लिव इन।
लिव इन।
“रश्मि यार जल्दी करो लेट हो रहा है। तुम लड़कियों को भी रेडी होने में कितना टाइम लगता है।” विज्ञय झुंझलाते हुए बोला।
“बस दो मिनट, रात को प्रजेंटेशन पूरी करते करते रात के दो बज गए थे इसलिए ठीक से नींद भी पूरी नहीं हुई। बड़ी मुश्किल से तो सुबह उठी हूँ।” रश्मि ने बाल बनाते हुए कहा।
पाँच मिनट बाद रश्मि बाहर निकल कर आई तो एक सरप्राइज उसका इंतजार कर रहा था।
“हैप्पी फर्स्ट मीट एनिवर्सरी माई डियर रश्मि। आज के दिन ही तो हम दोनों ने लिव इन मे रहने का डिसीजन लिया था।”
“और इस बात को तीन साल हो गए। अब हमें शादी कर लेनी चाहिए। आई थिंक अब कुछ बचा नहीं एक दूसरे को समझने के लिए।”
“नहीं रश्मि जिंदगी तो पूरी ही कम पड़ती है एक दूसरे की कमियों को मानने के लिए। इस रिश्ते में कोई बंधन नहीं होता है और शादी में आदमी चाह कर भी आज़ाद नहीं होता।”
“ठीक है मैं तुम्हें फोर्स नहीं करूँगी। जब तुम इस उलझन से निकलो तभी यह टॉपिक सामने आएगा।”
“ऑफ़िस में लंच टाइम में विज्ञय सोच रहा था- उसके पापा ने किसी दूसरी औरत के लिए उसकी मम्मी को छोड़ दिया। उन्होंने सिर्फ अपनी जरूरत के बारे में ही सोचा। मम्मी अलग हो कर भी इस रिश्ते की कड़वाहट कभी भूल नहीं पाई। यह सही है कि मैं रश्मि से बहुत प्यार करता हूँ और कभी उसके साथ कुछ गलत नहीं करूँगा लेकिन डरता हूँ कि अगर शादी के बाद मैं भी पापा जैसा बन गया तो…..”
फिर उसे अपने दादा दादी याद आये। उन्होंने एक साथ कितनी लम्बी जिंदगी गुजारी थी। उस वक्त तो लिव इन जैसा कोई विचार भी पाप था। बचपन में भी उसे उन दोनों के बीच का समन्वय अचंभित कर देता था।
अब उसने तय कर लिया कि लिव इन मे एक दूसरे को समझने के बाद अब वह रश्मि से शादी करेगा और उसे निभाएगा भी।
