महिलाओं का सशक्तिकरण
महिलाओं का सशक्तिकरण
वार्तमानिक परिदृश्य में देखें तो नारी अबला किसी भी तरह से नही हैं,अपितु महिलाएँ सशक्त होती जा रही हैं ,हाँ यदि हम ये सोचते हैं कि कुछ दरिंदों के कारण महिलाओं की सुरक्षा नही हो पा रही तो इसका यह कतई अर्थ नही कि नारी अबला है।
"#अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी# आँचल मेंदूध आँखों में पानी।आज के मौजूदा समय में यह उक्ति निरर्थक सी प्रतीत होती है।आज कौन सा क्षेत्र है जिसमें नारियों की सशक्त भागीदारी नही है,सब जगह है।महिलाओं ने इक्कीसवीं सदी में अपनी मेधा और कर्त्तव्यनिष्ठा की पराकाष्ठा करके दुनिया को दस का दम दिखाया है।
#वार्तमानिकदौरमेंसशक्तनारी
प्रकृति समान शांत ही ,होती हैं बेटियाँ।
सृष्टि निर्माण कृर्तृ भी, होती हैं बेटियाँ।
धरती माँ का रूप भी, होती हैं बेटियाँ।
ममता का समंदर सी,होती हैं बेटियाँ।
सशक्तनारी सशक्तसमाज एक ऐसा श्लाघनीय सोच का शानदार अभियान है,जिससे महिला सशक्तीकरण को सामाजिक ताने-बाने में और बल मिला है।इसी को मध्यनजर रखते हुए देश के माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से बेटियों को जल-थल-वायु सेना में तक दमदार उपस्थिति प्रदान की है।हाल ही में राफेल के भारत आते ही उस फाइटर प्लेन में अपनी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए उसे आसमान में बेहतरीन हौसले से महिला पायलट ने ही उडाया।आज बेटियाँ विज्ञान,रक्षा अनुसंधान,कृषि,शिक्षा,पत्रकारिता,और पत्रकारिता के विभिन्न क्षेत्र,चिकित्सा,प्रशासनिक,राजनीतिक,आर्थिक,मनोरंजन,साहित्यिक,या फिर सामाजिक क्षेत्र हो सब जगह महिलाशक्ति ने अपना सशक्त परिचय देकर अपना लोहा मनवाया है।यह विचारणीय है,फिर हम कैसे मान लें कि नारी अबला है?बल्कि हमारी अवधारणा परिवर्तित होनी चाहिए कि नारियाँ आज सशक्त और प्रखर होकर राष्ट्र अवदान में अपनी महती भूमिका निभाते हुए भी आपने सबलत्व का प्रमाण दे रही हैं।वस्तुत हमें सकारात्मक सोच के साथ महिलाओं के प्रति जो कुत्सित कृत्य और अपराध हो रहे हैं उस सिर धुनना चाहिए न कि महिलाओं को बेचारी,अबला आदि कहकर उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए।पुरुष के प्रति सकारात्मक और नारी के प्रति नकारात्मक अवधारणा ही अपराधों और लैंगिक विषमता और अपराधों को जन्म देती है।फिर कैसे महिलाएँ आत्मनिर्भर होगी?यह एक यक्षप्रश्न है। हमने बहुधा पढा है कि-- #यत्रनार्यस्तुपूज्यन्तेरमन्तेतत्रदेवता अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा(आदर-सत्कार, सम्मान) जाता है वहाँ देवता भी रमण करते हैं,परन्तु इसी अवधारणा को हम धत्ता बता देते हैं,जब वही बेटी गर्भ में मार दी जाती है।परिवार समाज की प्रथम इकाई वहीं से नारीकासशक्तीकरण की शुरुआत करनी चाहिए । जब सकारात्मक सोच उत्पन्न होगी तो समाज अपने आप सकारात्मक होगा।सरकार अभियानों की शुरुआत करके जनमानस के अंदर जागरुकता पैदा कर सकती है।आज (शिक्षा,स्वास्थ्य,खेल,विज्ञान,कृषि,सामाजिक,राजनीतिक,रक्षा आदि)में नारियाँ पुरुषों से कमतर नही हैं।इसलिए नारियों ने प्रत्येक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया है।
#नारी तुम केवल श्रद्धा हो
#विश्वास रजतनगपग तल में
#पीयूष स्रोत सी बहा करो
#जीवन के सुंदर समतल में
इस काव्यपंक्ति में नारी का प्रतिरूप ही बेटी है,वह श्रद्धा और विश्वास सम है,इस भावना के साथ हमें बेटियों की सुरक्षा का दायित्व निभाना चाहिए,और उन्हें सम्मान देना चाहिए।इसके माध्यम से बेटियों को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाकर हमारा देश अपने आप आत्मनिर्भर बन जायेगा,और हमारी जो वार्तमानिक मनोवृत्ति है कि #नारीअबलाहैयासबला यह प्रश्न ही आपने आप में व्यर्थ है।शकुंतला,लीलावती,अहिल्या,सीता,सावित्री से लेकर आधुनिक दौर में झाँसी रानी,रानी चेनम्मा,तीलू रौतेली जैसी वीरांगनाओं और कुलस्त्रियों ने आर्यावर्त का मान बढाया।स्वातंत्र्य भारत में इंदिरा गाँधी,सुषमा स्वराज,सानिया विलियम,कल्पना चावला,कर्णम मल्लेश्वरी,मैरीकाम,दीपा कर्माकर,दीपा मलिक,सानिया मिर्जा,साइना नेहवाल,गीता फोगाट ,पी०वी0 सिंधु पी0टी0ऊषा आदि कई और क्षेत्रों से नारी शक्ति हैं जिन्होंने अपनी मेधाविता का परिचय देकर माँ भारती का मान बढाया है।लेकिन आज बढते महिला अपराधों के कारण हम यह नही कह सकते कि नारी अबला है बल्कि इसके विपरीत ऐसे अपराधों के खिलाफ सशक्त कानून बनाकर सबला नारी को और भी सशक्त बनाने की ओर बढना चाहिए।दहेज प्रथा,यौन अपराध,भ्रूण हत्या,बलात्कार जैसे भयंकर अपराधों के खिलाफ एकजुट होकर महिला सशक्तीकरण की ओर बढना हम सबका परम ध्येय व लक्ष्य होना चाहिए।
अंत में अपनी विचारावलि को समाप्त करने से पूर्व एक बात अवश्य कहूँगा कि नारी आदिशक्ति है,सृष्टिकर्तृ है।शिवशक्ति अर्थात् नर-नारी से समूची सृष्टि चल रही है दोनों प्रकृति-पुरुष है जिससे संसार गतिमान है।