Roshan Baluni

Inspirational Others

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Roshan Baluni

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"माँ का हौसला"

"माँ का हौसला"

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शीला अपने गाँव में अपने दो बच्चों के साथ रहती थी।उसका पति रामकुमार नौकरी के लिए शहर गया था। गाँव में रहकर शीला मनरेगा, जलागम आदि सरकारी योजनाओं में काम करके बच्चों की फीस-वीस का इंतज़ाम कर लेती थी,और पति की कमाई जमापूंजी हो जाती थी। बच्चे पढ़ने के लिए पैदल ही स्कूल जाते थे। स्कूल लगभग 3-4मील दूर था। रास्ते में जंगल पड़ता था, जो बहुत घनघोर था। स्कूल जाते हुए जंगली जानवरों का भय बना रहता था। उन दिनों मैन ईटर बाघ लगा हुआ था, इसलिए शीला बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिए आधे रास्ते तक आती थी, जहाँ जंगल की सीमा समाप्त हो जाती थी। बाघ का दहशत इतना था कि वनविभाग को ग्राम प्रधान द्वारा लिखित रपट भी लिखवा दी गई।ग्राम प्रधान बीरबल ने मैनईटर बाघ को लेकर एक आवश्यक मीटिंग रखी थी। जिसमें ग्रामीण बच्चों के स्कूल जाते-आते समय सुरक्षा कैसे हो? इसपर चर्चा हुई। गाँव वालों ने कहा कि सुरक्षा का दायित्व सरकार का है, वन विभाग मैनईटर बाघ को पिंजरे में बंद करे या फिर उसे गोली मार दे। लिहाजा मीटिंग बेनतीजा रही। ग्रामप्रधान बीरबल ने कहा--"चलिए!देखते हैं,इस विषय पर अपने स्तर से कुछ सोचता हूँ"

   कुछ दिनों बाद शीला अपनी बेटे अमन से----"अमन बेटा! तैयार हो जाओ स्कूल के लिए और भैया को भी तैयार कर दो!"---ठीक है माँ! अमन बोला।---पर माँ तुम कहीं जा रही हो?----और हमें रास्ते तक छोड़ने कौन जायेगा? सुबह की स्कूल है,घना जंगल है--माँ बहुत डर है आजकल बाघ का!---कल भी उसकी घूरने की आवाज आ रही थी!--अमन डर के बोला।

   शीला बोली! ठीक है बेटा तुम दोनों को मैं ही छोड़ने आ रही हूँ बस!----शीला और उसके दोनों बच्चे अमन व नमन, स्कूल के रास्ते पर चलते हुए, और कुछ-कुछ बतियाते हुए इधर-उधर देखते हुए आगे बढ़ रहे थे कि----तभी पीछे से आवाज़ आई उईईईईई माँssssss बचाओsssssss!...झट से शीला पीछे मुड़ी तो देखा कि अमन को बाघ ने पंजे से जकड़ा हुआ है----वह जोर से चिल्लाई! उसमें अचानक हौसला कहाँ से आया! उसने दरांती से बाघ के साथ खूब संघर्ष किया! बहुत गुत्थमगुत्था के बाद बाघ से अमन छूट तो गया। लेकिन उसके गले और पीठ पर गहरे नाखून बाघ लगा चुका था,अपनी जान की परवाह किये बगैर बड़े हौसले व साहस से शीला ने संघर्ष करते-करते अपने बेटे अमन को आखिरकार बचा ही लिया। इसकी सूचना तुरन्त वन विभाग को दी गई।अमन को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, दो दिनों के प्राथमिक उपचार के बाद शीला और अमन ठीक हो गये। इस तरह शीला के हौसले व साहस की चर्चा अखबारों में छा चुकी थी। जिसका शीर्षक फ्रंट पेज पर मोटे अक्षरों में फोटो(माँ-बेटे की खून से लथपथ) के साथ छपा था माँ का हौसला।



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