निः शब्द
निः शब्द


इन तीन माह बात आज पत्नी कि काफी शिकायत बात आज हमदोनो बाजार कि ओर निकले बाहार कि आबोहवा ताजी हो गई थी, बाजार में पहले कि अपेक्षा भीङ अब न के बराबर थी। वरना इन लाकडाउन में बस आसपास जो मिलता था उससे गुजर बसर हो रहा था। सहसा फूलो की मंडी से मुझे वो खुशबू मुझे आने लगी जो बारह वर्षो में कही खो गयी थी, मैं धीरे धीरे उस ओर चल पङा जहा मुझे धुंधला सा वो अक्श दिखा जो कही छिप गया था, वो फूलवाले से सफेद गुलाब कि मांग कर रही थी और गुलाब कुछ पीले पन में था। मीरा यही नाम तो है उसका जिसे आज भी सादे गुलाब का गुलदस्ता पंसद। मुझे अचानक देख वो भी चौंक गयी। और पिछली बाते जो बारह वर्ष पूर्व कि थी इक सिनेमा जैसे घूमने लगी "सुयश मेरे पास इतने रुपये नही कि बार बार तुम्हें सिक्के डालकर फोन करू पापा का तबादला हो गया है कुछ दिनों में हम ये शहर छोङ चले जायेगे तुम प्लीज़ आके बात करो ना" और मैं उसकी बातें टाल कर भूल गया।उन दिनो मीरा और मैं अच्छे दोस्त के बाद कब प्रेमीयुगल बन गये पता ही न चला। लेकिन मैंने वक्त कि नजाकत नही समझी और कामयाबी शिखर चढते हुये लगभग भूल ही गया था। आज इतने सालो बाद अपने शहर में देख आश्चर्य हुआ, "मीरा मैं सुयश" , "तुम यहां"
" हां मेरा तबादला यहीं हुआ है और तब से लाकडाउन में कुछ", मीरा का छोटा सा जवाब दिया। "मैं तुमसे माफी मागंना चाहता हूँ । बताओ कहां रहती हो।"तभी मेरी पत्नी कि पीछे से आवाज आई "चलो जल्दी मौसम बदल रहा है बारिश होने वाली है शायद।" "मीरा बताओ न" मीरा जाने लगी और बस ये कहा "सुयश तुम और तुम्हारा साथ निःश्बद है मेरे लिये अब कुछ और का नाम न दो। जाओ बारिश होने वाली है जितना मेंने भिगोया है मन को इन बारह वर्ष में आज ये तुम्हें भिगोयेगी और मुझ में बसे बोझ को बहा ले गया जायेगी।"