Pinki Murmu

Inspirational

3  

Pinki Murmu

Inspirational

लघुकथा मकर संक्रांति

लघुकथा मकर संक्रांति

2 mins
409


आज कारोना काल का लगभग दस माह बीत चुके है, इन दिनों सभी वर्गीय लोगों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ा ।

जिनमें कइयों के जीवन पटरी पर आ गयी कई अभी तक संघर्षरत है उन्हीं पर आधारित मेरी लघुकथा।


मकर संक्रांति 

शीला दौड़ती हुई पापा के पास आई और अपनी दोनों हथेलियां बढ़ाते हुए बोली, मेरे लिए क्या लाए हो पापा। मोहन क्या जवाब दें इन सात आठ महीनों से घर चलाना कितना मुश्किल हो गया है, उसने शीला को गोद में उठाते हुए कहा, आज नहीं कल तुम्हें तुम्हारे पसंद की चीज दूंगा।

 ग्यारह साल की शीला भी धीरे-धीरे हालातों को समझने लगी थी। बिना कुछ कहे खिलखिलाते हुए गली में खेलने चली गई ।


मोहन दिल्ली में काम करने वाला मजदूर था, लाक डाउन में किसी तरह घर तो आ गया लेकिन यहां रोजगार नहीं होने से आर्थिक स्थिति पूरी तरह डगमगा गई ।


तभी अचानक शीला हाथों में रंग-बिरंगे कागजों व लकड़ी के सिंक लेते हुए आती दिखी। देखो पापा मैंने क्या लाया है आप नव वर्ष में जो ₹40 दिए थे वह मैंने खर्च नहीं किए और उन रुपयों से ये सब खरीद लाई। आप पतंग बनाना और सामने मैदान में बेच आना, इससे हम लोग दही चूड़ा का पर्व मकर संक्रांति मनाएंगे ।

मोहन को याद आया कि किसी बड़े साहब के यहां नव वर्ष की पार्टी के बाद लाँन की सफाई करने का काम किया था, मजदूरी में मिले तीन सौ रुपए में से चालीस रुपए अपनी इकलौती बेटी को दिया था। अपनी बेटी की मासूमियत व समझ से मोहन की आंखों में आंसू आ गए। चलो बेटा, मकर संक्रांति की तैयारी करते हैं, मोहन ने शीला की पीठ थपथपाते हुये कहा।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational