Priyanka Mudgil

Tragedy

4.6  

Priyanka Mudgil

Tragedy

लोग अपनी जरूरत के हिसाब से हमें इस्तेमाल करते हैं

लोग अपनी जरूरत के हिसाब से हमें इस्तेमाल करते हैं

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ये कहानी है मीनल की.. एक संस्कारी और समझदार महिला।बहुत जल्दी अपने ससुराल के माहौल मे ढल गयी थी। उसके परिवार मे उसके सास- ससुर , जेठ -जेठानी , उनके बच्चे और अपने पति दीपक और 4 साल की बेटी पीहू के साथ हँसी- खुशी से अपना जीवन बिता रही थी।।


तभी एक दिन मीनल के पति ने बताया कि उसका प्रमोशन हो गया है। ये सुनकर घर पर सब लोग बहुत खुश हुए लेकिन थोड़ी ही देर मे सब ये सुनकर परेशान हो गए कि अब दीपक को अपने नये ऑफिस, बैंगलोर मे शिफ्ट होना होगा।।


मीनल बैंगलोर नही जाना चाहती थी क्योंकि वो पहले कभी अकेले रही नही थी। घर पर रहते हुए उसे किसी भी तरह की चिंता करने की जरूरत नही पड़ती थी क्योंकि सब बड़े संभाल लेते थे। लेकिन अब उसे डर लग रहा था कि वो बैंगलोर मे अकेले सब कुछ कैसे मैनेज करेगी और सबसे बड़ी चिंता तो उसे अपनी बेटी पीहू की थी, जो हर पल पूरे परिवार से घिरी रहती थी।


अब वो दिन नजदीक था जब दीपक और मींनल को बंगलौर जाना था।

तभी मीनल की सासु माँ, "मीनल बेटा!! तुझसे एक बात कहनी है "


" हाँ माँ!! बोलिये ना "


" मीनल!! मुझे तुम्हारे ऊपर पूरा विश्वास है कि तुम सब संभाल लोगी, पर तुम दूसरों पर बहुत जल्दी भरोसा कर लेती हो.. इसलिए लोग तुम्हारे इसी भोलेपन का फायदा उठाने की कोशिश करते है... पहले सामने वाले को परखो, फिर भरोसा करो"


"जी माँ!! मैं ध्यान रखूंगी"


और बहुत ही भावुकतापूर्वक दीपक, मीनल और पीहू अपने परिवार से विदा लेते है । पीहू पूरे रास्ते सबको याद कर करके रोती रही.. बड़ी मुश्किल से दोनों ने उस संभाला।। अब मीनल को चिंता होने लगी कि बाकी सब तो ठीक है, पर पीहू को कैसे संभाल पायेगी..??


बंगलौर पहुँचने के बाद , मिनल अपनी नई घर गृहस्थी बसाने मे व्यस्त हो गयी। फिर धीरे -धीरे

वो परेशान रहने लगी क्योंकि अब दीपक सुबह जल्दी ऑफिस चले जाते और शाम को लेट आते, और पीहू भी स्कूल जाने लगी। अब तो मिनल दिन भर घर मे बोर होने लगी।


फिर उसने घर से बाहर निकालना शुरू किया.. तभी एक दिन उसकी मुलाकात संजना से हुई। थोड़ी देर की बातचीत मे ही मीनल, संजना से बहुत ज्यादा प्रभावित हुई। संजना का बात करने का ढंग, उसके हाव -भाव मीनल को बहुत अच्छे लगे। संजना ने उसे अपने घर आने का निमंत्रण दिया।


अगले दिन पीहू को स्कूल छोड़कर मीनल सीधा संजना के घर पहुँच गयी। संजना ने भी बहुत अच्छे से उसका स्वागत किया। संजना की भी 5 साल की बेटी, खुशी थी।। बहुत जल्दी संजना और मीनल की दोस्ती गहरी हो गयी।


जब मीनल ने अपने पति दीपक को संजना के बारे में बताया तो दीपक ने भी उसे यही कहा कि, " चलो अच्छा है कि तुम्हारी कोई सहेली बन गयी.. कम से कम अब तुम मुझे परेशान नही करोगी" और हँस दिये।।


मीनल भी खुश थी ये सोचकर की इस पराये शहर मे कोई तो मिला जिससे वो खुलकर बात कर सकती है, और से संजना से मिलकर उसे अपने परिवार की कमी भी महसूस नही होती थी।।


फिर एक दिन...


संजना, " मीनल!! तुम हमारी किट्टी पार्टी मे शामिल क्यूँ नही हो जाती.. इससे तुम्हारी कुछ और भी नई महिलाओं से जान- पहचान हो जायेगी और जिंदगी की इस निरसता से निकलकर थोड़ा मनोरंजन भी कर पाओगी.."


" ठीक है तो फिर मैं आज दीपक से पूछ लेती हूँ.. " मीनल ने जवाब दिया।


" अब क्या हर काम पति से पूछकर करोगी..??? भई, हम तो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीते है....तुम्हारे जैसी पत्नियाँ ही होती है जो अपने पति की आज्ञा के बिना सांस भी नही लेती"संजना व्यंग्य से हंसी


उसकी ये हँसी मीनल को चुभ गयी पर वो चुप रही।।


अब तो किटटी पार्टी मे मीनल की कई महिलाओं से दोस्ती हो गयी।।संजना का मीनल के घर आना -जाना बढ़ने लगा। अब वो धीरे धीरे अपनी बेटी खुशी को मीनल के घर छोड़कर कहीं भी घूमने चली जाती..!!मीनल अच्छे से खुशी को रखती। अपनी बेटी पीहू और खुशी को एक जैसा प्यार करती..


अब तो संजना अपनी बेटी के साथ साथ मीनल से खुद का खाना भी बनवाती और कभी कुछ तो कभी कुछ चीजें मांगने आ जाती।। फिर धीरे धीरे उसने मीनल के घर मे ज्यादा दखलंदाजी करना शुरू कर दिया।कभी वो पीहू को लेकर कोई भी कंमेंट् कर देती, तो कभी उसके घर के बारे मे...फिर भी मीनल दोस्ती की खातिर सब बर्दास्त कर रही थी।


एक बार संजना का किसी महिला से झगडा हो गया। मीनल भी वहीं पर थी और उसने अपनी दोस्त संजना का पक्ष लिया... इसलिए वो महिला मीनल से खफा हो गयी क्योंकि मीनल के उससे अच्छे रिश्ते थे लेकिन उसने सिर्फ अपनी सहेली के चक्कर मे उस महिला से झगडा किया ..


मीनल ,संजना को दिल से, अपनी दोस्त समझती थी, लेकिन संजना तो उसे सिर्फ इस्तेमाल कर रही थी ताकि जब भी उसे कभी बाहर जाना हो तो वो अपनी बेटी को उसके पास छोड़कर निश्चिंत होकर जा सके.. और उसके लिए खाना -पीना बना सके...लेकिन मीनल तो इन सब बातों से अंजान थी

तभी एक दिन.....मीनल का मन नही लग रहा था इसीलिए वो बिना बताये संजना के घर उससे मिलने चली गयी। पर जैसे ही वो दरवाजे के पास पहुंची.... तो उस संजना की जोरों से हँसने की आवाज आई..मीनल ने झांककर देखा तो वहाँ दो और महिलायें बैठी थी।। फिर मीनल संजना के मुँह से अपना नाम सुनकर वहीं रुक गयी


संजना बोल रही थी, "अरे कौन वो बेवकूफ मीनल...!!! वो तो पूरी की पूरी बेवकूफ है.. अरे..!! वो मेरी कोई अच्छी दोस्त -वोस्त नही है.. मैं तो बस उससे थोड़ा प्यार से बोल लेती हूँ.. तो वो मेरी बेटी को अपने पास रख लेती है.. और मैं थोड़ा निश्चिंत होकर घूमने चली जाती हूँ..


और फिर बाहर से आकर मुझमें खाना बनाने की हिम्मत नहीं रहती... तो उसे बोल देती हूँ.. अब बैंगलोर जैसे शहर मे खाना पकाने वाली भी बहुत महंगी मिलती है ना.. तो बस मीनल तो आजकल मेरे लिए मुफ्त की कुक है बस.. और कुछ नहीं.."

अब और ज्यादा कुछ सुनने की हिम्मत नही हुई मीनल की.. और रोते हुए घर वापिस आ गयी...


थोड़ी देर बाद उसने अपने घर की बालकनी से देखा की संजना उसी महिला से हँस -हँसकर बात कर रही थी, जिसके साथ उसका कुछ दिन पहले झगडा हुआ था।।उस महिला और मीनल के रिश्ते काफी अच्छे थे, लेकिन अपनी झूठी सहेली संजना की वजह से उसने,उस महिला की नजर में अपनी छवि खराब कर ली।। और तो और उस महिला ने मीनल से बातचीत बिल्कुल बंद कर दी।।


आज मीनल बहुत उदास हो गयी क्योंकि उसे नही पता था की जिसे वो अपना सच्चा दोस्त समझती आ रही थी... उस संजना की नजर मे उसकी औकात एक मेड की है.।। और तो और संजना उसकी पीठ पीछे बाकी लोगों के सामने उसकी छवि खराब करने की कोशिश कर रही थी, और खुद उसके सामने मीठा बनकर सच्ची दोस्त होने का दिखावा कर रही थी।संजना तो उसे सिर्फ अपनी जरूरत के हिसाब इस्तेमाल कर रही थी, और वो समझती थी कि वो उसे पसंद करती है 


तभी मीनल की माँ का फोन आता है। मीनल ने उन्हें सब बातें बताई और फिर माँ ने उसे कुछ करने को कहा, और फोन रख दिया।

फिर अगले दिन आदतन..


संजना, "मीनल!! मुझे बहुत जरूरी काम से बाहर जाना है.. तो तुम खुशी को देख लेना.. उसने कुछ खाया भी नही है.. तो उसे कुछ खिलाकर सुला देना... मैं शाम तक आ जाऊंगी, तो खाना हम साथ मे यहीं खा लेंगे.. ओके...बाय""


तभी मीनल, "रुको संजना!! आज खुशी को तुम साथ ले जाओ... मैं नहीं रख पाऊँगी... और हाँ!! रात का खाना तुम मैनेज कर लेना क्योंकि मेरी तबियत कुछ ठीक नही है,अब मुझसे ये सब नही हो पायेगा... अब तक किया सो किया.. आगे से तुम देख लेना...।।

संजना अवाक सी होकर मीनल को देखती रह गयी क्योंकि उसे मीनल से ऐसे जवाब की उम्मीद नही थी... और अपना सा मुँह लेकर वापिस चली गयी...


आज मीनल का मन शांत था क्योंकि उसका झूठी दोस्ती से पीछा छुट गया था।।


अक्सर हमारे आस -पास ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो हमारे सच्चे दोस्त होने का ढोंग रचते हैं। पर असलियत मे वो हमारा इस्तेमाल करते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर हम उनका साथ दे पाए। और हम सोचते हैं कि वो हमें पसंद करते हैं जबकि वो जरूरत पूरी होने पर नजरें फेर लेते हैं।


आपको क्या लगता है???

क्या मीनल ने अपनी झूठी दोस्त के साथ जो किया, वो सही था???



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