई आएगी तो उसका पिता शब्द से भरोसा उठ जाएगा।और मैं ये नहीं चाहती।

मानव {मान्यता से} :लेकिन दीदी इस सब से वो आपसे दूर चली गई।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):अपनी नानी के साथ ही तो गई है।और अब सब ठीक हो जाएगा।

मानव {मान्यता से} :लेकिन दीदी....

[मान्यता अपने कमरे में चली जाती है।]

अमरपाल {अपने आप से} (धीरे से):अच्छा है!मेरी बेटी की ज़िंदगी को बर्बाद करने वाली इस घर से चली ही गई।

[फिर धीरे धीरे बाकी सब भी अपने अपने कमरों में चले गए।]

[इशिता को लेकर दामिनी अपने घर आती है।]

दामिनी {इशिता से} :आओ बेटा।ये है तुम्हारी नानी का घर।अरे मैं भी कितनी पागल हूँ तुम तो थोड़ी देर पहले यहाँ आई ही थी।

[दामिनी इशिता को लेकर घर के अंदर जाती है।]

इशिता {दामिनी से} (उदास होकर):नानी!मेरा कमरा कहाँ है ?

दामिनी {इशिता से} :बेटा!वो ऊपर है।

इशिता {दामिनी से} (उदास होकर):मैं अपने कमरे में जा रही हूँ।आज बहुत थक चुकी हूँ मैं।

दामिनी {इशिता से} :हाँ,बेटा!तुम जाकर आराम करो।

[इशिता अपना सामान लेकर कमरे में चली जाती है।कमरे में जाते ही इशिता के हाथों से उसका बैग छूट जाता है और वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है।]

इशिता {अपने आप से} (रोते हुए):भगवान!मैं मानती हूँ कि मैं आपकी पूजा नहीं करती पर इसका मतलब ये तो नहीं है ना कि आप मुझे इतनी बड़ी सज़ा दो।हमारी ज़िंदगी में सब ठीक चल रहा था तो फिर क्यों इस तूफान को मेरी ज़िंदगी में भेजा आपने ? मैंने हमेशा ये सोचा कि मेरी मम्मा दुनिया की बेस्ट मम्मा हैं।पर वो तो दुनिया की worst मम्मा निकलीं।उन्होंने मेरी मम्मी पापा को मारकर मुझे ही अनाथ कर दिया और मुझे अपने पास रखा भी तो सिर्फ इसलिए ताकि उन्हें मेरे 25 साल के होने पर मेरी सारी प्रॉपर्टी मिल जाये।ये सब क्या हो गया ? मम्मा!क्यों किया आपने ऐसा ? क्यों ?

शुक्ला निवास

मान्यता {अपने आप से} (रोते हुए):मुझे माफ़ कर देना इशिता।मैं तुम्हें सच नहीं बता पाई।पर मैं भी क्या करती अगर मैं तुम्हें सच बताती तो तुम्हें इससे भी ज़्यादा तकलीफ होती।तुम अपनी सौतेली माँ का ये रूप देखकर शायद अपने आप को संभाल लो लेकिन अपने सगे पिता का वो रूप देखकर तुम खुद को कभी नहीं सम्भाल पाओगी।

[तभी मानव मान्यता के कमरे में आ जाता है तो मान्यता उसे देखकर अपने आँसू पोंछ लेती है।]

मानव {मान्यता से} :दीदी!अब ऑंसू बहाने से क्या फायदा है ? अगर आप इशिता को सच्चाई बता देतीं तो आज सब ठीक होता।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):नहीं,फिर तो कुछ भी ठीक नहीं होता।आज मुझे इशिता से दूर होकर जितनी तकलीफ हो रही है ना उससे कहीं ज़्यादा तकलीफ मुझे उसके पास रहने से होती जब उसे इशान के बारे में पता चलता।क्योंकि तब मुझसे उसका दर्द देखा नहीं जाता।इसलिए यही बेहतर है कि वो मुझसे दूर रहे और वैसे भी वो अपनी नानी के घर गई है।वहाँ उसे कोई भी परेशानी नहीं होगी क्योंकि वहाँ जो वो चाहेगी उसे वो ही मिलेगा।आखिर उसकी नानी इतनी अमीर जो हैं।

मानव {मान्यता से} :दीदी!वो चाहे कहीं भी रह ले पर आपसे ज़्यादा प्यार उसे कोई नहीं दे सकेगा।इसलिए मैं अभी वहाँ जा रहा हूँ और इशिता को सब कुछ बताकर यहाँ लेकर आ रहा हूँ।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):नहीं,मानव!तू कहीं नहीं जाएगा।

मानव {मान्यता से} :नहीं,मैं अपनी दीदी को दुःख में नहीं देख सकता।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):और अपनी दीदी की बेटी को देख सकता है ?

मानव {मान्यता से} :लेकिन दीदी....

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):तुझे मेरी कसम।तुझे मेरी कसम है मानव तू किसी को भी 22 साल पहले के राज़ के बारे में कुछ नहीं बताएगा।

[मानव चुपचाप वहाँ से अपने कमरे में चला जाता है।]

[मान्यता अपने कमरे में और इशिता अपने कमरे में रोते हैं।उनके दुःख में बैकग्राउंड में गाना शुरू होता है।]

गाना(जो भेजी थी दुआ)

किसे पूछूँ है ऐसा क्यूँ

बेजुबां सा ये जहाँ है

खुशी के पल कहाँ ढूँढूँ

बेनिशाँ सा वक्त ही यहाँ है

जाने कितने लबों पे गिले हैं

ज़िन्दगी से कई फाँसले हैं

पसीजते हैं सपने क्यूँ इन आँखों में

लकीरें छूटी क्यूँ इन हाथों से बेवजह

जो भेजी थी दुआ

वो जाके आसमाँ

से यूँ टकरा गई

के आ गई है लौट के सदा

जो भेजी थी दुआ

वो जाके आसमाँ

से यूँ टकरा गई

के आ गई है लौट के सदा

अंश का कमरा

अंश {ऋद्धि से} :मॉम!I can't believe this।मैं हमेशा बुआ को इतनी अच्छी इंसान समझता रहा और वो...वो तो इतनी बुरी और खतरनाक निकलीं।

ऋद्धि {अंश से} :नहीं,बेटा!तुम गलत समझ रहे हो।अभी तुम्हें सारी सच्चाई के बारे में पता नहीं है।

अंश {ऋद्धि से} :नहीं,मुझे सब पता है कि किस तरह बुआ ने किसी और औरत की ज़िंदगी बर्बाद की,किस तरह उन्होंने एक परिवार के लोगों की हँसती खेलती ज़िन्दगी बर्बाद कर दी,किस तरह एक छोटी सी बच्ची को अनाथ कर दिया।मैं सब जानता हूँ।

[तभी मानव वहाँ आ जाता है और उसे अंश की बातें सुनकर बहुत गुस्सा आता है।]

मानव {अंश से} (गुस्से से):अंश!

[वो अंश को थप्पड़ मारने वाला होता है लेकिन ऋद्धि उसे रोक लेती है।]

मानव {अंश से} (गुस्से से):अरे जिस औरत ने तुम्हें हमेशा माँ की तरह प्यार किया,न कि बुआ की तरह।आज वही औरत तुम्हें गुनहगार नज़र आ रही है।जिससे बातें किये बिना तुम्हारा दिन नहीं गुज़रता था आह वही औरत तुम्हारे लिए खूनी हो गई।आज तुम्हें अपनी बुआ पर यकीन नहीं है बल्कि उस पराई औरत दामिनी देवी पर यकीन है।अरे 22 साल पहले के उस राज़ के बारे में तुम्हें पता भी है कुछ ? कितनी तकलीफ सहकर वो उस राज़ को अपने दिल में दफन करती आ रहीं हैं ? पर तुम क्या समझोगे ? तुम्हें भी अपनी बहन की तरह उस दामिनी देवी की बातों पर यकीन है।तुम्हारी इन बातों को सुनकर मेरा मन तो कर रहा है कि तुम्हें बताऊँ कि मेरी दीदी किस तकलीफ से गुज़रीं हैं ? पर दीदी ने मुझे कसम दी है कि मैं इस राज़ के बारे में किसी को कुछ नहीं बताऊँ।

[मानव गुस्से में वहाँ से अपने कमरे में चला जाता है।]

ऋद्धि {अंश से} :तुमने बहुत गलत किया,बेटा।तुम्हें दीदी के बारे में ये सब नहीं बोलना चाहिए था।

अंश {ऋद्धि से} :मॉम!

अंश {अपने आप से} :इसका मतलब दीदी की नानीजी ने जो भी कहा वो झूँठ था तो 22 साल पुराना राज़ क्या है ? आखिर क्या हुआ था 22 साल पहले जिसने बुआ की ज़िंदगी को तहस नहस कर दिया।मुझे उस राज़ के बारे में पता लगाना होगा क्योंकि वो राज़ ही सारी problems को सॉल्व कर सकता है।

[अंश ऋद्धि के कमरे में जाता है।]

अंश {ऋद्धि से} :मम्मा!

मानव {अंश से} (गुस्से से):अब क्या है ? अब फिर से दीदी की बुराई करने आये हो ?

अंश {मानव से} :नहीं,डैड!मैं बस ये जानने आया हूँ कि आखिर 22 साल पहले हुआ क्या था ? क्यों बुआ ने इस राज़ को दी के सामने नहीं खोला ? प्लीज डैड मुझे जानना है।प्लीज।

मानव {अंश से} :मैं तुम्हें ये सच नहीं बता सकता क्योंकि दीदी ने मुझे कसम दी है।

अंश {मानव से} :डैड!प्लीज।

मानव {अंश से} :सॉरी,बेटा!लेकिन मैं दीदी की दी हुई कसम नहीं तोड़ सकता।

अंश {अपने आप से} (परेशान होकर):तो अब मैं क्या करूँ ?

ऋद्धि {अंश से} :बेटा!दीदी ने कसम मानव को दी है ना,मुझे तो नहीं।मैं तुम्हें बताती हूँ कि 22 साल पहले क्या हुआ था ?

22 साल पहले

[आज मान्यता का अपने ससुराल में पहला दिन है।]

मान्यता {अपने आप से} :आज मेरा मेरे ससुराल में पहला दिन है।वैसे तो मेरे ससुराल में हम चार ही लोग हैं-मैं,इशान,अमृता भाभी और छोटी सी प्यारी सी इशु।पर फिर भी आज मुझे कुछ अच्छा सा बनाना चाहिए।जिसको खाकर सब खुश हो जाएं।

[तभी किचन में इशान आता है।]

इशान {मान्यता से} :मनू!तुम क्या कर रही हो ?

मान्यता {इशान से} :इशान!वो मैं आप सबके लिए कुछ मीठा बना रही हूँ।आज मेरा पहला दिन है ना।

इशान {मान्यता से} :अच्छा,तो मुझे भी तुम्हारी help करने दो।

मान्यता {इशान से} :जी नहीं,हम अपना काम स्वयं कर सकते हैं।आपको कष्ट उठाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

इशान {मान्यता से} :अच्छा,तुम्हें तो मैं अभी देखता हूँ।

[इशान मान्यता के पीछे पीछे भागता है तभी मान्यता किसी चीज़ से टकराकर गिरने वाली होती है तो इशान उसे पकड़ लेता है।तभी वहाँ पर अमृता आ जाती है।]

अमृता {दोनों से} :सॉरी!

[ये कहकर अमृता वहां से चली जाती है।]

इशान {मान्यता से} :तुम खाना बनाकर लाओ।मैं डाइनिंग टेबल पर इंतज़ार करता हूँ।

मान्यता {इशान से} :हाँ,मैं बस अभी बनाकर लाई।

[इशान अमृता के पीछे पीछे जाता है और उसका हाथ पकड़कर उसे एक कमरे में ले जाता है।]

इशान {अमृता से} :क्या हुआ अमृता ? तुम वहाँ से गुस्सा होकर क्यों चली आई ?

अमृता {इशान से} (रोते हुए):मैं तुमसे गुस्सा नहीं हूँ,मैं तो अपनी किस्मत से नाराज़ हूँ।उन्होंने मेरी किस्मत में blood cancer जैसी बीमारी देकर मुझसे मेरी सारी खुशियाँ छीन लीं।यहॉं तक कि मुझे तुम्हें भी किसी और औरत के साथ बाँटना पड़ा।

इशान {अमृता से} :अमृता!तुम रोओ मत।तुम भी जानती हो कि ये शादी मैंने सिर्फ इसलिए की ताकि तुम्हारे बाद हमारी इशू को एक माँ की कमी कभी महसूस ना हो।इसीलिए मुझे मान्यता के सामने तुम्हें अपनी भाभी कहना पड़ा।मैं उसे ये बता भी नहीं सकता था कि तुम मेरी पत्नी हो नहीं तो वो मुझसे शादी नहीं करती।

अमृता {इशान से} (रोते हुए):तुम्हें मुझे explanation देने की कोई ज़रूरत नहीं है।मैं समझ सकती हूँ कि ये फैसला तुमने कितने दुःख के साथ लिया होगा।

[इशान अमृता को गले लगा लेता है।फिर उसे अपने कमरे में जाने के लिए कह देता है।अमृता अपने कमरे में चली जाती है।]

इशान {अपने आप से} :सॉरी अमृता!मैंने तुम्हारी झूँठी रिपोर्ट बनवाई लेकिन मैं क्या करूँ ? मैं मान्यता से बहुत प्यार करता था और पैसे से भी।मुझे दोनों चाहिए थे इसलिए मैंने पहले तुमसे शादी की और फिर मान्यता से।अब मेरी आगे की ज़िंदगी खुशी खुशी बीतेगी।

[तभी इशान के कंधे पर एक हाथ आता है जो मान्यता का होता है।]

इशान(सोचते हुए):कहीं मान्यता ने मेरी बातें सुन तो नहीं लीं।

इशान {मान्यता से} (घबराकर):मनू!तुम....

मान्यता {इशान से} (हँसकर):अरे आप ऐसे डर क्यों गए ? अच्छा मैंने अचानक से हाथ रखा इसलिए ?

इशान {मान्यता से} :हाँ।

इशान(सोचते हुए):अच्छा हुआ जो मनू ने कुछ नहीं सुना।

मान्यता {इशान से} :अब चलिए मेरे हाथ की खीर खाने के लिए।

इशान {मान्यता से} :हाँ चलो।

[इशान मान्यता के साथ डाइनिंग टेबल पर चला जाता है।]

मान्यता {इशान से} :अरे मैं भाभी को बुलाना तो भूल ही गई।मैं अभी उनको बुलाकर आती हूँ।

अमृता {मान्यता से} :मुझे बुलाने की कोई ज़रूरत नहीं है।क्योंकि मैं already आ चुकी हूँ।

मान्यता {अमृता से} :और मेरी प्यारी सी इशू कहाँ है ?

अमृता {मान्यता से} :तुमने शायद देखा नहीं लेकिन तुम्हारे हाथ की खीर खाने के लिए वो पहले से ही डाइनिंग टेबल पर बैठी हुई है।

मान्यता {अमृता से} :अरे ये यहाँ कैसे आ गई ?

इशान {मान्यता से} :मैं लेकर आया था।

मान्यता:अच्छा।चलो अब खीर खाते हैं।

[सब बैठकर खीर खाते हैं।]

मान्यता:वैसे खीर कैसी बनी है ?

इशान {मान्यता से} :It's awesome!

मान्यता {इशान से} :थैंक यू।

अमृता:सच में मान्यता तुम्हारे हाथों में तो जादू है।

मान्यता {अमृता से} :थैंक यू सो मच!भाभी।

मान्यता {इशिता से} :और मेरी छोटी सी परी!आपको कैसी लगी खीर ?

[मान्यता की बात सुनकर इशिता हँस जाती है।]

मान्यता:अरे वाह!अगर इशू को पसंद आई है।इसका मतलब तो बहुत अच्छी बनी है।

[सब हँसते हैं।]

मान्यता {अमृता से} :वैसे भाभी इशु के नाम से तो ऐसा लगता है जैसे आपका और इशान का नाम जोड़कर बनाया हो,है ना ? इशान अमृता=इशिता।

[अमृता मान्यता की बात सुनकर कुछ सोचने लगती है।]

अमृता सोचती है


इशान {अमृता से} :हमारी अगर बेटी हुई ना तो हम उसका नाम इशिता रखेंगे।

अमृता {इशान से} :क्यों ?

इशान {अमृता से} :अरे इशान अमृता=इशिता।है ना मस्त logic ?

अमृता {ईशान से} :हाँ एकदम मस्त।

मान्यता {अमृता से} :अरे भाभी क्या हुआ ? किस सोच में डूब गेन आप ?

अमृता {मान्यता से} :कुछ नहीं।

मान्यता {अमृता से} :अच्छा,ठीक है।अरे खीर पूरी खत्म कीजिये।आधी अधूरी नहीं चलेगी।चलिए,खत्म कीजिये।

[खीर खाकर अमृता इशान के कमरे की तरफ जाती है।]

मान्यता {अमृता से} :अरे भाभी आपका कमरा तो उधर है ना।तो आप इधर क्यों जा रही हैं ?

[अमृता और इशान एक दूसरे की तरफ देखते हैं।]

अमृता {मान्यता से} :सॉरी!मैं भूल गई।

मान्यता {अमृता से} :कोई बात नहीं।

अगले दिन

इशान {मान्यता से} :मनू!मैं ऑफिस जा रहा हूँ।

मान्यता {इशान से} :इशान!अपना टिफ़िन तो लेकर जाईये।

इशान {मान्यता से} :अच्छा,लाओ।

मान्यता {इशान से} :ये लीजिये।

[तभी वहाँ पर अमृता आ जाती है।वो इशान को उदासी भरी नजरों से देखती है।ईशान भी उसे देखता है।]

मान्यता {अमृता और ईशान से} :अरे क्या हुआ ? आप दोनों ऐसे एक दूसरे को क्यों देख रहे हो ?

इशान {मान्यता से} :कुछ नहीं।मैं चलता हूँ।

मान्यता {इशान से} :हाँ,जल्दी आइयेगा।

[अमृता आंखों में आँसू भरकर अपने कमरे में चली जाती है।】

मान्यता {अमृता से} :भा....

मान्यता {अपने आप से} :अरे भाभी कहाँ गईं ? चलो छोड़ो।मुझे तो अभी बहुत काम करना है।

अमृता का कमरा

अमृता {अपने आप से} :हे भगवान!आपने मुझे ये बीमारी क्यों दी ? इसकी वजह से मेरी पूरी ज़िंदगी तहस नहस हो गई है।मुझे अपने ही पति को किसी और के साथ बाँटना पड़ रहा है।अब मैं क्या करूँ ?

इशान का कमरा

मान्यता {अपने आप से} :Oh god!इसे कमरा कहते हैं।पर मुझे तो ये कहीं से कमरा नहीं लगता।बल्कि storeroom लगता है।इतना गन्दा...।पर कोई बात नहीं अब मैं आ गई हूँ ना इस कमरे को बिल्कुल भी गन्दा नहीं रहने दूँगी।इस कमरे को क्या मैं तो इस घर की किसी भी चीज़ को गन्दा नहीं रहने दूँगी।

[मान्यता कमरे को साफ करती है तो cupboard के ऊपर से एक फ़ाइल गिरती है।]

मान्यता {अपने आप से} :ये फ़ाइल किस चीज़ की है ?

[मान्यता उस फ़ाइल को पढ़ती है।]

मान्यता {अपने आप से} (घबराकर):हे भगवान!ये तो भाभी की मेडिकल रिपोर्ट हैं।उन्हें ब्लड...ब्लड कैंसर है ? Oh god!ऐसा नहीं हो सकता।उन्हें कुछ हो गया तो बेचारी इशू का क्या होगा ? मुझे उनके पास जाना चाहिए।

[मान्यता अमृता के पास जाने वाली होती है लेकिन अचानक उसे कुछ याद आता है और वो रुक जाती है।]

मान्यता {अपने आप से} :1 मिनट!एक बार जब पापा को तेज़ बुखार आया था तब एक डॉक्टर ने उनकी झूंठी रिपोर्ट बनाई थी।कहीं भाभी के साथ भी तो ऐसा नहीं हुआ ? मुझे इस रिपोर्ट को किसी और डॉक्टर से चेक करवाना चाहिए।

[मान्यता उस रिपोर्ट को लेकर एक डॉक्टर के पास चली जाती है और उसे चेक करवाती है तो डॉक्टर उसे बताता है कि ये रिपोर्ट्स झूँठी हैं।]

मान्यता {अपने आप से} :मुझे लग ही रह था कि ये रिपोर्ट्स झूँठी होंगी।मतलब जिस डॉक्टर ने ये रिपोर्ट बनाई है वो एक fraud है।मुझे इशान को बताना होगा लेकिन उससे पहले ये खुशखबरी मुझे भाभी को देनी चाहिए।

[मान्यता जल्दी से घर आती है और अमृता के कमरे में जाती है।]

मान्यता {अमृता से} :भाभी!मुझे आपसे एक बात पूछनी है।

अमृता {मान्यता से} :क्या ?

मान्यता {अमृता से} :आपको ब्लड कैंसर है ?

अमृता {मान्यता से} (घबराकर):तु....तु....तुम्हें कैसे पता चला ?

मान्यता {अमृता से} :मुझे हमारे कमरे से आपकी मेडिकल रिपोर्ट्स मिलीं थीं।लेकिन आपकी वो रिपोर्ट्स असली नहीं हैं।

अमृता {मान्यता से} :मतलब ?

मान्यता {अमृता से} :मतलब ये कि वो रिपोर्ट्स नकली थीं।मैंने एक दूसरे डॉक्टर से चेक करवाया था तो उन्होंने बताया कि आपको ब्लड कैंसर है ही नहीं।

अमृता {मान्यता से} :तुम सच कह रही हो ?

मान्यता {अमृता से} :हाँ,हमारी इशू की कसम।

[अमृता मान्यता को खुशी से गले लगा लेती है।]

मान्यता {अमृता से} :भाभी!लेकिन मैं आपसे बहुत गुस्सा हूँ।आपने मुझे ये बात बताना ज़रूरी भी नहीं समझा।

अमृता {मान्यता से} :मान्यता!टाइम ही नहीं मिला और वैसे भी अभी तो तुम्हें एक भी दिन नहीं हुआ इस घर में।

मान्यता {अमृता से} :अरे हाँ मैं तो भूल ही गई।चलिए अब इस खुशी की बात पर मैं कुछ अच्छा सा बनाकर लाती हूँ।

[मान्यता किचन में जाकर कुछ बनाने लगती है।]

[तभी इशान घर आकर सीधर अमृता के कमरे में जाता है।]

इशान {अमृता से} :अमृता!कैसी हो तुम ?

अमृता {इशान से} :मुझे तुम्हें कुछ बताना है।

इशान {अमृता से} :मुझे भी तुम्हें कुछ बताना है।

अमृता {इशान से} :लेकिन मेरी बात ज़्यादा ज़रूरी है।

इशान {अमृता से} :अच्छा,ठीक है।बताओ।

अमृता {इशान से} :आपको पता है आप जिस डॉक्टर से मेरी मेडिकल रिपोर्ट्स बनवाकर लाये थे वो झूँठी थीं।

इशान {अमृता से} :कि...कि....क्या ?

अमृता {इशान से} :हाँ,मुझे ब्लड कैंसर नहीं है।

इशान {अमृता से} :पर तुमसे ये किसने कहा ?

अमृता {इशान से} :मान्यता ने।वो मेरी रिपोर्ट्स को किसी दूसरे डॉक्टर से चेक करवाकर लाई है।उन्होंने बताया कि मैं बिल्कुल ठीक हूँ।इशान!अब हमारी life में सब ठीक हो जाएगा और मैंने तो मान्यता की आगे की ज़िंदगी के बारे में भी सोच लिया है।

इशान {अमृता से} :क्या ?

अमृता {इशान से} :मैं मान्यता की शादी एक बहुत अच्छे इंसान से करवाऊँगी।

इशान {अमृता से} :शादी ?

अमृता {इशान से} :हाँ,शादी।क्योंकि ये शादी तो illegal है ना।जिस इंसान की पहली पत्नी ज़िंदा हो उसकी दूसरी शादी तो illegal ही होती है ना।

इशान {अमृता से} :लेकिन अगर पहली पत्नी मर गई हो तो ?

अमृता {इशान से} :क्या ?

[इशान वहाँ से एक चाकू उठाता है और उसे अमृता के पेट के अंदर घुसा देता है।]

अमृता {इशान से} :आह!

इशान {अमृता से} :तुम चाहती हो कि मैं अपनी मान्यता की शादी किसी और से करा दूँ।अरे वो तो मेरा पहला और आखिरी प्यार है।उसे मैं कैसे छोड़ दूँ ? तुमसे तो मैंने शादी सिर्फ पैसों के लिए की थी जिससे मेरी और मान्यता की ज़िंदगी आराम से गुजरे।पर तुम ही मेरे रास्ते का काँटा बन गई।इसलिए मुझे तुम्हें अपने रास्ते से हटाना पड़ा।

किचन में

मान्यता {अपने आप से} :अब भाभी को अपने हाथ का टेस्टी टेस्टी खाना खिलाऊंगी और हम दोनों बैठकर अच्छे से बातें करेंगे।

[मान्यता खाना लेकर अमृता के कमरे में जाती है तो वो देखती है कि अमृता घायल और खून से लथपथ होकर नीचे गिरी है।]

मान्यता {अमृता से} (चिल्लाकर):भाभी!

[मान्यता भागकर जाती है और अमृता का सिर अपनी गोद में रख लेती है।]

मान्यता {अमृता से} (रोते हुए):भाभी!ये क्या हो गया आपको ?

अमृता {मान्यता से} (कराहते हुए):मान्यता!तुम मेरी चिंता मत करो।पर प्लीज मेरी बेटी को बचा लो।वो राक्षस उसे मार डालेगा।

मान्यता {अमृता से} (रोते हुए):भाभी आप किसके बारे में बोल रही हैं ? किसने आपको मारा और कौन इशू को मारना चाह रहा है ?

अमृता {मान्यता से} (कराहते हुए):इशान।

मान्यता {अमृता से} (रोते हुए):इशान ? पर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं ?

अमृता {मान्यता से} (कराहते हुए):क्योंकि वो तुम्हारे साथ अपनी ज़िंदगी बिताना चाहता था मेरे साथ नहीं।

मान्यता {अमृता से} :मतलब ?

अमृता {मान्यता से} :मतलब ये कि मैं उसकी पहली पत्नी हूँ।बस मैं इतना ही बोल सकती हूँ।मुझसे और कुछ नहीं बोला जाएगा।वो मेरी बेटी को मार देगा।वो उसे छत पर ले गया है।प्लीज उसे बचा लो।

मान्यता {अमृता से} :लेकिन भाभी आप ?

अमृता {मान्यता से} :मान्यता!तुम मेरी चिंता मत करो।तुम....

[इतना कहते हुए अमृता इस दुनिया को छोड़कर हमेशा के लिए चली जाती है।]

मान्यता(चिल्लाकर):भाभी!

मान्यता {अपने आप से} :मुझे इशू को बचाना होगा।

[मान्यता अमृता की लाश को उसके कमरे में ही छोड़कर छत की तरफ भागती है।]

छत पर

[मान्यता छत पर पहुँचकर देखती है कि इशान इशिता को छत से नीचे गिराने वाले होता है।]

मान्यता {इशान से} (चिल्लाकर):इशान!

[इशान मुड़कर देखता है।]

मान्यता {इशान से} :इशान!ये आप क्या कर रहे हैं ? आपने अपनी पत्नी को मार दिया और अब अपनी खुद की बेटी को मार रहे हैं।आप इतने निर्दयी कैसे हो सकते हैं ?

इशान {मान्यता से} :तो तुम्हें उसने सब कुछ बता दिया ?

मान्यता {इशान से} :हाँ,मुझे सब पता चल गया है कि आप कितने घिन्होने इंसान हैं।

इशान {मान्यता से} :नहीं,मनू!मैं तो सिर्फ ये चाहता था कि हमारी ज़िंदगी अच्छे से बीते इसलिए मैंने अमृता से शादी की और उसकी सारी प्रॉपर्टी को अपने नाम कर लिया।अब हम हमेशा खुश रहेंगे।

मान्यता {इशान से} :आपको अब भी लगता है कि मैं इतना सब कुछ जानने के बाद आपके साथ रहूँगी ? कभी नहीं।और लाइये उस बच्ची को मुझे दीजिये।

इशान {मान्यता से} :नहीं,अगर ये बच्ची ज़िंदा रही तो तुम्हें हमेशा याद आता रहेगा कि मैंने अमृता से भी शादी की थी।तुम्हारे प्यार को किसी और के साथ भी बाँटा था।

मान्यता {इशान से} :इशान!पागलों जैसी बातें मत कीजिये।मुझे दीजिये इशू को।

इशान {मान्यता से} :नहीं,मैं इसे नहीं छोड़ूँगा।

[इशान अपनी जेब से gun निकालता है और इशिता पर gun चलाने वाला होता है तभी मान्यता gun को इशान के हाथ से गिरा देती है और उठा लेती है।]

मान्यता {इशान से} (gun इशान की तरफ करते हुए):इशान!इशू को मुझे दे दीजिए।नहीं तो मैं गोली चला दूँगी।

इशान {मान्यता से} :नहीं,मैं नहीं दूँगा।

मान्यता {इशान से} (gun इशान की तरफ करते हुए):इशान!मैं सच कह रही हूँ मैं गोली चला दूँगी।

इशान {मान्यता से} :तुम्हें जो करना है वो करो पर मैं इसे नहीं छोड़ूँगा।आज मैं इसे भगवान के पास पहुँचाकर ही रहूँगा।

[इशान इशिता को छत से नीचे गिराने वाला होता है तभी मान्यता उस पर गोली चला देती है और इशिता को उससे छीन लेती है।गोली लगने की वजह से इशान छत से नीचे गिर जाता है।]

मान्यता {अपने आप से} (रोते हुए):आपने ये क्यों किया इशान ? क्यों किया ? अब...अब मैं क्या करूँ ? इस बच्ची को मैं यहाँ अकेले नहीं छोड़ सकती।अब तो इस बेचारी की माँ भी इसके साथ नहीं है।मुझे यहाँ से इसे लेकर जाना होगा।

[मान्यता इशिता को लेकर वहाँ से चली जाती है।]

आज का दिन

ऋद्धि {अंश से} :अब तुम ही बताओ कि दीदी की इसमें क्या गलती थी ?

अंश {ऋद्धि से} :हे भगवान!बुआ ने इतना सब कुछ सहा।और आज भी वो दी को इस सब के बारे में इसलिए नहीं बता रही हैं ताकि उन्हें ये दुःख कभी ना हो कि उनके पिता कितने घटिया थे।

मानव {अंश से} :बेटा!दी ने जो सहा है वो तो दी ही जानती हैं।हम तो उसे कभी समझ ही नहीं सकते।

अंश {मानव से} :डैड!मैं दी को सारी सच्चाई बताने जा रहा हूँ।आखिर उन्हें भी तो पता चलना चाहिए कि बुआ ने क्या क्या सहा है।

मानव {अंश से} :नहीं,बेटा!तुम इशू को कुछ नहीं बताओगे।

अंश {मानव से} :पर क्यों डैड ?

मानव {अंश से} :क्योंकि बेटा इस बात को जानने के बाद इशू अपने पिता से नफरत करने लगेगी जो दीदी बिल्कुल नहीं चाहतीं।इसीलिये उन्होंने मुझे भी कसम दी थी।

अंश {मानव से} :डैड!पहली बात तो उन्होंने जो भी किया वो सब गलत था तो उनके बारे में अगर दी गलत सोचेंगी तो भी क्या फर्क पड़ेगा और दूसरी बात वो तो इस दुनिया से जा ही चुके हैं तो उनके बारे में क्यों सोचना।सोचना तो बुआ और दी को अपने रिश्ते के बारे में चाहिए।उनकी नानी ने उन्हें जो कहानी सुनाई है उससे मुझे नहीं लगता कि बुआ और दी फिर से कभी मिल पाएंगे।इसलिए प्लीज डैड उन दोनों के रिश्ते को बचाने के लिए,एक बेटी को फिर से उसकी माँ से मिलाने के लिए प्लीज मुझे जाने दीजिए।प्लीज।

मानव {अंश से} :लेकिन बेटा....

ऋद्धि {मानव से} :मानव!अंश बिल्कुल ठीक कह कह रहा है।उसे जाने दीजिये।

मानव {ऋद्धि से} :पर ऋद्धि....

ऋद्धि {मानव से} :प्लीज।

मानव {ऋद्धि से} :ठीक है।जाओ।

अंश {मानव और ऋद्धि से} :थैंक यू मॉम!थैंक यू डैड!मैं अभी जाता हूँ।

अंश {अपने आप से} :अब एक बेटी को उसकी माँ से अलग नहीं रहना पड़ेगा।मैं मिलाऊँगा उन दोनों को।

[अंश अपनी बाइक लेकर दामिनी देवी के घर की तरफ जाता है।तभी अचानक एक कार आती है और उसकी बाइक को टक्कर मार देती है जिससे वो नीचे गिर जाता है उसे थोड़ी सो खरोंच आ जाती हैं।वो फिर उठता है और उस कार वाले के पास जाता है।]

अंश {कार वाले से} :ए!देखकर नहीं चला....

अंश(सोचते हुए):ये तो दी कि नानी की कार है।

[तभी उस कार से दामिनी देवी उतरती है।]

अंश {दामिनी से} (चौंककर):आप!

दामिनी {अंश से} :हाँ,मैं।तुम मेरी नातिन को 22 साल पुराने सच के बारे में बताने जा रहे थे ना ? तो पूरा सच भी तो सुन लो।

अंश {दामिनी से} :पूरा सच ?

दामिनी {अंश से} :हाँ,पूरा सच।जब मैंने इशिता को वो फोटोज दिखाए जिनमें मान्यता दोषी नज़र आ रही थी तो तुम्हारे दिमाग में ये बात नहीं आई कि वो फोटोज खींचे किसने थे ? चौंको मत मैंने ही खींचे थे।मुझे ना फोटोज खींचने का बहुत शौक रहा तो मैंने सोचा वो फोटोज भी खींच ही लूँ।

अंश {दामिनी से} :इसका मतलब जब दी के मॉम डैड मरे थे तब आप वहीं थीं ?

दामिनी {अंश से} :Exactly!कितने समझदार हो तुम!लेकिन मैं सिर्फ वहाँ पर फोटोज नहीं खींच रही थी बल्कि किसी को मौत के घाट उतार भी रही थी।

अंश {दामिनी से} :क्या ?

दामिनी {अंश से} :हाँ!मैंने अपनी बेटी को इतने प्यार से उस आदमी के घर विदा किया था तब मुझे ये पता नहीं था कि वो मेरी बेटी को सिर्फ एक ATM मशीन समझता है।मैं उस दिन अपनी बेटी से मिलने गई थी तो मैंने देखा कि उस हैवान ने मेरी बेटी को चाकू मार दिया है।फिर वो मेरी नातिन को लेकर छत पर चल गया।मैं उसके पीछे जाने वाली थी तभी उस कमरे में मान्यता आ गई।तो मैं वहीं छुप गई।मेरी अमृता और उस मान्यता की बातें सुनकर मुझे पता चला कि मेरी बेटी की मौत उस मान्यता की वजह से ही हुई थी।इसलिए जब उसके हाथ में चाकू था तो मैंने उसके फोटोज ले लिए।फिर जब वो ऊपर छत पर भागकर गई तो मैं भी उसके पीछे पीछे गई।उसने जब इशान को भी गोली मारी तब भी मैंने उसके फोटोज ले लिए।और हाँ गोली मान्यता ने चलाई थी लेकिन वो इशान को नहीं लगी।बल्कि ईशान तो मेरी गोली से मरा था।

अंश {दामिनी से} :क्या ? फूफाजी को गोली आपने मारी थी ?

दामिनी {अंश से} :हाँ,मैंने ही मारी थी।आखिर मैं अपनी बेटी के हत्यारे को ऐसे कैसे छोड़ सकती थी ? मैंने मार दिया उसे।

अंश {दामिनी से} :तो फिर आपने बुआ के फोटोज क्यों लिए ?

दामिनी {अंश से} :मेरी बेटी की मौत की वजह वही तो थी।उसके प्यार में पागल होकर ही तो इशान ने मेरी बेटी को मार दिया।इसलिए उसके फोटोज लेकर मैं पहले तो पुलिस को दिखाने वाली थी पर फिर बाद में मैंने सोचा कि इस तरह से तो उसे बहुत कम सज़ा मिलेगी।इसलिए मैंने सोचा लिया कि इशू को ही उसके खिलाफ कर दूँगी।इसीलिए मैं इतने सालों से अपनी इशू को ढूँढ रही थी।

अंश {दामिनी से} :तो फूफाजी की मौत के जुर्म में जेल कौन गया ?

दामिनी {अंश से} :अरे जब लाश होगी तभी तो खूनी को ढूँढेंगे।मैंने उसकी लाश को वहीं ज़मीन में खोदकर दफना दिया।

अंश {दामिनी से} :पर इस सब की सज़ा आप बुआ को क्यों दे रही हैं ? वो तो इस सब के बारे में जानती भी नहीं थीं।

दामिनी {अंश से} :तो ? तो क्या ? उसकी वजह से ही आज मेरी बेटी मेरे साथ नहीं है।उसको तो सज़ा मिलनी ज़रूरी थी।

अंश {दामिनी से} :मैं 22 साल पहले की उस सच्चाई और आपके उस घिन्होने कारनामे के बारे में जाकर अभी दी को बताता हूँ।

सड़क पर

दामिनी {अंश से} :तुम्हें क्या लगता है कि मैं पागल हूँ जो तुम्हें सब कुछ बता दिया और अब तुम्हें यहाँ से इशिता को सब कुछ बताने के लिए जाने दूँगी।कभी नहीं।

[दामिनी कुछ गुंडों को बुलाती है और वो अंश की बहुत पिटाई करते हैं।दामिनी देवी अंश को देखकर हँसती है और अपनी कार में बैठकर अपने घर चली जाती है।वो गुंडे अंश को इतना मारते हैं कि उसके मुँह,हाथ और पैरों से खून निकलता है।तभी एक गुंडा उसके सिर पर इतना ज़ोर से डंडा मारता है कि अंश के सिर से बहुत खून निकलने लगता है और वो बेहोश हो जाता है।उसे बेहोश देखकर वो गुंडे वहाँ से भाग जाते हैं।]

मान्यता का घर

मानव का कमरा

मानव {ऋद्धि से} :ऋद्धि!अंश को तो बहुत देर हो गई।वो अभी तक आया क्यों नहीं ?

ऋद्धि {मानव से} :हाँ,उसे जाए हुए तो बहुत टाइम हो गया।अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था।

मानव {ऋद्धि से} :मैं उसे अभी देखने जा रहा हूँ

ऋद्धि {मानव से} :हाँ,पर सम्भलकर जायेगा और अंश को लेकर जल्दी आइयेगा।

मानव {ऋद्धि से} :हाँ,ठीक है।

ऋद्धि {मानव से} :पर आप जाएँगे कैसे ? बाइक को तो अंश लेकर गया है।

मानव {ऋद्धि से} :वो मैं पड़ोस से मनोज की बाइक ले जाऊँगा।

ऋद्धि {मानव से} :ठीक है।अच्छे से जाइयेगा।

मानव {ऋद्धि से} :हाँ।

[मानव वहाँ से चला जाता है।]

सड़क पर

बाइक पर

मानव {अपने आप से} :पता नहीं अंश कहाँ होगा ?

[तभी मानव को सड़क पर खून से लथपथ अंश दिखाई देता है वो बाइक रोककर उसे उठाकर हॉस्पिटल ले जाता है।]

होस्पिटल में

मानव {अपने आप से} (रोते हुए):ये क्या हो गया मेरे बेटे को ? प्लीज भगवान उसे ठीक कर दीजिए।

[तभी हॉस्पिटल में मान्यता,ऋद्धि और अमरपाल आ जाते हैं।]

मान्यता {मानव से} :मानव!क्या हुआ अंश को ?

मानव {मान्यता से} (रोते हुए):दीदी!मैं अंश को ढूंढने के लिए गया तो मुझे वो ज़ख़्मी हालत में सड़क पर गिरा हुआ मिला था।इतनी बुरी हालत थी कि मुझसे तो देखा भी नहीं जा रहा था।

ऋद्धि {मानव से} (रोते हुए):कहाँ है मेरा बेटा ?

मानव {ऋद्धि से} (रोते हुए):वो ऑपेरशन थिएटर में है।उसका बहुत ज़्यादा खून बह गया है इसलिए डॉक्टर उसका ऑपेरशन कर रहे हैं।

ऋद्धि(रोते हुए):मेरा बेटा तो अच्छे काम के लिए गया था तो फिर भगवान ने उसके साथ ऐसा क्यों किया ?

मान्यता {ऋद्धि से} (रोते हुए):पर अंश गया कहाँ था ?

मानव {मान्यता से} (रोते हुए):वो...वो...दीदी!बस ऐसे ही किसी काम से गया था।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):झूँठ मत बोल मानव।सच सच बता कि अंश कहाँ गया था ? बता कहाँ गया था ?

मानव {मान्यता से} (रोते हुए):वो इशू को सब कुछ बताने गया था।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):सब कुछ सच सच बताने गया था मतलब ?

मानव {मान्यता से} (रोते हुए):मतलब 22 साल पहले के बारे में।

मान्यता {मानव से} (रोते हुए):पर उसे उस सब के बारे में बताया किसने था ?

ऋद्धि {मान्यता से} (रोते हुए):दीदी!वो मैंने बताया था।

मान्यता {ऋद्धि से} (रोते हुए):क्यों,ऋद्धि ? तुमने क्यों बताया ?

ऋद्धि {मान्यता से} (रोते हुए):दीदी!वो बार बार ज़िद कर रहा था।आपके बारे में बुरा बोल रहा था इसलिए मुझे उसे बताना पड़ा।

मान्यता {ऋद्धि से} (रोते हुए):तो बोलने देती।मुझड कोई फर्क नहीं पड़ता पर....

अमरपाल(गुस्से से):इस लड़की की वजह से हमारे परिवार में हमेशा कोई न कोई मुसीबत आई ही है।आज उसीकी वजह से हमारे बेटे के साथ भी....

मान्यता {अमरपाल से} (रोते हुए):पापा!आप.....

[तभी ऑपेरशन थिएटर से डॉक्टर बाहर आता है।]

डॉक्टर {सभी से} :patient का खून बहुत बह गया है इसलिए हमें उसका ऑपेरशन करना पड़ेगा।इसलिए आप लोग जितना जल्दी हो सके,फीस pay कर दीजिए।

मानव {डॉक्टर से} (रोते हुए):डॉक्टर!कितनी फीस लगेगी।

डॉक्टर {मानव से} :2 लाख रुपये।

[इतना कहकर डॉक्टर ऑपेरशन थिएटर में चला जाता है।]

मानव {अपने आप से} (रोते हुए):2 लाख रुपये ? मेरे बैंक में तो सिर्फ 10 हज़ार रुपये ही हैं।और हम सबके पास कुल मिलाकर लगभग 20 हज़ार रुपये ही होंगे।बाकी रुपयों का इंतज़ाम मैं कैसे करूँगा ? हे भगवान!मेरी मदद करो।मैं अपने बेटे को खोना नहीं चाहता।

ऋद्धि {मानव से} (रोते हुए):आप प्लीज रोइये मत।सब ठीक हो जाएगा।

मानव {ऋद्धि से} (रोते हुए):मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ ?

मान्यता {मानव से} :मानव!मैं अभी आती हूँ।

मानव {मान्यता से} (रोते हुए):आप कहाँ जा रही हैं,दीदी ?

मान्यता {मानव से} :मैं बस आती हूँ ना अभी।

[मान्यता तेज़ बारिश में वहाँ से भागकर दामिनी देवी के घर पहुँच जाती है।]

दामिनी का घर

मान्यता(चिल्लाते हुए):इशिता!इशिता,बेटा तुम कहाँ हो ?

[मान्यता की आवाज़ सुनकर इशिता और दामिनी नीचे आते हैं।]

इशिता {मान्यता से} :क्या है ? क्यों गला फाड़ फाड़कर चिल्ला रही हो ?

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):बेटा!अंश को बचा लो।उसे कुछ हो जाएगा।

इशिता {मान्यता से} (टेंशन में):क्या हुआ उसे ?

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):वो तो तुम्हारे पास आ रहा था।लेकिन जब बहुत देर हो गई तो मानव उसे ढूँढने निकल गया तो उसे सड़क पर अंश ज़ख़्मी हालत में मिला।तो उसे वो हॉस्पिटल ले गया।अब डॉक्टर ने कहा है कि उसके ऑपरेशन के लिए 2 लाख रुपये की ज़रूरत है।प्लीज तुम 2 लाख रुपये दे दो।

इशिता {मान्यता से} (टेंशन में):मैं अभी लेकर आती हूँ।

[इशिता पैसे लेने के लिए ऊपर जाती है और अपने कमरे से पैसे लेती है तो दामिनी उसका हाथ पकड़ लेती है।]

दामिनी {इशिता से} :इशिता,बेटा!तुम ये क्या कर रही हो ? उस औरत की मदद जिसने तुम्हारे माता पिता को तुमसे छीन लिया।अरे तुम्हें तो उसे इन पैसों के लिए तड़पना चाहिए।उससे इन पैसों के लिए भीख मंगवानी चाहिए।

इशिता {दामिनी से} :पर नानी अगर मैंने उन्हें पैसे नहीं दिए तो मेरे भाई को कुछ हो जाएगा।

दामिनी {इशिता से} :हाँ तो मैं कहाँ मना कर रही हूँ।मैं तो बस ये कह रही हूँ कि उससे इन पैसों ले लिए भीख मंगवाओ।समझी ?

[इशिता हाँ में सिर हिलाती है और फिर दामिनी के साथ नीचे आती है।इशिता मान्यता को पैसे देती है लेकिन जब मान्यता हाथ आगे करती है तो उन पैसों को पीछे कर लेती है।]

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):क्या हुआ ? दो ना पैसे।

इशिता {मान्यता से} :तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुम्हें इतनी आसानी से पैसे दे दूँगी ? नहीं।इसके लिए तुम्हें कुछ करना होगा।

मान्यता {इशिता से} (हाथ जोड़कर रोते हुए):तुम जो भी बोलोगी मैं वो करूँगी पर प्लीज पैसे दे दो।

इशिता {मान्यता से} :ठीक है तो तुम ज़मीन पर अपनी नाक रगड़ो और कहो कि मुझे पैसे चाहिए।तभी मैं तुम्हें पैसे दूँगी।

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):ठीक है।

[मान्यता ज़मीन पर अपनी नाक रगड़ती है।उसे इशिता के बचपन की सारी यादें याद आती हैं।]

 गाना(जग सूना)

छन से जो टूटे कोई सपना

जग सूना सूना लागे

जग सूना सूना लागे

कोई रहे ना जब अपना

जग सूना सूना लागे

जग सूना सूना है तो

ये क्यों होता है

जब दिल ये रोता है

रोये सिसक सिसक के हवाएँ

जग सूना सूना लागे

छन से जो टूटे कोई सपना

जग सूना सूना लागे

जग सूना सूना लागे

कोई रहे ना जब अपना

जग सूना सूना लागे रे.....

मान्यता {इशिता से} (हाथ जोड़कर):इशिता!अब तो तुम्हारे कहने पर मैंने नाक भी रगड़ ली।अब तो मुझे पैसे दे दो।

इशिता {मान्यता से} :पहले इन पेपर्स पर साइन करो।

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):ये किस चीज़ के पेपर्स हैं।

इशिता {मान्यता से} :इनमें लिखा है कि तुम अपने आप को गिरवी रखकर मुझसे 2 लाख रुपये लेकर जा रही हो।तो मैं तुमसे जो चाहे वो काम करवा सकती हूँ।

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):क्या ?

इशिता {मान्यता से} :हाँ,अगर पैसे चाहिए तो साइन करो।

[मान्यता रोते और काँपते हुए वो पेपर्स साइन करती है।उसकी हालत देखकर इशिता को तरस तो आता है लेकिन जब उसे अपने माता पिता की मौत का ख्याल आता है तो वो मान्यता के आँसूओं को अनदेखा कर देती है।]

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए} :अब और क्या करना है मुझे ?

इशिता {मान्यता से} :अब मेरी जूतियाँ ज़रा गन्दी हो गईं है तुम उन्हें साफ कर दोगी।

मान्यता {इशिता से} (रोते हुए):अंश की जान बचाने के लिए मैं कुछ भी करूँगी।

इशिता(सोचते हुए):ये औरत इतनी अच्छी है या फिर सिर्फ नाटक कर रही है।अंश की जान के लिए इतना सब कुछ।

[मान्यता इशिता की जूतियों को साफ करने वाली होती है तो इशिता उसे रोक लेती है।]

इशिता {मान्यता से} :हाँ ठीक है ठीक है।ये लो पैसे और अंश का इलाज कराओ।वो तो मेरे भाई की बात थी इसलिए मैंने पैसे दे दिए नहीं तो तुम जैसी औरत को तो मैं कभी ये पैसे नहीं देती।

[मान्यता रोती हुई वहाँ से हॉस्पिटल चली जाती है।]

हस्पिटल में

[मानव ऋद्धि और अमरपाल से थोड़ा दूर अकेला और चुपचाप खड़ा होता है।]

मान्यता {मानव से} :मानव!ये ले पैसे और जाकर जमा करके आ।

मानव {मान्यता से} :लेकिन दीदी इतने पैसे कहाँ से आये ?

मान्यता {मानव से} :तू वो छोड़।तू जाकर इन्हें जमा करके आ।

मानव {मान्यता से} :नहीं दीदी,आप बताइए ये पैसे कहाँ से आये ?

मान्यता {मानव से} (उदास होकर):वो मैंने इशिता की पढ़ाई और शादी के लिए बचाकर रखे थे।अब पढ़ाई तो मैंने करा दी बाकी को उसकी नानी करायेंगी और उसकी शादी भी उसकी नानी बहुत ज़ोरों से करवायेंगी तो अब मुझे इन पैसों से क्या काम ? इसलिए तू इन्हें ले और अंश का ऑपेरशन करवा।

मानव {मान्यता से} :लेकिन दीदी ये तो आपके हैं।

मान्यता {मानव से} :तू पागल है!हमारे बीच में ये तेरे मेरे का फर्क कब आ गया ? बचपन से हमने हर चीज़ को share किया है चाहें वो खुशियाँ हों या ग़म तो फिर आज क्यों नहीं ?

मानव {मान्यता से} :दीदी!मुझे तो समझ नहीं आ रहा कि मैं आपका शुक्रिया अदा कैसे करूँ ?

मान्यता {मानव से} :अब तू मार खायेगा।चल जा यहॉं से।

मानव {मान्यता से} (गले लगकर):थैंक यू सो मच दीदी।

[ये कहकर मानव वहाँ से चला जाता है।मान्यता फिर से वो सोचने लगती है जो इशिता ने दामिनी देवी के घर किया था।]

[थोड़ी देर बाद अंश को होश आ जाता है।वो इशिता के पास जाने की ज़िद करता है लेकिन फिर सबके बहुत मनाने पर वो सबके साथ घर चला जाता है।]

दामिनी का घर

इशिता(अपने आप से):मैं इतनी कोशिश कर रही हूँ लेकिन फिर भी ना जाने क्यों मैं उस औरत से नफरत नहीं कर पा रही हूँ।मुझे तो समझ नहीं आ रहा है कि जो औरत किसी को इतनी बेरहमी से मार सकती है वो किसी की जान बचाने के लिए किसी की जूती भी साफ कर सकती है ?

[तभी वहाँ दामिनी देवी आती है।]

दामिनी {इशिता से} :इशिता!बेटा,तुम यही सोच रही हो ना कि वो मान्यता जिसने तुम्हारे माता पिता को मार दिया वो इतनी अच्छी कैसे हो सकती है ?

इशिता {दामिनी से} :हाँ

दामिनी {इशिता से} :अरे बेटा ये सब एक दिखावा है।झूँठ है सब।वो तो ये सब इसलिए कर रही है ताकि तुम फिर से उसके पास चली जाओ और तुम्हारे 25 साल के होने पर वो तुम्हारी सारी प्रॉपर्टी छीन ले।

मान्यता का घर

[अंश के कमरे में अंश बैड पर लेट होता है और मान्यता,मानव और ऋद्धि बैठे होते हैं।]

अंश {सभी से} :आप सब लोग मुझे यहाँ क्यों लेकर आये ? मुझे दी को सब सच बताना था।

अमरपाल {अंश से} :कोई ज़रूरत नहीं है उसे कुछ भी बताने की।वो लड़की इस घर से दूर है तो ही बेहतर है क्योंकि वो हमेशा इस घर के लिए नई नई परेशानियाँ लेकर आती है।

मानव {अमरपाल से} :पापा!क्या बोले जा रहे हैं आप ? इशिता की वजह से कुछ भी बुरा नहीं हुआ है।वो तो सब कुछ हालातों की वजह से हुआ है।

मानव {अंश से} :और बेटा जब तुम ठीक हो जाओ तब आराम से इशिता को सब कुछ बता देना।तुम्हें कोई नहीं रोकेगा पर अभी तुम सिर्फ आराम करो।

अंश {मानव से} :पर डैड.....

मानव {अंश से} :अंश!

अंश {मानव से} :Ok

अंश {मान्यता से} :बुआ!मुझे आपसे सॉरी बोलना है।

मान्यता {अंश से} :सॉरी ? क्यों ?

अंश {मान्यता से} :वो जब वो दामिनी देवी ने सब कुछ बोल तो मैंने इस पर यकीन कर लिया और आपको इतना सब कुछ बोल दिया।मैंने एक बार भी ये नहीं सोचा कि आपने मुझे बचपन से ही कितना प्यार दिया है।प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए।

मान्यता {अंश से} :बेटा!माफी तो गलती के लिए होती है पर तुमने तो कोई गलती नहीं की।उस वक्त तुम्हारे जगह कोई और भी होता तो शायद यही करता।इसलिए तुम्हें माफी माँगने की कोई ज़रूरत नहीं है।समझे ?

अंश {मान्यता से} :बुआ!आपको एक और बात बोलूँ ?

मान्यता {अंश से} :आप दुनिया की बेस्ट बुआ हो।

अंश {मान्यता से} :और तुम भी दुनिया के बेस्ट भतीजे हो।

[सभी लोग हँसते हैं और फिर सब अंश के कमरे से बाहर चले जाते हैं।]

अंश(सोचते हुए):नहीं,मैं ऐसे बैठ नहीं सकता।उस घर में दी के साथ एक खूनी है।वो अपने दामाद को मार सकती है तो दी के साथ भी कुछ भी कर सकती है।मुझे दी को जाकर सब कुछ बताना ही होगा।आज तो मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा है लेकिन कल सुबह जाकर मैं दी को सब कुछ बताऊँगा।

[ये कहकर अंश सो जाता है।]

अगले दिन

मान्यता का घर

[मान्यता कॉन्ट्रैक्ट पेपर्स पर किये हुए साइन की वजह से दामिनी देवी के घर के लिए निकलती है।तभी ऋद्धि उसे जाते हुए देखती है तो रोक लेती है।]

ऋद्धि {मान्यता से} :अरे दीदी आप कहाँ जा रही हैं ?

मान्यता {ऋद्धि से} (हड़बड़ाकर):वो...वो मैं बस पड़ोस में ही जा रही हूँ।

ऋद्धि {मान्यता से} (हँसकर):हाँ तो ठीक है पर इसमें डरने की क्या बात है ? आप ऐसे हड़बड़ा क्यों रही हैं ?

मान्यता {ऋद्धि से} :कुछ नहीं।बस ऐसे ही।

ऋद्धि {मान्यता से} :अच्छा ठीक है।पर जल्दी आइयेगा।

मान्यता {ऋद्धि से} :हाँ।

[मान्यता घर से बाहर चली जाती है और ऋद्धि किचन में।तभी किचन में अंश आ जाता है।]

अंश {ऋद्धि से} :मॉम!बुआ कहाँ हैं ?

ऋद्धि {अंश से} :बेटा!वो अभी पड़ोस वाली आंटी के पास गईं हैं।अभी आती होंगीं और वैसे भी आज मैं उनके favourite आलू के पराठे बना रही हूँ।इनकी खुशबू से अभी आ जाएंगी।

अंश {ऋद्धि से} :मम्मा!आलू के पराठे मत बनाओ।

ऋद्धि {अंश से} :हाँ,मुझे पता है कि तुझे आलू के पराठे पसन्द नहीं हैं पर मैं तो बनाऊँगी।तुझे नहीं खाने तो मत खाना।

अंश {ऋद्धि से} :मम्मा!आज monday है।

ऋद्धि {अंश से} :हाँ तो ?

अंश {ऋद्धि से} :आज बुआ का व्रत है।

ऋद्धि {अंश से} :ओ हाँ!मैं तो भूल ही गई।ऐसा करती हूँ आज कुछ और बना लेती हूँ।आलू के पराठे कल बना लूँगी।

[ये कहकर अंश अपने कमरे में जाता है।कमरे में खिड़की से उसे दिखता है कि मान्यता ricksaw से कहीं जाती है।]

अंश {अपने आप से} :मम्मा तो कह रही थीं कि बुआ पड़ोस वाली आंटी के पास जा रही हैं तो फिर बुआ ricksaw से कहाँ गईं ? कहीं वो दी के पास तो नहीं गईं ? मुझे भी उनके पीछे जाना होगा।

[अंश सबसे छुपकर अपनी बाइक से मान्यता के ricksaw के पीछे जाता है और वो देखता है कि वो ricksaw दामिनी देवी के घर ही जा रहा है।]

अंश {अपने आप से} (बाइक पर):इसका मतलब मेरा शक सही था कि बुआ दी के पास ही जा रही हैं पर क्यों ?

[मान्यता ricksaw में बैठी कुछ सोच रही होती है तभी उसे ricksaw के शीशे में अंश बाइक पर आता हुआ दिखाई देता है तो वो ricksaw वाले से किसी और जगह जाने के लिए कह देती है।इस तरह से दामिनी देवी का घर निकल जाता है।]

अंश {अपने आप से} (बाइक पर):बुआ!दी के पास नहीं जा रही थीं तो फिर वो कहाँ जा रही हैं।

[थोड़ी दूर चलने के बाद मान्यता की एक फ्रेंड का घर आता है और मान्यता वहाँ उतर जाती है।अंश अपनी बाइक रोककर उससे छुपकर उसे देखता है।मान्यता घर के अंदर चली जाती है।]

अंश {अपने आप से} :बुआ तो अपनी फ्रेंड सिम्मी आंटी से मिलने आईं हैं और मैं क्या क्या सोच रहा था।मैं बहुत शक्की type का होता जा रहा हूँ।अब मुझे चलना चाहिए नहीं तो मम्मा मुझे छोड़ेंगी नहीं।

[अंश वहाँ से चला जाता है।उसके जाते ही मान्यता फिर से ricksaw में बैठकर दामिनी देवी के घर की तरफ चली जाती है।]

मान्यता {अपने आप से} (ricksaw में):अंश मेरा पीछा क्यों कर रहा था ? कहीं इसे कल के बारे में सब कुछ पता तो नहीं चल गया ? नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता।वो तो ऐसे ही मेरे पीछे आ रहा होगा।

[मान्यता दामिनी देवी के घर पहुँच जाती है।]

इशिता {मान्यता से} :आइये हमारे घर की नई नौकरानी जी।आपका स्वागत है।अब इधर उधर मत देखो।सीधे अपने काम पर लगो।पोंछा वहाँ रखा है।जल्दी से लाओ और साफ करो।

[मान्यता रोते हुए पोंछा लेती है और पूरे घर में पोंछा लगाती है।इससे उसकी पीठ दर्द करने लगती है।]

इशिता {मान्यता से} (गुस्से से):वाह!ये बहाना अच्छा है कोई काम ना करना हो तो ऐसे ही पीठ पकड़कर बैठ जाओ।लेकिन मेरे सामने ये ड्रामा करने की कोई ज़रूरत नहीं है,समझी ? चलो पोंछा लगाओ।

मान्यता {इशिता से} :बेटा!सच में मेरी पीठ में दर्द होने लगा है।

इशिता {मान्यता से} (गुस्से से):कौन बेटा ? यहाँ कोई बेटा नहीं है और नौकर कभी मालिकों को बेटा नहीं बोलते,समझी ? चुपचाप अपना काम करो।

[मान्यता रोते हुए फिर से पोंछा लगाने लगती है।लेकिन इशिता मिट्टी के जूतों से फिर उस जगह को गन्दा कर देती है।]

इशिता {मान्यता से} :अरे नौकरानी जी!ये जगह तो अभी भी गन्दी है।ज़रा साफ कर दीजिए।

[मान्यता हाँ में सिर हिलाकर फिर से पोंछा लगाने लग जाती है।पोंछे के बाद मान्यता कपड़े धोने जाती है।इशिता बहुत सारे कपड़े मान्यता के पास पटक देती है।मान्यता रोते हुए उन कपड़ों को धीरे धीरे अपनी पीठ को पकड़कर साफ कर देती है।]

[मान्यता फिर कुर्सी पर चढ़कर पर्दों को चढ़ाती है।लेकिन भूखी प्यासी रहने की वजह से उसे चक्कर आते हैं और वो नीचे गिरने ही वाली होती है तभी अंश आकर उसे पकड़ लेता है।]

अंश {मान्यता से} :बुआ!आप ठीक हैं ?

मान्यता {अंश से} (चौंककर):अंश,बेटा तुम यहॉं कैसे ?

अंश {मान्यता से} :बुआ!मैं तो घर जा ही रह था लेकिन अचानक रास्ते में ही मेरी बाइक की पेट्रोल खत्म हो गई तो मैंने सोचा कि यहाँ आकर पूछ लूँ कि यहाँ कोई Petrol Pump है या नहीं ? लेकिन यहाँ आकर तो मुझे कुछ और ही देखने को मिला।

इशिता {अंश से} :अंश!तू कैसा है ? तुझे कल ज़्यादा चोट तो नहीं आई ?

अंश {इशिता से} :कल तो नहीं आई लेकिन आज ज़रूर आई जब मैंने अपनी बुआ को इस तरह से देखा।अरे आपको पता भी है कि बुआ को चक्कर क्यों आये ? शायद आप भूल गईं लेकिन आज बुआ का सोमवार का व्रत है जो वो हमेशा आपकी सलामती के लिए रखती हैं।और आपने आज ही के दिन उनसे इतना काम करवाया।अरे आपको शर्म आनी चाहिए।

इशिता {अंश से} :अरे जो इन्होंने मेरे साथ किया था,मेरे मम्मी पापा के साथ किया था उसके आगे तो ये कुछ नहीं है।

अंश {इशिता से} :अरे आप 22 साल पहले की उस बात के बारे में जानती ही क्या हैं ? बताइये।बस ये कि बुआ ने आपके पापा का खून किया।पर क्यों किया ये आप नहीं जानती।

मान्यता {अंश से} :बेटा!प्लीज चुप हो जाओ।

अंश {मान्यता से} :नहीं बुआ आज तो मुझे बोलने दीजिये।आखिर इनको भी तो पता चले कि आपने इतने सालों से क्या क्या सहा है!

मान्यता {अंश से} :पर बेटा.....

अंश {मान्यता से} :प्लीज,बुआ!

अंश {इशिता से} :आज मैं बताऊँगा आपको 22 साल पुराना वो सच जो आपसे छुपाया गया है बल्कि उसकी जगह कुछ और ही मनगढ़ंत कहानी आपको सुनाई गई है।

[अंश इशिता को 22 साल पहली की वो सारी सच्चाई बता देता है।]

इशिता {अंश से} :वाह!कहानी तो बहुत अच्छी है।वैसे किसने बनाई है ? ज़रा मैं भी तो देखूँ कौन है इतना talented ?

अंश {इशिता से} :आपको ये कहानी लग रही है ? ये सच है।मैं अपने मॉम डैड की कसम खाकर कहता हूँ।

इशिता {अंश से} :तू पागल है ? इस औरत को बचाने के लिए तू अपने मॉम डैड की झूँठी कसम खा रहा है।

अंश {इशिता से} :दी!आप जानती हैं ना कि मैं अपने मॉम डैड से कितना प्यार करता हूँ।इसीलिए मैंने उनकी कसम खायी जिससे आपको यकीन हो जाये।ये पूरा सच है।

इशिता {अंश से} (दुःखी होकर):तू सच कह रहा है ?

अंश {इशिता से} :हाँ दी।

[इशिता दुःखी और शर्मिंदा होकर मान्यता के पास जाती है।]

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):मम्मा!मुझे...मुझे माफ़ कर दीजिए।मैंने आपके साथ कितना बुरा behave किया।आपसे नौकरानी जैसा काम करवाया।आपसे इतनी बुरी तरह बात की।मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा कि मैं किस मुँह से आपसे माफी माँगू ?

मान्यता {इशिता से} (इशिता के आँसू पोंछते हुए):बेटा!माफ तो उसे करते हैं ना जिससे गलती होती है पर मेरी बेटी ने तो कोई गलती नहीं की।

[इशिता रोते हुए मान्यता के गले लग जाती है।]

इशिता {मान्यता से} :कोई इंसान इतना अच्छा कैसे हो सकता है ? आपने मुझे,अपनी सौतेली बेटी को अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार किया।कभी कोई तकलीफ नहीं आने दी मुझ पर और मैं,मैं आपको ही तकलीफ़ दे रही थी।आपने मेरे लिए अपने ही पति की जान ले ली और मैं आपकी ही दुश्मन बनी हुई थी।मुझे तो लगता है कि आप इस दुनिया की बेस्ट मम्मा हो और मैं इस दुनिया की worst बेटी।

मान्यता {इशिता से} :नहीं,बेटा!तुम तो बहुत प्यारी हो infact मेरे लिए तो बेस्ट हो।और वैसे भी अगर तुम्हारी जगह कोई और भी होता तो शायद करता।

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):आपने मुझे ये सब कभी बताया क्यों नहीं ? क्यों नहीं कहा कि ये सब आपकी वजह से नहीं बल्कि मेरे पापा....।अरे वो तो पापा कहलाने के लायक भी नहीं हैं।

मान्यता {इशिता से} :इसीलिए मैं तुम्हें नहीं बताना चाहती थी।मैं नहीं चाहती थी कि एक बेटी अपने पापा से नफरत करने लगे।

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):हमेशा दूसरों के बारे में सोचती रहती हैं आप।पता नहीं भगवान ने मुझ जैसी बेटी को आप जैसी माँ कैसे दे दी ?

मान्यता {इशिता से} :शायद मेरे नसीब अच्छा था।

इशिता {मान्यता से} :आपका नहीं,मेरा।लेकिन मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि नानी ने वो झूँठी कहानी क्यों बनाई ?

अंश:यही तो मैं बताने वाला था कि अभी सच्चाई पूरी नहीं हुई है।

मान्यता {अंश से} :मतलब ?

अंश {मान्यता से} :मतलब ये कि अभी 22 साल पुरानी वो सच्चाई आप में से कोई भी नहीं जानता जो मैं जानता हूँ।

मान्यता {अंश से} :कौन सी सच्चाई ?

अंश {मान्यता से} :दामिनी देवी का सच।

इशिता {अंश से} :नानी का सच ? तो क्या बोल रहा है ?

अंश {इशिता से} :1 मिनट!

[अंश इशिता को अपने फ़ोन में रिकॉर्ड वो सब बातें सुनाता है जो अंश और दामिनी देवी के बीच सड़क पर हुई थीं।]

अंश रिकॉर्डिंग सुनाता है

दामिनी {अंश से} :हाँ,मैं।तुम मेरी नातिन को 22 साल पुराने सच के बारे में बताने जा रहे थे ना ? तो पूरा सच भी तो सुन लो।

अंश {दामिनी से} :पूरा सच ?

दामिनी {अंश से} :हाँ,पूरा सच।जब मैंने इशिता को वो फोटोज दिखाए जिनमें मान्यता दोषी नज़र आ रही थी तो तुम्हारे दिमाग में ये बात नहीं आई कि वो फोटोज खींचे किसने थे ? चौंको मत मैंने ही खींचे थे।मुझे ना फोटोज खींचने का बहुत शौक रहा तो मैंने सोचा वो फोटोज भी खींच ही लूँ।

अंश {दामिनी से} :इसका मतलब जब दी के मॉम डैड मरे थे तब आप वहीं थीं ?

दामिनी {अंश से} :Exactly!कितने समझदार हो तुम!लेकिन मैं सिर्फ वहाँ पर फोटोज नहीं खींच रही थी बल्कि किसी को मौत के घाट उतार भी रही थी।

अंश {दामिनी से} :क्या ?

दामिनी {अंश से} :हाँ!मैंने अपनी बेटी को इतने प्यार से उस आदमी के घर विदा किया था तब मुझे ये पता नहीं था कि वो मेरी बेटी को सिर्फ एक ATM मशीन समझता है।मैं उस दिन अपनी बेटी से मिलने गई थी तो मैंने देखा कि उस हैवान ने मेरी बेटी को चाकू मार दिया है।फिर वो मेरी नातिन को लेकर छत पर चल गया।मैं उसके पीछे जाने वाली थी तभी उस कमरे में मान्यता आ गई।तो मैं वहीं छुप गई।मेरी अमृता और उस मान्यता की बातें सुनकर मुझे पता चला कि मेरी बेटी की मौत उस मान्यता की वजह से ही हुई थी।इसलिए जब उसके हाथ में चाकू था तो मैंने उसके फोटोज ले लिए।फिर जब वो ऊपर छत पर भागकर गई तो मैं भी उसके पीछे पीछे गई।उसने जब इशान को भी गोली मारी तब भी मैंने उसके फोटोज ले लिए।और हाँ गोली मान्यता ने चलाई थी लेकिन वो इशान को नहीं लगी।बल्कि ईशान तो मेरी गोली से मरा था।

अंश {दामिनी से} :क्या ? फूफाजी को गोली आपने मारी थी ?

दामिनी {अंश से} :हाँ,मैंने ही मारी थी।आखिर मैं अपनी बेटी के हत्यारे को ऐसे कैसे छोड़ सकती थी ? मैंने मार दिया उसे।


[इशिता वो सब सुनकर एक ही जगह पर ऐसे खड़ी रह जाती है जैसे उसे कोई सदमा लगा हो।मान्यता भी वो सब सुनकर चौंक जाती है।]

मान्यता {अंश से} :इसका मतलब इशान को गोली मैंने नहीं मारी थी ?

अंश {मान्यता से} :नहीं,बुआ!ये सब एक साजिश थी।

इशिता(गुस्से से):मैं उस औरत को छोडूँगी नहीं।उसी ने मेरी मम्मा को एक खूनी बनाया।उसी ने मुझे मेरी मम्मा की झूँठी कहानी बताकर मुझे भड़काया।

मान्यता {इशिता से} :बेटा!देखो...

इशिता {मान्यता से} (गुस्से से):नहीं,मम्मा।आज तो मैं....

[ये कहते कहते इशिता बेहोश हो जाती है।]

कुछ घण्टों बाद

[इशिता अपनी आँखें खोलती है तो अपने आप को हॉस्पिटल में देखती है।उसके पास मानव,ऋद्धि,अंश और अमरपाल बैठे होते है।]

इशिता {मानव से} (घबराकर):मामू!मैं यहाँ हॉस्पिटल में क्या कर रही हूँ ? और आप सब यहाँ ? क्या हुआ था मुझे ?

अंश {इशिता से} :दी!जब आप बुआ से बातें कर रही थीं तो आपको अचानक चक्कर आये और आप गिर गईं फिर हम आपको हॉस्पिटल लेकर आये।तो डॉक्टर ने बताया कि....

कुछ देर पहले

मानव {डॉक्टर से} :डॉक्टर!क्या हुआ है इशिता को ? वो अचानक ऐसे बेहोश कैसे हो गई ?

डॉक्टर {मानव से} :आप लोगों ने पहले कभी इनका चेक-अप नहीं कराया क्या ?

मानव {डॉक्टर से} :क्यों डॉक्टर आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं ?

डॉक्टर {मानव से} :क्योंकि इनके heart में एक बहुत बड़ा hole है।

मानव {डॉक्टर से} :क्या,दिल में छेद ?

डॉक्टर {मानव से} :हाँ,इसीलिए हम इनका ऑपेरशन करने वाले हैं पर हमें नहीं लगता कि ऐसी हालत में अब ये बच पाएंगी।

ऋद्धि {डॉक्टर से} :डॉक्टर!ऐसा मत बोलिये।कोई तो रास्ता होगा।

डॉक्टर {ऋद्धि से} :हाँ,एक रास्ता है।

ऋद्धि {डॉक्टर से} :अगर इन्हें कोई अपना दिल देदे तो इनकी जान बच सकती है।

अंश {डॉक्टर से} :क्या ? अपना दिल ? पर कोई भी इंसान दी को अपना दिल कैसे दे सकता है ?

[तभी वहाँ पर एक नर्स आकर डॉक्टर से कुछ कहती है।]

डॉक्टर:अरे वाह!आप सबको बधाई।

अंश {डॉक्टर से} :क्यों डॉक्टर ?

डॉक्टर:अरे आपकी इशिता को heart donate करने वाली मिल गईं हैं।

मानव {डॉक्टर से} :अच्छा ? कौन हैं वो ?

डॉक्टर {मानव से} :कोई लक्ष्मी देवी नाम की औरत हैं।

अंश {डॉक्टर से} :पर वो अपना दिल दी को दे क्यों रही हैं ?

डॉक्टर {अंश से} :उनका कहना है कि आपकी बेटी की शक्ल उनकी बेटी से हूबहू मिलती है लेकिन उनकी बेटी इस दुनिया में नहीं रही और अब उनका भी कोई सहारा नहीं है।इसलिए वो अपनी जान देने वाली थीं लेकिन जैसे ही उन्होंने आपकी इशिता को देखा तो उन्होंने उनको अपना दिल देने के बारे में सोच लिया।

मानव {डॉक्टर से} :लेकिन डॉक्टर...

डॉक्टर:मुझे जल्दी से ऑपेरशन करना पड़ेगा।

मानव {डॉक्टर से} :डॉक्टर....

[डॉक्टर ऑपेरशन थिएटर में चल जाता है।]

इशिता {मानव से} :मामू!आप ने मेरे लिए किसी को अपनी जान देने दी।आप ऐसा कैसे कर सकते हैं ?

मानव {इशिता से} :बेटा!हमने तो रोकने की कोशिश भी की लेकिन डॉक्टर ने हमें बताया कि वो हम में से किसी भी नहीं मिलना चाहतीं।

इशिता {मानव से} :1 मिनट!इसका मतलब आप में से किसी ने भी उन आंटी को नहीं देखा ?

मानव {इशिता से} :नहीं बेटा!हम उस महान देवी को देख ही नहीं पाए।

इशिता {मानव से} (घबराकर):मम्मा.....मम्मा कहाँ हैं ? बताइये मामू मम्मा कहाँ हैं ?

मानव {इशिता से} :बेटा!वो मंदिर में तुम्हारे लिए प्रार्थना करने गईं थीं।बस अंश उन्हें लेकर आता ही होगा।

अंश {मानव से} :डैड!बुआ तो मंदिर में हैं ही नहीं।

इशिता(घबराकर):नहीं,मम्मा ऐसा नहीं कर सकतीं।

मानव {इशिता से} :क्या हुआ बेटा ? ये तुम क्या कह रही हो ?

इशिता {मानव से} (घबराकर):मामू!मम्मा ऐसा नहीं कर सकतीं।मुझे उनके पास जाना है।

[इशिता हॉस्पिटल के कमरे से निकलकर भागती है और सब उसके पीछे भागते हैं।]

[इशिता भागकर उस कमरे में पहुंच जाती है जहाँ उस औरत की लाश होती है जिसने इशिता को अपना दिल दिया।इशिता उस औरत के चेहरे पर ढका कपड़ा हटाती है तो वो उसे देखकर पहले तो खड़ी रह जाती है और फिर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है।]

इशिता {मानव से} (रोते हुए):मामू!जिस औरत ने मुझे अपना दिल दिया वो कोइ और नहीं बल्कि मम्मा हैं।

मानव {इशिता से} :क्या ?

[तब सब लोग भी मान्यता की लाश देखते हैं और सब रोते हैं।फिर इशिता रोते हुए मान्यता की लाश के पास एक चेयर पर बैठ जाती है और रोती है।]

इशिता {मान्यता से} (रोते हुए):मम्मा!ये अपने क्या किया ? मेरे लिए अपनी जान दे दी।अरे मुझ जैसी बेटी को तो मर ही जाना चाहिए था जिसने अपनी इतनी प्यारी मम्मा को इतना दुःख पहुँचाया।क्यों किया अपने ऐसा ? क्यों ?

[इशिता रोती है और बैकग्राउंड में गाना बजता है।]

  गाना(चुनर)

हो झीना झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई।

झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई।

रंग तेरी रीत का,रंग तेरी प्रीत का,

रंग तेरी जीत का है लाई लाई लाई

रंग तेरी रीत का,रंग तेरी प्रीत का,

माई तेरी चुनरिया लहराई।

जब जब मुझपे उठा सवाल

माई तेरी चुनरिया लहराई।

झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई।

झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई

5 साल बाद

[एक छोटी सी लड़की प्रिया भागती हुई जाती है और अचानक एक लड़की से टकरा जाती है।वो लड़की कोई और नहीं बल्कि इशिता थी।]

इशिता {प्रिया से} :अरे बेटा!तुम ऐसे भाग क्यों रही हो ?

प्रिया {इशिता से} :अरे आंटी देखिए ना मेरी मम्मा को।वो मुझे ज़बरदस्ती होस्टल भेज रही हैं।लेकिन मुझे नहीं जाना।पर वो मानती ही नहीं हैं।वो बहुत गन्दी हैं।

इशिता {प्रिया से} :नहीं बेटा कभी भी अपनी मम्मा को गन्दा मत बोलना।क्योंकि मम्मा कभी भी बुरी या गन्दी नहीं होती हैं।वो जो भी करती हैं,सब हमारी भलाई के लिए ही करती हैं।

प्रिया {इशिता से} :लेकिन मुझे होस्टल भेजने से मेरी क्या भलाई होगी ?

इशिता {प्रिया से} :अरे बेटा तुम होस्टल जाओगी तो तुम वहाँ अच्छे से पढ़ सकोगी।

प्रिया {इशिता से} :लेकिन मैं अपनी मम्मा से दूर नहीं जाना चाहती।

इशिता {प्रिया से} :बेटा,आपकी मम्मा भी आपसे बहुत प्यार करती हैं और वो भी नहीं चाहती कि आप उनसे दूर जाएं।पर कभी कभी मम्मा को अपने बच्चों की भलाई के लिए उनसे दूर होना पड़ता है।और बेटा अगर आप अपनी मम्मा की बात हमेशा मानोगी तो आपको आपकी life में कभी कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।

प्रिया {इशिता से} :लेकिन,मैं मम्मा से बहुत गुस्सा हूँ।

इशिता {प्रिया से} (उदास होकर):नहीं,बेटा!अगर आप अपनी मम्मा से गुस्सा हो गईं तो आपकी मम्मा आपसे बहुत दूर चली जाएंगी।इतनी दूर कि शायद कभी लौट के ना आ पायें।

प्रिया {इशिता से} :नहीं नहीं फिर मैं अपनी मम्मा से कभी गुस्सा नहीं होऊँगी और हमेशा उनकी बात मानूँगी।

इशिता {प्रिया से} :That's like a good girl!अब जाओ आपकी मम्मा आपका wait कर रही होंगी।

प्रिया {इशिता से} :ok bye आंटी!

इशिता {प्रिया से} :bye बेटा!

[प्रिया वहाँ से चली जाती है और इशिता वहीं उदास होकर खड़ी रहती है।]

इशिता {अपने आप से} (उदास होकर):मम्मा!आज आपका birthday है और पिछले पाँच सालों की तरह मुझे ये आपके बिना मनाना पड़ेगा।काश आप मेरे साथ होतीं।

अंश {इशिता से} :दी!चलो जल्दी।

इशिता {अंश से} :हाँ,आई।

[इशिता एक वृद्धाश्रम के बाहर अंश के साथ पहुँच जाती है।उस वृद्धाश्रम का नाम होता है-Maanyta old age home]

अंश {इशिता से} :दी!आप पिछले पाँच साल से बुआ के birthday के दिन इन सभी औरतों का birthday मनाती हैं।पर ऐसा क्यों ?

इशिता {अंश से} :क्योंकि इन सभी को अपना बर्थडे याद ही नहीं है तो मैंने सोचा कि अगर मैं मम्मा के बर्थडे के दिन ही सबका बर्थडे मनाऊँगी तो शायद मम्मा भी मुझे माफ़ कर दें।

अंश {इशिता से} :दी!बुआ ने तो आपको उसी दिन माफ कर दिया था और जो माफी बची थी वो उन्होंने आपको तभी दे दी जब आपने ये old age home उनके नाम से बनाया।

इशिता {अंश से} :काश!तू जो कह रहा है वो सही हो और मम्मा ने मुझे माफ कर दिया हो।

[इशिता कहते हुए वहाँ से जाती है और बैकग्राउंड में म्यूजिक बजता है।]

जग से हारी नहीं मैं

खुद से हारी हूँ माँ

सबके लिए बुरी हूँ

तेरी दुलारी हूँ मैं

माई रे,माई रे

तेरे बिन मैं तो अधूरा रहा

माई रे,माई रे

मुझसे ही रूठी मेरी परछाई

मेरी परछाई तेरा ख्याल,

माई तेरी चुनरिया लहराई

झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई

झीना झीना रे उड़ा गुलाल

माई तेरी चुनरिया लहराई।


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