Roshan Baluni

Inspirational

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Roshan Baluni

Inspirational

"हिम्मत"

"हिम्मत"

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बात उत्तराखण्ड के पौडीगढवाल के अन्तर्गत विकासखण्ड पाबो की है। थैलीसैण ब्लाक से सटे और घनघोर जंगल के बीच एक गाँव, जहाँ रोजमर्रा के कामों में लोग हमेशा की तरह संलग्न रहते हैं।प्रतिदिन ढोर-डंगरों को लेकर गाँव के चरवाहे रोज शाम-सुबह जंगल की ओर जाते ही थे, फिर गोधूलि के समय औरतें सिर पर जंगल से चारा-पत्ती लेकर भी घर लौटते थे।

    एक दिन एक महिला अपनी बालिका के साथ गाय-बकरियों के साथ उन्हें चरवाने के लिए जंगल की ओर चलते गये,उस दिन बालिका का विद्यालय नही था,क्योंकि इतवार था इसलिए उसने सोचा थोड़ा मम्मी के साथ काम में हाथ बँटा लिया जाये, बालिका ज्यादा बड़ी नहीं थी।--उम्र कोई 12-14साल रही होगी, परन्तु पहाड़ की लड़कियों में जज्बा और जीवटता कूट-कूटकर भरी होती है। यहाँ प्रायः पुरुष वर्ग मैदानी इलाकों में कमाने जाता है और स्त्रियाँ घरेलू कार्यों में व्यस्त रहती हैं।

   उस दिन श्रेया अपनी मम्मी(गोदाम्बरी)के साथ घास काट रही थी पास में ही, जंगल में जंगली जानवरों का खतरा तो बना ही रहता है और ये जंगल तो वैसे भी बहुत घनघोर है, बाघ तो मानो ऐसे मिलते हैं रोडों पर कि पूछो मत, आये दिन बाघ स्पष्टतया आते-जाते राहगीरों को भी दिख जाते हैं।

  आज गोदाम्बरी घास काटती हुई अपने पहाड़ी गुनगुनाते हुए----"ला ला ला ला ह्ममममम ठंडो रे ठंडो मेरा पहाड़ कि हवा ठंडी पाणी ठंडोssssओ हो ओहो ओहोsssss"

 तभी आवाज आई "धपाक ----उई माँsssss..गोदाम्बरी ने आवाज लगाई--श्रेया! श्रेया! आरे ओ श्रेया!!---केवल चिल्लाने की आवाज सुनी!---तभी उसकी नजर बाघ के ऊपर पडी!" उसने जोर हल्ला मचाया, हाथ में दराती लेकर बाघ की तरफ दौडी, और बाघ से संघर्ष किया---आखिर अपनी प्यारी लाडली को बाघ के चंगुल से छुड़ाना था। उसने हिम्मत नहीं हारी आखिरकार चार-पाँच के संघर्ष के बाद बाघ को श्रेया को छोड़ना ही पड़ा, परन्तु श्रेया के जिस्म पर बाघ काफी नाखून मार चुका था---गोदाम्बरी ने हिम्मत दिखाते हुए अपनी बेटी श्रेया की जान बचाई---इसकी सूचना वन विभाग को दी गई, श्रेया को दो-चार दिन के उपचार के बाद हास्पिटल से छुट्टी मिल गई, परन्तु गोदाम्बरी की हिम्मत की दाद अब सारा क्षेत्र दे रहा था।

 वस्तुतः पहाड़ की कई वीरांगनाओं ने समय-समय पर इसी तरह की हिम्मत दिखाते हुए अपना और प्रदेश का नाम कई मर्तबा रौशन किया है, हमें कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारते हुए देशकाल परिस्थित्यानुसार अपने काम को अंजाम तक पहुँचाना चाहिए।



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